Friday 7 January 2011

इंद्रेश कुमार :: :: संघ का उदारवादी चेहरा:: :: बाबरी मस्जिद को ढहाए जाने का पुरज़ोर समर्थन करने वाले इंद्रेश कुमार इसे गुलामी की निशानी मानते हैं। उनका कहना है कि ‘हिन्दू’ शब्द धर्म सूचक नहीं है। हिन्दुत्व एक जीवन पध्दति का नाम है। इसलिए भारत में रहने वाला हर व्यक्ति हिन्दू है, भले ही उसकी पूजा पध्दति कोई भी क्यों न हो। वे कहते हैं कि मुसलमान भी इसी देश की संतान हैं। हमारा सबका ईश्वर एक है, वतन एक है, पूर्वज एक हैं, सभ्यता व संस्कृति एक है। बस मानने के तरीक़े अलग-अलग हैं।

इंद्रेश कुमार : संघ का उदारवादी चेहरा!                                                      



मुसलमानों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पैठ बढ़ाने की कवायद में जुटे आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक इंद्रेश कुमार की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। हाल ही में हेडलाइंस टुडे के स्टिंग ऑपरेशन में कहा गया है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश कुमार ने मक्का मस्जिद और अजमेर शरीफ़ में हुए बम धमाकों के कथित मास्टर माइंड सुनील जोशी को निर्देशित किया था। ग़ौरतलब है कि 18 मई 2007 को हैदराबाद की मक्का मस्जिद में जुमे की नमाज़ के दौरान हुए बम धमाके में नौ लोगों की मौत हो गई थी, जबकि मस्जिद के पास प्रदर्शनकारियों पर की गई पुलिस फ़ायरिंग में पांच लोग मारे गए थे। पूछताछ के दौरान संदीप पांडे, रामचंद्र, देवेंद्र गुप्ता और लोकेश शर्मा के नाम सामने आए थे, जिनका संबंध संघ से बताया गया था। 11 अक्टूबर 2007 को अजमेर शरीफ़ की हज़रत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में हुए बम विस्फ़ोट में दो लोगों की मौत हो गई थी।
गौरतलब है कि दिसंबर 2007 में संघ के पूर्व प्रचारक सुनील जोशी संघ की मध्य प्रदेश के देवास में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। वह इंद्रेश कुमार और मालेगांव बम विस्फ़ोट की आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का क़रीबी माना जाता था। हैरत की बात यह भी है कि भाजपा शासित प्रदेश में संघ के प्रचारक की हत्या के आरोपियों को पुलिस तलाश तक नहीं कर पाई। इससे मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार पर भी सवाल उठाए गए। देवास के एएसपी तिलक सिंह का कहना था कि मामले की काफ़ी समय तक छानबीन की गई, लेकिन पुलिस को इसमें कामयाबी नहीं मिली। इसलिए इस मामले को बंद करना पड़ा, मगर कोई भी सुराग़ मिलने पर फिर से छानबीन शुरू की जा सकती है।
इससे पहले इंद्रेश कुमार पर पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी इंटर सर्विसेज़ इंटेलिजेंस (आईएसआई) से संबंध रखने और उससे तीन करोड़ रुपए लेने के आरोप भी लग चुके हैं। महाराष्ट्र आतंक निरोधक दस्ते ने बॉम्बे हाईकोर्ट में यह बयान देकर कोहराम मचा दिया था कि मालेगांव बम धमाके के आरोपी समीर कुलकर्णी के लिखे एक पत्र में इस बात का ख़ुलासा किया गया था कि दो गवाहों कैप्टन जोशी और श्याम आप्टे ने पुलिस के सामने संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत और वरिष्ठ प्रचारक इंद्रेश कुमार की हत्या की साजिश रची गई थी। हाईकोर्ट के निर्देश पर एटीएस ने मामले से संबंधित रिकॉर्ड बंद लिफ़ाफ़े में अदालत के सामने पेश कर दिए थे।
गौरतलब है कि महाराष्ट्र के मालेगांव में 29 सितंबर 2008 को हुए बम धमाके में छह लोगों की मौत हो गई थी और 20 लोग घायल हुए थे। एटीएस ने इस कांड के आरोपियों के संबंध दक्षिणपंथी संगठन ‘अभिनव भारत’ से होने की बात कही थी। अभिनव भारत की स्थापना वीर सावरकर ने 1904 में की थी। इसका उद्देश्य भारतवर्ष को ब्रिटिश शासन से मुक्ति दिलाना था। देश की आज़ादी के बाद 1954 में संगठन के संस्थापक ने ही इसका विसर्जन कर दिया। उनका मानना था कि संगठन का मक़सद पूरा हो चुका है, इसलिए अब इसकी कोई ज़रूरत नहीं रह गई है। मगर 2006 में इस संगठन को फिर से खड़ा किया गया और 2008 में नाथूराम गोडसे की भतीजी व विनायक दामोदर सावरकर की पुत्रवधु हिमानी सावरकर ने इसकी कमान संभाल ली। मालेगांव बम धमाके की आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर भी इसी संगठन की सदस्य है। संगठन के सदस्य नाथूराम गोडसे की विचारधारा के प्रबल समर्थक है, जिसने महात्मा गांधी की कथित मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति से क्रोधित होकर 30 जनवरी 1948 को गोली मारकर हत्या कर दी थी। गोडसे संघ और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य रह चुके थे। महात्मा गांधी की हत्या के बाद संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, लेकिन बाद में इससे पाबंदी हटा ली गई। संघ के आलोचकों का मानना है कि यह एक अतिवादी दक्षिणपंथी संगठन है। हिन्दूवादी व फ़ासीवादी संगठन के तौर पर संघ की आलोचना की जाती रही है।
सियासी दलों की ही तरह संघ के भीतर भी कई धाराएं चलती रही हैं। संघ की सीढ़ी के ज़रिये सियासत में जाने लोग अपने राजनीतिक फ़ायदे के लिए रुख़ बदलते रहे हैं।
जब पूर्वोत्तर में संघ के चार स्वंयसेवकों की हत्या के बावजूद तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने खामोशी अख्तियार कर ली और जम्मू-कश्मीर को तीन हिस्सो में बांटकर देश को जोड़ने के संघ कार्यकारिणी के फ़ैसले को वाजपेयी सरकार ने नकार दिया तो संघ की मुश्किलें और भी बढ़ गईं। संघ की चिंता इस बात को लेकर थी कि जब उसके अपने ही सियासी दल की सरकार उसके फ़ैसलों की अवहेलना करेगी तो इससे देश में क्या संदेश जाएगा? ऐसे में संघ के तत्कालीन सरसंघचालक केसी सुर्दशन और मोहन भागवत के क़रीबी माने जाने वाले इंद्रेश कुमार ने मुसलमानो के बीच संघ का एक संगठन खड़ा करके आरएसएस के कट्टर हिन्दुत्ववादी तबक़े को कड़ा झटका दिया। ग़ौरतलब है कि मुसलमानों के लिए अछूत माने जाने वाले आरएसएस से मुसलमानों को जोड़ने के लिए इंद्रेश कुमार ने 24 दिसंबर 2002 को राष्ट्रवादी मुस्लिम आंदोलन…एक नई राह नामक संगठन की नींव डाली, जिसे बाद में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का नाम दिया गया। संगठन के मार्गदर्शक इंद्रेश कुमार के मुताबिक़ इस मुहिम का उद्देश्य देश के सभी धर्मों के लोगों को एकसूत्र में पिरोना है। साथ ही दहशतगर्दी को ग़ैर इस्लामी क़रार देकर मुसलमानों को आतंकवाद के ख़िलाफ़ एकजुट करना है।
क़ाबिले-ग़ौर है कि वर्ष 2002 से 2006 के दौरान संघ को अपने अनुषांगिक संगठनों विश्व हिन्दू परिषद, स्वदेशी जागरण मंच, भारतीय मज़दूर संघ और किसान संघ से तालमेल बिगड़ रहा था। ऐसे में संघ के तत्कालीन सरसंघचालक केसी सुदर्शन ने संघ को सांप्रदायिक छवि से मुक्त करने के मक़सद से मुसलमानों के कार्यक्रमों में जाना शुरू कर दिया। नतीजतन, अख़बारों में सुदर्शन की मुस्लिम धर्मगुरुओं के साथ तस्वीरें छपने लगीं। इससे हिन्दुत्ववादी नेताओं को हिन्दू राष्ट्र के सपने को साकार करने की मुहिम खटाई में पड़ती नज़र आई। इतना ही नहीं वर्ष 2004 के आम चुनावों में भाजपा की हार ने संघ के मंसूबों पर पानी फेर दिया। हिन्दुत्ववादी नेताओं का कहना था कि अपनी हिन्दुत्व की मूल विचारधारा से भटकने के कारण ही भाजपा को पराजय का मुंह देखना पड़ा है। विश्व हिन्दू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल, वरिष्ठ उपाध्यक्ष आचार्य गिरिराज किशोर, महासचिव प्रवीण्ा तोगड़िया, आचार्य धर्मश, जयभान सिंह पवैया, उमाश्री भारती, साध्वी ऋतम्भरा, शिवसेना के प्रमुख बाल ठाकरे, भाजपा के महासचिव विनय कटियार आदि प्रखर हिन्दुत्ववादी नेता हैं और अपने जोशीले सांप्रदायिक भाषणों के लिए जाने जाते हैं। ये संघ और भाजपा के उदारवादी चेहरे के पक्ष में नहीं हैं।
आलोचकों का मानना है कि मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का एजेंडा आरएसएस के दूसरे संगठनों से अलग नहीं है। अगर आतंकवाद के किसी मामले में कोई मुसलमान पकड़ा जाता है तो संगठन के लोग इकट्ठे होकर उसके लिए सज़ा की मांग करते हैं। संसद हमले के आरोपी को फांसी की सज़ा दिए जाने को लेकर मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के कार्यकर्ता दिल्ली के जंतर-मंतर से लेकर देशभर में धरने-प्रदर्शन कर चुके हैं। मगर जब मालेगांव के बम विस्फ़ोट की आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर आदि की बात आती है तो इस संगठन के कार्यकर्ता आरोपियों के ही समर्थन में जुट जाते हैं और यूपीए सरकार पर संघ को बदनाम करने का आरोप लगाने लगते हैं। बाबरी मस्जिद मामले से भी इस संगठन के लोग दूर रहते हैं। हालांकि हर साल 6 दिसंबर को संघ से जुड़े संगठन शौर्य दिवस मनाते हैं और मुस्लिम संगठनों के कार्यकर्ता इस दिन सिर पर काला कपड़ा बांधकर विरोध जताते हैं। स्टिंग ऑपरेशन में बम धमाकों के सिलसिले में इंद्रेश कुमार का नाम आने पर संगठन के मुस्लिम कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन कर विरोध जताया।
संगठन के पदाधिकारियों का दावा है कि यह एक सामाजिक संगठन है और देश के 22 राज्यों में इसके कार्यकर्ता सक्रिय हैं। हालांकि सियासी गलियारे में यही माना जाता है कि इस संगठन का असल मक़सद मुस्लिम बहुल इलाकों में भाजपा का जनाधार बढ़ाना है।
क़ाबिले-गौर है कि संघ एक राष्ट्रव्यापी संगठन है और इसके असंख्य अनुषांगिक संगठन हैं, जिनमें विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, हिन्दू स्वयंसेवक संघ, स्वदेशी जागरण मंच, भारतीय मजदूर संघ, अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद, इंडियन मेडिकोज ऑॅरगेनाइजेशन, भारत विकास परिषद, सेवा भारती, विद्या-भारती, संस्कृत भारती, विज्ञान भारती, भारत विकास परिषद, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग परिषद, विश्व संवाद केंद्र, सहकार भारती, अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत परिषद, राष्ट्रीय सिख संगत, वनवासी कल्याण आश्रम, लघु उद्योग भारती, दीनदयाल शोध संस्थान, विवेकानंद केंद्र, बालगोकुलम, राष्ट्रीय सेविका समिति और दुर्गा वाहिनी आदि शामिल हैं। कहने को तो संघ के इन सभी अनुषांगिक संगठनों के कार्य अलग-अलग हैं, लेकिन इनका सबका उद्देश्य एक ही है, यानी हिन्दुत्व का प्रचार-प्रसार कर देश को हिन्दू राष्ट्र के रूप में स्थापित करना।
देशभर में संघ की प्रतिदिन क़रीब 50 हज़ार शाखाएं लगती हैं। सुबह लगने वाली शाखा को प्रभात शाखा, शाम की शाखा को सांय शाखा, रात में लगने वाली शाखा को रात्रि शाखा कहते हैं। सप्ताह में एक या दो बार लगने वाली शाखा को मिलन और महीने में एक या दो बार लगने वाली शाखा को मंडली कहा जा सकता है। हर शाखा का समय 30 मिनट से लेकर 2 घंटे तक होता है। शाखा में योगासन, पारंपरिक भारतीय खेल, परेड कराई जाती है। इसके साथ ही संघ के गीत और प्रार्थना भी होती है। इसके अलावा संघ के 15 दिवसीय शिविर भी लगाए जाते हैं, जिसमें स्वयंसेवकों से सुबह 4 बजे से रात के 11 बजे तक कड़ा परिश्रम कराया जाता है।
आपातकाल (1975-1977) में भूमिगत आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले इंद्रेश कुमार का कहना है कि मेरा किसी भी हिंसक गतिविधि में विश्वास नहीं रहा है। उन्होंने कहा कि संघ विगत 85 वर्षों र्से देशभक्त एवं निष्ठावान नागरिकों के निर्माण का काम कर रहा है। संघ की प्रेरणा से स्वयंसेवक समाज के विभिन्न क्षेत्रों में लोक-जागरण, लोक शिक्षण एवं लोकसेवा का कार्य कर रहे हैं। देश पर आई हर आपदा-विपदा में स्वयंसेवकों ने आगे बढ़कर योगदान दिया है। देश सेवा संघ का मूल मंत्र है। पिछले चार दशकों से संघ की प्रेरणा से मैंने अपना जीवन देश सेवा के कार्यों र्को अर्पित किया है। एक स्वयंसेवक के रूप में मैंने अपने जीवन में पारदर्शिता को महत्व दिया है।
18 फ़रवरी 1949 को कैथल में जन्मे इंद्रेश कुमार चंडीगढ़ स्थित पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से बी.ई. (मैकेनिकल) करने के बाद 1970 में संघ प्रचारक बन गए थे। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के अलावा वे जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद से विस्थाति कश्मीरियों के पुनर्वास, ग्राम सुरक्षा समितियों का गठन, पूर्व सैनिक सैल की स्थापना, हिमालय परिवार, समग्र राष्ट्रीय सुरक्षा मंच, भारत-तिब्बत सहयोग मंच, राष्ट्रीय कवि संगम, अमरनाथ यात्रियों के लिए सरकार से ज़मीन दिलाने में संघर्षरत और धर्म संस्कृति आदि आंदोलन के प्रारंभकर्ता हैं।
बाबरी मस्जिद को ढहाए जाने का पुरज़ोर समर्थन करने वाले इंद्रेश कुमार इसे गुलामी की निशानी मानते हैं। उनका कहना है कि ‘हिन्दू’ शब्द धर्म सूचक नहीं है। हिन्दुत्व एक जीवन पध्दति का नाम है। इसलिए भारत में रहने वाला हर व्यक्ति हिन्दू है, भले ही उसकी पूजा पध्दति कोई भी क्यों न हो। वे कहते हैं कि मुसलमान भी इसी देश की संतान हैं। हमारा सबका ईश्वर एक है, वतन एक है, पूर्वज एक हैं, सभ्यता व संस्कृति एक है। बस मानने के तरीक़े अलग-अलग हैं।
बहरहाल, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि संघ का ‘गुप्त एजेंडा’ जो भी हो, इसके बावजूद इंद्रेश कुमार जैसे नेताओं ने मुसलमानों को साथ लेकर चलने का महत्‍वपूर्ण कार्य किया है।

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