पुराणों में कहा गया है कि ब्रह्मा
ने सृष्टि का निर्माण किया है।
लेकिन फिर भी हम सृष्टि निर्माता की
पूजा-अर्चना नहीं करते। क्यों?
दरअसल, यह एक रहस्य है। भारत में
केवल दो स्थानों पर ही ब्रह्मा का
मंदिर है। एक दक्षिण भारत के कुंभ
कणिमऔर दूसरा, उत्तर भारत के पुष्कर
में। सच तो यह है कि भारत में
ब्रह्मा पर आधारित कोई उत्सव या
त्योहार नहीं है। हमारे मन में यह
सवाल उठना लाजिमी है कि पूर्वजों ने
सृष्टि के रचयिता की पूजा क्यों
नहीं शुरू की? दरअसल, यह जानने के लिए
हमें गहन विचार करना होगा। सभी
धर्मो में यह बात कही गई है कि
सृष्टि का निर्माण ईश्वर ने किया
है। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार,
ब्रह्मा ने स्वयं को समझने के लिए
सृष्टि का निर्माण किया था। इस
सृष्टि ने स्त्री का रूप लिया। उसका
नाम पडा-सतरूपा, जिसका अर्थ
है-जिसके कई रूप हों। सच तो यह है कि
सतरूपाके अनवरत बदलते रूप को देख कर
ब्रह्मा उस पर मोहित हो गए। वे इतने
आसक्त हो गए कि उसके पीछे भागने
लगे। उसे अपने नियंत्रण और वश में
करना चाहा। इसी वजह से हम ब्रह्मा
की पूजा नहीं करते हैं। यहां तक कि
उन्होंने चार सिर धारण कर लिए, ताकि
वे सतरूपाको लगातार देख सकें।
हालांकि सतरूपाके रूप बदलने के साथ
ब्रह्मा ने भी कई रूप धारण किए।
उनकी यही कोशिश आज भी जारी है। मजे
की बात यह है कि इस कोशिश में उनका
पांचवां सिर भी निकल आया। ब्रह्मा
की यह अवस्था देवताओं को अच्छी नहीं
लगी। उन्होंने ब्रह्मा को खूब
धिक्कारा। क्योंकि एक पिता अपनी
[पुत्री सृष्टि] के पीछे भाग रहा था।
यह एक रूपक है, लेकिन लोग इसे सीधे
अर्थ में समझने की भूल करते हैं।
इसका वास्तविक अर्थ यह है कि हम
दुनिया का निर्माण करते हैं और फिर
उसी पर मोहित हो जाते हैं। इसमें जो
सुख-दुख हैं, वे हमारे मन से ही पैदा
होते हैं। इस तरह हम माया, भ्रम और
पाश में जकड जाते हैं। और इसीलिए हम
पूजनीय नहीं रह पाते हैं। अर्थात्
ब्रह्म भी पूजनीय नहीं हैं। कुछ समय
बाद देवताओं ने ब्रह्मा की अवस्था
की ओर शिवजी का ध्यान आकृष्ट कराया।
उन्होंने अपना खड्ग उठाया और
ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया।
यह पांचवां सिर हमारा अहंकार है।
यही अहंकार कहता है कि यह दुनिया
मैंने रची है। शिवजी को इसी वजह से
कपालिन भी कहते हैं। यह कहानी हमें
यह संदेश देती है कि हम अपनी दुनिया
का निर्माण करते हैं और उसके साथ ही
हमारे अंदर अहंकार पैदा होता है।
लेकिन शिव की उपासना से हम इस
अहंकार को खत्म कर सकते हैं। हम सभी
ऐसा मानते हैं कि शिव और ब्रह्मा के
बीच में विष्णु रहते हैं। भगवान
विष्णु ब्रह्मा की तरह
मोहासक्तनहीं हैं। वे संसार से खुद
को अलग रखते हैं। उनमें थोडा
वैराग्य है, फिर भी भौतिक जगत से
जुडे हुए हैं। उनका यह जुडाव
कर्मयोग है। वे काम करते हैं, लेकिन
फल की चिंता नहीं करते। यह अवधारणा
समझ में आ जाए, तो हम पाएंगे कि हमारे
चारों ओर ब्रह्म ही ब्रह्म हैं।
अहंकारी भाव से हम अपनी दुनिया में
रमे रहते हैं और दूसरों की दुनिया
की परवाह नहीं करते। हम ब्रह्मा की
पूजा भले ही न करें, लेकिन हम उन्हें
समझ सकेंगे। ब्रह्मा ईश्वर नहीं
हैं। वे हम से ज्यादा अलग नहीं हैं।
वे अपना अस्तित्व खोज रहे हैं। ठीक
उसी तरह हम सभी के अंदर ब्रह्मा
हैं। दरअसल, उनकी तरह ही हम खुद को
जानना चाहते हैं। उस खोज के बगैर
हमें शांति नहीं मिलती।
ने सृष्टि का निर्माण किया है।
लेकिन फिर भी हम सृष्टि निर्माता की
पूजा-अर्चना नहीं करते। क्यों?
दरअसल, यह एक रहस्य है। भारत में
केवल दो स्थानों पर ही ब्रह्मा का
मंदिर है। एक दक्षिण भारत के कुंभ
कणिमऔर दूसरा, उत्तर भारत के पुष्कर
में। सच तो यह है कि भारत में
ब्रह्मा पर आधारित कोई उत्सव या
त्योहार नहीं है। हमारे मन में यह
सवाल उठना लाजिमी है कि पूर्वजों ने
सृष्टि के रचयिता की पूजा क्यों
नहीं शुरू की? दरअसल, यह जानने के लिए
हमें गहन विचार करना होगा। सभी
धर्मो में यह बात कही गई है कि
सृष्टि का निर्माण ईश्वर ने किया
है। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार,
ब्रह्मा ने स्वयं को समझने के लिए
सृष्टि का निर्माण किया था। इस
सृष्टि ने स्त्री का रूप लिया। उसका
नाम पडा-सतरूपा, जिसका अर्थ
है-जिसके कई रूप हों। सच तो यह है कि
सतरूपाके अनवरत बदलते रूप को देख कर
ब्रह्मा उस पर मोहित हो गए। वे इतने
आसक्त हो गए कि उसके पीछे भागने
लगे। उसे अपने नियंत्रण और वश में
करना चाहा। इसी वजह से हम ब्रह्मा
की पूजा नहीं करते हैं। यहां तक कि
उन्होंने चार सिर धारण कर लिए, ताकि
वे सतरूपाको लगातार देख सकें।
हालांकि सतरूपाके रूप बदलने के साथ
ब्रह्मा ने भी कई रूप धारण किए।
उनकी यही कोशिश आज भी जारी है। मजे
की बात यह है कि इस कोशिश में उनका
पांचवां सिर भी निकल आया। ब्रह्मा
की यह अवस्था देवताओं को अच्छी नहीं
लगी। उन्होंने ब्रह्मा को खूब
धिक्कारा। क्योंकि एक पिता अपनी
[पुत्री सृष्टि] के पीछे भाग रहा था।
यह एक रूपक है, लेकिन लोग इसे सीधे
अर्थ में समझने की भूल करते हैं।
इसका वास्तविक अर्थ यह है कि हम
दुनिया का निर्माण करते हैं और फिर
उसी पर मोहित हो जाते हैं। इसमें जो
सुख-दुख हैं, वे हमारे मन से ही पैदा
होते हैं। इस तरह हम माया, भ्रम और
पाश में जकड जाते हैं। और इसीलिए हम
पूजनीय नहीं रह पाते हैं। अर्थात्
ब्रह्म भी पूजनीय नहीं हैं। कुछ समय
बाद देवताओं ने ब्रह्मा की अवस्था
की ओर शिवजी का ध्यान आकृष्ट कराया।
उन्होंने अपना खड्ग उठाया और
ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया।
यह पांचवां सिर हमारा अहंकार है।
यही अहंकार कहता है कि यह दुनिया
मैंने रची है। शिवजी को इसी वजह से
कपालिन भी कहते हैं। यह कहानी हमें
यह संदेश देती है कि हम अपनी दुनिया
का निर्माण करते हैं और उसके साथ ही
हमारे अंदर अहंकार पैदा होता है।
लेकिन शिव की उपासना से हम इस
अहंकार को खत्म कर सकते हैं। हम सभी
ऐसा मानते हैं कि शिव और ब्रह्मा के
बीच में विष्णु रहते हैं। भगवान
विष्णु ब्रह्मा की तरह
मोहासक्तनहीं हैं। वे संसार से खुद
को अलग रखते हैं। उनमें थोडा
वैराग्य है, फिर भी भौतिक जगत से
जुडे हुए हैं। उनका यह जुडाव
कर्मयोग है। वे काम करते हैं, लेकिन
फल की चिंता नहीं करते। यह अवधारणा
समझ में आ जाए, तो हम पाएंगे कि हमारे
चारों ओर ब्रह्म ही ब्रह्म हैं।
अहंकारी भाव से हम अपनी दुनिया में
रमे रहते हैं और दूसरों की दुनिया
की परवाह नहीं करते। हम ब्रह्मा की
पूजा भले ही न करें, लेकिन हम उन्हें
समझ सकेंगे। ब्रह्मा ईश्वर नहीं
हैं। वे हम से ज्यादा अलग नहीं हैं।
वे अपना अस्तित्व खोज रहे हैं। ठीक
उसी तरह हम सभी के अंदर ब्रह्मा
हैं। दरअसल, उनकी तरह ही हम खुद को
जानना चाहते हैं। उस खोज के बगैर
हमें शांति नहीं मिलती।
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