Saturday, 4 December 2010

ढांचे की पूर्णाहुति श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन


ढांचे की पूर्णाहुति श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन
सन् 1528 ईस्‍वी में भारत के मस्तक पर लगा कलंक का प्रतीक तीन गुम्बदों वाला ढांचा 6 दिसम्बर 1992 का शाम ढलते-ढलते स्वयं अतीत का हिस्सा बन चुका था।

तीस
अक्टूबर 1992 को दिल्ली में आयोजित पंचम धर्म संसद में पुन: कारसेवा प्रारम्भ करने के लिए 6 दिसम्बर की तिथि घोषित कर दी गई। नवम्बर के अन्तिम सप्ताह से ही अयोध्या में कारसेवकों का पहुंचना प्रारम्भ हो गया। अपेक्षा थी कि उच्च न्यायालय 2.77 एकड़ अधिग्रहीत भूखण्ड के विरुद्ध दायर की गई याचिकाओं पर अपना सुरकषित रखा गया निर्णय 6 दिसम्बर के पूर्व सुना देगा। उत्तर प्रदेश सरकार ने 25 नवम्बर को सर्वोच्च न्यायालय से प्रार्थना भी की थी कि सर्वोच्च न्यायालय स्वयं आदेश जारी कर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ से सुरक्षित रखा गया निर्णय शीघ्र सुना देने का अनुरोध करे, सर्वोच्च न्यायालय ने उचित निर्देश दिया भी परन्तु उच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाने की तिथि 11 दिसम्बर घोषित कर दी। उत्तर प्रदेश सरकार चाहती थी कि निर्णय का केवल क्रियान्वयन वाला भाग ही 6 दिसम्बर के पूर्व सुना दिया जाए ताकि अनिश्चितता का अन्त हो, किन्तु यह दलील भी बेकार गई। उच्च न्यायालय का निर्णय 11 दिसम्बर को आया लेकिन तब तक हिन्दू समाज के आक्रोश का विस्फोट हो चुका था। सन् 1528 ईस्‍वी में भारत के मस्तक पर लगा कलंक का प्रतीक तीन गुम्बदों वाला ढांचा 6 दिसम्बर 1992 का शाम ढलते-ढलते स्वयं अतीत का हिस्सा बन चुका था।

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