Wednesday 12 January 2011

हिन्दू :: ::एकता सिद्धांत:: ::एक विचार यह है कि सभी वर्ण शूद्र, वैश्य, क्षत्रिय और ब्राह्मण भगवान के अंगो से बने । पैर से शूद्र, जंघा से वैश्य, भुजाओं से क्षत्रिय व सिर से ब्राह्मण।

हिन्दू :: ::एकता सिद्धांत:: ::एक विचार यह है कि सभी वर्ण शूद्र, वैश्य, क्षत्रिय और ब्राह्मण भगवान के अंगो से बने । पैर से शूद्र, जंघा से वैश्य, भुजाओं से क्षत्रिय व सिर से ब्राह्मण।

 
यहाँ पर यह स्पष्ट करना भी जरूरी है कि संसार में हिन्दू धर्म ही एकमात्र ऐसी जीवन पद्धति है जिसे किसी संप्रदाय विशेष के साथ नहीं जोड़ा जा सकता,जिसमें कभी किसी संप्रदाय विशेष को अपना शत्रु घोषित नहीं किया गया,इन्सान तो इन्सान पेड़ पौधों जीव-जन्तुओं, पशु-पक्षियों सब में भगवान के रूप को देखा गया, उनकी पूजा की गई । आज तक एक भी लड़ाई किसी पूजा पद्धति के विरोध या समर्थन में नहीं लड़ी गई । हिन्दू धर्म में किसी क्षेत्र विशेष या संप्रदाय विशेष की बात न कर सारे संसार को परिवार मानकर उसकी भलाई की बात की गई । हिन्दूधर्म के प्रचार प्रसार के लिए आज तक किसी देश या संप्रदाय विशेष पर हमला नहीं किया गया। हिन्दू जीवन पद्धति ही दुनिया में सर्वश्रेष्ठ जीवन पद्धति है। लेकिन जिसने भी मानवता के प्रतीक इस हिन्दू संस्कृति व उसे मानने वाले हिन्दुओं पर हमला किया है । इतिहास इस बात का गवाह है कि ऐसे राक्षस को पाप का घड़ा भर जाने पर अपने किए की सजा भुगतनी पड़ी है। हमारे विचार में राक्षसों के इस सैकुलर गिरोह के पापों का घड़ा भी लगभग भर चुका है। साधु-सन्तों का अपमान व भगवान राम के अस्तित्व को नकारना इस बात के पक्के प्रमाण हैं। हमने सुना था कि जब किसी राक्षस का अन्त नजदीक होता है तो उसके द्वारा किए जाने वाले पाप व अत्याचार बढ़ जाते हैं जो हमने पिछले कुछ वर्षों में देख भी लिया ।

अब सिर्फ इस धर्मनिर्पेक्षता रूपी राक्षस का अन्त देखना बाकी है इस राक्षस के खात्में के लिए कर्नल श्रीकांत पुरोहित, साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर,सुधाकर चतुर्वेदी जी, राम जी जैसे करोड़ों प्रशिक्षित गण हमले का जबाब देकर इन आतंकवादियों व इनके समर्थक सैकुलरिस्टों का संहार करने के लिए तैयार बैठे हैं बस इंतजार है तो सेनापति के इशारे का जिस दिन ये इशारा मिल गया उसी दिन ये सब राक्षस अपनी सही जगह पर पहुँच जाँयेगे ! हम यहां पर यह सपष्ट कर देना चाहते हैं कि धर्म विहीन प्राणी मानव नहीं दानव होता है। अतः धरमनिर्पेक्षता मानव के लिए अभिशाप है क्योंकि यह मानव को दानव वना देती है। जिसका सीधा सा उदाहरण इस सेकुलर गिरोह द्वारा किए गए क्रियाकलाप हैं। इसी धर्मनिर्पेक्षता की वजह से सेकुलर गिरोह मानव जीवन के शत्रु आतंकवादियों का तो समर्थन करता है पर मर्यादापुर्षोत्तम भगवान श्री राम का विरोध ।

हम बात कर रहे थे हिन्दू धर्म की, बीच में धर्म और अधर्म के बीच होने वाले निर्णायक युद्ध के लिए बन रही भूमिका का स्वतः ही स्मरण हो आया । जो लोग हिन्दुओं को लड़वाने के लिए यह मिथ्या प्रचार करते हैं कि हिन्दू धर्म में प्राचीन समय से छुआछूत है । उनकी जानकारी के लिए हम ये प्रमाण सहित स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि बेशक हिन्दू धर्म में वर्ण व्यवस्था शुरू से रही है जो कि किसी भी समाज को व्यवस्थित ढ़ंग से चलाने के लिए जरूरी होती है पर छुआछूत 1000 वर्ष के गुलामी के काल की देन है। खासकर मुसलिम के गुलामी काल की। वर्णव्यवस्था की उत्पति के लिए दो विचार स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आते हैं------------ एक विचार यह है कि सभी वर्ण शूद्र, वैश्य, क्षत्रिय और ब्राह्मण भगवान के अंगो से बने । पैर से शूद्र, जंघा से वैश्य, भुजाओं से क्षत्रिय व सिर से ब्राह्मण।

अब आप सोचो कि भगवान का कौन सा अंग अछूत हो सकता है सिर ,पैर, जंघा या भुजांयें । कोई नहीं क्योंकि जिसे हम भगवान मानते हैं उसका हर अंग हमारे लिए भगवान ही है । वैसे भी हम बड़ों व साधु संतों के पैर ही पूजते हैं। अतः किसी भी हिन्दू, वर्ण, जाति को अछूत कहना भगवान को अछूत कहने के समान है और जो यह सब जानते हुए भगवान का अपमान करता है वह नरक का भागीदार बनता है। अतः यह हम सब हिन्दुओं का कर्तव्य बनता है कि हम सब हिन्दुओं तक ये सन्देश पहुँचांए और उसे नरक का भागीदार बनने से रोकें। दूसरा विचार यह है कि मनु जी के चार सन्तानें हुईं । जब बच्चे बड़े होने लगे तो मनु जी के मन में यह विचार आया कि सब कामों पर एक ही ताकतवर बच्चा कब्जा न कर ले इसलिए उन्होंने अपने चारों बच्चों को काम बांट दिए ।सबसे बड़े को सबको शिक्षा का जिसे ब्राह्मण कहा गया। उससे छोटे को सबकी रक्षा का जिसे क्षत्रिय कहा गया। तीसरे को खेतीबाड़ी कर सबके लिए भोजन पैदा करने का जिसे वैश्य कहा गया। चौथे को सबकी सेवा करने का जिसे शूद्र कहा गया ।
अब आप ही फैसला करो कि जब चारों भाईयों का पिता एक, चारों का खून एक, फिर कौन शुद्ध और कौन अशुद्ध ,कौन छूत कौन अछूत ? यह एक परम सत्य है कि संसार में कोई भी काम छोटा या बडा , शुद्ध या अशुद्ध नहीं होता । फिर भी हम सेवा के काम पर चर्चा करते हैं और सेवा में भी उस काम की जिसे साफ-सफाई कहा जाता है जिसमें शौच उठाना भी जोड़ा जा सकता है ।(हालांकि भारत मे शौच घर से दूर खुली जगह पर किया जाता था इसलिए उठाने की प्रथा नहीं थी ये भी गुलामी काल की देन है ) आगे जो बात हम लिखने जा रहे हैं हो सकता है माडर्न लोगों को यह समझ न आए । अब जरा एक हिन्दू घर की ओर ध्यान दो और सोचो कि घर में सेवा का काम कौन करता है आपको ध्यान आया की नहीं ? हाँ बिल्कुल ठीक समझे आप हर घर में साफ-सफाई का काम माँ ही करती है और बच्चे का मल कौन उठाता है ? हाँ बिल्कुल ठीक समझे आप हर घर में माँ ही मल उठाती है । मल ही क्यों गोबर भी उठाती है और रोटी कौन बनाता है वो भी माँ ही बनाती है । उस मल उठाने वाली माँ के हाथों बनाई रोटी को खाता कौन है। हम सभी खाते हैं क्यों खाते हैं वो तो गंदी है-अछूत है ? क्या हुआ बुरा लगा न कि जो हमें जन्म देती है पाल पोस कर बढ़ा करती है भला वो शौच उठाने से गन्दी कैसे हो सकती है ? जिस तरह माँ साफ-सफाई करने से या शौच उठाने से गंदी या अछूत नहीं हो जाती पवित्र ही रहती है। ठीक इसी तरह मैला ढोने से या साफ-सफाई करने से कोई हिन्दू अपवित्र नहीं हो जाता । अगर ये सब कर मां अछूत हो जाती है तो उसके बच्चे भी अछूत ही पैदा होंगे फिर तो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र सभी अछूत हैं और जब सभी अछूत हैं तो भी तो सभी भाई हैं भाईयों के बीच छुआछूत कैसी ? कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि कोई हिन्दू न छोटा है न बढ़ा सब हिन्दू एक समान हैं कोई अछूत नहीं इसीलिए कहा गया है कि-

न हिन्दू पतितो भवेत                                                                                      

कोई हिन्दू पतित नहीं होता और जो हिन्दू दूसरे हिन्दू को पतित प्रचारित करता है वो हिन्दुओं का हितैषी नहीं विरोधी है और जो हिन्दुओं का विरोधी है वो हिन्दू कैसा ? हमें उन बेसमझों पर बढ़ा तरस आता है जो गाय हत्या व हिन्दुओं के कत्ल के दोषियों (जो न हमारे देश के न खून के न हमारी सभ्यता और संस्कृति के) को अपना भाई बताते हैं और उन को जिनका देश अपना, संस्कृति अपनी और तो और जिनका खून भी अपना, को अछूत मानकर पाप के भागीदार बनते हैं ।

उनकी जानकारी के लिए हम बता दें कि हिन्दुओं के कातिलों आक्रमणकारी मुसलमानों व ईसाईयों को भाई कहना व अपने खून के भाईयों को अछूत अपने आप में ही इस बात का सबसे बढ़ा प्रमाण है कि ये छुआछूत इन मुसलमानों व ईसाईयों की गुलामी का ही परिणाम है क्योंकि अगर हिन्दूसमाज इस तरह के भेदभाव का समर्थक होता तो सबसे ज्यादा छुआछूत इन कातिलों से होती न कि अपने ही खून के भाईयों से । इस गुलामी के काल में जिस तरह हर वर्ण के कुछ जयचन्द, जैसे सैकुलर स्वार्थी हिन्दुओं ने इन साम्राज्यवादी ,अग्निबेश जैसे हिन्दुओं ने मातृभूमि व हिन्दुओं के विरूद्ध काम करते हुए समाज के अन्दर इन दुष्टों के दबाव या लालच में आकर अनेक भ्राँतियां फैलाई छुआछूत भी उन्हीं में से एक है। पर इस हिन्दुविरोधी देशद्रोही जिहाद व धर्मांतरण समर्थक गिरोह ने हिन्दुओं को आपस में लड़वाने के लिए इतना जहर फैलाया है कि एक पोस्टर पर बाबा भीमराव अम्बेडकर जी का नाम न छापने पर आज एक हिन्दू दूसरे हिन्दू पर इतना तगड़ा प्रहार करता है कि एक दूसरे के खून के प्यासे सगे भाईयों को देखकर रूह काँप उठती है । ये लोग यह भूल जाते हैं कि बाबा जी सब हिन्दुओं के हैं किसी एक वर्ग के नहीं । ये वही बाबा भीमराव अम्बेडकर जी हैं जिन्होंने अंग्रेज ईसाईयों के हिन्दुओं को दोफाड़ करने के सब षड्यन्त्रों को असफल कर दिया था।

हम जानते हैं कि धर्मांतरण के दलालों द्वारा लगाई गई आग को सिर्फ एक दो प्रमाणों से नहीं बुझाया जा सकता क्योंकि इस हिन्दुविरोधी गिरोह का मकसद सारे हिन्दू समाज को इस आग में झुलसाकर राख कर देना है । यही तो इस देशद्रोही गिरोह की योजना है कि हिन्दुओं के मतभेदों को इतना उछालो कि उनमें एक दूसरे के प्रति वैमनस्य का भाव इतना तीव्र हो कि वो राष्ट्रहित हिन्दूहित में भी एक साथ न आ सकें । यह हम सब हिन्दुओं शूद्र, क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य का आज पहला कर्तव्य होना चाहिए कि गुलामी काल से पहले के हिन्दू एकता के प्रमाणों को संजोकर व वर्तमान में हिन्दूएकता के प्रमाणों को उजागर कर इस हिन्दुविरोधी षड़यन्त्र को असफल करें। जिहादियों व धर्मांतरण के दलालों द्वारा हिन्दुओं पर थोपे गये इस युद्ध को निर्णायक युद्ध की तरह लड़कर अपनी ऋषियों-मुनियों मानव सभ्यता की भूमि भारत को इन पापियों से मुक्त करवाकर राम राज्य की स्थापना करें । अपने हिन्दूराष्ट्र भारत को विकास के पथ पर आगे बढ़ाकर गरीब से गरीब हिन्दू तक विकास का लाभ पहुँचायें व उसे शांति व निर्भीकता से जीने का अवसर प्रदान करें जो इन असुरों के रहते सम्भव नहीं। वैसे भी किसी ने क्या खूब कहा है- मरना भला है उनका जो अपने लिए जिए। जीते हैं मर कर भी वो जो शहीद हो गए कौंम के लिए।। जिस छुआछूत की बात आज कुछ बेसमझ करते हैं उसके अनुसार ब्राह्मण सबसे शुद्ध , क्षत्रिय थोड़ा कम, वैश्य उससे कम, शूद्र सबसे कम।चलो थोड़ी देर के लिए यह मान लेते हैं कि यह व्यवस्था आदि काल से प्रचलित है। तो क्योंकि क्षत्रिय ब्राह्मण से अशुद्ध है तो फिर ब्राह्मण क्षत्रिय की पूजा नहीं कर सकते हैं पर सच्चाई इसके विपरीत है मर्यादा पुर्षोतम भगवान श्री राम क्षत्रिय हैं पर सारे ब्राह्मण अन्य वर्णों की तरह ही उन्हें भगवान मानते हैं उनकी पूजा करते हैं। भगवान श्री कृष्ण ब्राह्मण थे क्या ? जो सारे हिन्दू उनकी पूजा करते हैं। सब हिन्दू उनको भगवान मानते हैं उनकी पूजा करते हैं। ये सत्य है पर वो ब्राह्मण नहीं वैश्य वर्ण से सबन्ध रखते हैं फिर तो ब्राह्मण और क्षत्रिय उनसे शुद्ध हैं उनकी पूजा कैसे कर करते हैं ? ब्राह्मण और क्षत्रिय उनकी पूजा करते हैं ये सत्य है इसे देखा जा सकता है। अतः इस सारी चर्चा से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि वर्ण व्यवस्था एक सच्चाई है पर ये शुद्ध अशुद्ध वाली अवधारणा गलत है और आदिकाल से प्रचलित नहीं है ये गुलामी काल की देन है।अगर ये आदिकाल से प्रचलित होती तो मर्यादा पुर्षोतम भगवान श्री राम भीलनी को माँ कहकर न पुकारते न ही उनके जूठे बेर खाते । अतः जो भी हिन्दू इस शुद्ध-अशुद्ध की अवधारणा में विश्वास करता है वो अज्ञानी है बेसमझ है उसे सही ज्ञान देकर हिन्दू-एकता के इस सिद्धान्त को मानने के लिए प्रेरित करना हम सब जागरूक हिन्दुओं का ध्येय होना चाहिए और जो इस ध्येय से सहमत नहीं उसे राष्ट्रवादी होने का दावा नहीं करना चाहिए।

अब जरा वर्तमान में अपने समाज में प्रचलित कार्यक्रमों पर ध्यान केन्द्रित करते हैं । इस हिन्दुविरोधी देशद्रोही जिहाद व धर्मांतरण समर्थक गिरोह के इतने तीव्र दुष्प्रचार व विभाजनकारी षड्यन्त्रों के बावजूद आज भी जब किसी हिन्दू के घर में शादी होती है तो सब वर्ण उसे मिलजुलकर पूरा करते हैं। आज भी ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य, शूद्र में से किसी के भी घर में शादी यज्ञ या अन्य कार्यक्रमों के दौरान भोजन जिस बर्तन में रखा जाता है या जिस बर्तन में भोजन किया जाता है उसे उस हिन्दू भाई द्वारा बनाया जाता है जिसे इस शुद्ध-अशुद्ध की अवधारणा के अनुसार कुछ शूद्र भी अशुद्ध मानते हैं। यहां तक कि अधिकतर घरों में आज भी रोटियां उसी के बनाए बर्तन में रखी जाती हैं दूल्हे की सबसे बड़ी पहचान मुकुट(सेहरा) तक शूद्र हिन्दू भाई द्वारा ही बान्धा जाता है और तो और बारात में सबसे आगे भी शूद्र ही चलते हैं यहां तक कि किसी बच्चे के दांत उल्टे आने पर शूद्र को ही विधिवत भाई बनाया जाता है । अगर शूद्र को आदिकाल से ही अछूत माना जाता होता वो भी इतना अछूत कि उसकी परछांयी तक पड़ना अशुभ माना जाता होता तो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, सब शूद्र के बनाए बर्तन में न खाना खाते ,न शूद्र द्वारा मुकुट बांधा जाता,न बारात में शूद्र को सबसे आगे चलाया जाता और न ही शादियों में हिन्दू समाज का ये मिलाजुला स्बरूप दिखता जो इस शुद्ध-अशुद्ध की अवधारणा को पूरी तरह गलत सिद्ध करता है ,हां वर्तमान में जो हिन्दूएकता के सिद्धांत के विपरीत एक ही वर्ण में या विभिन्न वर्णों के बीच कुछ कुरीतियां दिखती हैं । उन्हें हिन्दूसमाज को यथाशीघ्र बिना कोई वक्त गवाए दूर करना है और हिन्दूएकता के इस सिद्धांत को हर घर हर जन तक पहुँचाना है। दिखाबे के लिए नहीं दिल से- मन से क्योंकि किसी भी हिन्दू को अशुद्ध कहना न केवल हिन्दुत्व की आत्मा के विरूद्ध है बल्कि भगवान का भी अपमान है ।

काम बहुत आसान है अगर दिल से समझा जाए तो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य को सुपिरियोरिटी कम्पलैक्स(बड़प्पन) व शूद्र को इनफिरियोरिटी कम्पलैक्स(हीन भावना) का भाव दूर कर अपनी उत्पति को ध्यान में रख कर अपनी असलिएत को पहचाहना होगा याद रखना होगा कि हमारा खून एक है । जिस तरह हमारी मां सेवा का काम कर अछूत नहीं हो सकती ठीक इसी तरह कोई शूद्र भाई भी अछूत नहीं हो सकता। हम सब हिन्दू एक हैं भाई-भाई हैं। एक-दूसरे का अपमान भगवान का अपमान है। अब वक्त आ गया है कि सब हिन्दू इस हिन्दुविरोधी-देशद्रोही जिहाद व धर्मांतरण समर्थक सैकुलर गिरोह के भ्रामक दुष्प्रचार का शिकार होकर इन हिन्दूविरोधियों के हाथों तिल-तिल कर मरने के बजाए एकजुट होकर जंगे मैदान में कूदकर अपने आपको हिन्दूराष्ट्र भारत की रक्षा के लिए समर्पित कर दें । वरना वो दिन दूर नहीं जब हिन्दू अफगानिस्तान, बांगलादेश, पाकिस्तान की तरह वर्तमान हिन्दूराष्ट्र भारत से भी बेदखल कर दिए जांए जैसे कश्मीर घाटी से कर दिए गये और मरने व दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर होंगे।

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