Thursday 19 April 2018

एक रूपया मुझको मेले में माँ ने दिया

एक रूपया मुझको मेले में माँ ने दिया

कुछ नहीं तो कुछ तो  बदल के मानेगा,
दौर ऐसा भी आएगा फिसल के मानेगा।

एक रूपया मुझको मेले में माँ ने दिया
ये  सिक्का मेरा दुनिया में उछल  के मानेगा

खिलौने भी ऐसे कई रोटियां भी छीन लेती है,
 बो हतियार भी बन जायगा जो दुनिया बदल के मानेगा।

एक रूपया मुझको मेले में माँ ने दिया
बुराइयों के असर को अब कुचल के मानेगा।

धूप बंद हे मेरी मुट्ठी में मुझसे कहती है,
खोल दो तो फरिस्ता भी जमी पे उतर के मानेगा।