Monday, 6 December 2010

रामजन्म भूमि मंदिर निर्माण के लिए हनुमत शक्ति जागरण अनुष्ठान

राम लला टाट में  देश, हिन्दू समाज सहन नहीं करेगा

राम जन्म भूमि पर मंदिर निर्माण के फैसले के इंतजार में साठ वर्ष बीत चुके हैं। अब वक्त गया है कि सोमनाथ कि तर्ज पर संसद में कानून बनाकर श्रीराम जन्म भूमि को सम्मान पूर्वक हिंदू समाज को सौंप दिया जाए।

 

 
रामजन्म भूमि भगवान का प्राकट्य स्थल है, अयोध्या की सांस्कृतिक सीमा में किसी मस्जिद का निर्माण नहीं होने देंगे। देश में मंदिर निर्माण कीअलख जगाने के  हर गली-मोहल्ले में रामभक्त हनुमान का गुणगान किया जाएगा। यह मुद्दा राजनीति का हिस्सा बने, इसके लिए 19 दिसंबर आयोजित सभा यह अभियान चलेगा। इसमें गांव-गांव, मोहल्ले जिलास्तर पर मंदिरों में संतों की अगुवाई में धार्मिक अनुष्ठकिए जाएंगे। इन अनुष्ठानों में शामिल होने वाले भक्तजनों से हस्ताक्षर भी करवाए जाएंगे।

राष्ट्रीय स्वाभिमान का संघर्ष 
श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन को केवल हिन्दू मुस्लिम संघर्ष नहीं, मंदिर-मस्जिद विवाद नहीं कहा जा सकता | यह सत्य और असत्य के बीच संघर्ष था जिसे न्यायालय ने भी स्वीकार किया है! यह राष्ट्रीयता बनाम अराष्ट्रीय का संघर्ष है। राष्ट्र माने केवल भू भाग, जमीन का टुकड़ा नहीं वरन् उस जमीन पर बसने वाले समाज में विद्यमान एकत्व की भावना है। यह भावना देश का इतिहास, परम्परा, संस्कृति से निर्माण होती है। मूलतः यह प्रश्न सभ्यता के अस्तित्व से जुड़ी हुई मान्यताओं और विश्वास का है ..! जिसे एक भव्य और महत्वाकांक्षी श्रीराम मंदिर निर्माण के बिना  पूरा नहीं किया जा सकता राम राष्ट्र की आत्मा हैं।
राम इस देश का इतिहास ही नहीं बल्कि एक संस्कृति और मर्यादा का प्रतीक हैं, एक जीता जागता आदर्श हैं। इस राष्ट्र की हजारों वर्ष की सनातन परम्परा के मूलपुरुष हैं। हिन्दुस्थान का हर व्यक्ति, चाहे पुरुष हो, महिला हो, किसी प्रांत या भाषा का हो उसे राम से, रामकथा से जो लगाव है, उसकी जितनी जानकारी है, जितनी श्रद्धा है और किसी में भी नहीं है। भगवान् राम राष्ट्रीय एकता के प्रतीक हैं। राम राष्ट्र की आत्मा हैं।

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