सकारात्मक सोच
सकारात्मक सोच बर्फ की डल्ली है जो दूसरे से अधिक खुद को ठंडक पहुँचाती है। यदि आप इस मंत्र का प्रयोग कुछ महीने तक कर सके तब आप देखेंगे कि आपके अंदर कितना बड़ा क्रांतिकारी परिवर्तन हो गया है। जो काम सैकड़ों ग्रंथों का अध्ययन नहीं कर सकता, सैंकड़ों सत्संग नहीं कर सकते, सैंकड़ों मंदिर की पूजा और तीर्थों की यात्राएँ नहीं कर सकते, वह काम सकारात्मकता संबंधी यह मंत्र कर जाएगा। आपका व्यक्तित्व चहचहा उठेगा। आपके मित्रों और प्रशंसकों की लंबी कतार लग जाएगी।
आप थोड़ा सा समय लगाइए और अपनी जिंदगी की खुशियों और दुःखों के बारेमें सोचकर देखिए। मुझे पक्का भरोसा है कि आप यही पाएँगे कि जिन चीजों को याद करने से आपको अच्छा लगता है, वे आपकी जिंदगी को खुशियों से भर देती हैं और जिन्हें याद करने से बुरा लगता है, वे आपकी जिंदगी को दुखों से भर देती हैं।
आप बहुत बड़े मकान में रह रहे हैं लेकिन यदि उस मकान से जुड़ी हुई स्मृतियॉं अच्छी और बड़ी नहीं हैं तो वह बड़ा मकान आपको कभी अच्छा नहीं लग सकता। इसके विपरीत यदि किसी झोपड़ी में आपने जिंदगी के खूबसूरत लम्हे गुजारे हैं, तो उस झोपड़ी की स्मृति आपको जिंदगी का सुकून दे सकती है।
पुराने जमाने की बात है। दो साधु किसी जंगल के समीप एक कुटिया बनाकर रहते थे। उनमें से एक अधेड़ था, जो हर
परिस्थिति में शांत और प्रसन्न रहता था, जबकि दूसरा युवा था। वह थोड़ा तुनकमिजाज था, बात-बात में बिगड़ जाता था। एक बार दोनों यात्रा पर निकले। काफी दिन तक घूमते रहे। लौटने पर उन्होंने देखा कि उनकी कुटिया के बरामदे का छप्पर आंधी-तूफान के कारण उड़ गया है। अपनी टूटी झोपड़ी देखकर युवा साधु ईश्वर को कोसते हुए बोला, 'हे ईश्वर, हम हमेशा तेरे नाम का जाप करते हैं, फिर भी तूने हम गरीबों का छप्पर तोड़ दिया। यदि तू अपने भक्तों की रक्षा नहीं करेगा, तो फिर कौन करेगा?' युवा साधु बोले जा रहा था पर अधेड़ साधु मौन खड़ा था। उसकी आंखें आकाश की ओर टिकी थी और उनसे आंसू बह रहे थे। परमात्मा के प्रति आभार से उसका रोम-रोम पुलकित हो रहा था।
अधेड़ साधु को मौन देख युवा साधु को बेहद आश्चर्य हुआ। लेकिन अधेड़ साधु ने उसके मन के भाव जान लिए थे। वह आकाश की ओर देखते हुए बोला, 'वाह ईश्वर, तेरी लीला अपार है।
हम जब माता के गर्भ में थे, तब वहां तूने हमारी रक्षा की। मित्रों की प्रीति से हमें पुष्ट किया। फिर संत-महात्माओं का सत्संग दिया ताकि हम सत्य के मार्ग पर चलें।
तू हरेक परिस्थिति में हमारी रक्षा करता आया है। इस बार भी आंधी-तूफान का रुख तूने ही बदला होगा, इसलिए आधा छप्पर ही टूटा वरना तो पूरी झोपड़ी ही नष्ट हो जाती।' फिर उसने युवा साधु की ओर देखकर कहा, 'भाई, जो घटना घटी है उसका तू सीधा अर्थ ले। जीवन में विघ्न-बाधाएं आने पर भी जिसने धैर्य नहीं खोया और अपने भीतर जितना अधिक उत्साह पैदा किया, वह उतना ही महान बना। जीवन में सफलता के लिए हमें सदैव अपनी सोच सकारात्मक रखनी चाहिए।' उसकी यह बात सुनकर युवा साधु उसके समक्ष नतमस्तक हो गया।
इस बारे में एक कहानी है- एक सेठजी प्रतिदिन सुबह मंदिर जाया करते थे। एक दिन उन्हें एक भिखारी मिला। इच्छा न होने के बाद भी बहुत गिड़गिड़ाने पर सेठजी ने उसके कटोरे में एक रुपए का सिक्का डाल दिया। सेठजी जब दुकान पहुँचे तो देखकर दंग रह गए कि उनकी तिजोरी में सोने की एक सौ मुहरों की थैली रखी हुई थी। रात को उन्हें स्वप्न आया कि मुहरों की यह थैली उस भिखारी को दिए गए एक रुपए के बदले मिली है।
जैसे ही नींद खुली वे यह सोचकर दुखी हो गए कि उस दिन तो मेरी जेब में एक-एक रुपए के दस सिक्के थे, यदि मैं दसों सिक्के भिखारी को दे देता तो आज मेरे पास सोने की मुहरों की दस थैलियाँ होतीं। अगली सुबह वे फिर मंदिर गए और वही भिखारी उन्हें मिला। वे अपने साथ सोने की सौ मुहरें लेकर गए ताकि इसके बदले उन्हें कोई बहुत बड़ा खजाना मिल सके। उन्होंने वे सोने की मुहरें भिखारी को दे दी।
वापस लौटते ही उन्होंने तिजोरी खोली और पाया कि वहाँ कुछ भी नहीं था। सेठजी कई दिनों तक प्रतीक्षा करते रहे। उनकी तिजोरी में कोई थैली नहीं आई। सेठजी ने उस भिखारी को भी ढुँढवाया लेकिन वह नहीं मिल सका। उस दिन से सेठजी दुखी रहने लगे।
क्या आप यह नहीं समझते कि सेठजी ने यह जो समस्या पैदा की, वह अपने लालच और नकारात्मक सोच के कारण ही पैदा की। यदि उनमें संतोष होता और सोच की सकारात्मक दिशा होती तो उनका व्यक्तित्व उन सौ मुहरों से खिलखिला उठता। फिर यदि वे मुहरें चली भी गईं, तो उसमें दुखी होने की क्या बात थी, क्योंकि उसे उन्होंने तो कमाया नहीं था। लेकिन सेठजी ऐसा तभी सोच पाते, जब वे इस घटना को सकारात्मक दृष्टि से देखते। इसके अभाव में सब कुछ होते हुए भी उनका जीवन दुखमय हो गया।
इसलिए यदि आपको सचमुच अपने व्यक्तित्व को प्रफुल्लित बनाना है तो हमेशा अपनी सोच की दिशा को सकारात्मक रखिए। किसी भी घटना, किसी भी विषय और किसी भी व्यक्ति के प्रति अच्छा सोचें, उसके विपरीत न सोचें। दूसरे के प्रति अच्छा सोचेंगे, तो आप स्वयं के प्रति ही अच्छा करेंगे। कटुता से कटुता बढ़ती है। मित्रता से मित्रता का जन्म होता है। आग आग लगाती है और बर्फ ठंडक पहुँचाती है।
आप थोड़ा सा समय लगाइए और अपनी जिंदगी की खुशियों और दुःखों के बारेमें सोचकर देखिए। मुझे पक्का भरोसा है कि आप यही पाएँगे कि जिन चीजों को याद करने से आपको अच्छा लगता है, वे आपकी जिंदगी को खुशियों से भर देती हैं और जिन्हें याद करने से बुरा लगता है, वे आपकी जिंदगी को दुखों से भर देती हैं।
आप बहुत बड़े मकान में रह रहे हैं लेकिन यदि उस मकान से जुड़ी हुई स्मृतियॉं अच्छी और बड़ी नहीं हैं तो वह बड़ा मकान आपको कभी अच्छा नहीं लग सकता। इसके विपरीत यदि किसी झोपड़ी में आपने जिंदगी के खूबसूरत लम्हे गुजारे हैं, तो उस झोपड़ी की स्मृति आपको जिंदगी का सुकून दे सकती है।
पुराने जमाने की बात है। दो साधु किसी जंगल के समीप एक कुटिया बनाकर रहते थे। उनमें से एक अधेड़ था, जो हर
परिस्थिति में शांत और प्रसन्न रहता था, जबकि दूसरा युवा था। वह थोड़ा तुनकमिजाज था, बात-बात में बिगड़ जाता था। एक बार दोनों यात्रा पर निकले। काफी दिन तक घूमते रहे। लौटने पर उन्होंने देखा कि उनकी कुटिया के बरामदे का छप्पर आंधी-तूफान के कारण उड़ गया है। अपनी टूटी झोपड़ी देखकर युवा साधु ईश्वर को कोसते हुए बोला, 'हे ईश्वर, हम हमेशा तेरे नाम का जाप करते हैं, फिर भी तूने हम गरीबों का छप्पर तोड़ दिया। यदि तू अपने भक्तों की रक्षा नहीं करेगा, तो फिर कौन करेगा?' युवा साधु बोले जा रहा था पर अधेड़ साधु मौन खड़ा था। उसकी आंखें आकाश की ओर टिकी थी और उनसे आंसू बह रहे थे। परमात्मा के प्रति आभार से उसका रोम-रोम पुलकित हो रहा था।
अधेड़ साधु को मौन देख युवा साधु को बेहद आश्चर्य हुआ। लेकिन अधेड़ साधु ने उसके मन के भाव जान लिए थे। वह आकाश की ओर देखते हुए बोला, 'वाह ईश्वर, तेरी लीला अपार है।
हम जब माता के गर्भ में थे, तब वहां तूने हमारी रक्षा की। मित्रों की प्रीति से हमें पुष्ट किया। फिर संत-महात्माओं का सत्संग दिया ताकि हम सत्य के मार्ग पर चलें।
तू हरेक परिस्थिति में हमारी रक्षा करता आया है। इस बार भी आंधी-तूफान का रुख तूने ही बदला होगा, इसलिए आधा छप्पर ही टूटा वरना तो पूरी झोपड़ी ही नष्ट हो जाती।' फिर उसने युवा साधु की ओर देखकर कहा, 'भाई, जो घटना घटी है उसका तू सीधा अर्थ ले। जीवन में विघ्न-बाधाएं आने पर भी जिसने धैर्य नहीं खोया और अपने भीतर जितना अधिक उत्साह पैदा किया, वह उतना ही महान बना। जीवन में सफलता के लिए हमें सदैव अपनी सोच सकारात्मक रखनी चाहिए।' उसकी यह बात सुनकर युवा साधु उसके समक्ष नतमस्तक हो गया।
इस बारे में एक कहानी है- एक सेठजी प्रतिदिन सुबह मंदिर जाया करते थे। एक दिन उन्हें एक भिखारी मिला। इच्छा न होने के बाद भी बहुत गिड़गिड़ाने पर सेठजी ने उसके कटोरे में एक रुपए का सिक्का डाल दिया। सेठजी जब दुकान पहुँचे तो देखकर दंग रह गए कि उनकी तिजोरी में सोने की एक सौ मुहरों की थैली रखी हुई थी। रात को उन्हें स्वप्न आया कि मुहरों की यह थैली उस भिखारी को दिए गए एक रुपए के बदले मिली है।
जैसे ही नींद खुली वे यह सोचकर दुखी हो गए कि उस दिन तो मेरी जेब में एक-एक रुपए के दस सिक्के थे, यदि मैं दसों सिक्के भिखारी को दे देता तो आज मेरे पास सोने की मुहरों की दस थैलियाँ होतीं। अगली सुबह वे फिर मंदिर गए और वही भिखारी उन्हें मिला। वे अपने साथ सोने की सौ मुहरें लेकर गए ताकि इसके बदले उन्हें कोई बहुत बड़ा खजाना मिल सके। उन्होंने वे सोने की मुहरें भिखारी को दे दी।
वापस लौटते ही उन्होंने तिजोरी खोली और पाया कि वहाँ कुछ भी नहीं था। सेठजी कई दिनों तक प्रतीक्षा करते रहे। उनकी तिजोरी में कोई थैली नहीं आई। सेठजी ने उस भिखारी को भी ढुँढवाया लेकिन वह नहीं मिल सका। उस दिन से सेठजी दुखी रहने लगे।
क्या आप यह नहीं समझते कि सेठजी ने यह जो समस्या पैदा की, वह अपने लालच और नकारात्मक सोच के कारण ही पैदा की। यदि उनमें संतोष होता और सोच की सकारात्मक दिशा होती तो उनका व्यक्तित्व उन सौ मुहरों से खिलखिला उठता। फिर यदि वे मुहरें चली भी गईं, तो उसमें दुखी होने की क्या बात थी, क्योंकि उसे उन्होंने तो कमाया नहीं था। लेकिन सेठजी ऐसा तभी सोच पाते, जब वे इस घटना को सकारात्मक दृष्टि से देखते। इसके अभाव में सब कुछ होते हुए भी उनका जीवन दुखमय हो गया।
इसलिए यदि आपको सचमुच अपने व्यक्तित्व को प्रफुल्लित बनाना है तो हमेशा अपनी सोच की दिशा को सकारात्मक रखिए। किसी भी घटना, किसी भी विषय और किसी भी व्यक्ति के प्रति अच्छा सोचें, उसके विपरीत न सोचें। दूसरे के प्रति अच्छा सोचेंगे, तो आप स्वयं के प्रति ही अच्छा करेंगे। कटुता से कटुता बढ़ती है। मित्रता से मित्रता का जन्म होता है। आग आग लगाती है और बर्फ ठंडक पहुँचाती है।
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