Monday 17 January 2011

गणतन्त्र दिवस के अवसर पर सामरिक शक्ति का प्रदर्शन एक ओर लोगों में अन्धराष्ट्रवादी भावोद्रेक पैदा करता है,दूसरी ओर यह भी संदेश देता है कि इतनी विराट सैन्य-शक्ति से लैस सत्ता के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की जुर्रत कोई कत्तई न करे।

कैसा है यह लोकतन्त्र और यह संविधान किनकी सेवा करता है?गणतन्त्र दिवस के अवसर पर सामरिक शक्ति का प्रदर्शन एक ओर लोगों में अन्धराष्ट्रवादी भावोद्रेक पैदा करता है,दूसरी ओर यह भी संदेश देता है कि इतनी विराट सैन्य-शक्ति से लैस सत्ता के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की जुर्रत कोई कत्तई न करे।

औपनिवेशिक भारत में संविधान-निर्माण की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, इसकी निर्माण-प्रक्रिया, इसके चरित्र और भारतीय जनवादी गणराज्य की वर्ग-अन्तर्वस्तु, इसके अति सीमित   जनवाद और निरंकुश तानाशाही के ख़तरों के बारे में

''हम
, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न समाजवादी पन्थनिरपेक्ष लोकतन्त्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को :
सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतन्त्रता;  प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढसंकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर, 1949 . (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।''

 इन्हीं लच्छेदार शब्दों की प्रस्तावना के साथ दुनिया के सबसे बड़े जनतन्त्रा के संविधान की शुरुआत होती है जो (90,000 शब्द) दुनिया का सबसे वृहद संविधान है। इस 26 जनवरी को भारतीय गणतन्त्र और भारतीय संविधान की साठवीं सालगिरह धूमधाम से मनायी गयी। जश्न और जलसे हुए। राजधानी दिल्ली में तगड़े सुरक्षा-बन्दोबस्त के साथ गणतन्त्र दिवस परेड हुई। वहाँ महामहिम गण और अतिविशिष्ट जन ही मौजूद थे। एक तो जनता में अब मेले-ठेले वाला पुराना उत्साह रहा भी नहीं, दूसरे तगड़े सुरक्षा बन्दोबस्त उसे राजपथ तक पफटकने भी नहीं देते।
 
सवाल यह भी उठाया जा सकता है कि गणतन्त्र दिवस का मुख्य आकर्षण सैन्य शक्ति का प्रदर्शन ही क्यों हुआ करता है? क्या लोकतन्त्र की मज़बूती सेना की ताकत से तय होती है? वैसे इस प्रतीकात्मकता से जाने-अनजाने एक सच्चाई ही प्रदर्शित होती है। हर जनवाद (लोकतन्त्र) वास्तव में वर्ग का अधिनायकत्व होता है, वह बहुमत पर शोषक अल्पमत का शासन होता है जो थोड़े कामचलाऊ और थोड़े दिखावटी जनवाद के बावजूद मुख्यत: बल पर आधारित होता है। सामरिक शक्ति उसकी आधारभूत ताक़त होती है। गणतन्त्र दिवस के अवसर पर सामरिक शक्ति का प्रदर्शन एक ओर लोगों में अन्धराष्ट्रवादी भावोद्रेक पैदा करता है, दूसरी ओर यह भी संदेश देता है कि इतनी विराट सैन्य-शक्ति से लैस सत्ता के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की जुर्रत कोई कत्तई न करे।
 

No comments:

Post a Comment