Monday, 17 January 2011

"राम राज्य":: ::हिन्दू गुलाम क्यूँ है, क्यूँ बना और कैसे छुटकारा मिले.भारतवर्ष विश्वगुरु बनता है तो वो संघ के ही नेत्रित्व में संभव है बाकि सब ढकोसला, राजनीती और आडम्बर है.

  "राम राज्य" हिन्दू गुलाम क्यूँ हैक्यूँ बना और कैसे छुटकारा मिले.

भारतवर्ष विश्वगुरु बनता है तो वो संघ के ही नेत्रित्व में संभव है बाकि सब ढकोसलाराजनीती और आडम्बर है.
 
 
 
भारत राष्ट्र एक बहुत ही पुरातन सोच है. पश्चिमी देशो की खिंची लकीरों से बढ़ कर है जिसको 'भारत राष्ट्र" कहेते है यह समझना उतना ही मुश्किल है जितना हिन्दू धर्म समझना और नासमझबेवकूफ और तथाकथित बुद्धिजीवी हिन्दू धर्म को अन्य धर्मो के समकक्ष मानकर उसी चश्मे से परिभाषित करते आ रहे है. जो की निश्चित रूप से गलत है. असल में विश्व भर में हिन्दू जितना प्रीताडित है उतना कोई और कोई कौम नहीं है. आज बड़े ही विस्तार से समझते है की हिन्दू गुलाम क्यूँ हैक्यूँ बना और कैसे छुटकारा मिले. अभी गुलाम बोला तो कई आदमी इस पर प्रशन चिन्ह लगा देंगे. मतलब आप आज भी क्यूँ गुलाम बोल रहे हो. मेरा मानना यह है की चाहे भारतवर्ष में कोई कितना भी धनाड्य हो वो भी असल में गुलाम ही है. अब वो चाहए कोई भी बड़ा औद्योगिक घराना हो जो हिंदुस्तान की जनता के पैसे को धुर विरोधी हॉवर्ड स्कूल जैसे भारत विरोधी अभियान चलाने वाले को ही दे देता हो. हिंदुस्तान के गुलाम मानसिकता का ही परिचायक है. इस गुलामी को राजनैतिकआर्थिक और सामाजिक तीनो परिपेक्ष में समझना पड़ेगा. और मेरा विश्लेषण यह निकलता है की राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से बड़ा हिन्दू रक्षक और भारत रक्षक इस धरती पर कोई नहीं है. इस को कुछ ऐसा समझा जाये जैसे मनु महाराज ने मानव बीज सुरक्षित रखा था बाकी जीव और वनस्पति बीजो के साथसंघ भी हिन्दू बीज को इस वैश्विक आंधी में सुरक्षित रखे है. इसके लिए संघ का हिन्दू धर्म और भारतवर्ष पर कोटि कोटि उपकार और नमन उन कोटि स्वयं सेवको को जिन्होंने हिन्दू और भारत के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है. और मेरा निश्चित ही मानना है की भारतवर्ष यदि (यदि) विश्वगुरु बनता है तो वो संघ के ही नेत्रित्व में संभव है बाकि सब ढकोसलाराजनीती और आडम्बर है. परन्तु हर चीज की एक सीमा है उसी प्रकार संघ भी इस से अछुता नहीं है. इसको कुछ इस प्रकार से कहूँगा जैसे मनेजमेंट में एक शब्द होता है "प्रोडक्ट लाइफ साइकल" उसमे प्रथम अवस्था प्रोडक्ट का विकासदूसरा उभारतीसरा पराभाव और चौथा गिरावट है. और यह ध्रुव सत्य है. जो पैदा होता है वो मिटता भी है, यह एक भारतीय और हिन्दू दर्शन ही है. परन्तु समझदार कंपनीया का करती है तीसरी स्टेज पराभाव को ही लम्बा खीच देती है और उसकी गिरावट को होने ही नहीं देती. इसी प्रकार संघ को भी कुछ बहुत ही गहन मुद्दों पर विचार करना होगा. और निश्चित रूप से विचार गंभीर और स्वार्थ से परे होना होगा. क्यूंकि जैसे मेने जिक्र ऊपर किया है संघ को सुरक्षित रखना हिन्दू धर्म और भारत राष्ट्र को सुरक्षित करना होगा. कुछ गंभीर प्रशन है जिनका संघ को विचार करना होगा. 
 
वैसे एक बात कहूँ की परम आदरनिये मोहन भगवत जी ने इन प्रश्नों का उत्तर खोजने की शुरुवात कर भी दी है ऐसा प्रतीत होता है परन्तु यह शुरुवात इन प्रश्नो के परिपेक्ष में हो तो परम वैभव को पाया जा सकता है. संघ को स्थापित हुए आज ८५ वर्ष हो गए परन्तु ऐसी क्या बात है की ८५ वर्षो में हमने वो नहीं पाया जिसको की हमे पा लेना चाहिए था. ऐसे कितने ही काल खंड आए जब संघ ने इन प्रश्नो को अनुतरित छोड़ दिया. हम विगत के कुछ हिन्दू वीरो का जिक्र करते है जिन्होंने अपने जीवन काल में ही हिन्दुओ को परम वैभव का लक्ष्य पा लिया और वो लोग आधुनिक युग के है जैसे चाणक्य जीछत्रपति शिवाजी महाराज और उनका जीवन ८५ वर्ष का तो था ही नहीं और उनको भी हिन्दू को संघठित करने में दिक्कत आज से ज्यादा ही आई थी आज तो फिर भी संसाधन ज्यादा ही हैजब हिन्दुओ को वो महापुरुष अपने जीवनकाल में वहा पंहुचा सकते है तो संघ अब तक क्यूँ नहीं पंहुचा पाया. आज एक गाँधी (महात्मा गाँधी मात्र एक व्यक्ति) अपने जीवन काल से ६० साल तक भारत जैसे देश को सत्ता का वारिस बनवा सकता है तो संघ तो उस से बहुत बड़ी चीज है
 
  • एक जयप्रकाश नारायण देश में क्रांति कर सकता है और संघ को उनका समर्थन करना पड़ता है और आज संघ से प्रेरित उसकी राजनेतिक शाखा (बीजेपी - संघ से परभावित एक अलग संघठन) को उनका और उनके अनुयाइयो (नितीश कुमार) का साथ देना पद रहा है. इसका अर्थ या तो यह है की व्यक्ति के आगे संघटन छोटा होता है या फिर डॉ. हेडगेवार जी का सिधांत ही गलत था की उन्होंने भगवा ध्वज को गुरु बनाया ना की अपने को और थोप देते हिन्दुओ और देश पर अपने ही परिवार का कोई वारिस या फिर हेडगेवार जी के बाद के संघचालक उनके लक्ष्य को समझने में और पूरा करने में असमर्थ रहे. मुद्दा यह है की देश में एक गाँधी क्रांति कर सकता हैएक जयप्रकाश क्रांति कर सकता है तो ८५ साल का संघ क्यूँ नहीं अब ८५ साल का कालखंड कोई छोटा समय तो नहींमैं अपनी छोटी से समझ से से यह मानता हूँ की कहीं ना कहीं रणनीति में त्रुटी है. और मेरे अनुसार त्रुटी यह है की "समाज सत्ता से बन रहा है ना की समाज से सत्ता" इस सिदान्त का ना मानना है ही संघ की सबसे बड़ी भूल है. क्योंकि हिन्दुओ को आज के समय संघटित करना मेंडेको को तोलने के सामना है (क्षमा करे इस तुलना के लिए) इसका कारण है १२०० साल से हिन्दू ऑक्सीजन पर जी रहा है. उसको विश्वाश ही नहीं होता की उसकी विरासत सतयुगत्रेता और द्वापर में स्वर्णिम थी उसने तो कुत्ते और बिल्ली से जीवन को ही अंगीकार कर लिया. कुछ भी कर लो इन को सत्ता ही की भाषा समझ में आती है फिर वो तुर्क होमुग़ल होअंग्रेज हो या फिर गाँधी तो फिर संघ सत्ता पर क्यूँ दावा नहीं ठोकता और हिन्दू को सबल बनाने का बीड़ा उठता. बहुत हो चूका समाज जोड़ने का प्रयास (क्यूंकि बहुत ही लम्बी प्रक्रिया है)इस प्रयास में ही खोट है (क्यूंकि ८५ साल में भी लक्ष्य नहीं पा पाए). ऐसा क्या है मायावती पर जिस पर सभी दलित फ़िदा हैऔर क्यां हम नहीं जानते संघ ने अपने सर्वोतम प्रयास से वो नहीं पाया जो लगाव दलितों का मायावती ने पाया. मैं तो समझता हूँ फिर दो चार मायावती ही संघ पैदा कर दे. 

इस लिए मेरा मानना है की संघ सत्ता हांसिल करे (प्रथम) फिर उसे उसके ८५ साल के बनाये संघठन का भी लाभ मिलेगा. वो पुरषार्थ व्यर्थ नहीं है क्यूंकि संघ जितना करता नहीं उतना तो यहाँ बिगाड़ने वाले है और फिर वही के वही सिफर (शून्य) है. संघ इस बात को जितना शीघ्र  समझ लेगा उतना ही जल्दी हिन्दुओ और देश का भला होगा.क्या हम नहीं जानते संघ के सामने ही सामने डॉ. आंबेडकर ने हिन्दू धर्म छोड़ दिया था क्यूँ संघ ने प्रयास नहीं किया उनको हिन्दू धर्म में रखने का. ऐसे प्रशन के उत्तर संघ को ही देने होंगे कोई भारत के राष्ट्रपति या कांग्रेस से नहीं पूछेगा. क्यूंकि अग्नि परीक्षा सीता ही देती है तुच्छ प्राणी तो उसकी सोच भी नहीं सकते.  
 
  • दूसरा बड़ा ही आलोचनात्मक रुख लेकर मुझे कहेना होगा की जो टीवी पर अपने को संघ का स्वयम सेवक बताते फिरते है उनके बच्चे संघ से विमुख क्यूँ है? गंभीर प्रशन है मित्रोएक  स्वर्गीय सज्जन जो की बीजेपी के बड़े नेता भी रहे है जब संघ में दीक्षित थे और उनके विचारो से लाखो प्रभावित भी होंगे तो उनके खुद के पुत्र क्यूँ नहीं. यह ढोंग नहीं तो क्या है की आप बात तो शुचिता और नैतिकता की करते हो परन्तु अपने पुत्र को इसका पथ भी नहीं ऐसा क्यूँ ? स्वर्गिया नेता जी का जिक्र इसलिए कर रहा हूँ की वो टीवी पर घोषित एक बड़े स्वयमसेवक थे और उनके पुत्र ने टीवी पर स्थान (कवरेज) मिलने से संघ उपहास का पात्र बना है. उद्धरण इस लिए लेना पड़ रहा की वोही बात की संघ इतना बनाता नहीं जितना इसके विरोधी संघ के लोगो की नादानियो से संघ को नुक्सान पहुचाते है. संघ जब स्वयं सेवक के रूप में एक बीज रोपित करता है और तो उस से उमीद करता है के वो अपने चरित्र से दुसरो भी प्रभावित करे तो क्यूँ उसके ही भाईबेटे और अन्य प्रभावित नहीं होतेमेरा प्रशन है की कहीं ना कहीं इस दीक्षा में कुछ दोष रहे गए. ऐसा भी नहीं की सभी स्वयमसेवक ऐसे ही है मेरे जानकार के चौथी पीढ़ी है जो स्वयं सेवक है मतलब उसने अपने एक साल के पुत्र को भी शाखा में ले जाकर ध्वज प्रणाम करा कर उसकी संघ आयु की शुरुवात करा दी. परन्तु प्रशन है के ऐसे कितने है ? हर चीज की शुरुवात "मैं" से होती है फिर परिवार से फिर समाज से और बाद में देश से और यह संघ की भी घोषित नीति है. संघ के आलावा जो भी स्वयं सेवक मुख्या धारा की राजनीती करते है वो कही से भी संघ के स्वयं सेवक सा आचरण नहीं रखते है. इसके ऊपर आगे चर्चा करेंगे की कैसे हो सकता है यह संभव.
  • अब आते है राजनेतिक पक्ष पर बिना किसी लाग लपेट के है की बीजेपी जब संघ को अपना सर्जनकर्ता  मानती है तो बिहार में अपनी भद्द क्यूँ पीटवा रही है. नितीश के सामने सारी बीजेपी सीरसासन क्यूँ कर रही है? और लालू को हटाना इतना ही बड़ा एजेंडा है तो पिछले पांच साल में बीजेपी ने अपने कौनसे एजेंडे बिहार सरकार से लागु करवा लिए है ? याद रखना संघ को नितीश के रूप में एक बहुत ही बड़ा झटका लगेगा अरे बीजेपी विपक्ष में होकर भी अपने मुद्दे नितीश से नहीं मनवा पाई (राष्टीय मुद्दे) तो सत्ता में आकार कैसे कर पायेगी अब तो खोने को भी कुछ नहीं है तो फिर अपने तपे तपाये स्वयंसेवको को बीजेपी में भेज कर क्या ले रहे हो ? जब स्वयम सेवक को बीजेपी में मंत्री बन कर कुर्सी ही गर्म करनी है तो संघ क्यूँ बदनाम हो इनके कर्मो और कुकर्मो से ? आज बीजेपी लोकसभा के दो लगातार चुनाव हारने के बाद भी अपने राजग के घटक दलों को अपने मुद्दों के बारे में समझा नहीं पाई तो एक बार सत्ता आने के बाद क्या कर लेगी. अभी तो कुछ खोने को भी नहीं और समय भी बहुत है. या फिर से ममता, समता और जयललिता वाला खेल खेलना है ? 
  • और यदि संघ भी यह सोचता है की सत्ता लेने के बाद भी अपने मुद्दों को बीजेपी से लागु नहीं करवाया जा सकता है तो फिर अभी इस पर विचार करना होगा. आजादी से पहेल गाँधी से भी लोगो को उम्मीद थी जिस उम्मीद पर उसने आम हिन्दू को बरगला रखा था "राम राज्य" और फिर सत्ता का अंग्रेजो के हाथ से काले अंग्रेजो के हाथ में आकर उसका तकनिकी हस्तांतरण मात्र ही हो पाया वास्तविक नहीं. इसी प्रकार आज की बीजेपी भी वो ही कर रही है श्री राम मंदिर मुद्दा छोड़ दियाधारा ३७० छोड़ डी (क्यूंकि केंद्र में बीजेपी ने कुछ नहीं किया अटल जी के समय में) और जो संघ को कहेते है की सत्ता मिलने के बाद करेंगे वो भी संघ का प्रयोग मात्र कर रहे है. अरे आज क्यूँ नहीं अपने घटक दलों को संघ के वास्तविक मुद्दों पर मनातेसत्ता में थे तो यह चिंता थी की सत्ता ना चली जायेअब अपनी छवि की चिंता करते फिर रहे हो. बिहार में तो संघ के स्वयमसेवक ( श्री नरेंद्र मोदी जी) और हिन्दू वीर  वरुण जी का अपमान घोर अपमान किया जा रहा है. आज अडवाणी जी ही यह बयान दे रहे है की जद (यू) को अडवाणी जी के नितीश के साथ मंच शेयर करने में कोई आपत्ति नहींअरे नितीश डंके की चोट पर कहे की मुझे कोई आपत्ति नहीं आप बीजेपी अपने से क्यूँ कहेते फिरते हो यह उनकी भी जिमेदारी है. अरे मित्रो आप कितना गिरोगे बिहार में सच्चा देशभक्त बीजेपी में घुट रहा है, इसलिए नहीं की नितीश की सरकार से कुछ दिक्कत है परन्तु उन विचारो का क्या जिन का घोटा उसने लगाया है उनको कैसे पिए वो. यदि उन विचारो को संबोधित किया जायेगा तो ठीक, नहीं तो एक क्रांति का आगाज तो अव्श्यम्भी है. प्रिये अडवाणी जी आपने ही कहा था की इन्द्रा जी के समय आपातकाल में उन्होंने झुकने के लिए कहा और हम रेंगने लग गय. अरे अभी हिन्दू हितेषी आप पिटवा कर बिहार की सत्ता ले भी लोगे तो संघ के विचारो का क्या ? हाँ यदि पांच साल में उनको लागु किया होता तो यह चोट भी बर्दाश्त थी. बीजेपी एक बात गांठ बाँध ले की  संघ ने बीजेपी नेताओ का ठेका नहीं उठा रखा है सत्ता तक पहुचने का. तो वास्तव में संघ को भी निर्णय करना पड़ेगा की ऐसे करने से यदि सत्ता मिल भी गई तो वैसे ही होगा जैसे गाँधी के "राम राज्य" का नेहरु ने किया. ऐसी सत्ता संघ को चाहिए भी नहीं. 
  • ऊपर राजनेतिक बात इसलिए करनी पड़ी के आम देश वासी (जो संघ से नहीं जुड़े) संघ को इन नेताओ के ही आचरण से समझने की कौशिश करते है और इसी से अर्थ का अनर्थ हो रहा है. जो कभी भी संघ से नहीं जुदा और वो राजनैतिक प्राणी नहीं है उसने बीजेपी को राम नाम से जाना की एक पार्टी है जो राम मंदिर बनवाएगी, आप हँसे नहीं परन्तु उस आम आदमी ने संघ को भी बीजेपी के माध्यम से ही जाना. और जब अब वो संघ को जान गया तो बीजेपी के अन्दर स्वयंसेवक ही उसकी रडार पर है संघ को समझने के लिए या फिर टीवी मीडिया.

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