Tuesday, 28 December 2010

गोरक्षा - आन्दोलन का संक्षिप्त इतिहास

गोरक्षा - आन्दोलन का संक्षिप्त इतिहास                                                                      


गोवंश सदैव से भारतीय धर्म कर्म एंव संस्कृति का मूलाधार रहा है। कृषि प्रधान देश होने से भारतीय अर्थव्यवस्था    का स्त्रोत  रहा है। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अमर सैनानियो-लोकमान्य तिलक महामना मालवीय गोखले  आदि ने  यह घोषणा की थी स्वराज्य मिलते ही गोवध तुरना बंन्द कराया जायगा। उपयुर्क्त नेताओं की घोषणाओ को ध्यान में रखते हुए भारतीय जनता को आशा थी कि अंग्रजी शासन चले जाने के साथ ही साथ गोहत्या का कलंक  भी इस देश से मिट जायगा। किन्तु वह आशा फलीभूत नहीं हुई। इसे देश का दुभार्ग्य ही कहा जायगा

स्वाधीनता सग्रामं और गौ रक्षा                                                                     


मुस्लिम काल में छत्रपति  शिवाजी, महाराणा प्रताप, गुरुगोविन्दसिह आदि वीरो ने गो हत्या के कलंक  के विरुद्ध निरन्तर संघर्ष किया। शिवाजी ने बाल्यावस्था मे ही एक गोहत्या कसाई का वध कर गाय को मुक्त कर अपनी गोभक्ति का परिचय दिया। गुरु गोविन्दसिंहजी महाराज ने तो सिखपंथ की स्थापना ही गोघात का कलंक  मिटाने के उद्देश्य से की। उनहोने अपनी आराध्य देवी नेनोदेवी से एक वर मांगा था -गोघात का दुख जगत से मिटाउ॔। गुरु तेगबहादुर गुरु अजुर्नदेव आदि सिख गुरुओं के बलिदान हिन्दूधर्म तथा गौमाता की रक्षा के लिए हुए थे।

गौ सेवा की महिमा विष्णुधमोर्तरपुराणमे                                                  


विपत्ति  मे या कीचड मे फॅसी हुई या चोर तथा बाघ आदि के भय से व्याकुल गौ को क्लेश से मुक्त कर मनुष्य  अवमेधयज्ञ का फल प्राप्त करता है रुग्णावस्था मे गौओ को औषधि प्रदान करने से स्वंय मनुष्य  सभी रोगो से मुक्त हो जाता है गौओ को भय से मुक्त कर देनेपर मनुष्य  स्वय भी सभी भयो से मुक्त हो जाता हे चण्डाल के हाथ से गौको खरीद लेनेपर गोमेधयज्ञ का फल प्राप्त होता है तथा किसी अन्य के हाथ से गायको खरीदकर उसका पालन करन से गोपालक को गोमेधयज्ञका ही फल प्राप्त होता है। गौओ की शीत  तथा धूप से रक्षा करनेपर स्वर्ग की प्राप्ति  होती है। गौओ के उठने पर उठ जाय और बैठने पर बैठ जाय। गौओं के भोजन कर लेनेपर भोजन करे और जल पी लेने पर स्वय भी जल पीये। गो मूत्र् से स्नान करे और अपनी जीवन यात्रा  का गोदुग्ध पर अथवा गोमय से निस्रत जौ द्वारा निर्वाह करे । इसी का नाम गोव्रत है। 6 माह तक ऎसा करने वाले गोव्रती के सम्पुर्ण पाप सर्वथा नाश हो जाते है।

गौ सेवा का अनन्त फल                                                                                  


जो पुरुष गौओ की सेवा और सब प्रकार से उनका अनुगमन करता है |  गौए उसे अत्यन्त दुलर्भ वर प्रदान करती है। गौओ के साथ मनसे भी द्रोह न करे उन्हें  सदा सुख पहुचाए उनका यथोचित सत्कार करे ओर नमस्कार आदि  के द्वारा उनकी पूजा  करे। जो मनुष्य  जितेन्द्रिय और प्रसन्नचित्त  होकर नित्य गौओ की सेवा करता है वह समर्द्धि   का भागी होता है।

गौ भक्त के लिए कुछ भी दुलर्भ नही                                                              

गौ भक्त मनुय जिस जिस वस्तु की इच्छा करता है वह सब उसे प्राप्त होती है! स्त्रियों  में भी जो गौओं की भक्त हैं वे मनोवांछित कामनाएं प्राप्त कर लेती हैं! पुत्रार्थी   मनुष्य पुत्र पाता है और कन्यार्थी कन्या! धन चाहने वाले को धन और धर्म चाहने वाले को धर्म प्राप्त होता है! विद्यार्थी विद्या पाता है और सुखार्थी सुख! गौ भक्त के लिए यहां कुछ भी दुलर्भ नही है!

 

 

 

हिन्दी लोकोक्तियों में गाय                                                                         

भाषा और संस्कृति समाज का प्रतिबिम्ब है। इसके अध्ययन से सामाजिक संरचना का आभास लगाया जा सकता है। दरअसल, संस्कृति के विकास को ही भाषा दर्शाती है तथा इसके परिवर्तन को सही दिशा संस्कृति से मिलती है।

भिन्न-भिन्न प्रतीकों के माध्यम से संस्कृति के सभी तथ्यों को भाषा अपनी विशिष्ट शैली में अभिव्यक्त करती है। मुहावरे तथा लोकोक्तियां भाषा के वे स्वरूप हैं जो स्थानीय हावो-हवा से बनती है। भारतीय समाज में गाय को लेकर अत्यधिक आदर भाव है। उसके ऊपर अनेक लोकोक्तियां प्रचलित हैं। इससे गाय के प्रति भारतीय समाज में व्याप्त व्यापक दृष्टिकोण, एवं जीवन में गाय को सर्वाधिक महत्व देते हुए दिखाया गया है।

भारतीय भाषाओं में प्रचलित कई लोकोक्तियां गाय से जुड़ी है। इससे भारतीय समाज के गाय सम्बन्धी जीवन-दर्शन को समझा जा सकता है। हिन्दी भाषा में प्रचलित लोकोक्तियां निम्नलिखित है।

1. गाय कहां घोंचा घोंघियाय कहां- गाय कहीं और खड़ी है घोंचे (उसके दूहने के बर्तन) से आवाज किसी और जगह से आ रही है। कारण और परिणाम में असंगति होने पर ऐसा कहते हैं।

2. गाय का दूध् सो माय का दूध- गाय का दूध माता के दूध के समान होता है, अर्थात् गाय का दूध काफी लाभप्रद होता है।

3. गाय का धड़ जैसा आगे वैसा पीछे- पवित्रता के लिहाज से गाय का अगला तथा पिछला दोनों धड़ समान माना जाता है। कहावत का आशय यह है कि समदर्शी व्यक्ति को सभी श्रद्धा से देखते हैं।

4. गाय का बच्चा मर गया तो खलड़ा देख पेन्हाई- वियोग हो जाने पर बिछुडने वाले के चित्र आदि रूप देख कर भी तसल्ली होती है।

5. गाय की दो लात भली- सज्जन व्यक्तियों की दो चार बातें भी सहन करनी पड़ती हैं।

6. गाय की भैंस क्या लगे- अर्थात् कोई संबंध नहीं है। जब किसी का किसी से कोई संबंध न हो फिर भी वह उससे संबंध जोड़ना चाहे तो यह लोकोक्ति कहते हैं।

7. गाय के कीड़े निबटें, कौवा का पेट पले- कौआ आदि पक्षी, पशुओं के शरीर के कीड़े मकोड़े खाते रहते हैं। इससे पशुओं की कुछ हानि नहीं होती किंतु पक्षियों को भोजन मिल जाता है। यदि कोई छोटा आदमी किसी बड़े आदमी के सहारे जीवनयापन करे तो उसके प्रति ऐसा कहते हैं।

8. गाय के अपने सींग भारी नहीं होते- अपने परिवार के लोग किसी को बोझ नहीं मालूम पड़ते।

9. गाय गई साथ रस्सी भी ले गई- गाय तो हाथ से गई ही साथ में रस्सी उसके गले में बंधी थी वह भी ले गई। (क) जब कोई अपनी हानि के साथ-साथ दूसरों की भी हानि करता है, तब ऐसा कहते हैं। (ख) जब एक हानि के साथ ही दूसरी हानि भी हो जाए तो भी ऐसा कहा जाता है।

10. गाय चरावें रावत, दूध पिए बिलैया- गाय तो रावत चराते हैं और दूध् बिल्ली पीती है, अर्थात जब श्रम कोई और करे तथा उसका लाभ कोई और उठावे तब ऐसा कहते हैं।

11. गाय तरावे भैंस डुबावे-

(क) गाय की पूंछ पकड़ कर नदी या नाला पार करना पड़े वह पार ले जाती है किंतु भैंस पानी में प्रसन्न रहती है इस कारण वह बीच में ही रह जाती है और पार करने वाला डूब जाता है

(ख) भले लोगो की संगति मनुष्य का कल्याण हो जाता है और बुरे लोगों की संगति से हानि सहन करनी पडती है।

12. गाय न बाछी नींद आवे आछी- जिनके पास गाय, बछड़े या बछिया आदि नहीं होती उन्हें खूब नींद आती है, अर्थात निर्धन व्यक्ति निश्चित होकर सोता है।

13. गाय न्याणे की, बहू ठिकाने की- गाय वह अच्छी होती है जिसे न्याणो पर दूध् देने की आदत हो और बहू वह अच्छी होती है जो अच्छे खानदान की हो। (न्याणा-एक रस्सी जो दूध निकालते समय गाय के पिछले पैरों में बांधी जाती है)।

14. बांगर क मरद बांगर क बरद- बांगर (ऐसी भूमि जो नदी के कछार से बहुत दूर हो) के बैलो और किसानों को साल में एक दिन भी आराम नहीं मिलता। उन्हें सदा ही काम करना पड़ता है।

15. बैल तरकपस टूटी नाव, ये काहू दिन दे हैं दांव- टूटी हुई नाव तथा चौंकने वाले बैल का कभी विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि ये किसी भी समय धोखा दे सकते हैं।

16. बैन मुसहरा जो कोई ले राज भंग पल में कर दे, त्रिया बाल सब कुछ-कुछ गया, भीख मांगी के घर-घर खाये- जो लटकती डील वाले बैल को मोल लेता है उसका राज क्षण-भर में नष्ट हो जाता है। स्त्री, बाल-बच्चे छूट जाते हैं तथा घर भीख मांग कर खाने लगता है, अर्थात उपरोक्त ढंग के बैल अशुभकारी होते हैं।

17. बैल लीजे कजरा, दाम दीजै अगरा- काली आंखों वाले बैल को पेशगी दाम देकर खरीद लेना चाहिए। अर्थात इस तरह के बैल बहुत अच्छे होते हैं।

उपरोक्त लोकोक्तियों के द्वारा यह स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय समाज के संस्कारों एवं उनके अनुभवों को भाषा के द्वारा गाय के माध्यम ये जनमानस को बांटने की कोशिश कि गयी है। गाय के लिए सम्मान एवं उसकी सुरक्षा भारतीय भाषाओं के भाषाई तत्वों द्वारा पूरी तरह स्पष्ट होती है।

कैंसर को पनपने से रोकता है गाय का घी                                            

गाय के घी को पवित्र मानने की प्राचीन भारतीय परंपरा को एक नई वैज्ञानिक खोज से समर्थन मिला है। वैज्ञानिकों ने साबित किया है कि गाय के घी में कैंसर से लड़ने की अचूक क्षमता होती है। उनके मुताबिक इसके सेवन से स्तन तथा आंत के खतरनाक कैंसर से बचा जा सकता है तथा इस घातक बीमारी के फैलने की गति को भी कम किया जा सकता है।

राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआई) करनाल के एनीमल बायोकैमिस्ट्री विभाग के अध्यक्ष डॉ. वी.के. कंसल ने अपने दो सहयोगियों के साथ गाय के घी पर छह साल तक शोध किया। शोध के निष्कर्ष बताते हैं कि गाय का घी न सिर्फ कैंसर को पैदा होने से रोकता है बल्कि इस बीमारी के फैलने की गति को भी आश्चर्यजनक ढंग से कम कर देता है।

शोधकर्ताओं ने चूहों के दो समूहों को कैंसर पैदा करने वाली डीएमएच नामक ड्रग दी। इनमें से एक समूह को सोयाबीन तेल तथा दूसरे को गाय के घी की नियमित खुराक दी गई। दोनों समूहों में कैंसर पैदा होने और उसके फैलने की गति अलग-अलग पाई गई। सोयाबीन तेल खाने वाले समूह में जहां साल भर बाद कैंसर फैलने की गति 65.4 प्रतिशत निकली, वहीं गाय का घी पर पलने वाले चूहों में कैंसर के बढ़ने की रफ्तार आधे से भी कम 26.6 प्रतिशत पाई गई।

घी खाने वाले समूह के चूहों में ट्यूमर भी पहले समूह के चूहों के मुकाबले काफी छोटे पाए गए। और वे अपेक्षाकृत ज्यादा स्वस्थ भी थे। घी के रोगनाशी गुणों पर अपने तरह का पहला शोध प्रतिष्ठित ‘इंडियन जनरल ऑफ मेडिकल रिसर्च’ में प्रकाशित होने के लिए स्वीकृत कर लिया गया है।

प्रेमचंद की गाय                                                                                                         

उन दिनों प्रसिद्ध उपन्यास-लेखक मुंशी प्रेमचंद गोरखपुर में अध्यापक थे। उन्होंने अपने यहाँ गाय पाल रखी थी। एक दिन चरते-चरते उनकी गाय वहाँ के अंग्रेज़ जिलाधीश के आवास के बाहरवाले उद्यान में घुस गई। अभी वह गाय वहाँ जाकर खड़ी ही हुई थी कि वह अंग्रेज़ बंदूक लेकर बाहर आ गया और उसने ग़ुस्से से आग बबूला होकर बंदूक में गोली भर ली।
उसी समय अपनी गाय को खोजते हुए प्रेमचंद वहाँ पहुँच गए। अंग्रेज़ ने कहा कि 'यह गाय अब तुम यहाँ से ले नहीं जा सकते। तुम्हारी इतनी हिम्मत कि तुमने अपने जानवर को मेरे उद्यान में घुसा दिया। मैं इसे अभी गोली मार देता हूँ, तभी तुम काले लोगों को यह बात समझ में आएगी कि हम यहाँ हुकूमत कर रहे हैं।' और उसने भरी बंदूक गाय की ओर तान दी।

प्रेमचंद ने नरमी से उसे समझाने की कोशिश की, 'महोदय! इस बार गाय पर मेहरबानी करें। दूसरे दिन से इधर नहीं आएगी। मुझे ले जाने दें साहब। यह ग़लती से यहाँ आई।' फिर भी अंग्रेज़ झल्लाकर यही कहता रहा, 'तुम काला आदमी ईडियट हो - हम गाय को गोली मारेगा।' और उसने बंदूक से गाय को निशान बनाना चाहा।

प्रेमचंद झट से गाय और अंग्रेज़ जिलाधीश के बीच में आ खड़े हुए और ग़ुस्से से बोले, 'तो फिर चला गोली। देखूँ तुझमें कितनी हिम्मत है। ले। पहले मुझे गोली मार।' फिर तो अंग्रेज़ की हेकड़ी हिरन हो गई। वह बंदूक की नली नीची कर कहता हुआ अपने बंगले में घुस गया। 

पर्यावरण और गाय                                                                                             

  • कृषि, खाद्य, औषधि और उद्योगों का हिस्सा के कारण पर्यावरण की बेहतरी में गाय का बड़ा योगदान है ।
  • प्राचीन ग्रंथ बताते हैं कि गाय की पीठ पर के सूर्यकेतु स्नायु हानिकारक विकीरण को रोख कर वातावरण को स्वच्छ बनाते हैं । गाय की उपस्थिति मात्र पर्यावरण के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान है ।
  • भारत में करीब ३० करोड़ मवेशी हैं । बायो-गैस के उत्पादन में उनके गोबर का प्रयोग कर हम ६ करोड़ टन ईंधन योग्य लकड़ी प्रतिवर्ष बचा सकते हैं । इससे वनक्षय उस हद तक रुकेगा ।
  • गोबर का पर्यावरण की रक्षा में महत्वपूर्ण भाग है ।
  • गोबर के जलन से वातावरण का तापमान संतुलित होता है और वायु के कीटाणुओं का नाश |
  • गोबर में विष, विकिरण और उष्मा के प्रतिरोध की क्षमता होती है । जब हम दीवारों पर गोबर पोतते हैं और फर्श को गोबर से साफ करते हैं तो रहनेवालों की रक्षा होती है । १९८४ में भोपाल में गैस लीक से २०,००० से अधिक लोग मरे । गोबर पुती दीवारों वाले घरों में रहने वालों पर असर नहीं हुआ । रूस और भारत के आणविक शक्ति केंद्रों में विकीरण के बचाव हेतु आज भी गोबर प्रयुक्त होता है ।
  • गोबर से अफ्रीकी मरूभूमि को उपजाऊ बनाया गया ।
  • गोबर के प्रयोग द्वारा हम पानी में तेजाब की मात्रा घटा सकते हैं ।
  • जब हम संस्कार कर्मों में घी का प्रयोग करते है तो ओजोन की परत मजबूत होती है और पृथ्वी हानिकारक सौर विकिरण से बचती है ।
  • बढ़ते हुए कल्लगाहों और भूकंपों के बीच का संबंध प्रमाणित होता जा रहा है ।

हमारा देश फिर से सोने की चिड़िया बनकर चहचहा सके .....                                     


"मैं गाय की पूजा करता हूँ | यदि समस्त संसार इसकी पूजा का विरोध करे तो भी मैं गाय को पुजूंगा-गाय जन्म देने वाली माँ से भी बड़ी है | हमारा मानना है की वह लाखों व्यक्तियों की माँ है "
- महात्मा गाँधी 


गौ मे ३३ करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है , अतः गौ हमारे लिए पूजनीय है परन्तु क्या इन धार्मिक मान्यता  के आधार पर भी आज ही़नदुस्तान  में गौ को उसका समुचित स्थान मिल पाया है ? नहीं | 
अतः समय है आज के  (तथाकथित ) वैज्ञानिक एवं व्यापारिक युग में गौ  की उपयोगिता के उस पहलु पर भी विचार किया जाये तब शायद उसके ये मानस-पुत्र स्वर्थावास ही सही परन्तु उसकी हत्या करने के पाप से बच तो जायेंगे |
संपूर्ण जीवधारियो में गौ का एक अलग और महत्वपूर्ण स्थान है | यह स्थान ज्ञान और विज्ञान सम्मत है , ज्ञान और विज्ञान के पश्चात आध्यात्म तो उपस्थित हो ही जाता है | इस प्रकार ज्ञान , विज्ञान और आध्यात्म - इन तीन की बराबर रेखाओ के सम्मिलन से जो त्रिभुज बनता है ,उसे गाय कहते है | विद्वानों ने गाय को साक्षात् पृथ्वी-स्वरूपा बतलाया है| इस जगत के भार को जो समेटे हुए है और जगत के संपूर्ण गुणों की जो खान है उसका नाम गाय है |
हमारे पूर्वजो ने इस तथ्य को जान  लिया था और गौ सेवा को अपना धर्म बना लिया था जिसके फलस्वरुप हमारा देश "सोने की चिड़िया "बना हुआ था .....और कहा था
"सर्वे देवाः स्थिता: देहे , सर्वदेवमयी हि गौ: |"
परन्तु हम इसे भूल गए | यह भारत के अध:पतन की पराकास्ठा है की स्वतंत्रता मिलने के पश्चात भी यह नित्य-वन्दनीय गौ मांस का व्यापार फल=फूल रहा है | गौमांस का आतंरिक उपभोग बढ़ रहा है , बीफ खाना आज आधुनिकता की पहचान बन गया है | कत्लखानो का आधुनिकरण किया जा रहा है , रोज नये कत्लखाने खुल रहे है | ऐसा प्रतीत होता है स्वयं कलियुग ने गो वंश के विनाश का बीड़ा उठा लिया हो | अंग्रेजो ने "गोचरों " को हड़पने के लिए जो घिनौना खेल खेला था हम आज भी उसी मे फंसे हुए है |
आधुनिक अर्थशास्त्र ने भी हिन्दुस्थान के गौवंश के विनाश मे परोक्ष रूपा से सहयोग दिया | डॉ. राव , मुखर्जी , नानालती और अन्जारिया के विचारो को फैलाया गया जिन्होंने कहा था-" भारत पर गौवंश एक बोझ है , 70 % भारतीय गाय दूध नही देती , कृषि के लिए बैल अनुपयुक्त है " जो की सरासर एक सफ़ेद झूठ है" जबकि भारतीय अर्थशास्त्रियों मसलन डॉ. राईट के अनुसार 1940 के दशक के रूपये के अनुसार सिर्फ गाय और बैलो से प्राप्त दूध, दूध से बने पदार्थ, हड्डियाँ एवं चमड़ा , बैल-श्रम तथा खाद के माध्यम से एक हजार दस (1010 ) करोड़ के मूल्य की प्राप्ति होती है |एक सोची समझी साजिश ही प्रतीत होती है जो भारतीय गौवंश का विनाश के लिए तैयार की गयी है....मसलन यह के कृषकों को यह कहना की यह की गाये सर्फ 600 पौंड दूध ही देती है अतः विदेशी एवं संकर गाय जो 5000पौंड दूध देती है के बिना उनका जीवन नही चल पायेगा जबकि सेना एवं अन्य जगहों पर से आये औसत कुछ और ही बयां करता है.....भारतीय गायों के प्रजातियों के अनुसार यह 6000 -10000 पौंड तक का पाया गया |
अतः एक बात तो स्पष्ट है.."आधुनिक एवं अंग्रेज विद्वानों ने बड़े ही सुनियोजित तरीके से भारतीय गौवंश को कत्लखाने की तरफ धकेलने का प्रयास किया " आज स्थिति यह है की अत्यंत उपयोगी एवं युवा गौवंश को कत्लखानो मे भेजा जा रहा है | आचार्य विनोबा भावे ने तो इस गौवंश के प्राण रक्षा के लिए अपने ही प्राण उत्सर्ग कर दिए |परन्तु विडम्बना है की उनके बलिदान की किसी ने भी सुध नही ली| 

गौ वंश की वैज्ञानिक , व्यापारिक एवं पर्यावरण के दृष्टिकोण से उपयोगिता 

गाय के दूध की उपयोगिता से भला कौन परिचित नही है , इसकी उपोगिता को देखते हुए इसे सर्वोत्तम आहार कहा गया और इसकी तुलना अमृत से की गयी | गाय के दूध मे इसे अनेक विशेषता है जो किसी और दूध मे नही ...यह स्वर्ण से प्रचुर होता है...जिसके कारण इसके दूध का रंग पीला होता है , केवल गाय के दूध मे ही विटामिन "ए" होता है और अपनी अन्य खूबियों की वजह से यह शरीर मे उत्पन्न विष को समाप्त कर सकता है , एवं कर्क रोग (कैंसर ) की कोशिकाओ को भी समाप्त करता है 
गाय के घी से हवन मे आहुति देने से वातावरण के कीटाणु समाप्त हो जाते है 
गाय के गोबर को जलाने से एक स्थान विशेष का तापमान कभी एक सीमा से उपर नही जा पता, भोजन के पोषक तत्त्व समाप्त नही हो पाते और धुंए से हवा के विषाणु समाप्त हो जाते है |गाय के गोबर से बने खाद मे nitrogen 0 .5-1 .5 % , phosphorous 0 .5 -0 .9 % और potassium 1 .2 -1 .4 % होता है जो रासायनिक खाद के बराबर है ....और जरा भी जहरीला प्रभाव नही डालता फसलों पर | यह प्रभावशाली प्रदूषण नियंत्रक है , गाय के गोबर से सौर-विकिरण का प्रभाव भी समाप्त किया जा सकता है |"गोबर पिरामिड " से बड़ी मात्रा मे सौर उर्जा का अवशोषण संभव है | 
तालाबों मे गाय का गोबर डालने से पानी का अम्लीय प्रभाव समाप्त हो जाता है , गोबर के छिडकाव से कूड़े की बदबू समाप्त हो जाती है | लाखों वर्षों तक गोबर के खाद के प्रयोग से भारती की उर्वरा समाप्त नही हुई किन्तु अभी 60 -७० वर्षो मे रासायनिक खादों के प्रयोग से लाखों hectare भूमि बंजर हो गयी 
आज भी हिरोशिमा और नागाशाकी के निवासी परमाणु विकिरणों से सुरक्षा के लिए गोरस से भिगो कर रात्रि मे कम्बल पहनते है 
गोमूत्र में नीम की पत्तियों का रस डाल कर एक बेहद असरदार और हानिरहित जैव-कीटनाशक का निर्माण होता है जो पौधों की वृद्धि , कीटनाशक , फफूंद नियंत्रक एवं रोग नियंत्रक का कार्य करता है | यह पर्यावरण की पूरी श्रृंखला शुद्ध करता है 
गोमूत्र का अर्क फ्लू , गठिया , रासायनिक कुप्रभाव , लेप्रोसी , hapatitis , स्तन कैंसर , गैस , ulcer , ह्रदय रोग , अस्थमा के रोकथाम मे सर्वथा उपयोगी है यह बालो के लिए conditioner का कार्य भी करता है 
प्रति वर्ष पशुधन से 70 लाख टन पेट्रोलियम की बचत होती है | 60 अरब रुपये का दूध प्राप्त होता है , 30 अरब रुपये की जैविक खाद प्राप्त होती है , 20 करोड़ रुपये की रसोई गैस प्राप्त होती है .....यह आंकड़े खुद बा खुद यह बयां करते है की गो माता राष्ट्रीय आय मे वृद्धि का ईश्वर प्रद्दत श्रोत है
आठो ऐश्वर्य लेकर देवी लक्ष्मी गाय के शरीर मे निवास करती है |- इस कथन का गूढ़ार्थ राष्ट्र लक्ष्मी की और संकेत करता है जो हम उपर देख चुके है तो क्या अब ये हमारा दायित्व नही बनता है की हम पुनः गौ माता को उनका स्थान प्रदान करे ताकि हमारा देश फिर से सोने की चिड़िया बनकर चहचहा सके .............

"कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था का दारोमदार गोवंश पर निर्भर है | जो लोग यंत्रीकृत फार्मों के और तथाकथित वैज्ञानिक तकनीकियो के सपने देखते है , वे अवास्तविक संसार मे रहते है "
-लोकनायक जयप्रकाश नारायण 


No comments:

Post a Comment