Saturday, 15 January 2011

पर्यावरण :: ::वैज्ञानिक कहते हैं कि धरती पर बढ़ते हुए प्रदूषण के कारण मौसम में तबदीली हो रही है, उष्णता बढ़ने से हिमालय के ग्लेसियर बड़ी रफ़्तार से पिघल रहे हैं, समुद्र का स्तर बढ़ रहा है । उधर इंसान अपनी सुख सुविधा के लिए जंगल काट रहा है, पहाड़ों को बारूदी सुरंग से तोड़ कर उसके पत्थर से मकान बना रहा है और कुदरत के नियमों को बेरहमी से तोड़ रहा है ।

पर्यावरण

विश्व सारा विश्व समाज दूषित प्रयावरण के बढ़ते हुए कदमों से चिंतित है । इसका दोषी कौन है ? सबसे बड़ा दोषी सरकारी तंत्र है जो क़ानून तो बनादेते हैं पर उनको लागू नहीं के पाती । गंगा मैली हो गयी है, और कुम्भ का स्नान पवित्र गंगा के नाम से रोज लाखों लोग श्रद्धा का आवरण पहिन कर गंगा में स्नान करते हैं अपने पापों से छुटकारा पाने के लिए । भगवान् जाने इस पवित्र गंगा में कितने गंदे नाले आकर मिलते हैं, कितने फैक्ट्रियों का दूषित रासायनिक भरा जहर इसकी गोद में समाता है, कितने शहरों के सीवर लाईने इसमें आकर मिलते हैं, फिर भी विश्व के श्रद्धावान भक्त, बड़े बड़े अखाड़ों के सन्यासी, नागा सन्यासी यहाँ कुम्भ के मेले में आते हैं, और गंगा मय्या के जल में डुबकी लगाकर अपने को धन्य समझने लगते हैं । सरकार गंगा की सफाई का अभियान चलाती है। बड़े बड़े वादे किए जाते हैं, लेकिन क्या इनमें से एक भी वादा पूरा हुआ है ? लेकिन इंसान तो आखिर इंसान है वह जानते हुए भी की गंगा दूषित है, ईश्वर की इच्छा है का सम्मान करते हुए इसमें डुबकी लगाता है ।



कापेनहेगन में एक विश्व सम्मलेन हुआ था, यह जानने के लिए कि पर्यावरण को कैसे स्वच्छ रखा जाए । यह जानते हुए भी कि विकसित देश ही पर्यावरण को ज्यादा दूषित कर रहे हैं ऊर्जा का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करके । लेकिन क्योंकि वे सम्मपन और शक्ती शाली देश हैं, अविकसित और विकाशशील देशों को आर्थिक और टेकनिक मदद देते हैं, अगर वे ऊर्जा की खपत कम करेंगे तो उनके उद्योग धंधों पर असर पडेगा । वे चाहते हैं कि विकास शील देश और अविकसित देश पर्यावरण को कंट्रोल करने में पहल करें, नतीजा सम्मलेन बिना किसी निष्कर्ष के समाप्त हो गया। वैज्ञानिक कहते हैं कि धरती पर बढ़ते हुए प्रदूषण के कारण मौसम में तबदीली हो रही है, उष्णता बढ़ने से हिमालय के ग्लेसियर बड़ी रफ़्तार से पिघल रहे हैं, समुद्र का स्तर बढ़ रहा है । उधर इंसान अपनी सुख सुविधा के लिए जंगल काट रहा है, पहाड़ों को बारूदी सुरंग से तोड़ कर उसके पत्थर से मकान बना रहा है और कुदरत के नियमों को बेरहमी से तोड़ रहा है । जंगलों में आग लगने से भी ओजोंन में विषैली गैंसे इकठी हो जाती हैं और प्रदूषण बढ़ जाता है । जंगली जानवर धीरे धीरे अपना अस्तित्व खो रहे हैं, जी जंतुओं की कही पर जातियां समाप्त होने के कगार पर हैं। पानी के स्रोत धीरे धीरे सूखते जा रहे हैं।

प्रदूषण होने के कही कारण हैं :-

१ कुदरत के कार्यों में दखलंदाजी करना ।

२ अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए पेड़ पौधों को काटना, पहाड़ों से पत्थर निकालने के लिए उसके अस्तित्व को समाप्त करना, नदी नालों के पवित्र जल को दूषित करना।

३ पर्यावरण को संतुलित करने के लिए कुदरत ने जंतुओं को उत्पन किया है, इंसान अपने स्वार्थ के लिए निरीह पशुओं को मारता है इससे भी पर्यावरण पर असर पड़ता है । जंगलों में शेर चीते बड़ी संख्या में मारे जा रहे हैं और दर है कि आने वाले दिनों में शेर चीतों की जाति ही समाप्त न हो जाए । आज गरुड नाम की जाति करीब करीब समाप्ति के कगार पर है । गन्दगी साफ़ करने वाला गरुड़ नाम का ये भारी भरकम पक्षी कुदरत में मनुष्य को एक नायब तोहफा था ।

४ दिवाली के नाम से हजारों टन गोला बारूद का धुंवा वातावरण में फैलाया जाता है । दिवाली दीपों का त्यौहार है फिर ये बम पटाके फोड़ना, तीन चार दिन तक लगातार कान फोड़ पत्ताकों का शोर, किसके दिमाग की उपज है ? सरकार ने इतने बड़े पैमाने पर बम पटाके फोड़ने की इजाजत क्यों दी है ? दिवाली ही नहीं अब तो शादी विवाहों व बच्चे के जन्म दिन पर, दशहरे और दीवाली के त्योहारों पर भी बड़े शक्तिशाली बम पटाके फोड़े जाते हैं।

हिमालय पर्वत श्रेणियों पर चढ़ कर (एवरेस्ट तथा नंदा देवी ) वहां जाने वाले सैलानी बड़ी मात्रा में पालीथिन की बोतलें, डिब्बे पन्नी और बड़े बड़े बैग वहीं छोड़ आते हैं । इसकी उष्णता से कुदरत द्वारा बिछाई हुई सफ़ेद चद्दर बदरंग होकर पिघलने लगती है । इसका असर फिर ग्लेसियरों पर पड़ने लगता है और वे भी पिघलने लगते हैं। आने वाले समय में जैसे की वैज्ञानिकों द्वारा भविष्य वाणी की जा रही है अगले कुछ ही वर्षों में सारे ग्लेसियर पिघल जाएंगे, नदी नाले धीरे धीरे सूखते जाएंगे, समुद्र का स्टार इतना बढ़ जाएगा की इसके किनारे बसने वाले शहर, कसबे व् देश के देश समुद्र की गहराइयों में समा जाएंगे।

हिमालय पर्वतों की गोद में केदारनाथ, बद्रीनाथ, गोमुख, गौरीकुंड, गंगोत्री, यमनोत्री तथा कही अन्य धार्मिक स्थल हैं जहां बड़ी संख्या में यात्री अपने पद चाप से कुदरत के स्वरूप को तो बिगाड़ती ही है साथ ही इन स्थानों के पण्डे यात्रियों की जेब पर नजर रखते हुए उन्हें मानसिक पीड़ा पहुंचाकर प्रदूषण के शैलाव की गति तेज कर देते हैं। भारत देश के तमाम मंदिरों को एक ट्रस्ट के अधीन रखा जाना चाहिए जहां अनुशासन हो, यात्रियों की सुरक्षा और उनके जेबों की भी रक्षा की जाती हो । ऐसा ट्रस्ट जे ऐन्ड के वैष्णों देवी मंदिर की देख रेख के लिए बनाया गया है और प्रदेश सरकार इसकी सुरक्षा व्यवस्था करती है ।

कुछ जागरुक लोग धरती पर बढ़ने वाले प्रदूषण को कम करने की कोशिशों में जुटे हैं। इसका एक उदाहरण उत्तराखंड, कोटद्वार भाबर में "रूरल रिन्यूएबल ऊर्जा सौल्यूसंस प्राइवेट लिमिटेड " द्वारा चलाया जा रहा है। यह कंपनी चीड की पत्ती या सुखी बेकार पडी घास से, लकड़ी के बुरादे से, फायर ब्रिक्स तैयार करती है । यह बड़े पैमाने में ईंट भाटियों में जलने वाले कोयले का स्थान लेगा, बड़े बड़े होटलों में कूकिंग गैस की जगह ये ब्रिक्स इस्तेमाल होंगी। इस ब्रिक्स को जलाने के लिए एक नए चूल्हे का निर्माण किया गया है जो पूरी तरह से धुंवा रहित है । यह कंपनी केवल स्थानीय बेरोजगार नव युवकों को रोजगार ही नहीं दे रही है बल्की प्रदूषण की रोक थाम करने में योगदान कर रही है । अगर आज समाज जग gayaa to yah dharatee pradooshan kee jvaalaa se bach jaaegee .

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