Tuesday, 14 December 2010

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

प्रस्तुत पुस्तक में सरदार बल्लभभाई पटेल के व्यक्तित्व एवं विचारों का सजीव चित्रण प्रस्तुत किया गया है।
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को वैचारिक एवं क्रियात्मक रूप में एक नई दिशा देने के कारण सरदार पटेल ने राजनीतिक इतिहास में एक गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त किया। वास्तव में वे आधुनिक भारत के शिल्पी थे। उनके कठोर व्यक्तित्व में विस्मार्क जैसी संगठन कुशलता, कौटिल्य जैसी राजनीति सत्ता तथा राष्ट्रीय एकता के प्रति अब्राहम लिंकन जैसी अटूट निष्ठा थी। जिस अदम्य उत्साह असीम शक्ति से उन्होंने नवजात गणराज्य की प्रारम्भिक कठिनाइयों का समाधान किया, उसके कारण विश्व के राजनीतिक मानचित्र में उन्होंने अमिट स्थान बना लिया।

आमुख


फ्रैंक मोराएस ने लिखा है : ‘‘एक विचारक आपका ध्यान आकर्षित करता है; एक आदर्शवादी आदर का आह्वान करता है, पर कर्मठ व्यक्ति, जिसको बातें कम और काम अधिक करने का श्रेय प्राप्त होता है, लोगों पर छा जाने का आदी होता है, और पटेल एक कर्मठ व्यक्ति थे।’’

सरदार पटेल भारत के देशभक्तों में एक अमूल्य रत्न थे। वे भारत के राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संग्राम में अक्षम शक्ति स्तम्भ थे। आत्म-त्याग, अनवरत सेवा तथा दूसरों को दिव्य-शक्ति की चेतना देने वाला उनका जीवन सदैव प्रकाश-स्तम्भ की अमर ज्योति रहेगा। वास्तव में वे आधुनिक भारत के शिल्पी थे। इस मितभाषी, अनुशासनप्रिय और कर्मठ व्यक्ति के कठोर व्यक्तित्व में विस्मार्क जैसी संगठन कुशलता, कौटिल्य जैसी राजनीतिक सत्ता तथा राष्ट्रीय एकता के प्रति अब्राहम लिंकन जैसी अटूट निष्ठा थी। जिस अदम्य उत्साह, असीम शक्ति, मानवीय समस्याओं के प्रति व्यवहारिक दृष्टिकोण से उन्होंने निर्भय होकर नवजात गणराज्य की प्ररम्भिक कठिनाइयों का समाधान अद्भुत सफलता से किया, उसके कारण विश्व के राजनीतिक मानचित्र में उन्होंने अमिट स्थान बना लिया।

सरदार पटेल मन, वचन तथा कर्म से एक सच्चे देशभक्त थे। वे वर्ण-भेद तथा वर्ग-भेद के कट्टर विरोघी थे। वे अन्तःकरण से निर्भीक थे। अद्भुत अनुशासन प्रियता, अपूर्व संगठन-शक्ति, शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता उनके चरित्र के अनुकरणीय अलंकरण थे। कर्म उनके जीवन का साधन था। संघर्ष को वे जीवन की व्यस्तता समझते थे। गांधीजी के कुशल नेतृत्व में सरदार पटेल का स्वतन्त्रता आन्दोलन में योगदान उत्कृष्ट एवं महत्त्वपूर्ण रहा है। स्वतन्त्रता उपरान्त अदम्य साहस से उन्होंने देश की विभिन्न रियासतों का विलीनीकरण किया तथा भारतीय प्रशासन की निपुणता तथा स्थायित्वता प्रदान किया।

सरदार पटेल का व्यक्तित्व विवादास्पद रहा है। प्रायः उन्हें ‘असमझौतावादी’’, ‘पूँजी समर्थक’, ‘मुस्लिम विरोधी’, तथा ‘वामपक्ष विरोधी’ कहा जाता है। इस शोध-प्रबन्ध में सरदार पटेल की राजनीतिक भूमिका, योगदान तथा चिंतन का सही विश्लेषण किया गया है तथा भ्रान्तियाँ दूर करने का प्रयास किया गया है। अध्ययन का लक्ष्य पक्षपातों तथा पूर्वाग्रहों से रहित वास्तविक तथ्यों को प्रस्तुत करना है।

लेखक का विश्वास है कि इस पुस्तक द्वारा सरदार पटेल के राजनीतिक जीवन से सम्बन्धित उपेक्षित या छिपे हुए महत्त्वपूर्ण तथ्यों को सामने लाकर उसका आलोचनात्मक विश्लेषण राजनीतिक साहित्य की एक अमूल्य निधि होगी।
लेखक डा. रूपसिंह, रीडर व विभागाध्यक्ष राजनीति शास्त्र, आर. एस. एम. कालेज धामपुर (विजनौर) के आभारी एवं कृतज्ञ हैं जिन्होंने अपना बहुमूल्य समय देकर सहायता प्रदान की।

लेखक डा. हरिदेव शर्मा, उप-निर्देशक नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एवं लाइब्रेरी, तीनमूर्ति, दिल्ली, तथा इण्डियन कौसिल आफ वर्ल्ड अफेयर्स, दिल्ली, अखिल भारतीय कांग्रेस लायब्रेरी, दिल्ली, राष्ट्रीय अभिलेखागार एवं राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली के आभारी हैं जहाँ उन्हें अध्ययन हेतु बहुमूल्य सामग्री उपलब्ध कराई गई।
अन्त में लेखक उन सभी के प्रति आभार प्रकट करते हैं जिन्होंने प्रत्यक्ष परोक्ष रूप से इस पुस्तक में अपना सहयोग प्रदान किया।

-डा. एन.सी. मेहरोत्रा
-डा. रंजना कपूर

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जीवन परिचय


भारतीय राष्ट्रीय अन्दोलन की वैचारिक एवं क्रियात्मक रूप में एक नई दिशा देने के कारण सरदार वल्लभभाई पटेल ने राजनीतिक इतिहास में एक गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त किया। वास्तव में वे आधुनिक भारत के शिल्पी थे। इस मितभाषी, अनुशासनप्रिय और कर्मठ व्यक्ति के कठोर व्यक्तित्व में विस्मार्क जैसी संगठन कुशलता, कौटिल्य जैसी राजनीतिक सत्ता तथा राष्ट्रीय एकता के प्रति अब्राहम लिंकन जैसी अटूट निष्ठा थी। जिस अदम्य उत्साह, असीम शक्ति, मानवीय समस्याओं के प्रति व्यवहारिक दृष्टिकोण से उन्होंने निर्भय होकर नवजात गणराज्य की प्रारम्भिक कठिनाइयों का समाधान अद्भुत सफलता से किया, उसके कारण विश्व के राजनीतिक मानचित्र में उन्होंने अमिट स्थान बना लिया।

1. प्रारम्भिक जीवन एवं प्रेरणा स्रोत

वल्लभभाई पटेल के प्रारम्भिक जीवन का इतिहास अधिक उत्तेजनीय नहीं है। यह घटना रहित जीवन है।1 बालक वल्लभभाई का जन्म अपनी ननसाल नड़ियाद में हुआ था। हाईस्कूल प्रमाण-पत्र के आधार पर उनकी जन्म तिथि 31 अक्टूबर, 1875 है। वल्लभभाई के पिता झबेरभाई गुजरात प्रान्त में बोरसद ताल्लुके के करमसद ग्राम के एक साधारण कृषक थे। करमसद ग्राम के इर्द-गिर्द मुख्यतः दो उप-जातियाँ ‘लेवा’ और ‘कहवा’ निवास करती हैं। इन दोनों उपजातियों की उत्पत्ति भगवान रामचन्द्र के वीर पुत्रों लव और कुश से बताई जाती है। सरदार वल्लभभाई पटेल लेवा उपजाति से सम्बन्धित थे, वे पटेल जाति से कुरमी क्षत्री थे।

वल्लभभाई के पिता झबेरभाई साहसी, संयमी एवं वीर पुरुष थे। सन् 1857 में स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम आन्दोलन में उन्होंने अपनी युवावस्था में मातृभूमि की सेवा में अपने को अर्पित कर दिया था। कहा जाता है कि घरवालों को बिना बताए वे तीन साल लापता रहे। उन्होंने झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई तथा नाना साहब घोड़ोपन्त की सेनाओं में भाग लेकर अंग्रेजों के साथ युद्ध भी किया था।2

झबेरभाई एक धर्म परायण व्यक्ति थे। गुजरात में सन् 1829 में स्वामी सहजानन्द द्वारा स्थापित स्वामी नारयण पंथ के वे परम भक्त थे। पचपन वर्ष की अवस्था के उपरान्त उन्होंने अपना जीवन उसी में अर्पित कर दिया था।
वल्लभभाई ने स्वयं कहा है : ‘‘मैं तो साधारण कुटुम्ब का था। मेरे पिता मन्दिर में ही जिन्दगी बिताते थे और वहीं उन्होंने पूरी की।’’3

वल्लभाभाई की माता लाड़बाई अपने पति के समान एक धर्मपरायण महिला थी। वल्लभभाई पाँच भाई व एक बहन थे। भाइयों के नाम क्रमशः सोभाभाई, नरसिंहभाई, विट्ठलभाई, वल्लभभाई और काशीभाई थे। बहन डाबीहा सबसे छोटी थी। इनमें विट्ठलभाई तथा वल्लभभाई ने राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेकर इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान ग्रहण किया। माता-पिता के गुण संयम, साहस, सहिष्णुता, देश-प्रेम का प्रभाव वल्लभभाई के चरित्र पर स्पष्ट था।

वल्लभभाई का लालन-पालन विशुद्ध ग्रामीण वातावरण में हुआ। यद्यपि उन्होंने कृषि कार्य नहीं किया परन्तु कृषि एवं पशुपालन परिवार की आजीविका का प्रमुख साधन था। अनिश्चितता ग्रामीण अर्थव्वस्था की एक विशेषता रही है। असाधारण से साधारण राजस्व अधिकारी किसानों को परेशान करते थे। वल्लभभाई पटेल ने किसानों एवं मजदूरों की कठिनाइयों पर अन्तर्वेदना प्रकट करते हुए कहा :‘‘दुनिया का आधार किसान और मजदूर पर हैं। फिर भी सबसे ज्यादा जुल्म कोई सहता है, तो यह दोनों ही सहते हैं। क्योंकि ये दोनों बेजुबान होकर अत्याचार सहन करते हैं। मैं किसान हूँ, किसानों के दिल में घुस सकता हूँ, इसलिए उन्हें समझता हूँ कि उनके दुख का कारण यही है कि वे हताश हो गये हैं। और यह मानने लगे हैं कि इतनी बड़ी हुकूमत के विरुद्ध क्या हो सकता है ? सरकार के नाम पर एक चपरासी आकर उन्हें धमका जाता है, गालियाँ दे जाता है और बेगार करा लेता है।’’4 किसानों की दयनीय स्थिति से वे कितने दुखी थे इसका वर्णन करते हुए पटेल ने कहा: ‘‘किसान डरकर दुख उठाए और जालिम का लातें खाये, इससे मुझे शर्म आती है। और मैं सोचता हूँ कि किसानों को गरीब और कमजोर न रहने देकर सीधे खड़े करूँ और ऊँचा सिर करके चलने वाले बना दूँ। इतना करके मरूँगा तो अपना जीवन सफल समझूँगा।’’5

2. बाल्यकाल एवं विद्यार्थी जीवन

वल्लभभाई का बाल्यकाल अपने माता-पिता के साथ अपने गाँव करमसद में ही व्यतीत हुआ। पिता बालक वल्लभाभाई को नित्य प्रातःकाल अपने साथ खेत पर ले जाते और आते-जाते रास्ते में पहाड़े याद कराते थे। यह उनकी प्रारम्भिक शिक्षा का प्रारम्भ था। इसके उपरान्त उन्होंने पटेलाद की पाठशाला में प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण की। माध्यमिक शिक्षा के लिए वे पहले नड़ियाद, फिर बड़ौदा तथा इसके बाद पुनः नड़ियाद आये जहाँ से सन् 1897 में 22 वर्ष की आयु में मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की।

वल्लभभाई विद्यार्थी जीवन से ही अत्यन्त निर्भीक थे। अन्याय के विरुद्ध विद्रोह उनके जीवन का विशिष्ट गुण था। जिसके परिणामस्वरूप विद्यार्थी जीवन में उन्हें कई बार अध्यापकों का विरोध सहना पड़ा। नड़ियाद में उनके विद्यायल के अध्यापक पुस्तकों का व्यापार करते थे तथा छात्रों को बाध्य करते थे कि पुस्तकें बाहर से न खरीदकर उन्हीं से खरीदें। वल्लभभाई ने इसका विरोध किया तथा छात्रों को अध्यापकों से पुस्तकें न खरीदने के लिए प्रेरित किया। परिणामस्वरूप अध्यापकों और विद्यार्थियों में संघर्ष छिड़ गया। पाँच-छः दिन विद्यालय बन्द रहा। अन्त में अध्यापकों द्वारा पुस्तकें बेचने की प्रथा बन्द हुई।

मैट्रिक की पढ़ाई के लिए वल्लभभाई नड़ियाद से बदौड़ा गए। यहाँ भी अपनी निर्भीक प्रवृत्ति के कारण उनका एक अध्यापक से मनमुटाव हो गया। मैट्रिक में संस्कृत व गुजराती में से एक विषय लेना पड़ता था। वल्लभभाई ने गुजराती ली जिसे छोटेलाल नामक अध्यापक पढ़ाते थे। वे उन छात्रों को पसन्द नहीं करते थे जो संस्कृत में अरुचि के कारण गुजराती विषय चुनते थे। अध्यापक ने कटाक्ष करते हुए वल्लभभाई से कहा :‘‘संस्कृत छोड़कर गुजराती ले रहे हो, क्या तुम्हें ज्ञात नहीं कि संस्कृत के बिना गुजराती शोभा नहीं देती ?’’ वल्लभभाई ने तत्काल उत्तर दिया : ‘‘गुरूजी, यदि हम संस्कृत पढ़ते तो आप किसे पढ़ाते ?’’ वल्लभभाई की स्पष्टवादिता से अध्यापक चिढ़ गए।

उन्होंने न केवल वल्लभाभाई को दिनभर कक्षा की पिछली बेंच पर खड़े रहने की आज्ञा दी, साथ ही साथ प्रतिदिन घर से पहाड़े लिखकर लाने को कहा। एक दिन वल्लभभाई पहाड़े लिखकर नहीं ले गए। अध्यापक द्वारा कारण जानने पर उन्होंने उत्तर दिया : ‘‘पाड़े़ भाग गये।’’ पाड़े भैंस के बच्चें को भी कहते हैं। इस पर अध्यापक अधिक क्रोधित हो गए। 1949 में ‘शंकर वीकली’ के बच्चों के विशेषांक में एक सन्देश में पटेल ने अपने बाल्यकाल के विषय में कहा : ‘‘जहाँ तक मुझे ध्यान है, मैं शरारत में या छिपकर दूसरों को मूर्ख बनाने में पीछे नहीं रहता था। जहाँ मुझे स्मरण है, मैं यह कार्य अच्छे उद्देश्य हेतु करता था। मैं अध्ययन में उतना ही गंभीर था जितना कि खेलों में प्रसन्नचित्त। मुझे लापरवाह अध्यापकों से कोई सहानुभूति न थी। उनको मैं छोड़ता न था। बच्चों के रूप में अध्यापकों को ठीक करने का हम सबका अपना ढंग था और उसके लिए हम सब उन उपायों का प्रयोग करते थे जो बच्चों को करना चाहिए।’’6

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