Saturday 29 January 2011

ढांचे की पूर्णाहुति:: :: 6 दिसम्बर 1992 का शाम ढलते-ढलते स्वयं अतीत का हिस्सा बन चुका था।श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन (sorya divas छह दिसम्बर 1992),

ढांचे की पूर्णाहुति श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन 

सन् 1528 ईस्‍वी में भारत के मस्तक पर लगा कलंक का प्रतीक तीन गुम्बदों वाला ढांचा 6 दिसम्बर 1992 का शाम ढलते-ढलते स्वयं अतीत का हिस्सा बन चुका था।


सन् 1528 ईस्‍वी में भारत के मस्तक पर लगा कलंक का प्रतीक तीन गुम्बदों वाला ढांचा
ढांचा
तीस अक्टूबर 1992 को दिल्ली में आयोजित पंचम धर्म संसद में पुन: कारसेवा प्रारम्भ करने के लिए 6 दिसम्बर की तिथि घोषित कर दी गई। नवम्बर के अन्तिम सप्ताह से ही अयोध्या में कारसेवकों का पहुंचना प्रारम्भ हो गया। अपेक्षा थी कि उच्च न्यायालय 2.77 एकड़ अधिग्रहीत भूखण्ड के विरुद्ध दायर की गई याचिकाओं पर अपना सुरकषित रखा गया निर्णय 6 दिसम्बर के पूर्व सुना देगा। उत्तर प्रदेश सरकार ने 25 नवम्बर को सर्वोच्च न्यायालय से प्रार्थना भी की थी कि सर्वोच्च न्यायालय स्वयं आदेश जारी कर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ से सुरक्षित रखा गया निर्णय शीघ्र सुना देने का अनुरोध करे, सर्वोच्च न्यायालय ने उचित निर्देश दिया भी परन्तु उच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाने की तिथि 11 दिसम्बर घोषित कर दी। उत्तर प्रदेश सरकार चाहती थी कि निर्णय का केवल क्रियान्वयन वाला भाग ही 6 दिसम्बर के पूर्व सुना दिया जाए ताकि अनिश्चितता का अन्त हो, किन्तु यह दलील भी बेकार गई। उच्च न्यायालय का निर्णय 11 दिसम्बर को आया लेकिन तब तक हिन्दू समाज के आक्रोश का विस्फोट हो चुका था। सन् 1528 ईस्‍वी में भारत के मस्तक पर लगा कलंक का प्रतीक तीन गुम्बदों वाला ढांचा 6 दिसम्बर 1992 का शाम ढलते-ढलते स्वयं अतीत का हिस्सा बन चुका था।
  भारत हिन्दू समाज के आक्रोश का विस्फोट
भगवा 
हिन्दू समाज के आक्रोश का विस्फोट
जन्मस्थान पर एक भव्य मन्दिर विराजमान
  हिंदुत्व और हिन्दू धर्म
जन्मस्थान पर एक भव्य मन्दिर विराजमान
बाबरी मस्जीद  ढांचा
6 दिसम्बर 1992 का शाम ढलते-ढलते स्वयं अतीत का हिस्सा बन चुका था।

 
ढांचे की पूर्णाहुति
सन् 1528 ईस्‍वी में भारत के मस्तक पर लगा कलंक का प्रतीक तीन गुम्बदों वाला ढांचा 6 दिसम्बर 1992 का शाम ढलते-ढलते स्वयं अतीत का हिस्सा बन चुका था।
राम जन्म भूमि पर मंदिर निर्माण के फैसले के इंतजार में साठ वर्ष बीत चुके हैं। अब वक्त गया है कि सोमनाथ कि तर्ज पर संसद में कानून बनाकर श्रीराम जन्म भूमि को सम्मान पूर्वक हिंदू समाज को सौंप दिया जाए।

राष्ट्रीय स्वाभिमान का संघर्ष 
श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन को केवल हिन्दू मुस्लिम संघर्ष नहीं, मंदिर-मस्जिद विवाद नहीं कहा जा सकता | यह सत्य और असत्य के बीच संघर्ष था जिसे न्यायालय ने भी स्वीकार किया है! यह राष्ट्रीयता बनाम अराष्ट्रीय का संघर्ष है। राष्ट्र माने केवल भू भाग, जमीन का टुकड़ा नहीं वरन् उस जमीन पर बसने वाले समाज में विद्यमान एकत्व की भावना है। यह भावना देश का इतिहास, परम्परा, संस्कृति से निर्माण होती है। मूलतः यह प्रश्न सभ्यता के अस्तित्व से जुड़ी हुई मान्यताओं और विश्वास का है ..! जिसे एक भव्य और महत्वाकांक्षी श्रीराम मंदिर निर्माण के बिना  पूरा नहीं किया जा सकता
राम राष्ट्र की आत्मा हैं।
राम इस देश का इतिहास ही नहीं बल्कि एक संस्कृति और मर्यादा का प्रतीक हैं, एक जीता जागता आदर्श हैं। इस राष्ट्र की हजारों वर्ष की सनातन परम्परा के मूलपुरुष हैं। हिन्दुस्थान का हर व्यक्ति, चाहे पुरुष हो, महिला हो, किसी प्रांत या भाषा का हो उसे राम से, रामकथा से जो लगाव है, उसकी जितनी जानकारी है, जितनी श्रद्धा है और किसी में भी नहीं है। भगवान् राम राष्ट्रीय एकता के प्रतीक हैं। राम राष्ट्र की आत्मा हैं।

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