Monday 17 January 2011

  • अब संघ को क्या करना चाहिए - संघ को अपने संघठन के प्रारूप पर ध्यान देना पड़ेगा. जैसे की प्रशन है की क्या एक अच्छे हिन्दू राजा को एक स्त्री से ज्यादा के साथ सम्बन्ध रखने पर अयोग्य माना जाना चाहिए या नहीं. अरे राजा का व्यक्तिगत सम्बन्ध नहीं देखा जाता उसके द्वारा प्रजा के लिए किये गए निर्णय इतिहास की कसोटी पर कसे जाते है. अब वो अपनी प्रजा की रक्षा के लिए किसी राजा की बेटी से संबध रख कर यदि देश की रक्षा कर सकता है तो करेइतिहास उसे दूरदर्शी राजा ही कहेगाऔर यदि वो राजा अपने चरित्र के ही चक्रविहू में फंसा रहा तो ना प्रजा माफ़ करेगी और ना ही इतिहास. अरे महाभारत से कुछ तो सीखो श्री कृष्ण से कुछ तो सीखोयदि संघ राजनीती (हिन्दू हितो की रक्षा करना एक राजनीती है) कितने ही स्थान पर रक्षात्मक होता आया है. जैसे किसी स्वयमसेवक के पारिवारिक मामलो पर खास तौर पर स्त्री के मामले पर. 
  • मेरी समझ नहीं आता की संघ अपने दुश्मनों के सामने चरित्र (सात्विक) के मामले पर इतना रक्षात्मक रुख क्यूँ रखता है. यह मैं इसलिए कह रहा हूँ जब राहुल गाँधी जैसे दो पैसे की बुद्धि रखने वाले भी संघ पर आरोप लगाने के कुव्वत रखते है जिनका कोई ना ईमान है और ना ही चरित्र. संघ के दुश्मनों का चरित्र ही नहीं तो वो चरित्र की बात किस आधार पर करते है. मेरा अपना चरित्र एक अलग चीज है उस से राजनीती का कोई भी फायदा नहीं. अरे परम वीर हिन्दू हिरदये सम्राट आदरनिये बाल ठाकरे जी से ही सीख लो जूते की नौक पर रखते है विरोधियो को और संघ भी जान ले की यदि हमारा दुश्मन हमारी नेतिकता और इमानदारी को हमारे ही विरुद्ध हथियार बनाता है तो एक मिनट भी नहीं लगेगी उसको छोड़ने में की नीति पर नहीं चलता तो बड़े लक्ष्य की राह में ऐसे ही रोड़े आते रहेंगे फिर ८५ साल नहीं १८५ साल में भी हम हिन्दू हितो की रक्षा नहीं कर पाएंगे जैसे की हम विगत में नहीं कर पाए. 
  • आज संघ भी और उसके प्रखर राष्ट्रादी स्वयंसेवक भी तो क्या उन्होंने कश्मीरी पंडितो की रक्षा कर ली और यदि वो नहीं आज कर पा रहे तो विश्व के इतने बड़े संघठन का आचार डालेंगे क्या ? (क्षमा करे आक्रोशित होने के लिए) या फिर भगवान् कल्कि का ही इन्तजार करना है तो फिर यह संघठन संघठन क्यूँ खेला जा रहा है. बंद करो इसे और राम भजो. जब एक स्वयं सेवक श्री रवि शंकर प्रसाद (राम जन्मभूमि पक्ष के वकील) ही न्याय दिला सकते है तो फिर इतने बड़े अभियान का क्या ? सत्ता से सरकार हैसरकार से न्यायालय है और इन न्यायालयों से देश के नागरिको के घेरेलु मुद्दे सुलझाये जाते है देश (हिन्दू) की अस्मिता और संप्रभुता के नहीं. और जो ऐसा सोच रहे है वो गफलत में है विरोधी पक्ष इतना कमजोर नहीं जितना सोचा जा रहा है.
  • संघ को सबसे पहेले आपने मुख पत्र पर ध्यान देना होगा. पांचजन्य की सर्कुलेशन बहुत गिर चुकी है, दूसरा एक श्री देवस स्वरूप जी, मुज़फ्फर हुसैन जी को छोड़ कर कोई खास विचारक लेख भी नहीं होता, खाली खबरे होती है दूसरा न तो इसको आप शिव सेना के सामना की तरह सन्देश वाहक और बाला साहेब के मुखपत्र की तरह इस्तेमाल करते और न ही किसी कोमेर्शिअल पेपर की तरहे इसकी पाठक संख्या बढाने के उपाए करते. भाई मानना पड़ेगा तरुण विजय जी के जाने के बाद पांचजन्य की आक्रामकता तो बिलकुल ही ख़त्म होगई. एक अच्छा प्रयास है साधना टीवी के माध्यम से जनता तक अपना सन्देश पहुचाने का परन्तु आप शायद जानते नहीं कांग्रेसी राज में इस चैनल को महत्वपूर्ण समय पर ब्लाक कर दिया गया था. दूसरा टीवी मीडिया में पूरा का पूरा एक गईं गैग है उसका मुकाबला संघ के लिए अभी संभव ही नहीं सो प्रिंट मीडिया पर ध्यान दिया जाये. हाँ इन्टरनेट पर संघ के स्व्येम्सेवक बहुत मुखर है. यह एक संतुष्टि वाली बात है. पांचजन्य  को दोबारा से खड़ा करना एक भागीरथी प्रयास होगा और हमे आशा है यह किया भी जायेगा.
  • दूसरा एक ऐसी बात कहूँगा जिस पर संघ को आपत्ति होगी परन्तु मैं कहूँगा जरुर. ब्रह्मण जाति का संघ उपयोग सही ढंग से नहीं कर पाया. पिछडो और दलितों पर पुरे दो से ज्यादा दशक लगा कर कुछ भी बड़ा नैत्रेत्व पैदा नहीं हो पाया. इस बात को मैं बड़े विस्तार से लिखूंगा. पता नहीं संघ बंगारू लक्ष्मण पर बीजेपी में पैसे लेते रक्षात्मक क्यूँ हो गया, और उनको बीजेपी अध्यक्ष पद से हटा दिया.जैसे की उस समय के विपक्ष (कांग्रेस) में किसी ने लिया ही नहीं बही अमेरिका के एक लेखक ने लिखा है इन्द्रा गाँधी ने अमरीका से पैसा लिया, डॉ. स्वामी याहं हिन्दुस्थान में कहेते ही आ रहे है की सोनिया ने के  जी बि से पैसा लिया. तो इसमें पहाड़ क्या टूट गया था. सोनिया ने अपने शासन में कानून मंत्री भरद्वाज से कुओत्रोच्ची को आजाद भी करा दिया और पैसा भी लेजाने दिया. किसने सोनिया गाँधी का क्या उखाड़ लिया. और देखते है की राष्टमंडल के घोटालो में कौन किसका क्या उखाड़ लेता है.  
  • संघ अब हिन्दू आतंकवाद जो की एक साजिश के तहेत गढा गया शब्द है पर भी रक्षात्मक हो जाता है. मेरी समझ में नहीं आता की क्या कर्नल पुरोहित के सेना में बड़े पद पर काम करने से सेना आतंकवादी होगई, क्या सेना कही पर भी सफाई देती फिरती है, और कर्नल पुरोहित का तो संघ से सीधे कोई संबध भी नहीं था. तो मुझे समझ नहीं आता जब सेना कसूरवार नहीं जब की वह वहां एक अधिकारी थे तो संघ कैसे जिम्मेदार होगया. यही साध्वी प्रज्ञा के बारे में है और आपने ऊपर आरोप लगते देख संघ ही इसमें रक्षात्मक होगया. संघ को साफ़ करना चाहिए कल ही कांग्रेस का अतंकवादियो को शरण देने के लिए बंगाल में एक विधायक पकड़ा गया है तो क्या सोनिया गाँधी ने कोई बयान जारी कर दिया. क्यां दन्त दिखाऊ कांग्रेस नेता आतंकवादी होगय नहीं. अरे जो कानून को लगता है गलत है उसको फंसी चढाओ मेरा इसमें साफ़ मानना है. इनके इस देश के कानून से जो लोग खिलवाड़ कर रहे है वो ५-५ साल से फंसी की सजा पाए अफजल गुरु को तो फंसी पर लटका नहीं पाए. असम का कांग्रेस का एक संसद कितना बड़ा देशद्रोही है    सब जानते है परन्तु क्या कांग्रेस रक्षात्मक है, नहीं है! 
  • अब यही बात नरेंद्र मोदी जी में भी आगे वो भी कह रहे है की इस बार नगरपालिका में हमे मुसलमानों ने वोट दिया, इतनी बड़े तुष्टिकरण मुसलमानों का करने के बाद, उनको पिछले ६ साल से सर पर बैठने के बाद, डंके की चोट पर मुसलमानों को देश के सभी संसाधनों पर पहेला अधिकार ज़माने के बाद कांग्रेस तो कभी नहीं कहेती की इस बार हमे हिन्दुओ के वोट मिले. अरे राजनीती भी करनी है तो आपने मौलिक विचारो से करो कांग्रेसी भांडगिरी से क्या सीखना. 
  • कोंग्रेस पर परिवारवाद के कितने आरोप लगाये गए है और क्या बिगाड़ लिए बलिकी बीजेपी उससे भी ज्यादा कर रही है क्या आपके साथी कोमुनिस्ट ऐसा कर रहे है बिलकुल भी नहीं जब की सत्ता उनके पास भी बंगाल में ४ दशक रही है. इसलिए या तो आलोचना मत करो और करो तो फिर उनको अपनाओ मत. श्री बाला साहेब ठाकरे जी जो करते है डंके की चोट पर करते है. इसलिए संघ को इस पर मंथन जरुर ही करना पड़ेगा.
  • सारी बीजेपी नीतिश के साथ धर्मनिरपेक्षता का तमगा लेने के लिए कड़ी है और वो भिगो भिगो कर जुटे मार रहा है. और यह वो कर रहे है जो छदम धर्मनिरपेक्षता शब्द के अविष्कारक है. अरे हमारा मौलिक विचार है की हिन्दू धर्म खुद में एक धर्मनिरपेक्ष है तो दिक्कत क्या है, मेहनत ही ज्यादा करनी पड़ेगी चतुर बुद्धि से उसको भी करो परन्तु हिंदुत्व का ध्वज वाहक (बीजेपी) किसी का पिछलग्गू क्यूँ. वैसे तो मीडिया में आज बैठे लोग ज्ञान से खोखले है बहुत कम लोग गहेरा ज्ञान रखते है, न तो उनको बेचारो को पता की विजयदशमी पर शास्त्र पूजा हिन्दू का बच्चा बच्चा करता है परन्तु इनको लगता है की संघ ने ही इसको हिन्दुओ में आक्रमकता भरने के लिए शुरू किया है. इनको बेचारो को न तो अभिनव भारत का पता और न ही किसी और चीज का बस हर संघटन को संघ से जोड़ देती है, अरे संघ वाले स्पष्ट क्यूँ नहीं करते की संघ संघटन के रूप में न तो वीर सावरकर से सम्बन्ध रखता और न ही संघ का हिन्दू महासभ से कोई सीधा सम्बन्ध. कम से कम मीडिया में एक परचा ही बाँट दे और अपने संघटन के बारे में जानकारी दे. अब इन अज्ञानी लोगो को कुछ तो  समझाओ, क्या मीडिया में संघ का कोई भी सम्पर्क नहीं जो धर्म और संघटन की ही कमसे कम सही जानकारी देश को दे, न करे संघ का फेवर परन्तु सच तो बोले. यह तो बोलीवुड में भी हिन्दुओ को अपमानित किया जा रहा है कोई भी धारावाहिक या फिल्म देख लो आप अमूमन पाउगे हर खलनायक चरित्र के गले में भगवा गमछा डाल दिया जाता है, हिन्दू पुजारी और धर्माचार्यो की तो छवि पहेले ही ख़राब कर राखी है अब भगवा वस्त्र को गुंडों और खलनायको में चित्रित किया जा रहा है. पता नहीं शिव सेना ने कभी इसको नोट किया है की नहीं. अभी वापस आते हैं ब्रह्मण के मुद्दे पर, बिना किसी लाग लपेट के बोलू ब्राहमण का वर्चस्व समाज पर से कोई भी ख़त्म नहीं कर सकता, अंग्रेज नहीं कर पाए, मुग़ल नहीं कर पाए, तुर्क नहीं कर पाए हाँ उन्होंने ब्रह्मण को आपने में मिलकर आपने विचार तेजी से पहचाने का काम अवश्य किया है. अंग्रेजो ने तो १८५७ की क्रांति से पहेल मैथली ब्राह्मणों को कितने उच्च पद दे रखे थे परन्तु १८५७ की क्रांति के बाद उनका जो अंग्रेजो ने नरसंहार किया उसकी दुखद कथा तो बयां ही नहीं की जा सकती. संघ ने यदि ब्रह्मण नेत्रत्व पर भी साथ साथ ध्यान दिया होता तो संघ का विस्तार और तेजी से होता परन्तु दुर्भाग्य है की ऐसा नहीं हुआ और हुआ तो विस्तारीक नहीं हुआ. आज मैं संघ से निवेदन करूँगा की संघ के विस्तार के लिए ब्राह्मणों में जबरदस्त पैठ बिठाई जाये फिर आप देखना की संघ क्या विस्तार देता है आपने  कार्यकर्मो को. इस बात से मत डरो की विरोधी आपको ब्राह्मणवादी बोलेंगे या कुछ और परन्तु यदि ८५ साल के बुजुर्ग संघ में शक्ति भरनी है तो ब्राहमण और युवा दो वर्गों पर फोकस करना होगा. परन्तु मेरा यह नहीं कहेना की जो पैठ संघ ने दलितों में और पिछडो में, वनवासियो में बनाई है उसकी कीमत पर कदापि नहीं दोनों को साथ लेकर जाने की जरुरत है. संघ को आपने बौधिक प्रकोष्ट में भी युवाओ की भर्ती करनी होगी, ब्राहमणों के भर्ती करनी होगी, युवा दलितों और पिछडो को बौधिक प्रकोष्ट में लाना होगा, कृपया एअसे कहने को बुजुर्ग स्वयम सेवको का अपमान न माने. बौधिक लोगो को बताया जाये की क्रिया की प्रतिक्रिया में समय व्यर्थ गवाओ बल्कि मौलिक, नूतन क्रिया करो. और संघ को एक बात को और समझना होगा जो लोग यह कहेते है की साध्य पाने के लिए किस साधन का प्रयोग जरुरी है इसका भी विचार रखा जाये तो मैं कह दू की साधन तो संघ स्वयं ही है इसलिए जो वो करता है सब ठीक है, गंगा में मिलने वाली सभी नाली नाले गंगा ही केहेलाते है कोई गंगा को नाला नहीं कहेता. 
  • आज पृथ्वीराज चौहान की एक गलती, मराठो की एक त्रुटी हमे याहं न पहुचाती यदि वो भी गौरी, गजनी या मुगलों के सामने चतुरता बरतते और साधनों से ज्यादा साध्य पर ध्यान देते तो हिन्दू पराजित न होता, काशी, मथुरा, अयोध्या स्वतंत्र होती. हमे इतिहास में लूटे पिटे और शोषित न होते, देश में भगवा फेरहा रहा होता. माँ सरस्वती की नंगी तस्वीर न बन रही होती, वृन्दावन इस तरह से उपेक्षित न होता. कृष्ण और राम के उपासक लक्ष्य पर ध्यान दो साधनों पर विचार करके निरर्थक आदर्शवादी बना निरही मुर्खता है. राम ने विभीषण से पल भर में दोस्ती कर ली थी, कृष्ण ने धर्म स्थापना के लिए अर्जुन से ही आपने रिश्तेदार मरवा दिए थे. अंतिम सत्य है के धर्म की पताका फेहेराना और वो किसी भी प्रकार की जाय. इस कलयुग का अंत करने भगवान् कल्कि आएंगे तो वो भी साध्य पर ध्यान देंगे परन्तु लक्ष्य धर्म की स्थापना ही होगी. साधन और साध्य पर यदि जीता जगता सबूत चाहिए तो कोमुनिस्तो को देख लो दुर्गा पूजा में दुर्गा से ही बल प्राप्त करके, दुर्गा के ही राज और उसी के भक्तो का संहार कर रहे है. साध्य कुछ और साधन कुछ और मतलब हिंदुत्व से शक्ति लेकर उसी का विनाश कर रहे है.मतलब साफ़ है की साधन कुछ भी हो साध्य स्पष्ट होना चाहिए.  

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