Friday, 3 December 2010

अदालत की भूमिका श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन

अदालत की भूमिका श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन
न्यायालय ने रामलला का मुकदमा लड़ने के लिए देवकी नन्दन अग्रवाल को रामलला के अभिन्न सखा (Next Friend) के रूप में अधिकृत कर दिया। इस वाद में अदालत से मांग की गई थी कि श्रीराम जन्मभूमि अयध्या का सम्पूर्ण परिसर वादी (देव-विग्रह) का है,

अयोध्या विवाद से सम्बंधित पांच मुकदमे चल रहे हैं। प्रथम वाद 1950 में गोपाल सिंह विशारद ने (सिविल वाद संख्या 2/1950) सिविल जज फैजाबाद की अदालत में दायर किया था जिसमें मांग की गयी थी कि भगवान के निकट जाकर दर्शन और पूजा करने का वादी का अधिकार सुरक्षित रखा जाए, इसमें किसी प्रकार की बाधा या विवाद प्रतिवादियों द्वारा खड़ा किया जाए और ऐसी निषेधाज्ञा जारी की जाए ताकि प्रतिवादी भगवान को अपने वर्तमान स्थान से हटा सके। इसी प्रकार की मांग करते हुए दूसरा वाद (संख्या 25/1950) परमहंस रामचन्द्र दास महाराज ने दायर किया। गोपाल सिंह विशारद के वाद में निचली अदालत (ट्रायल र्ट) ने अन्तरिम निर्णय देकर श्रीरामलला की मूर्तियां उसी स्थान पर बनाए रखने और हिन्दुओं द्वारा उनकी पूजा अर्चना, आरती और भोग निर्बाध रूप से जारी रखने का आदेश दिया और एक रिसीवर नियुक्त कर दिया। इस अन्तरिम आदेश की पुष्टि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अप्रैल 1955 में कर दी। तृतीय वाद में सन् 1959 में निर्मोही अखाड़े ने (संख्या 26/1959) दायर करके मांग की कि श्रीराम जन्मभूमि की पूजा व्यवस्था की देखभाल का दायित्व निर्मोही अखाड़े को दिया जाए और रिसीवर को हटा दिया जाए।

चतुर्थ वाद 18 दिसम्बर 1961 को (अर्थात श्रीरामलला प्राकटय के 11 वर्ष 11 माह 26 दिन बाद) उत्तर प्रदेश सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड ने (संख्या 12/1961) दायर किया। अपने वाद में विवादित ढांचे को 'मस्जिद' घोषित करने, पूजा सामग्री हटाने और ढांचे के चारों ओर के आसपास के भू-भाग को कब्रिस्तान घोषित करने की मांग की। यह भी उल्लेखनीय है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने फरवरी 1996 में कब्रिस्तान सम्बंधी अपनी प्रार्थना को वापस ले लिया। परिणामस्वरूप विवाद केवल तीन गुम्बदों वाले ढांचे तक ही सीमित रह गया। यही छोटा सा स्थान अदालत के समक्ष आज विचाराधीन है। अन्तिम और पंचम वाद भगवान श्रीरामलला विराजमान की ओर से 1 जुलाई 1989 को देवकी नन्दन अग्रवाल (पूर्व न्यायाधीश इलाहाबाद हाईकोर्ट) ने दायर किया। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार प्राण-प्रतिष्ठित मूर्ति एक जीवित इकाई है जोकि अपना मुकदमा लड़ सकती है परन्तु प्राण-प्रतिष्ठित मूर्ति अवयस्क मानी जाती है और उनका मुकदमा लड़ने के लिए किसी एक व्यक्ति को माध्यम बनाया जाता है। इसलिए न्यायालय ने रामलला का मुकदमा लड़ने के लिए देवकी नन्दन अग्रवाल को रामलला के अभिन्न सखा (Next Friend) के रूप में अधिकृत कर दिया। इस वाद में अदालत से मांग की गई थी कि श्रीराम जन्मभूमि अयध्या का सम्पूर्ण परिसर वादी (देव-विग्रह) का है, अत: श्रीराम जन्मभूमि पर नया मन्दिर बनाने का विरोध करने वाले अथवा इसमें किसी प्रकार की आपत्ति या बाधा खड़ी करने वाले प्रतिवादियों के विरूध्द स्थायी स्थगन आदेश जारी किया जाये।

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