- लोकतंत्र सब को यह अधिकार देता है की वहा की जो जनता है उसके हिसाब से ही राष्ट्र बनेगा. इसमें गलत क्या है और इस बात को बीजेपी तक को स्पस्ट रखना चाहिए. में साउदी अरब को हिन्दू राष्ट बनाऊ, ब्रिटेन को हिन्दू राष्ट्र बनाऊ या अमरीका को भी बनाऊ तो गलत है. परन्तु मैं तो अपने राष्ट्र को हिन्दू राष्ट्र बनाने की बात लोकतंत्री तरीके से कर रहा हु तो क्या गलत. भाई संविधान में जब इसे धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी राष्ट्र बनाया जा सकता है एक छोटे से संविधान संशोधन से तो हिन्दू राष्ट्र बना दिया तो क्या पाप है. जिस प्रकार, लोकतंत्र व्यवस्था, समाजवाद व्यवस्था, खुली अर्थव्यवस्था, उसी प्रकार हिंदुत्व देश भी एक व्यवस्था है जिस प्रकार आपने अपने अधिक मत आने से देश को धर्म निरपेक्ष बना दिया उसी प्रकार लोग हिन्दू शाशन की बात करते है तो गलत क्या है. इसको आतंकवाद से लपेटना बिलकुल गलत है जैसे सरकार एक ही पलड़े में इस्लामिक अतंकवादियो को तोलने की और हिन्दू राष्ट्र को चाहने वालो को तोलने की मुर्खता कर रही है. अरे पाकिस्तान में २ या तीन प्रतिशत हिन्दू कल को वहा हिन्दू राष्ट्र स्थापित करने की कौशिश करते है तो मैं खुद ही कहेता हूँ यह तो आतंकवाद है. भाई ९८% जनसँख्या पर २% का राज तो अपने आप में एक आतंकवाद है. हिन्दू राष्ट भी तो अपने में एक व्यवस्था ही है. भाई वो एक इस्लामिक देश है क्यूंकि वहा की जनसँख्या मुसलमान है तो तो बहुसंख्यको को अच्छा लगे वो पदाति उनको अपनाने दे. हिन्दुस्थान हिन्दुओ का देश है इसको हिन्दू राष्ट्र बना कर अलाप्संख्यको की रक्षा कर. अब इसमें गलत क्या है. गलत सरकार है, फर्जी बुद्धिजीवी है, कांग्रेस और उनके मित्र है भाई ९०% हिन्दू ने धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद का ठेका थोडा ही न ले रखा है. परन्तु इतना सभी को पता है हिन्दू राष्ट्र में हर व्यक्ति का ध्यान रखा जाये जैसे की आपकी धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद व्यवस्था में रखा जाता है. और यदि हिन्दू राष्ट्र (राज्य) बनाना साम्प्रदायिक अहि या गैर क़ानूनी है तो यह तो उससे भी एक डिग्री अच्छा है जिसमे महात्मा गाँधी राम राज्ये लेन की बात करते है. यह एक देवता (राम) का राज्ये नहीं कम से कम ३३ करोड़ देवताओ (हिन्दू) का राज्ये लेन की बात कही जा रही है. तो लोकतंत्र के हिसाब से भी ठीक है तो मित्रो आप अपने विचार पर अडिग रहो क्यूँ किसी के सामने सफाई सी देते फिरते हो. सरकार या यह तथकथित बुधिजिवे अपने आप खोखले है और हम इन्ही के सामने सफाई दे रहे है. इसलिए अपने विचारो को और प्रखरता से रखो और देश में जनजागरण करो क्यूंकि हिन्दू धर्म विश्व में सबसे मानवीय व्यवस्था है बाकी से व्यवस्थाये ढकोसला है.
- दस से २० साल के बीच अमेरिका और चीन दोनों एक ही धुरी पर खड़े होंगे और वो धुरी होगी हिन्दू अध्यात्म की और भारत के हिन्दू वीर बैंको की किश्ते देने पर गिडगिडा रहे है. अरे इस व्यवस्था ने जानबूझ कर आपको कर्ज में फंसाया है. १०० -१०० बीघा जमीन बेच कर दिल्ली, गुडगाव, नॉएडा में फ्लेट लेकर बैंको के चक्कर ही लगाने को जीवन कहेते हैतो फिर ठीक है इसी को जिओ. इस सरकार ने देश के किस्सनो को घर घर जा कर क्रेडिट कार्ड बांटे है, बैंक अधिकारिओ को मोटे मोटे टार्गेट देकर हर किस्सान के हाथ में कार्ड दिया गया है. बस एक बार बाँट दो फिर तो आपके गुलाम बन ही गए. और भारत जैसे देश के सत्ता इस तरीके से चलाना कितना असं होगय. नगर में रहेने वाले और गाव वाले दोनों बांको के माध्यम से सरकार की जेब में. फर्जी अर्थव्यवस्था उधर के पैसो से जी डी पी की दो अंको की वृद्धी दर दे ही देगी. तब तक अर्थव्यवस्था की पोल खुलेगी रब तक सरकार बदल जाएगी, बाकि का समय दूसरी सरकार को कौसने में लगादेंगे. जय लोकतंत्र, जय धर्म निरपेक्षता और हो गया शासन. ६० साल से यह ही हो रहा है. और आगे भी होता रहेगा.
- भ्रष्टाचार का आलम यह है की पूछो मत सरकार विदेशो से चीजे ही जब खरीदती है जब सर पर आन पड़े, फिर जल्दबाजी का हवाला देकर कई गुना बढे दामो पर खरीदो और फिर चाहए वो देश की सुरक्षा से जुड़े हथियार ही क्यूँ न हो. फिर देश की जनता में बिलकुल देश भक्त बंजाओ मतलब पैसा भी कमालो, दलाली भी कमालो, नाम भी कमालो और जनता की नजर में इज्जत भी. है! कोई और ऐसा काम जो एक झटके में इतना सब देदे. और यह भी घोषित सत्य है की हमारे देश में देश की सुरक्षा के लिए हथियार खरीदना भी सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस का ही अधिकार है और किसी में हिम्मत है तो करके दिखा दो. अरे छोड़ो सरकार बनाकर हथियार खरीदने के धमकी किसी और को देना, सालो (क्षमा करे) तहलका जैसे स्टिंग ओप्रशन के जरिया तुम्हारी हथियारों की खरीद तो बहुत दूर की बात, तुम्हारी सरकार और तुम्हारी जान भी सांसत में लादेंगे.
- बीजेपी पता नहीं खेल मंत्री से क्यूँ नहीं पूछती की क्या नैतिकता का तकाजा यह ही है की किसी चुनाव आयुक्त को किसी पार्टी की सरकार में मंत्री / संसद भी बनना चाहिए. पता नहीं देश के कितने लोगो को पता है की राष्टमंडल पर खर्च रुपयों में जीरो कितनी आती है १०,००,००,००,००,००० (एक लाख करोड़). तो मित्रो देश को दोनों हाथो से लुटा जा रहा है और मित्रो यह तो बानगी भर है इसमें न तो मनेरगा है, न अनाज खरीद है, न स्पेकट्राम अव्बंटन है, न हथियार खरीद है, न विदेशी बैंको में जमा कला धन है, और यह तो देश की राजधानी दिल्ली में बिलकुल नाक के नीचे है पता नहीं राज्य सरकारे, नगरपालिका, पंचायती राज कितने घोटाले करता होगा. बस भैया लोकतंत्र है. संघ को यदि वैश्विक हिन्दू की नहीं चिंता है तो कम से कम भारत से ही यह पाप की गठरी उठाय. यदि स्वामी रामदेव जी हुंकार भर सकते है तो संघ क्यूँ नहीं?
- संघ दो बड़े प्रश्न से अपने को स्पस्ट करे भारतवर्ष और हिन्दू धर्म. यदि वो भारत निर्माण का ही वचन लेता है तो वो विश्व के हिन्दुओ को अनाथ करता है और यदि वो हिन्दुओ का वचन लेता है तो भारत वर्ष उसकी सीमा नहीं होंगी. इन कोमुनिस्ट ने पिछली सरकार में रहकर ६० सांसदों के दम पर अपने लक्ष्य नेपाल को हिन्दू राज विहीन कर दिया. इसको कहेते है लक्ष्य पर वार. एक ही झटके में हजारो साल का राष्ट्र अनाथ कर दिया और हम और संघ अभी तक भी नहीं समझ पाए की करे क्या ? अरे तुम्हारे सामने अंतिम हिन्दू राष्ट्र धुलधूसरित होगया तो फिर आपने कर क्या लिया ?
- देश में कश्मीरी पंडित अनाथ घूम रहे है, देश के बहार नेपाल राष्ट्र हिन्दू विहीन कर दिया गया. और अब तो हालत यह आगये की हमे राहुल गाँधी का जवाब देना पड़ राह है की हम आतंकवादी नहीं है हम सिमी जैसे नहीं है. आखिर महात्मा गाँधी से लेकर राहुल गाँधी तक हम ही क्यूँ जवाब दे. हम १९६२ के बाद नेहरु द्वारा गणतंत्र की परेड में संघ को निमत्रण को ऐसे जिक्र करते है जैसे गीता का कोई श्लोक श्री कृष्ण ने कह दिया हो या किसी ने हमे अमृत पिलवा दिया हो.
- संघ को अपने स्वयम सेवक को क्रांति करने के लिए और क्रांति करने को अपने मूल निर्णय में शामिल करना पड़ेगा. नहीं तो संघ ही सब को जवाब देता रहेगा. अब तो हालत यह होगे की संघ को अपनी राष्ट्र भक्ति का भी सबूत देना पड़ राह है वो भी किसे एक राहुल गाँधी को. मैं एक बात स्पस्ट कर दू मैं लड़ने को नहीं कह रह हूँ मेरा कहना है की संघ अपने स्वयमसेवक को वैचारिक क्रांति क्यूँ नहीं करने देता. क्यूँ नहीं मजदूरो, विद्यार्थियो, किसानो को कुछ करने देता. संघ भी एक बात जान ले यदि चाणक्य ऐसे ही समाज निर्माण में लग जाता तो नहीं बच सकता था यह देश. यह कुछ कुछ ऐसा है की की एक पिता अपने बच्चो को बड़े समन्वय से रहेने की शिक्षा देता हो परन्तु उनको रहेने के लिए घर नहीं और इसी सामजस्य को बनाये रखने के लिए जरुरी तत्वों का निर्माण न करता हो. संघ का समाज निर्माण भी ऐसा ही है. संघ को महात्मा गाँधी, नेहरु और पता नहीं किस किस से देश भक्ति और हिन्दू हितो के रक्षक के सिर्टिफिकेट लेने की जरुरत क्या है ? की एक बार गाँधी जी आए थे संघ के शिवर में बड़े प्रभावित हुए, फलाना ढीकाना, अरे गाँधी और उस से जुड़ा सारा समाज एक भ्रष्टाचार और कायरता का एक मिलाजुला गैंग है बस जिसकी झलक आपको राष्ट्रमंडल के खेलो के आयोजन में मिलजाती है.
- मित्रो मेरा मानना है की संघ को एक नवक्रांति का प्रस्फुटन करना होगा और संघ भी यदि ऐसा सोचता है की इसी मोजुदा राजनेतिक तन्त्र में से कुछ हांसिल हो जायेगा तो यह एक बहुत बड़ी भूल हो जाएगी और हिन्दुओ और भारत के लिए एक बहुत बड़ी निराशा.
- सत्ता से देश बनते है. एक भविष्यवाणी मैं करना चाहूँगा की चीन अगले १०-२५ सालो में के बहुत बड़ा अध्यात्मिक धार्मिक देश बनने जा राह है. पहले क्रांति से देश संभाला, फिर उसे एक सफल अर्थव्यवस्था बनाया, फिर उसे अंतरराष्ट्रीय पटल पर लाया, फिर खुली अर्थव्यवस्था लागु की, आगे लोकतंत्र लायेगा और फिर धार्मिक व्यवस्था स्थापित करेगा. आप मेरी यह बात नोट कर लो. और हम धीरे धीरे पाकिस्तानी रस्ते पर चल रहे है. देश की वायूसेना अध्यक्ष कहे राह है की हम बहुत बड़े संकट में है एक तरफ चीन और एक तरफ पाकिस्तान हमे धमकीया दे रहे है. मित्रो देख लो अपने देश के हालात की अपने देश का नायक रोती से हालत में देश की सुरक्षा पर याचना कर रहा है और हम, सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न देने पर बहस कर रहे है. अरे गजनी और गौरी के आक्रमण से पहेल भी हम समृद्ध थे, सोमनाथ जैसे मंदिर थे परन्तु भिखारी बना कर चले गए और आज फिर हम अपने घर तो भर रहे है परन्तु ना तो हिन्दू स्वाभिमान की बात करते और ना ही भारत निर्माण की. उसका परिणाम पूरी हिन्दू नस्ल को फिर से भुगतना होगा यदि संघ ने जल्दी ही हल ना ढूंढे.
- मित्रो एक बात आप पूछ सकते हो की यार लेखक भ्रमित तो नहीं हो गया है की समस्या देश की और करना सरकार को कटघरे में खड़ा करना चाहिए और बार बार यह संघ को ही उपदेश दे रहा है. तो मित्रो एक बात स्पस्ट कर दू की सरकार हिंदुस्तान में है तो मैं मानता ही नहीं, मैं तो इस कांग्रेस राज का का ही एक विकृत और अराजक राज मानता हूँ, इतना समय नहीं जो इसके बारे में विस्तार से बोलू, परन्तु सरकार और आम भारतीय का कोई सम्बन्ध है ही नहीं, दूसरा संघ एक मात्र आशा की किरण है इसी लिए मैं संघ से ही उम्मीद करता हु और बार बार लगातार करता रहूँगा.
- मित्रो सरकारे भी थी, वो गाँधी भी था जो कहेता था की मेरी लाश पर पाकिस्तान बनेगा, अंग्रेजो का न्याय भी था, हिन्दुओ के पास पैसा भी था, परन्तु क्यां समृद्ध हिन्दू अपनी समृधि बचा सके, अपनी बहेनो और बेटियो की इज्जत लुटने से बचा पाए, क्या अपने प्राण ही बचा पाए. क्या अपना पैसा और जमीन ही बचा पाए. यदि किसी ने कुछ बचाया तो अंतिम आसरा बन कर संघ ने ही कुछ बचा लिया परन्तु बंटवारा वो भी नहीं रोक पाया. उसको दोष इसलिए नहीं दे पाता की सोचता हूँ की संघ को समय कम मिला परन्तु आज तो ८५ साल का संघ होगया. कुछ लोग कहेते है की बंटवारे होने के समय वाली पीढ़ी को बीत जाने दो फिर एक नहीं सुबह होगी पाकिस्तान और हिंदुस्तान फिर से मित्र बनेगे, वो ही कहेते है श्री राम जन्मभूमि पर भी और समय बिताओ जिस से वो मंदिर आन्दोलन वाली पीढ़ी बूढी हो जाये. अरे मूर्खो १२०० (आधुनिक युग) साल तो बीत गए और कितना समय बिताओगे और जिनके लहू में उबाल होता है, जो जिन्दा कौम होती है वो इतना इन्तजार नहीं करती. और यदि कर रही है तो वो मरणसन्न है और पल पल अपनी मौत को नजदीक आते देखने को अभिशिप्त है.
- देखिये मित्रो एक बात में अपनी तरफ से स्पस्ट कर दू की भारत देश का मौजूदा लोकतंत्र, राजनैतिक तंत्र और अफसरशाही का यह ढांचा १०-१२ साल में ध्वस्त हो जायेगा जैसा की मेने ऊपर कहा की कोई भी चीज अजर अमर नहीं है अब वो चाहे किसी देश का कोई तन्त्र ही क्यूँ न हो. जैसे चीन ने अपने तन्त्र को बदला तभी वहा एक पार्टी राज कर पा रही है. खैर छोड़ो उनको परन्तु अपने देश में जो सोच रहा है की यह मौजूदा तंत्र लम्बा चलेगा वो भ्रमित है.
- संघ को भी निवेदन करना चहुँगा की इस बार फिर से क्रांति होगी और यह क्रांति न तो बिहार के गाँव में होगी, न छतीस गड के जंगल में और न ही किसी राज महेल में यह क्रांति होगी सत्ता की बिलकुल नाक के निचे दिल्ली में. इसके कारण भी और छोटी छोटी चीजे प्रस्फुटित होने लगी है देश की जनता इस बार राष्ट्र मंडल के खेलो के भ्रष्ट्राचार को स्वीकार न करने के मूड में है, और इस असंघटित क्रांति की यह छोटी छोटी परन्तु महत्वपूर्ण आगाज है. और मुझे लगता है की फिर से संघ किसी भी इस प्रकार के क्रांति के नायक को सहयोग भी देता होगा बजाये इसके की इस जनमानस को संगठित करके एक बड़ी क्रांति भारत और हिन्दू उधार की करे, मैं यह नहीं कहता की इस राष्ट्रमंडल खेलो से क्रांति होगी, परन्तु इस महंगाई और कुत्ते बिल्ली के जीवन जीते महानगरो के लोग रोजगार होते भी भिखारिओ का जीवन जी रहे है. इस उपभोगतावाद में लोन लिए पैसो की किस्तों के चुकाने के लिए बैंको के सामने कुत्ते बिल्ली की तरह गिडगिडा रहे है. न्याययाले के न्याय पैसे वालो के बनगए. क्या कभी आपने सोचा है की जिला कोर्ट, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तीनो के ही निर्णयों में दिन और रात का अंतर होता है (मुट्टू बलात्कार काण्ड), लोगो में दाल और सब्जी खरीदने के पैसे नहीं है, समाचार पत्र एक भी बिना पैसे और स्वार्थ के समाचार नहीं छापता, सच्चाई का समाचार पत्र और टीवी मीडिया से कोई तालुक ही नहीं, गरीब और आम जनता का सेफ्टी वोल्व ही थे मीडिया वाले यह भी पूंजीपतियो और सरकार के हाथो की कटपुतली बनगए. जब आम जनता महंगाई से रगड़ी जा रही हो, तडफाड़ा रही हो, लोग बहुत ही छोटी परन्तु अहम वाशिंग मशीन और कूलर तक के लिए लोन ले रहे हो और उनकी किश्ते भी नहीं जमा कर पा रहे हो. इन बिल्डरों ने लोगो के खेत बिकवा बिकवा कर कबुतरखाने जैसे फ्लेट की कीमत २५-५० लाख रख दी हो तो आम आदमी का होगा क्या ? देश में यदि आम आदमी चुनाव तन्त्र पर ही शक करने लग जाये की वोटिंग मशीन में कुछ गड़बड़ है या उसका चुनाव आयुक भूतपूर्व होकर एक सरकार में मंत्री बन जाये, या एक हाल ही के चुनाव आयुक्त पर आरोप लग जाये की वो सत्ताधारी पार्टी से जुड़ा था, अखबार जो आम आदमी और विरोधी पक्ष की आवाज थे ही पेड़ न्यूज़ देने लग जाये, देश का प्रधानमन्त्री कभी चुना जीता ही न हो और लगातार दूसरी बार बड़े बेशर्मी से देश का प्रधानमन्त्री बनजाता हो.
- हिन्दुस्तान के ५५ न्यूज़ चेनल कोई राजनेतिक न्यूज़ ही न दिखाते हो सिर्फ और सिर्फ कॉमेडी शो, क्रिकेट, फैशन, राहुल गाँधी पुराण, यह तक की प्राइम टाइम में भी न्यूज़ न दिखाए सिर्फ भुत, प्रेत, बिग बोस की क्लिपिंग दिखाए तो सभी को समझना चाहिए की देश में एक क्रांति होने वाली है और जो इन से अनजान बन रहे है वो मूर्खो के स्वर्ग में रहने का भ्रम पाले हुए है. क्या संघ जैसे बड़े संघठन के सरसंघचालक को टीवी न्यूज़ चैनेल नहीं दिखायेंगे. क्यूँ नहीं ? क्या बाला साहेब की विजयादशमी की रैली नहीं दिखाए जाएगी. क्यूँ नहीं? इन ५५ न्यूज़ चैनल ने नहीं दिखाया? मैं इन न्यूज़ चैनल से स्पष्टिकरन नहीं मांग रहा और न मुझे इनसे कुछ भी उम्मीद है. अरे न्यूज़ वालो देश के बहुत बड़े विपक्षी रैली कर के अपनी बात रख रहे है तो क्या जनता को इतना भी हक़ नहीं की वो क्या कहे रहे है उनकी भी सुनी जाये. और देश का प्रधानमन्त्री भी सुन ले की यदि इन रैली और नागपुर में संघचालक जी की बात ही आम आदमी सुनले तो उसको अपने जख्मो पर अपने आप ही मरहम लगजाता है. और लोकतंत्र में यह सेफ्टी वाल्व का काम करते तत्व है परन्तु आपको लोकतंत्र का क्या पता आपने तो देश को बड़ा ही मनहूस लोकतंत्र का झुनझुना थमा दिया जिसकी परणीती एक क्रांति से ही होगी.
- संघ यह भी जान ले की देश का किसान वर्ग में किस प्रकार की विस्फोटक स्थिति है कोई भी पैसे के लिए अपनी जमीन नहीं बेचना चाहता, लोग सोना बेच सकते है, जमीर भी बेच सकते है परन्तु जो सरकार किसानो की जमीन को सिर्फ जमीन का टुकड़ा मान कर मनमाने तरीके से खरीद रही है वो न तो कुल को जानती, न जाति को, न गौत्र को, न किसानो की गाँव से जुडी संस्कृति को न उसके पूर्वजो की विरासत को, जो किसान डोल (दो खेतो के बीच की मेढ़) पर चार चार पीढ़ी तक कत्ले आम कर देता है. खून की होली खेल लेता है, २० -२० जेल रहकर भी जमीन और खेत की लड़ाई नहीं भूलता. सरकार पैसे के दम पर और आपने कानून के डर दिखा कर ऐसे किसानो से जमीन अधिग्रहित कर रही है. इसका मतलब सरकार और जन भावना को कोई भी तालमेल नहीं है. जो किसान आपने खेत बेच चुके वो इसी तंत्र को आने वाले समय में अराजक बनायेंगे, चार चार साल पहेल अधिग्रिह्त जमीनों का मुवावजा सरकारे फिर से दे रही है, न्यायालय उनको स्टे दे रहा है. और जो जमीन सरकारों के पास है उन पर हुई फसल पर सरकार सही समर्थन मूल्य नहीं दे रही, मंडियो का नवीनीकरण नहीं हो रह, बहुराष्ट्रीय कंपनिया अशिक्षित किसान को दोनों हाथो से लुट रहे है, तो क्या सरकार सोचती है की इतनी बड़ी अराजकता को १०-२० अखबार घराने, टीवी चैनेल खरीद करके स्थिति संभाल लेगी, तो जान ले सरकार भ्रम में है. प्रधानमंत्री और सत्तधारी पार्टी एक बहुत बड़ी त्रुटी पर है, जब आम आदमी पिसता है तो वो विपक्ष की और देखता है परन्तु विपक्ष का टीवी पर ब्लेक आउट, अख़बार से नदारद, चुनाव आयोग से खिलवाड़, ई.वी.एम. से छेड़छाड़ और उस पर संशय, न्यायालय के निर्णयों में देरी, राज नेताओ के बढते रसूख, सत्ता द्वारा हिन्दू धर्म का घनघोर अपमान, हिन्दू संस्कृति के एक दम विरुद्ध सेम्लेंगिक विवाह, लिविंग रिलेशनशिप पर कानून, कश्मीर पर केंद्र का गैरजिमेदार रवैये एक बड़ी क्रांति की खदबदात है.
- अब होगा क्या कोई न कोई जयप्रकाश नारयण निकलने वाला है और संघ फिर से उसका सिर्फ समर्थन ही करता रह जायेगा. समय है खुद क्रांति का नैत्रेत्व करने का आपके पास संघटन है, तपे हुए स्वयमसेवक है, विचार है, संसाधन है, फिर क्यूँ नहीं व्यवस्था को बदला जाये. उसी तन्त्र में बार बार क्यूँ धंसा जाये. और यदि संघ की स्थापना इसी लिए हुई है तो इसका सर्वोच्च नैत्रेत्व जाने और नहीं तो अभी बदलाव क्यूँ नहीं ?
संघ एक ऐसा वटवृक्ष है जिसके अन्दर सभी प्रकार के प्राणी अपना बसेरा बनाते है और बड़े होने पर उढ़ भी जाते है वटवृक्ष उनको सब कुछ अपना देता है, छाव, सुरक्षा, स्थान, प्रेम, माहौल, पडोसी, अपनापण, परन्तु बदले में कुछ नहीं मांगता बहुत आते है चले जाते है, फिर नए आते है चले जाते है. वटवृक्ष कुछ भी नहीं मांगता. किन्तु पक्षियों का भी एक कर्तव्य बनता है की अपनी चोंच में इस वटवृक्ष का बीज दबा लेजाये और बो दे. समझ सको तो समझ लो यह तो मूक है अपने से कुछ भी नहीं कहेगा. तू नहीं तो और सही, वो नहीं तो कोई और ही सही परन्तु कारवां तो चलता ही रहेगा जब तक लक्ष्य न पा लिया जाये.
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