Friday, 3 December 2010

राम जन्मभूमि फैसला किसी की हार-जीत नहीं : भागवत sorya divas 6 des. 1992 ko yaad kare




फैसला किसी की हार-जीत नहीं : भागवत
नई दिल्ली। अयोध्या मामले पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच का फैसला आने के बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि फैसले से राष्ट्रीय एकता को प्रदर्शित करने का अवसर मिला है। उन्होंने कहा कि पिछली सारी कटुता को भूलकर अब सभी को मिलजुल कर मंदिर निर्माण के काम में जुट जाना चाहिए। भागवत ने कहा कि इस फैसले को किसी की जीत या फिर किसी की हार के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। उन्होंने जनता से आह्वान किया कि सभी इस फैसले पर संयम बरतें और पूर्ण शांति बनाए रखें। किसी के दिल को ठेस पहुंचे, ऎसा कोई काम न किया जाए।
उन्माद की कोई जगह नहीं
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अयोध्या पर फैसला का स्वागत किया है। मोदी ने कहा कि फैसले को लेकर जो उत्सुकता थी वह अब खत्म हो गई है। सभ्य समाज में उन्माद के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। फैसले को भारत के सम्मान के साथ जोड़कर देखा जाना चाहिए। इसे किसी जाति और सम्प्रदाय से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। 
लखनऊ हाईकोर्ट परिसर किले में तब्दील लखनऊ। बहुप्रतीक्षित अयोध्या फैसले के मद्देनजर लखनऊ में सुरक्षा के कडे प्रबंध किए गए हैं। प्रशासन ने इलाहाबाद की लखनऊ पीठ को एक किले के रूप में तब्दील कर दिया गया है। उच्च न्यायालय परिसर के निकट होने के कारण कैसरबाग बस अड्डा बंद रहेगा। धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा पहले से लागू है। उच्च न्यायालय परिसर और आसपास के क्षेत्रों को छोड़कर शेष नगर में रोजमर्रा की तरह कामकाज होगा।

 
फैसले के दिन भी कर सकेंगे रामलला के दर्शन लखनऊ। राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के फैसले के दिन यानी गुरूवार को श्रद्धालुओं के अयोध्या में रामलला के दर्शन पर कोई प्रतिबंध नहीं रहेगा। फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट एम.पी. अग्रवाल ने बुधवार को कहा कि वहां रामलला के दर्शन पर कोई प्रतिबंध नहीं रहेगा।

अग्रवाल ने कहा कि किसी भी अन्य दिन की तरह फैसले के दिन भी श्रद्धालु दर्शन के लिए आ सकते हैं। यहां सब कुछ सामान्य है। फैजाबाद लखनऊ से करीब 150 किलोमीटर दूर स्थित है।


 
शायद अन्तिम फैसला होगा सर्वाधिक महत्वपूर्ण
लखनऊ। न्यायाधीश धर्मवीर शर्मा ने शायद ही सोचा होगा कि उनका अन्तिम फैसला न सिर्फ महत्वपूर्ण होगा बल्कि ऎतिहासिक भी। 


वर्ष 1982 बैच के पीसीएस.जे. शर्मा को 1985 में उच्च न्यायिक सेवा में प्रोन्नति मिली थी। वे 20 अक्टूबर 2005 को एडिशनल जज बने और 17 सितम्बर 2007 को उनकी नियुक्ति स्थाई जज के रूप में हो गई। उत्तर प्रदेश में वह संसदीय कार्य और न्याय विभाग में प्रमुख सचिव भी रहे।

इन चार बिन्दुओं पर होना है फैसला

इस मामले में न्यायालय को मुख्यरूप से चार बिंदुओं को संज्ञान में लेकर अपना निर्णय सुनाना है। पहला विवादित धर्मस्थल पर मालिकाना हक किसका है। दूसरा राम जन्मभूमि वहीं है या नहीं। तीसरा क्या 1528 में मन्दिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनी थी और चौथा यदि ऎसा है तो यह इस्लाम की परम्पराओं के खिलाफ है या नहीं।

13 बार पीठ बदली
अयोध्या के ऎतिहासिक मुकदमे की इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ में 21 साल चली सुनवाई के दौरान 13 बार बेंच बदली और इसमें 18 न्यायाधीश बदले गए। बेंच में बदलाव न्यायाधीशों के रिटायर होने या तबादला होने अथवा पदोन्नति के कारण करना पड़ा।

देश के सबसे बडे मुकदमों
लिब्रहान आयोग का 17 साल लम्बा सफर
विवादित ढांचा गिराए जाने की जांच के लिए 16 दिसंबर 1992 को लिब्रहान आयोग का गठन किया गया था। कहा गया था कि यह आयोग तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट दे देगा, लेकिन आयोग का कार्यकाल बढ़ता रहा। जून 2006 ने आयोग ने अपनी सुनवाई पूरी की। आयोग ने पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव, पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों कल्याण सिंह और मुलायम सिंह और पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी सहित बहुत से नेताओं के बयान दर्ज किए।

आखिरकार 17 साल बीतने के बाद 30 जन को केन्द्र सरकार को सौंपी तथा करीब छह माह बाद नवम्बर 2009 रिपोर्ट संसद के पटल पर रखी गई। आयोग की रपट संसद में पेश किए जाने से पहले ही मीडिया को लीक हो जाने से संसद में खासा हंगामा भी हुआ। यह भी खास बात रही कि लिब्रहान आयोग ने देश के अब तक के महंगे आयोगों में से एक हो गया। आयोग को मूलत: 16 मार्च 1993 में रिपोर्ट दे देनी थी लेकिन इसे लगभग 48 बार विस्तार दिया गया। आयोग ने करीब 400 बैठकें की। आयोग पर कुल आठ करोड़ से भी ज्यादा खर्च आया।



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