मोहम्मद अफजल कि फांसी टाल सकती हैं, रोक नहीं सकती यूपीए सरकार
अब कांग्रेस का हाथ अफजल के साथ
गुलाम नबी आजाद का बयान आपने देखा। सिर्फ बयान पर बात रहती। तो इतना बवाल न होता। गुलाम नबी ने अफजल की फांसी माफ करने की चिट्ठी भी लिखी। चिट्ठी में लिखा-'जम्मू कश्मीर में कानून व्यवस्था बिगड़ जाएगी। पाकिस्तान के साथ संबंध भी बिगडेंग़े।' संसद पर हमला हुआ। यानी लोकतंत्र पर हमला हुआ। संसद पर हमला यानी देश पर हमला। अगर अफजल के खुद के बयान पर भरोसा करें। तो आतंकियों का इरादा सेंट्रल हॉल तक जाने का था। प्रधानमंत्री की हत्या करने का था। रास्ते में जो भी आता। उसे खत्म करने के इरादे से आए थे आतंकी। पर अपने वॉच एंड वार्ड ने आतंकियों के मंसूबे नाकाम किए। जान पर खेलकर मंसूबे नाकाम किए। दस सुरक्षाकर्मियों ने अपनी जान दे दी। पर आतंकियों को अंदर घुसने नहीं दिया। अपने राजस्थान के जगदीश प्रसाद यादव भी थे। अब अपन अगर अफजल को फांसी की सजा माफ कर दें। तो जगदीश प्रसाद यादव को अच्छी श्रद्धांजलि होगी। अपन अपने शहीदों को कैसी श्रद्धांजलि देना चाहते हैं। यह अपने कर्णधारों को तय करना होगा। गुलाम नबी उस समय सांसद थे। अगर आतंकी कामयाब होते। बीच में जगदीश यादव न आते। तो गुलाम नबी भी नहीं बचते। अपन उस समय संसद भवन के अंदर थे। अपन ने गोलियों की आवाज सुनी। तो दौड़ कर बाहर निकले। कोहराम मचा था। आतंकियों को अपन ने सामने से देखा। सुरक्षाकर्मी आतंकियों की गोलियों के बीच दरवाजे बंद करवा रहे थे। अपन बाहर तो निकल आए। पर अंदर घुसना मुश्किल हो गया। संसद भवन की दीवारों के साथ दौड़ते रहे। शायद कोई दरवाजा खुला मिले। एक दरवाजा बंद ही होने वाला था। अलबता हो ही गया था। बाहर खड़े सुरक्षाकर्मी ने अपन को दौड़ते देखा। तो दरवाजा अंदर से बंद करने वाले सुरक्षाकर्मी को गुहार लगाई। दरवाजा फिर खुला और अपन अंदर घुसे। अंदर न घुस पाते। तो आज आप यह कॉलम न भी पढ़ पाते। बाहर तो जितने रह गए थे। उनमें ज्यादातर शहीद हुए। और अब गुलाम नबी कहते हैं-'हत्यारों को माफ कर दो।' वजह बताते हैं-'कश्मीर में अमन बिगड़ जाएगा। पाक से रिश्ते खराब होंगे।' कांग्रेस ने पलट कर गुलाम नबी को नहीं कहा-'कानून व्यवस्था नहीं संभाल सकते तो इस्तीफा दो।' कांग्रेस ने नहीं कहा-'विदेशों से रिश्ते तय करना सीएम का काम नहीं।' कांग्रेस ने विरोध नहीं किया। प्रवक्ता सोनिया गांधी की तरफ से बोले-'कांग्रेस न गुलाम नबी के स्टैंड का समर्थन करती है न विरोध।' कांग्रेस की चुप्पी गुलाम नबी को मौन समर्थन थी। पर जम्मू कश्मीर के हिंदू कांग्रेसियों की जमीन खिसक गई। दो दिन तो मंगतराम शर्मा हाईकमान के रूख का इंतजार करते रहे। पर हाईकमान ने गुलाम नबी को घुड़की नहीं पिलाई। तो खुद खुलकर सामने आए। उनने गुलाम नबी आजाद के स्टैंड का विरोध किया। कहा-'आतंकवादियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। संसद पर हमला, देश पर हमला था।' कांग्रेस ने फिर वही रूख अपनाया। तो कांग्रेस का दोहरा चेहरा सामने आया। हिंदुओं को खुश करने के लिए मंगतराम। मुसलमानों को खुश करने के लिए गुलाम नबी। चित भी मेरी पट भी मेरी, अंटा मेरे बाप का। हिंदुस्तान के सब मुस्लिम नेताओं का चेहरा बेनकाब होने लगा। सिर्फ गुलाम नबी आजाद क्यों। नए नए कांग्रेसी रशीद अल्वी का बयान देखिए। जनमत टीवी पर बहस में हिस्सा ले रहे थे। बोले-'जिसे आप आतंकवादी कहते हैं। उसे जम्मू कश्मीर में स्वतंत्रता सेनानी कह रहे हैं।' आपको परवेज मुशर्रफ और रशीद अल्वी में कोई फर्क दिखा। यही बात मुशर्रफ ने आगरा में कही थी। तो वाजपेयी ने बातचीत तोड़ दी थी। मुशर्रफ को बैरंग लौटा दिया था। तब तब बातचीत नहीं की। जब तक मुशर्रफ ने यह नहीं कहा-'पाक और पीओके से आतंकवादियों को भारत के खिलाफ षडयंत्र नहीं रचने देंगे। टे्रनिंग कैंप नहीं चलने देंगे।' भारत में एक क्लास पैदा हो चुकी। जो कश्मीर में आतंकियों को स्वतंत्रता सेनानी कहना शुरू हो चुकी। आप गुलाम नबी का बयान देख लें। रशीद अल्वी का बयान देख लें। इन दोनों कांग्रेसियों के अलावा पूर्व कांग्रेसी मुफ्ती मोहम्मद सईद का बयान देख लें। फारूख अबदुल्ला या उमर अबदुल्ला का बयान देख लें। हुर्रियत कांफ्रेंस तो सड़कों पर उतर ही चुकी। पीडीपी-नेंका में होड़ लग चुकी। पीडीपी चाहती हैं-'सेल्फ रूल।' नेंका चाहती हैं-'1953 से पहले की स्थिति।' कांग्रेस दोनों में संतुलन बना रही हैं। इसका असर दिखने लगा। गुलाम नबी ने अफजल की पत्नी को दिल्ली भेजा। राष्ट्रपति तक गुहार पहुंचाई। कुछ घंटों में याचिका राष्ट्रपति भवन से कूच कर गई। गृह मंत्रालय तक भिजवाने का बंदोबस्त हुआ। गृह मंत्रालय से भी घंटे भर में सूचना दिल्ली सरकार को पहुंच गई। तिहाड़ जेल भी पहुंच गई। इसे कहते है-'कांग्रेस का हाथ अफजल के साथ।' ऐसा न होता। तो ऐसी तेजी भी न होती।
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