Friday, 3 December 2010

जरा विचार करें श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन

जरा विचार करें श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन
सोमनाथ मन्दिर का निर्माण सरदार पटेल की राष्ट्रभक्ति का प्रतीक है, यदि प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र बाबू का सोमनाथ मन्दिर में प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर उपस्थित रहना उनकी राष्ट्रभक्ति का प्रतीक है, तो श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति का आन्दोलन भी राष्ट्रभक्ति का ही प्रतीक है। श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आन्दोलन यह किसी मन्दिर को प्राप्त करने की सामान्य लड़ाई नहीं है। कभी भी बदलने वाली जन्मभूमि को प्राप्त करने का यह संघर्ष है। जन्मभूमि भी एक ऐसे महपुरुष की जिसे कोटि-कोटि हिन्दू भगवान के रूप में पूजता है,


स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात के राजनीतिक नेतृत्व का व्यवहार श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन को समझने में बहुत सहायक है। आजादी के तत्काल बाद झण्डा बदला गया, यूनियन जैक के स्थान पर तिरंगा लाया गया अर्थात यूनियन जैक में गुलामी और तिरंगे में स्वातंत्र्य और स्वाभिमान के दर्शन किए गए। देश में जहां-जहां रानी विक्टोरिया की मूर्तियां स्थापित थीं, उन सबको एक-एक करके हटाया जाने लगा। अयोध्या तुलसी उद्यान, अमृतसर का विक्टोरिया चौक, दिल्ली में चांदनी चौक का पार्क इसके उदाहरण हैं। दिल्ली में इण्डिया गेट के नीचे खड़ी अंग्रेज की मूर्ति हटाई गई। देश में सड़कों और पार्कों के नाम बदले गए, जीटी रोड, महात्मा गांधी मार्ग बन गया। कम्पनी गार्डन को गांधी पार्क कहा जाने लगा। दिल्ली के इर्विन हॉस्पिटल, विलिंग्टन हॉस्पिटल, मिन्टो ब्रिज ये सभी नाम बदल दिए गए। कारण स्पष्ट है कि इन नामों में विदेशी गुलामी की दुर्गन्ध आती थी।

गुलामी के प्रतीकों को समाप्त करने की प्रेरणा से प्रेरित होकर प्रथम गृहमंत्री सरदार बल्लभ पटेल ने सोमनाथ मन्दिर की मुक्ति का संकल्प लिया था, केन्द्रीय मंत्री मण्डल ने प्रस्ताव पारित किया। महात्मा गांधी की सहमति से एक न्यास बना, रातों-रात सोमनाथ मन्दिर के स्थान पर बना ढांचा समुद्र में चला गया। सम्पूर्ण भूखण्ड न्यास को समर्पित हो गया। एक भव्य वहां मन्दिर का निर्माण हुआ। मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा के समय प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद बाबूजी स्वयं उपस्थित रहे। उनका भाषण सबके लिए और आने वाली पीढ़ियों के लिए भी मार्गदर्शक है। देश में धीरे-धीरे मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति शुरू हो गई। सरदार पटेल की मृत्यु के बाद इस्लामिक गुलामी के चिन्हों को हटाने में राजनेताओं को अपना राजनीतिक जीवन समाप्त होता दिखने लगा। मुस्लिम समाज चुनावों में मुस्लिम हितों की रक्षा के लिए मतदान करता है जबकि हिन्दू समाज अपनी जाति, भाषा, पंथ के आधार पर अपनी रूचि के व्यक्ति जिताने में आनन्दित होता है। वह अपने सम्मान की रक्षा के लिए वोट नहीं देता। इस परिस्थिति को बदलने का कार्य श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन ने किया। मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति पर अंकुश लगा।
हिन्दू समाज अपने, अपने पूर्वजों, धर्म, संस्कृति के सम्मान की रक्षा के लिए जागरूक बना। यदि अंग्रेजों की गुलामी के प्रतीकों को हटाना राष्ट्रभक्ति है, सोमनाथ मन्दिर का निर्माण सरदार पटेल की राष्ट्रभक्ति का प्रतीक है, यदि प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र बाबू का सोमनाथ मन्दिर में प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर उपस्थित रहना उनकी राष्ट्रभक्ति का प्रतीक है, तो श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति का आन्दोलन भी राष्ट्रभक्ति का ही प्रतीक है। श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आन्दोलन यह किसी मन्दिर को प्राप्त करने की सामान्य लड़ाई नहीं है। कभी भी बदलने वाली जन्मभूमि को प्राप्त करने का यह संघर्ष है। जन्मभूमि भी एक ऐसे महपुरुष की जिसे कोटि-कोटि हिन्दू भगवान के रूप में पूजता है, मृत्यु के समय भी जिस नाम के उच्चारण की लालसा रखता है। इससे भी अधिक यह संघर्ष विदेशी इस्लामिक आक्रमणकारी के कलंक को मिटाने का संघर्ष है, यह संघर्ष हिन्दू समाज की सांस्कृतिक आजादी की लड़ाई है।

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