Saturday, 29 January 2011

भ्रष्टाचार : हम किसी से कम नहीं...

 

भ्रष्टाचार : हम किसी से कम नहीं... 

 
पिछले काफ़ी अरसे से देश की जनता भ्रष्टाचार से जूझ रही है और भ्रष्टाचारी मज़े कर रहे हैं. पंचायतों से लेकर संसद तक भ्रष्टाचार का बोलबाला है. सरकारी दफ़्तरों के चपरासी से लेकर आला अधिकारी तक बिना रिश्वत के सीधे मुंह बात तक नहीं करते. संसद के अन्दर भ्रष्टाचार को लेकर हौ-हल्ला होता है तो बाहर जनता धरने-प्रदर्शन कर अपने गुस्से का इज़हार करती है. हालांकि भ्रष्टाचार से निपटने के लिए सरकारी स्तर पर भी तमाम दावे कर औपचारिकता पूरी कर ली जाती है, लेकिन नतीजा वही 'ढाक के तीन पात' ही रहता है. अब तो हालत यह हो गई है कि हमारा देश भ्रष्टाचार के मामले में भी लगातर तरक्क़ी कर रहा है. विकास के मामले में भारत दुनिया में कितना ही पीछे क्यों न हो, मगर भ्रष्टाचार के मामले में चौथे नंबर पर पहुंच गया है.

गौरतलब है कि जर्मनी के बर्लिन स्थित गैर सरकारी संगठन ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल (टीआई) की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ पिछले साल भारत में काम कराने के लिए 54 फ़ीसदी लोगों को रिश्वत देनी पड़ी. जबकि पूरी दुनिया की चौथाई आबादी घूस देने को मजबूर है. इस संगठन एनजीओ ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल के सर्वे में दुनियाभर के 86 देशों में 91 हज़ार लोगों से बात करके रिश्वतखोरी से संबंधित आंकड़े जुटाए हैं. 2010 के ग्लोबल करप्शन बैरोमीटर के मुताबिक़ पिछले 12 महीनों में हर चौथे आदमी ने 9 संस्थानों में से एक में काम करवाने के लिए रिश्वत दी. इनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, पुलिस विभाग से लेकर अदालतें तक शामिल हैं.

भ्रष्टाचार के मामले में अफ़गानिस्तान, नाइजीरिया इराक़ और भारत सबसे ज़्यादा भ्रष्ट देशों की फ़ेहरिस्त में शामिल किये गए हैं.इन देशों में आधे से ज़्यादा लोगों ने रिश्वत देने की बात स्वीकार की. इस रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में 74 फ़ीसदी लोगों का कहना है कि देश में पिछले तीन बरसों में रिश्वतखोरी में ख़ासा इज़ाफ़ा हुआ है, बाक़ी दुनियाभर के 60 फ़ीसदी लोग ही ऐसा मानते हैं. इस रिपोर्ट पुलिस विभाग को सबसे ज़्यादा भ्रष्ट करार दिया गया है. पुलिस से जुड़े 29 फ़ीसदी लोगों ने स्वीकार किया है कि उन्हें अपना काम कराने के लिए रिश्वत देनी पड़ी है. संस्था के वरिष्ठ अधिकारी रॉबिन होंडेस का कहना है कि यह तादाद पिछले कुछ सालों में बढ़ी है और 2006 के मुक़ाबले दोगुनी हो गई है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चीन (79वें), भारत (84वें), पाकिस्तान और बांग्लादेश (139वें) में भ्रष्टाचार तेज़ी से फैल रहा है. हालत यह है कि धार्मिक संगठनों में भी भ्रष्टाचार बढ़ा है.

क़ाबिले-गौर है कि ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल 2003 से हर साल भ्रष्टाचार पर रिपोर्ट जारी कर रही है. वर्ष 2009 की रिपोर्ट में सोमालिया को सबसे भ्रष्ट देश बताया गया है, जबकि इस साल भारत इस स्थान रहा है. देश में पिछले छह महीनों में आदर्श हाउसिंग घोटाला, राष्ट्रमंडल खेलों में धांधली, और 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में घोटाले ने भ्रष्टाचार की पोल खोल कर रख दी है. जब ऊपरी स्तर पर यह हाल है तो ज़मीनी स्तर पर क्या होता होगा, सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है.

टीआई की रिपोर्ट में न्यूज़ीलैंड, डेनमार्क, सिंगापुर, स्वीडन और स्विटज़रलैंड को दुनिया के सबसे ज़्यादा साफ़-सुथरे देश बताया गया है. गौरतलब है कि ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल का अंतरराष्ट्रीय सचिवालय बर्लिन में स्थित है और दुनियाभर के 90 देशों में इसके राष्ट्रीय केंद्र हैं. विभिन्न देशों में भ्रष्टाचार का स्तर मापने के लिए टीआई दुनिया के बेहतरीन थिंक टैंक्स, संस्थाओं और निर्णय श्रमता में दक्ष लोगों की मदद लेता है. यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट की ओर से घोषित अंतर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस के मौक़े पर जारी की जाती है.

एमनेस्टी इंटरनेशनल की 191 देशो की फ़ेहरिस्त में भारत को 178वें स्थान पर रखा गया था. करेप्शन प्रेसेप्शन इंडेक्स में भारत 87 वें पायदान पर है. संसद में बैठे नेताओं में से क़रीब एक चौथाई पर भ्रष्टाचार के संगीन आरोप हैं. 1948 से 2008 तक अवैध तरीक़े से हमारे देश से क़रीब 20 लाख करोड़ रुपए बाहर भेजे गए हैं, जो देश की आर्थिक विकास दर (जीडीपी) का चालीस फ़ीसदी है.

विभिन्न संगठनों के संघर्ष के बाद भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए 12 अक्टूबर 2005 को देशभर में सूचना का अधिकार क़ानून भी लागू किया गया. इसके बावजूद रिश्वत खोरी कम नहीं हुई. अफ़सोस तो इस बात का है कि भ्रष्टाचारी ग़रीबों, बुजुर्गों और विकलांगों तक से रिश्वात मांगने से बाज़ नहीं आते. वृद्धावस्था पेंशन के मामले में भी भ्रष्ट अधिकारी लाचार बुजुर्गों के आगे भी रिश्वत के लिए हाथ फैला देते हैं.

पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी ने भ्रष्टाचार को स्वीकार करते हुए कहा था कि सरकार की तरफ़ से जारी एक रुपए में से जनता तक सिर्फ़ 15 पैसे ही पहुंच पाते हैं. ज़ाहिर है बाक़ी के 85 पैसे सरकारी अफ़सरों की जेब में चले जाते हैं. जिस देश का प्रधानमंत्री रिश्वतखोरी को स्वीकार कर रहा हो, वहां जनता की क्या हालत होगी कहने की ज़रूरत नहीं. मौजूदा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी मानते हैं कि मौजूदा समय में देश में भ्रष्टाचार और गरीबी बड़ी समस्याएं हैं. हक़ीक़त में जनता के कल्याण के लिए शुरू की गई तमाम योजनाओं का फ़ायदा तो नेता और नौकरशाह ही उठाते हैं. आख़िर में जनता तो ठगी की ठगी ही रह जाती है. शायद यही उसकी नियति है.

बहरहाल, भ्रष्टाचार पर कैसे रोक लगाई जाए, इस पर गंभीरता से बरते जाने की ज़रूरत है. साथ इस बात की भी ज़रूरत है की भ्रष्टाचारियों के ख़िलाफ़ सख्त कानूनी कारवाई की जाए, क्योंकि सिर्फ़ भाषणबाज़ी से कुछ होने वाला नहीं है.

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