खजुराहो के मंदिर वेसे तो दुनिया भर में काम कला के मंदिरों के रूप में विख्यात है| किन्तु यंहां का मतंगेस्वर शिव मंदिर हिन्दुओं की आस्था का बड़ा केंद्र है |यही एक मात्र एसा मंदिर है जहाँ आदि काल से निरंतर पूजा होती चली आ रही है | चंदेल राजाओं द्वारा नोवी सदी में बंनाये गए इस मंदिर में के शिव लिंग के नीचे एक एसी मणि है जो हर मनोकामना पूरी करती है \ कभी यहाँ भगवान् राम ने भी पूजा की थी | शिव रात्रि के दिन यहाँ शिव भक्तों का तांता लगा रहता | खजुराहो के सभी मंदिरों में सबसे ऊँची जगती पर बने इस मंदिर में जो भी आता है वो भक्ति में डूब जाता है चाहे वो हिन्दुस्तानी हो या विदेशी | कहते है की यह शिव लिंग किसी ने बनवाया नहीं है बल्कि यह स्वयंभू शिव लिंग है \ १८ फिट की मूर्ति है जितना ऊपर है उतना ही नीचे भी है |ये मूर्ति प्रति वर्ष तिल के बराबर बढती भी है |
मतंग ऋषि करते थे पूजा यंहां मतंग ऋषि इस शिव लिंग की पूजा करते थे | इसका नाम मतंगेस्वर स्वयं भगवान् श्री राम ने मतंग ऋषि के नाम पर रखा था |हमे यहाँ मिले यमुना प्रसाद मिश्रा [योगी] जिनका जीवन ही यहाँ की आराधना के बाद बदल गया सिपाही से वे योगी बन गए |वे बताने लगे यहाँ की महिमा ,यंहां पर मूर्ति पहले से स्थापित थी ,त्रेता युग में इसका उलेख मिलता है ,रामायण में उल्लेख मिलता है ,यहाँ मतंग ऋषि थे उनसे मिलने भगवान् राम आए थे ,उन्होने भगवान शिव की पूजा अर्चना की और उन्होने मतंग के नाम पर भगवान शिव को मतंगेस्वर नाम दिया |
मरकत मणि :यंहां के चंदेल राजाओं को मरकत मणि चन्द्र वंशी होने के कारण विरासत में मिली थी | चंदेल राजाओं ने इस मणि की सुरक्षा के लिए और नियमित पूजा अर्चना के लिए इसे शिव लिंग के नीचे रखवा दिया था ,लोक मान्यता है की जो भी आदमी मरकत मणि की पूजा करता है उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है |इंद्र के द्वारा मरकत मणि युधिस्टर को दी गई थी , आगे जाकर यशो वर्मन ,चन्द्र वर्मन के पास रही है उन्होने उसकी सुरक्षा करने के हिसाब से वा पूजा अर्चना होती रहे इसलिए शिव लिंग के नीचे स्थापित करा दिया था |
आज खजुराहो के इस मंदिर में हर कोई एक मनोकामना लेकर आता है ,भोले भंडारी हर किसी की मनोकामना पूर्ण भी करते है एसा विश्वास यंहां के लोगों का है |लोगों की आस्थाए है तभी तो यंहां हर शिव रात्रि ,अमावश्या पर यहाँ हजारों की संख्या में श्रद्धालु जुडते है |पीड़ियों से यहाँ पुजारी का दायित्व निभाने वाले बाबूलाल गोतम यहाँ भक्तों के भाव काफी नजदीकी से देख रहे है ,वे बातों ही बातों में बताने लगे की किस तरह लोग यहाँ आकर अपनी मनोकामना व्यक्त करते है ,लोग उल्टे हाथे लगाकर अपनी मनोकामना व्यक्त करते है ,मनोकामना पूर्ण होने के बाद सीधे हाथे लगाते है |पंडित जी कब भावुक हो गए पता ही नहीं चला ,कहने लगे हमारे परिवार की प्रगति की जो रफ़्तार है वह इन्ही की कृपा से है |
खजुराहो के ही राम विशाल दीक्षित का काम पर्यटकों को घुमाना है ,उनकी आँखों के सामने आज भी वह द्रश्य घूम जाता है जब वो कुछ पाने और बनने के लिए खजुराहो आया था ,पर हताशा में उसे ३०० रु की नोकरी करना पड़ी तभी वह भी मतंगेस्वर के दरबार में फरियाद लेकर पहुंचा तब से आज तक उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा ,वो अपनी तरह से अपनी बात समझाता है |देखिये ये १८ फिट uncha शिव लिंग है जितना ऊपर है उतना ही नीचे है उसके नीचे मणि लगी है ,मणि के सामने आप मनसा वाचा कर्मणा से आप जाते है तो आपकी मनोकामना पूर्ण होगी |, जब में खजुराहो आया मुझे अंग्रेजी बोलना आती नहीं थी,में किसीको जनता नहीं था | मेने इनके दर्शन किये | इनकी कृपा से आज खजुराहो में मेरा मकान है ,गाड़ी है ,सब कुछ है|
में बहुत देर तक लोगों की आस्था और विश्वास को तोलने का प्रयाश करता रहा ,यह समझ नहीं पा रहा था की किस पर विश्वास करूँ और किस पर ना करूँ | तभी मुझे लगा की शंका का समाधान ए.एस.आइ. वालों से किया जा सकता है \ हम पहुंचे राहुल तिवारी के पास वे यहाँ के अधिकारी है ,कहने लगे की हाँ यहाँ कई तरह की किवदंतियां है ,लोगों की आस्थाएं बहुत है ,आसपास के बहुत सारे लोग यहाँ आते है |
No comments:
Post a Comment