हिन्दू जागरण मंच :: नहीं चाहिए हिन्दुओं को ऐसी धर्मनिर्पेक्षता जो हिन्दुओं की आस्था से खिलवाड़ कर व हिन्दुओं का खून बहाकर फलती फूलती है । आज इसी वजह से जागरूक हिन्दू इस धर्मनिर्पेक्षता की आड़ में छुपे हिन्दूविरोधियों को पहचान कर अपनी मातृभूमि भारत से इनकी सोच का नामोनिशान मिटाकर इस देश को धर्मनिर्पेक्षता द्वारा दिए गये इन जख्मों से मुक्त करने की कसम उठाने पर मजबूर हैं।
Sunday, 18 December 2011
HINDU JAGRAN MANCH (हिन्दू जागरण मंच): HINDU JAGRAN MANCH (हिन्दू जागरण मंच): जरा विचार ...
HINDU JAGRAN MANCH (हिन्दू जागरण मंच): HINDU JAGRAN MANCH (हिन्दू जागरण मंच): जरा विचार ...: HINDU JAGRAN MANCH (हिन्दू जागरण मंच): जरा विचार करें श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन : जरा विचार करें श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन सोमनाथ मन्दि...
Tuesday, 13 December 2011
HINDU JAGRAN MANCH (हिन्दू जागरण मंच): जरा विचार करें श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन
HINDU JAGRAN MANCH (हिन्दू जागरण मंच): जरा विचार करें श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन: जरा विचार करें श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन सोमनाथ मन्दिर का निर्माण सरदार पटेल की राष्ट्रभक्ति का प्रतीक है , यदि प्रथम राष्...
HINDU JAGRAN MANCH (हिन्दू जागरण मंच): जरा विचार करें श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन
HINDU JAGRAN MANCH (हिन्दू जागरण मंच): जरा विचार करें श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन: जरा विचार करें श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन सोमनाथ मन्दिर का निर्माण सरदार पटेल की राष्ट्रभक्ति का प्रतीक है , यदि प्रथम राष्...
HINDU JAGRAN MANCH (हिन्दू जागरण मंच): जरा विचार करें श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन
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Sunday, 11 December 2011
HINDU JAGRAN MANCH (हिन्दू जागरण मंच): जैचंद की तो फितरत है पीठ पे छुरा घोंपना, इस वोट-बै...
HINDU JAGRAN MANCH (हिन्दू जागरण मंच): जैचंद की तो फितरत है पीठ पे छुरा घोंपना, इस वोट-बै...: हाथ जोड़कर पहले कहे देता हूँ, ज्यादा नहीं लिखूंगा, क्योंकि इन जड़-बुद्धि स्वदेशियों की समझ में ख़ास कुछ नहीं घुसने वाला ! मगर क्या करू कहना...
HINDU JAGRAN MANCH (हिन्दू जागरण मंच): जैचंद की तो फितरत है पीठ पे छुरा घोंपना, इस वोट-बै...
HINDU JAGRAN MANCH (हिन्दू जागरण मंच): जैचंद की तो फितरत है पीठ पे छुरा घोंपना, इस वोट-बै...: हाथ जोड़कर पहले कहे देता हूँ, ज्यादा नहीं लिखूंगा, क्योंकि इन जड़-बुद्धि स्वदेशियों की समझ में ख़ास कुछ नहीं घुसने वाला ! मगर क्या करू कहना...
HINDU JAGRAN MANCH (हिन्दू जागरण मंच): जैचंद की तो फितरत है पीठ पे छुरा घोंपना, इस वोट-बै...
HINDU JAGRAN MANCH (हिन्दू जागरण मंच): जैचंद की तो फितरत है पीठ पे छुरा घोंपना, इस वोट-बै...: हाथ जोड़कर पहले कहे देता हूँ, ज्यादा नहीं लिखूंगा, क्योंकि इन जड़-बुद्धि स्वदेशियों की समझ में ख़ास कुछ नहीं घुसने वाला ! मगर क्या करू कहना...
Saturday, 10 December 2011
HINDU JAGRAN MANCH (हिन्दू जागरण मंच): हिन्दू होना अपराध हो गया?
HINDU JAGRAN MANCH (हिन्दू जागरण मंच): हिन्दू होना अपराध हो गया?: आज जब मैं यह लेख लिखने बैठा तो मुझे पहली बार आभास हुआ कि 1975 में आपातकाल के समय देश में क्या वातावरण रहा होगा? देश की स्वतंत्रता के श्रेय ...
HINDU JAGRAN MANCH (हिन्दू जागरण मंच): हिन्दू होना अपराध हो गया?
HINDU JAGRAN MANCH (हिन्दू जागरण मंच): हिन्दू होना अपराध हो गया?: आज जब मैं यह लेख लिखने बैठा तो मुझे पहली बार आभास हुआ कि 1975 में आपातकाल के समय देश में क्या वातावरण रहा होगा? देश की स्वतंत्रता के श्रेय ...
Friday, 9 December 2011
HINDU JAGRAN MANCH (हिन्दू जागरण मंच): हम आतंकवाद से नहीं rss, विश्व हिन्दू परिषद,बजरंग द...
HINDU JAGRAN MANCH (हिन्दू जागरण मंच): हम आतंकवाद से नहीं rss, विश्व हिन्दू परिषद,बजरंग द...: नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में आतंकवाद को एजेण्डे में शामिल न करने पर आश्चर्य व्यक्त किया है। वहीं सत्तारूढ यूपीए के घटक...
Wednesday, 7 December 2011
हम आतंकवाद से नहीं rss, विश्व हिन्दू परिषद,बजरंग दल से लडेंगे;;भारत के प्रधानमंत्री द्वारा डा मनमोहन सिंह द्वारा प्रस्तावित राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक को लेकर विवाद सा उठता दिख रहा है।
नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में आतंकवाद को एजेण्डे में शामिल न करने पर आश्चर्य व्यक्त किया है। वहीं सत्तारूढ यूपीए के घटकों राष्ट्रीय जनता दल और लोकजनशक्ति ने बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद पर प्रतिबन्ध लगाने की माँग राष्ट्रीय एकता परिषद
की बैठक में उठाने की बात की है।
भारत के प्रधानमंत्री द्वारा डा मनमोहन सिंह द्वारा प्रस्तावित राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक को लेकर विवाद सा उठता दिख रहा है। राष्ट्रीय एकता परिषद के एजेण्डे को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच वाद विवाद का जो दौर चल रहा है उसमें विपक्ष की ओर से भारतीय जनता पार्टी के नेता और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जो प्रश्न उठाया है वह अत्यंत सटीक है। नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में आतंकवाद को एजेण्डे में शामिल न करने पर आश्चर्य व्यक्त किया है। वहीं सत्तारूढ यूपीए के घटकों राष्ट्रीय जनता दल और लोकजनशक्ति ने बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद पर प्रतिबन्ध लगाने की माँग राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में उठाने की बात की है। इन दोनों ही पक्षों को सुनने के बाद एक बात अत्यंत ही आश्चर्यजनक लगती है कि आखिर राष्ट्रीय एकता परिषद के बैठक बुलाने की आवश्यकता क्यों आन पडी और इसके पीछे असली मंतव्य क्या है?
इस सम्बन्ध में यदि उडीसा के मामले को लेकर पिछले दिनों कैबिनेट की हुई बैठक का सन्दर्भ लिया जाये तो बात कुछ हद तक स्पष्ट हो जाती है। कैबिनेट की बैठक के बारे में जोर शोर से प्रचारित किया गया कि इस बैठक में हिन्दूवादी संगठन बजरंग दल पर प्रतिबन्ध लगाने के सम्बन्ध में कोई अन्तिम निर्णय हो सकता है। कैबिनेट की उस बैठक में इस विषय पर चर्चा भी हुई और कानून मंत्री तथा गृहमंत्री की ओर से बैठक में उपस्थित सदस्यों को बताया गया कि बजरंग दल के विरुद्ध इस बात के पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं कि उस पर प्रतिबन्ध को न्यायालय में न्यायसंगत ठहराया जा सके। अब राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक से पूर्व हिन्दूवादी संगठनों पर प्रतिबन्ध की माँग और देश भर में हो रही इस्लामी आतंकवाद की घटनाओं को चर्चा से परे रखना कुछ विशेष मानसिकता की ओर संकेत करता है।
पिछले अनेक वर्षों से देश में इस्लामी आतंकवाद ताण्डव मचा रहा है और भारत में 2004 के बाद से जितनी भी आतंकवाद की घटनायें या बडे बम विस्फोट हुए हैं उनमें भारत के देशी मुसलमानों का हाथ रहा है और फिर वह सिमी हो या फिर नवनिर्मित इंडियन मुजाहिदीन। आज देश में मुसलमानों की युवा पीढी का एक ऐसा वर्ग निर्मित हो गया जो कुरान और अल्लाह का हवाला देकर निर्दोष हिन्दुओं को मूर्ति पूजा करने की सजा दे रहा है और इस विस्फोटों को अल्लाह के लिये किया जाने वाला जेहाद बता रहा है। ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि भारत सरकार और देश के राजनीतिक दलों की इस आधार पर समीक्षा की जाये कि वे इस नयी उभरती समस्या के समाधान के लिये कितने उद्यत हैं। दुर्भाग्यवश जब हम इस सम्बन्ध में सोचते हैं तो हमें अत्यंत निराशा का सामना करना पडता है। आतंकवाद की इस पूरी समस्या से लड्ने के लिये एक समन्वित रणनीति अपनाने के स्थान पर इसे वोट बैंक के तराजू में तोला जा रहा है।
पिछले कुछ वर्षों में देश में आतंकवादियों की रणनीति और प्रेरणा दोनों में अंतर आया है। अभी कुछ वर्षों पूर्व तक हमारे राजनेता, पत्रकार और सुरक्षा विशेषज्ञ इस बात की दुहाई देते नहीं थकते थे कि भारत के मुसलमान अत्यंत सहिष्णु हैं और सूफी परम्परा के हैं इस कारण विश्व भर में जेहाद के नाम पर चल रहे इस्लामवादी आन्दोलन का प्रभाव भारत के मुसलमानों पर नहीं पडेगा और भारत निश्चय ही मध्य पूर्व में इजरायल के विरुद्ध चल रहे आतंकवाद या इंतिफादा से पूरी तरह असम्पर्कित रहेगा। यही कारण है कि भारत का बौद्धिक समाज और राजनीतिक नेतृत्व 11 सितम्बर को अमेरिका पर हुए इस्लामी आतंकवादी आक्रमण के बाद भी इस अपेक्षा में बैठा रहा कि भारत में मुसलमानों के साथ होने वाले व्यवहार, सेक्युलरिज्म के प्रति उनकी समझ और लोकतन्त्र में उनकी आस्था और नरमपंथी इस्लाम की उनकी परम्परा के चलते इस वैश्विक जेहादी आन्दोलन के प्रति उनका झुकाव नहीं होगा।
इसी भावना के चलते 2004 से पहले तक भारत में होने वाले आतंकवादी आक्रमणों के लिये पडोसी पाकिस्तान के कुछ इस्लामी आतंकवादी संगठनों और खुफिया एजेंसी आईएसाआई को दोषी ठहराया जाता था और यह बात तथ्यात्मक भी थी कि सीमा पार से लोग आतंकवादी घटनाओं के लिये भारत आते थे और उन्हें स्थानीय स्तर पर कुछ सहयोग मिलता था परंतु योजना से क्रियान्वयन तक सभी कुछ सीमा पार के तत्वों का होता था। परंतु अचानक 2004 के बाद भारत में सीमा पार के इस आतंकवाद ने इस्लामी आतंकवाद का स्वरूप ग्रहण कर लिया और भारत स्थित अनेक इस्लामी संगठनों ने पिछले अनेक वर्षों से चल रहे इस्लामी आन्दोलन को आतंकवाद में परिवर्तित कर दिया और सिमी तथा इंडियन मुजाहिदीन जैसे संगठन खुलकर आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने लगे।
आज देश के समक्ष यह अत्यंत बडी चुनौती है कि इस समस्या के मूल को समझकर उसका समाधान तलाशा जाये। इस लेखक ने अपने अनेक पिछले आलेखों में इस बात का उल्लेख किया है कि विश्व स्तर पर जेहाद के नाम पर एक इस्लामवादी आन्दोलन चलाया जा रहा है जिसकी प्रेरणा समस्त विश्व में समय समय पर जेहाद के सन्दर्भ में इस्लाम की व्याख्या करते हुए विश्व पर इस्लामी सर्वोच्चता स्थापित करने के लिये संचालित हुए आन्दोलनों से ली गयी है। भारत में ऐसे इस्लामी आन्दोलनों के प्रयास 18वीं शताब्दी से ही होते रहे हैं। इसी प्रकार मध्य पूर्व और अरब देशों में 18वीं शताब्दी में वहाबी आन्दोलन , फिर बीसवीं शताब्दी में मिस्र में मुस्लिम ब्रदरहुड संगठन जिसकी नींव सैयद कुत्ब ने रखी और उनकी भाई मुहम्मद कुत्ब ने उस परम्परा को आगे बढाते हुए उस विचारधारा को आगे बढाया और उसी परम्परा का आखिरी नाम फिलीस्तीन का अब्दुल्ला अज़्ज़ाम है जिसकी प्रेरणा से आज अल कायदा और ओसामा बिन लादेन का विश्वव्यापी जेहादी इस्लामी आतंकवादी आन्दोलन चल रहा है।
भारत में इस सन्दर्भ में जेहाद का अध्ययन करने का कभी प्रयास नहीं हुआ। जिस समय ओसामा बिन लादेन ने इंटरनेशनल इस्लामिक फ्रंट की स्थापना कर ईसाइयों और यहूदियों फिर हिन्दुओं के विरुद्ध जेहाद की घोषणा भी नहीं की थी उससे बहुत पहले भारत के इस्लामी संगठन सिमी ने 1986 में भारत को मुक्त कराकर इसे इस्लामी राष्ट्र का स्वरूप देने का संकल्प करते हुए सम्मेलन आयोजित किया था। आज यही संकल्प वैश्विक जेहाद के साथ जुड गया है जो विश्व स्तर पर शरियत और कुरान पर आधारित नयी विश्व व्यवस्था की स्थापना करना चाहता है। आज भारत में इस बात पर चर्चा करने का प्रयास ही नहीं हो रहा है कि अल कायदा और ओसामा बिन लादेन के विचारों से प्रभावित होने वाले मुस्लिम युवकों को इस विचारधारा से अलग थलग कैसे किया जाये। इंडियन मुजाहिदीन के मीडिया प्रकोष्ठ के लोगों के सामने आने के बाद यह पूरी तरह स्पष्ट हो गया है कि भारत में मुसलमानों का एक वर्ग तेजी से जेहाद के विचारों से प्रभावित हो रहा है। आज अत्यंत दुर्भाग्य का विषय है कि जिस प्रकार यह विचार तेजी से मुस्लिम युवकों में फैल रहा है और बडे सम्पन्न युवक जेहाद के नाम पर अपने ही देश के लोगों का खून बहाने को अपना धर्म मान बैठे हैं तो ऐसे में आश्चर्य नहीं कि आने वाले दिनों में हमें मध्यपूर्व के देशों और अफगानिस्तान और पडोसी पाकिस्तान की भाँति मानव बम के जरिये होते विस्फोट देखने को मिलें।
आज जब समस्त विश्व में इस बात पर विचार हो रहा है कि जेहाद के इस वैश्विक आन्दोलन को सभ्य समाज और वर्तमान विश्व व्यवस्था के विरुद्ध एक युद्ध माना जाये और इस सम्बन्ध में विभिन्न देशों में इस बात के प्रयास हो रहे हैं कि जेहाद के इस आन्दोलन से सामान्य शांतिप्रिय मुस्लिम समुदाय को किस प्रकार अलग थलग रखते हुए जेहाद की इस विचारधारा को वैचारिक स्तर पर परास्त किया जाये और इस सम्बन्ध में मुस्लिम समुदाय को उत्तरदायी बनाने के भी प्रयास हो रहे हैं तो वहीं भारत में अब भी इस समस्या को वोट बैंक की राजनीति से जोड्कर इसके समाधान के किसी भी प्रयास को अवरुद्ध किया जा रहा है।
इस सम्बन्ध में सबसे बडा उदाहरण पिछले दिनों राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में जामिया नगर में बाटला हाउस में आतंकवादियों के साथ हुई पुलिस की मुठभेड के बाद उसे फर्जी सिद्ध करने को और अपने ही साथी पुलिसकर्मी को मरवा देने के आरोप दिल्ली पुलिस पर लगे। यह आरोप देश की प्रमुख सेक्युलर कही जाने वाली पार्टियों ने लगाये और इस मुठभेड की न्यायिक जाँच की माँग तक कर डाली।
यही नहीं तो देश का ध्यान इस्लामी आतंकवाद की समस्या से हटाने के गैर जिम्मेदाराना और दूरगामी स्तर पर खतरनाक परिणामों से परिपूर्ण प्रयास के अंतर्गत देश में हिन्दू आतंकवाद का एक समानांतर आभास विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है और राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक उसी आभास को वास्तविक स्वरूप देने का सुनियोजित प्रयास है। इस्लामी आतंकवाद के समानांतर हिन्दू आतंकवाद और सिमी के समानांतर बजरंग दल का आभासी दृष्टिकोण कितना खोखला है इसका पता इसी बात से चलता है कि अब तक हिन्दू आतंकवाद जैसी किसी अवधारणा को सिद्ध करने के लिये कोई कानूनी साक्ष्य सरकार के पास नहीं है और न ही बजरंग दल को प्रतिबन्धित करने के लिये ही प्रमाण हैं। फिर यह प्रयास क्यो? केवल मुस्लिम वोट बैंक को संतुष्ट रखने का प्रयास और देशवासियों का ध्यान इस्लामी आतंकवाद से हटाने के लिये।
परंतु यह दृष्टिकोण कितना घातक है इसका पता हमें बाद में चलेगा। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार घाटी से हिन्दुओं को योजनाबद्ध ढंग से भगाने के इस्लामी एजेंडे को लम्बे समय तक कुछ गुमराह नौजवानों का उग्रवाद कहा जाता रहा। आज उसी प्रकार भारत में इस्लामी आतंकवाद को 1992 में बाबरी ढाँचा के ध्वँस से उपजा मान कर प्रचारित किया जा रहा है। भारत के राजनीतिक दल और बौद्धिक समाज के लोग जिस प्रकार इस्लामी आतंकवाद का समाधान करने और जेहाद की वैश्विक विचारधारा से देश के मुसलमानों को जुड्ने से रोकने के लिये कोई ठोस रणनीति अपनाने के स्थान पर मुस्लिम उत्पीडन की काल्पनिक अवधारणा को प्रोत्साहन दे रहे हैं, आतंकवादियों के मानवाधिकार के नाम पर पुलिस को कटघरे में खडा कर रहे हैं, आतंकवाद को न्यायसंगत ठहराने के लिये तर्क देर रहे हैं उससे जेहाद के आधार पर चल रहे इस इस्लामवादी आन्दोलन को और सहारा ही मिलेगा और यह सशक्त हो जायेगा।
जिस प्रकार राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में आतंकवाद के विषय को एजेण्डे में नहीं लिया गया है और कर्नाटक और उडीसा की घटनाओं का आश्रय लेकर बजरंग दल को निशाने पर लिया जा रहा है उससे तो यही लगता है कि इस्लामी आतंकवाद से लड्ना सरकार की प्राथमिकता में नहीं है। आज देश के समक्ष जिस प्रकार इस्लामी आतंकवाद एक चुनौती बन कर खडा है ऐसे में क्या बजरंग दल पर प्रतिबन्ध लगाने से इस समस्या का समाधान हो जायेगा और देश में जेहाद की विचारधारा से प्रभावित हो रहे मुस्लिम युवक जेहाद करना छोड देंगे। ऐसा बिलकुल भी नहीं है और यह बात कांग्रेस भी जानती है और उसके सहयोगी दल भी जानते हैं फिर भी देश में एक खतरनाक खेल खेला जा रहा है देश में मानव बमों की फैक्ट्री तैयार होने का अवसर दिया जा रहा है और प्रतीक्षा की जा रही है कि कब भारत इजरायल, अफगानिस्तान, इराक और पाकिस्तान बन जाये?
कांग्रेस को भारी पड सकती है हिन्दू आतंकवाद की अवधारणा
यह कोई संयोग है या फिर सोचा समझा प्रयास कि जिस दिन सेंसेक्स इतना नीचे चला गया कि शेयर बाजार में छोटा निवेश करने वालों की दीपावाली अभिशप्त हो गयी और प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री, आर.बी.आई के गवर्नर के तमाम आश्वासनों के बाद भी शेयर बाजार के गिराव थमा नहीं और सर्वत्र हाहाकार मच रहा था कि अचानक महाराष्ट्र के एण्टी टेररिस्ट स्क्वेड ने 29 सितम्बर को मालेग़ाँव में हुए बम विस्फोट की गुत्थी सुलझा लेने का दावा करते हुए इस मामले में पहली बार किसी हिन्दू को गिरफ्तार किया। आतंकवादी घटना में हिन्दू की गिरफ्तारी उतनी चौंकाने वाले नहीं है जितनी उसकी टाइमिंग। अभी कुछ दिन पहले ही केन्द्रीय कैबिनेट की एक विशेष बैठक आयोजित कर बजरंग दल पर प्रतिबन्ध लगाने की चर्चा की गयी और पर्याप्त साक्ष्यों के अभाव में सरकार के अनेक घटक दलों की जबर्दस्त माँग के बाद भी सरकार ऐसा नहीं कर पायी। इसके बाद राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक बुलायी गयी और उस बैठक में साम्प्रदायिकता को विशेष मुद्दा बनाया गया और बैठक में कुछ सदस्यों ने बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद पर प्रतिबन्ध लगाने की माँग दुहरायी। राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक से पूर्व लेखक ने बैठक के पीछे छुपी मंशा पर सवाल उठाये थे।
वास्तव में देश में बढ रहे इस्लामी आतंकवाद को लेकर जिस प्रकार एक ऐसा माहौल बन रहा है कि उसमें घटनायें करने वाले मुस्लिम ही हैं तो ऐसे में सेकुलरिज्म का दम्भ भरने वाले राजनीतिक दलों के सामने यह गम्भीर प्रश्न खडा हो गया है कि वह इस्लामी आतंकवाद के विरुद्ध इस लडाई को सेकुलर सिद्दांतों के दायरे में रह कर कैसे लडें? दूसरा धर्मसंकट इन दलों के समक्ष मुस्लिम वोटबैंक है। 2006 में जब मुम्बई में लोकल रेल व्यवस्था को निशाना बनाया गया था और बडी संख्या में मुम्बई की मुस्लिम बस्तियों और मुस्लिम उलेमाओं को पुलिस ने निशाने पर लिया था और पूछताछ की थी तो मुस्लिम नेताओं, बुद्धिजीवियों और धर्मगुरुओं ने मिलकर संसद भवन में एनेक्सी में आतंकवाद विरोधी सम्मेलन का आयोजन किया और केन्द्र सरकार के प्रतिनिधियों के बीच आतंकवाद के नाम पर इस्लाम को बदनाम करने और निर्दोष मुसलमानों को फँसाने की प्रवृत्ति की आलोचना की और सरकार से आश्वासन लिया कि सरकार आतंकवाद के मुद्दे पर मुस्लिम भावनाओं का आदर करेगी। यह पहला अवसर था जब भारत के स्थानीय मुस्लिम समाज की भूमिका आतंकवादी घटनाओं में सामने आयी थी। इसके बाद से आतंकवाद को लेकर सेकुलरिज्म के सिद्धांतों के अनुपालन और संतुलन साधने के प्रयासों के तहत हिन्दू आतंकवाद का आभास सृजित कर एक नयी अवधारणा स्थापित करने का प्रयास आरम्भ हो गया। यदि 2006 के बाद हुई आतंकवादी घटनाओं के पश्चात सेकुलरपंथी राजनेताओं और राजनीतिक दलों के बयानों पर दृष्टि डाली जाये तो स्पष्ट होता है कि अनेक बार आतंकवादी घटनाओं की निष्पक्ष जाँच और हिन्दू संगठनों के षडयंत्र का कोण भी इनके बयानों में आने लगा। इसी के साथ अनेक मुस्लिम संगठन तो खुलकर कहने लगे कि ऐसे आतंकवादी आक्रमण हिन्दू संगठनों द्वारा इस्लाम को बदनाम करने के लिये प्रायोजित किये जा रहे हैं।
जैसे-जैसे देश में आतंकवादी आक्रमण बढते रहे आतंकवाद के विरुद्द कार्रवाई में सेकुलरिज्म के सिद्धांत का पालन करने के लिये और संतुलन साधने के लिये हिन्दू आतंकवाद का आभास सृजित किया जाने लगा। यही नहीं तो इस्लामी आतंकवाद के समानान्तर एक हिन्दू आतंकवाद की अवधारणा को पुष्ट करने के लिये हिन्दूवादी संगठनों के एक व्यापक नेटवर्क की बात की जाने लगी जो सुनियोजित ढंग से आतंकवाद फैलाने के लिये उसी प्रकार कार्य कर रहे हैं जैसे सिमी या अन्य इस्लामी आतंकवादी संगठन। इसके लिये देश के कुछ जाने माने टीवी चैनलों ने तो प्रचार का एक अभियान चलाया है और अपनी झूठी और खोखली दलीलों के द्वारा सिद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं कि हिन्दूवादी संगठनों के प्रयासों से देश में आतंकवाद का एक नेटवर्क चल रहा है जिसमें महाराष्ट्र का एक सैन्य स्कूल बम बनाने का प्रशिक्षण दे रहा है। सीएनएन- आईबीएन ने कुछ दिनों पहले इसे खोजी पत्रकारिता का नाम देकर कुछ वर्षों पूर्व नान्देड में हुए बम विस्फोट से लेकर पिछले माह कानपुर में हुए बम विस्फोट तक पूरे घटनाक्रम को एक सुनियोजित नेटवर्क का हिस्सा बताकर हिन्दू आतंकवाद को मालेगाँव से पहले ही पुष्ट कर दिया था।
मालेग़ाँव के मामले में एक साध्वी सहित कुछ लोगों की गिरफ्तारी के मामले पर भी कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के समाचार चैनल पर जिस तरह समाचार से अधिक कांग्रेस का एजेण्डा चलाया जा रहा है उससे स्पष्ट है कि यह पूरा मामला केवल जाँच एजेंसियों तक सीमित नहीं है और इसे लेकर एक प्रकार का प्रचार युद्ध चलाया जा रहा है। जिस प्रकार न्यूज 24 ने साध्वी की गिरफ्तारी के साथ ही चैनल पर हिन्दू आतंकवाद बनाम इस्लामी आतंकवाद की बहस चलायी और सभी समाचार चैनलों मे अग्रणी भूमिका निभाकर स्वयं ही न्यायाधीश बन कर फैसला सुना दिया उससे स्पष्ट है कि यह पूरा खेल कांग्रेस के इशारे पर हो रहा है।
एंटी टेररिस्ट स्कवेड अभी तक जिन तथ्यों के साथ सामने आया है उस पर कुछ प्रश्न खडे होते हैं। आखिर अभी तक साध्वी और उनके साथ गिरफ्तार लोगों के ऊपर मकोका के तहत मामला क्यों दर्ज नहीं किया गया है और यह मामला भारतीय दण्ड संहिता के अंतर्गत ही क्यों बनाया गया है जबकि आतंकवादियों के विरुद्ध मकोका के अंतर्गत मामला बनता है। इससे स्पष्ट है कि संगठित अपराध की श्रेणी में यह मामला नहीं आता। आज एक और तथ्य सामने आया है जो प्रमाणित करता है कि मालेगाँव विस्फोट में आरडीएक्स के प्रयोग को लेकर महाराष्ट्र पुलिस और केन्द्रीय एजेंसियों के बयान विरोधाभासी हैं। महाराष्ट्र पुलिस का दावा है कि वह घटनास्थल पर पहले पहुँची इस कारण उसने जो नमूने एकत्र किये उसमें आरडीएक्स था तो वहीं महाराष्ट्र पुलिस यह भी कहती है कि विस्फोट के बाद नमूनों के साथ छेड्छाड हुई तो वहीं केन्द्रीय एजेंसियाँ यह मानने को कतई तैयार नहीं हैं कि इस विस्फोट में आरडीएक्स का प्रयोग हुआ उनके अनुसार इसमें उच्चस्तर का विस्फोटक प्रयोग हुआ था न कि आरडीएक्स। इसी के साथ केन्द्रीय एजेंसियों ने स्पष्ट कर दिया है कि मालेग़ाँव और नान्देड तथा कानपुर में हुए विस्फोटों में कोई समानता नहीं है। अर्थात केन्द्रीय एजेंसियाँ इस बात की जाँच करने के बाद कि देश में हिन्दू आतंकवाद का नेटवर्क है इस सम्बन्ध में कोई प्रमाण नहीं जुटा सकी हैं। अब क्या सीएनएन-आईबीएन अपने दुष्प्रचार के लिये क्षमा याचना करेगा?
साध्वी के मामले में एटीएस के अनेक दावे कमजोर ही हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि महाराष्ट्र सरकार और केंन्द्र सरकार की रुचि इस विषय़ में अधिक थी कि मालेगाँव विस्फोट के तार किसी न किसी प्रकार हिन्दूवादी संगठनों से जुडें और यह सिद्ध किया जा सके कि ये संगठन आतंकवाद का एक नेटवर्क चला रहे हैं और इसी आधार पर इन संगठनों को प्रतिबन्धित कर मुस्लिम समाज को यह सन्देश दिया जा सके कि हमें आपकी चिंता है और हम आतंकवाद को लेकर संतुलन की राजनीति करते हुए सेकुलरिज्म के सिद्धांत का पालन कर रहे हैं। यह अत्यंत हास्यास्पद स्थिति सरकार और जाँच एजेंसियों के लिये है कि वे अब तक साध्वी और उनके साथियों को लेकर आधे दर्जन से अधिक संगठनों के नाम गिना चुके हैं परंतु अभी तक एक भी ऐसा ठोस प्रमाण सामने नहीं ला सके हैं कि इन संगठनों का आतंकवादी गतिविधियों में कोई हाथ है। पहले हिन्दू जागरण मंच का सदस्य बताया गया, फिर दुर्गा वाहिनी, फिर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद , फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में जाने वाला बताया गया अब पुलिस कह रही है कि इन्होंने अलग संगठन बनाया था। एटीएस ने भोपाल और ग्वालियर में सभी सम्बन्धित संगठनों के लोगों से पूछताछ की जो साध्वी के निकट थे परंतु अभी तक पुलिस को ऐसा कोई साक्ष्य हाथ नहीं लगा है जो यह सिद्ध कर सके कि हिन्दूवादी संगठन आतंकवाद का प्रशिक्षण देते हैं या फिर आतंकवादी नेटवर्क चला रहे हैं।
एटीएस ने साध्वी और उनकी तीन साथियों को इस आधार पर गिरफ्तार किया है कि विस्फोट में प्रयुक्त हुई मोटरसाइकिल साध्वी के नाम थी और साध्वी ने विस्फोट से पूर्व साथी आरोपियों के साथ करीब सात घण्टे मोबाइल पर बात की थी जो कि प्रमाण है। अब ये प्रमाण कितने ठोस हैं इसका पता तो न्यायालय में चार्जशीट दाखिल होने पर लग जायेगा। लेकिन इस पूरे अभियान से एक बात निश्चित है कि हिन्दू आतंकवाद का आभास सृजित करने का प्रयास कांग्रेस उसके सहयोगी दल और उसके सहयोगी टीवी चैनल ने किया है और इस प्रचार युद्ध में अपनी पीठ भले ही ठोंक लें परंतु जिस प्रकार आतंकवाद की लडाई को कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने भोथरा करने का प्रयास किया है वह अक्षम्य अपराध है।
कांग्रेस के लिये मीडिया प्रबन्धन करने वालों के लिये यह एक बुरी खबर है कि ब्लाग पर या विभिन्न समाचार पत्रों में इस घटना पर टिप्पणी करने वालों का तेवर यह बताता है कि इस विषय पर युवा और बुद्धिजीवी समाज जिस प्रकार ध्रुवीक्रत है वैसा पहले कभी नहीं था। कांग्रेस शायद अब भी एक विशेष मानसिकता में जी रही है जहाँ उसे लगता है कि देश उसके बपौती है और देशवासियों के विचारों पर भी उसका नियंत्रण है। इसी भावना के बशीभूत होकर कांग्रेस के एक बडे नेता के न्यूज चैनल न्यूज 24 पर आतंकवाद पर बहस के दौरान कांग्रेसी नेता राशिद अल्वी बार बार बासी तर्क दे रहे थे कि स्वाधीनता संग्राम में कांग्रेस का योगदान रहा है और कुछ दल विशेष अंग्रेजों का साथ दे रहे थे। यह तर्क सुनकर हँसी ही आ सकती है कि एक ओर तो कांग्रेस के राजकुमार तकनीक और युवा भारत की बात करते हैं तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के नेता अब भी स्वाधीनता पूर्व मानसिकता में जी रहे हैं। आज सूचना क्रांति के बाद लोगों को यह अकल आ गयी है कि वे वास्तविकता और प्रोपेगेण्डा में विभेद कर सकें। 11 सितम्बर 2001 को अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की गिरती इमारतों के बाद समस्त विश्व में इस्लामी आतंकवाद को लेकर जो बहस चली है उसके बाद किसी भी युवक को यह बताने की आवश्यकता नहीं है को आतंकवाद का धर्म, स्वरूप और उसकी आकाँक्षायें क्या है? आज शायद कांग्रेस और उसके सहयोगी भूल गये हैं कि देश की 60 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या 30 या उससे नीचे आयु की है और उसने 1990 के दशक के परिवर्तनों के मध्य अपनी को जवान किया है। उसने आर्थिक उदारीकरण देखा है, सूचना क्रांति के बाद विश्व तक अपनी पहुँच देखी है, उसने कश्मीर से जेहाद के नाम पर भगाये गये हिन्दुओं की त्रासदी देखी है और देखा है राम जन्मभूमि आन्दोलन जिसने भारत की राजनीति की दिशा बदल दी।
आज वही पीढी निर्णायक स्थिति में है जिसके विचार अपने से पहली की पीढी के बन्धक नहीं है। इस पीढी ने अपनी पिछली पीढी के विपरीत सब कुछ अपने परिश्रम से खडा किया है और इसलिये उसे स्वयं पर भरोसा है और वह व्यक्ति के विचारों के आधार पर उसका आकलन करती है न कि किसी खानदान का वारिस होने के आधार पर।
समाज में जो मूलभूत परिवर्तन हुआ है उसके प्रति पूरी तरह लापरवाह कांग्रेस और उसके सेक्यूलर सहयोगी हिन्दू आतंकवाद का आभास सृजित कर इसका आरोप हिन्दू संगठनों पर मढना चाहते हैं परंतु शायद वे लोग भूल जाते हैं कि हिन्दुत्व का विचार केवल किसी संगठन तक सीमित नहीं है। इसका सीधा सम्बन्ध युवा भारत के सपने से है। आज देश विदेश में ऐसे लोगों की संख्या अत्यंत नगण्य है जो इस्लामी आतंकवाद को संतुलित करने के लिये हिन्दू आतंकवाद की अवधारणा का समर्थन करेंगे। इसका उदाहरण हमें पिछले गुजरात विधानसभा में मिल चुका है जब कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गाँधी द्वारा गुजरात के मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी को मौत का सौदागर कहने और कांग्रेस के कुछ नेताओं द्वारा हिन्दू आतंकवाद की बात करने के कारण इस पार्टी को मुँह की खानी पडी। एक बार फिर चुनावों से पहले कांग्रेस हिन्दू आतंकवाद की अवधारणा को सृजित कर रही है। क्योंकि कांग्रेस को लगता है कि देश में हिन्दुओं का एक बडा वर्ग है जो उसकी सेक्युलरिज्म की परिभाषा से सहमत है। कांग्रेस ऐसे हिन्दुओं और मुसलमानों को साधने के प्रयास में एक खतरनाक खेल खेल रही है जिसका परिणाम देश में साम्प्रदायिक विभाजन के रूप में सामने आयेगा।
मालेगाँव विस्फोट को लेकर जाँच एजेंसियाँ तो अपना कार्य कर रही हैं और शीघ्र ही सत्य सामने आ जायेगा परंतु जिस प्रकार कांग्रेस इस्लामी लाबी के दबाव में आकर कार्य कर रही है वह देश के भविष्य़ के लिये शुभ संकेत नहीं है। क्योंकि हिन्दू आतंकवाद की बात करके कांग्रेस और उसके सहयोगी दल भले ही अस्थाई तौर पर प्रसन्न हो लें परंतु अभी बहस में अनेक प्रश्न उठेंगे और सेक्युलरिज्म का एकांगी स्वरूप, मानवाधिकार संगठनों का अल्पसंख्यक परस्त चेहरा भी बह्स का अंग बनेंगे।
मालेगाँव मामले में जाँच हो रही है या कुछ और?
29 सितम्बर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगाँव में हुए विस्फोट के पश्चात जिस प्रकार जाँच के बहाने हिन्दू आतंकवाद की अवधारणा का सृजन करने का प्रयास हुआ है उसके अपने निहितार्थ हैं और अब तक यदि पूरे घटनाक्रम में बयानबाजी से लेकर मीडिया ट्रायल को ध्यान से देखा जाये तो यह स्पष्ट हो जाता है कि यह जाँच नहीं कुछ और है और यह कुछ और क्या है इसका निर्णय आप कुछ तथ्यों के आधार पर स्वयं करें।
29 सितम्बर को मालेगाँव विस्फोट में महाराष्ट्र एटीएस की ओर से जाँच की प्रक्रिया आरम्भ ही की गयी थी कि 5 अक्टूबर को एनसीपी के नेता शरद पवार ने घोषणा कर दी कि आतंकवादी मामलों में मुसलमानों को बदनाम किया जाता है लेकिन हिन्दू आतंकी गुटों पर कार्रवाई नहीं हो रही है। इससे दो बातें स्पष्ट हैं कि एक तो शरद पवार ने जाँच से पूर्व ही घोषित कर दिया कि मालेगाँव विस्फोट हिन्दुओं ने किया है और वे आतंकवादी हैं। इसके बाद तो जाँच मात्र औपचारिकता ही रह गयी थी जिसकी दिशा स्पष्ट थी। शरद पवार के बयान के एक सप्ताह पश्चात मालेगाँव विस्फोट मामले में साध्वी प्रज्ञा को एटीएस ने पूछताछ के लिये सम्पर्क किया। इसी के साथ महाराष्ट्र के गृहमंत्री आर.आर.पाटिल भी समाचार माध्यमों से कहते रहे कि आरोपियों के विरुद्ध ठोस साक्ष्य हैं।
इसके बाद आरम्भ हुआ जाँच की प्रक्रिया के दौरान कुछ चुनी हुई खबरों को लीक करने का दौर। सबसे पहले एटीएस ने भारत के सबसे तेज हिन्दी न्यूज चैनल को कान में बताया कि साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित ने अपनी पूछताछ और नार्को टेस्ट में एक धर्मगुरु और हिन्दू संगठन के बडे नेता का नाम लिया है। इसके बाद मीडिया को इस बात का लाइसेंस मिल गया कि वह किसी भी धर्माचार्य को ललकारे और उसे कटघरे में खडा कर दे। इस पूरी कसरत में स्टार न्यूज और एनडीटीवी की भूमिका अग्रणी रही।
एटीएस द्वारा धर्माचार्य का नाम लेकर संशय की स्थिति निर्माण करने के पीछे प्रयोजन कुछ भी रहा हो परंतु इस बहाने देश के कुछ बडे संतों को पूरे मामले में घसीटने का प्रयास हुआ। इसी बीच एटीएस ने मीडिया को बताया कि इस विस्फोट के आरोपियों के उन विस्फोटों से सम्बन्ध होने की जाँच की जा रही है जिसमें मुसलमान ही मारे गये हैं और यह विस्फोट हैं समझौता ट्रेन विस्फोट, मक्का मस्जिद विस्फोट, अजमेर शरीफ विस्फोट। इस विषय को इस प्रकार प्रस्तुत किया गया कि सन्देह के आधार पर सम्बन्धित एजेंसियों या राज्य सरकारों की पुलिस की जाँच को अंतिम निष्कर्ष मान कर प्रस्तुत किया और एनडीटीवी ने तो अपने कार्यक्रम हम लोग में तो बकायदा इन विस्फोटों को हिन्दू आतंकवादियों पर चस्पा करते हुए हिन्दू आतंकवाद पर बहस ही आरम्भ कर दी। अब प्रश्न यह है कि इन विस्फोटों की पूरी जाँच होने से पूर्व इसे कर्नल पुरोहित और साध्वी प्रज्ञा और दयानन्द पांडे के माथे मढने के पीछे मंतव्य क्या था? जब इन विस्फोटों की जाँच करने के लिये सम्बन्धित राज्यों की पुलिस ने कर्नल पुरोहित से सम्पर्क किया तो पता लगा कि इन विस्फोटों अर्थात समझौता एक्सप्रेस, मक्का मस्जिद विस्फोट और अजमेर विस्फोट से इन आरोपियों का कोई सम्बन्ध नहीं है। इस पूरे मामले में जिस प्रकार एटीएस ने अति सक्रियता दिखाई और जाँच को मीडिया केन्द्रित रखा उससे स्पष्ट है कि एटीएस निष्पक्ष रूप से कार्य करने को स्वतंत्र नहीं है। इस बीच एटीएस का बयान देना फिर खण्डन करने का दौर भी चलता रहा। यहाँ तक कि समझौता एक्सप्रेस में आरडीएक्स से विस्फोट करने की कहानी आयी और फिर उसका खण्डन एटीएस ने किया।
इन बयानबाजियों के बाद पूरी कहानी में मोड आया जब मालेगाँव विस्फोट के दायरे को बढा कर कुछ वर्ष पूर्व हुए बम विस्फोटों की सीबीआई जाँच को भी इसके साथ जोड दिया गया। यह प्रयास भी यही सिद्ध करता है कि अब इतनी सक्रियता क्यों? आखिर इन मामलों की जाँच पहले क्यों नहीं की गयी और यदि की गयी तो क्या अब उस जाँच पर भरोसा नहीं रह गया।
वास्तव में एटीएस और उनके राजनीतिक आकाओं के सामने एक समस्या है कि इस पूरी जाँच को ये लोग दो स्तर पर प्रयोग करना चाहते थे। एक तो देश में हिन्दू आतंकवाद का एक सुव्यवस्थित नेटवर्क दिखाने का प्रयास ताकि न्यायालय में इसे साक्ष्य बनाया जा सके और सामान्य जनता को दिखाया जा सके कि देश में हिन्दू आतंकवाद है। वास्तव में आतंकवाद की परिभाषा है और इसके अनुसार आतंकवाद के लिये एक नेट्वर्क होना चाहिये, उसकी वित्तीय सहायता होनी चाहिये, आतंकवादियों के प्रशिक्षण के लिये लोग और हथियार होने चाहिये, आतंकवादियों को हथियार मिलने चाहिये और उसे उपलब्ध कराने वाले लोग चाहिये। यही कारण है कि एटीएस ने इन तथ्यों के लिये साक्ष्य प्राप्त करने में गोपनीयता बरतने के स्थान पर मीडिया को समय समय पर लीक किया और कुछ समाचार चैनलों और समाचार पत्रों को इस आधार पर कपोलकल्पित कहानियाँ बनाने का पूरा अवसर दिया।
लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में जो सर्वाधिक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है वह यह कि जिस प्रकार कुछ राजनीतिक दल और मीडिया संस्थान हिन्दू आतंकवाद की अवधारणा सृजित करने में दिन रात लगे हुए हैं उसके अपने निहितार्थ हैं।
अब कुछ समाचार चैनलों की अति सक्रियता पर दृष्टि डालें। स्टार न्यूज, एनडीटीवी और न्यूज 24 ने इस विषय में अति सक्रियता दिखाई। इसमें न्यूज 24 और एनडीटीवी की बात तो समझ में आती है कि एक तो कांग्रेस के बडे नेता का चैनल है और दूसरे का सम्बन्ध कम्युनिस्ट पार्टी से है। परंतु स्टार न्यूज की सक्रियता इस लिये महत्वपूर्ण है कि यहाँ पूरा जिम्मा इस चैनल में सबसे बडे पद पर बैठे एक सदस्य ने उठा रखा है जो एक समुदाय विशेष से हैं। इन सज्जन के बारे में बताया जाता है कि जब दिल्ली में जामिया नगर में एनकाउंटर हुआ था तो इन्होंने सभी मीडिया के लोगों को एसएमएस कर आग्रह किया था कि इस पूरे मामले में संयम रखें और जामिया नगर का नाम न लें और न ही जामिया मिलिया विश्वविद्यालय का नाम लें क्योंकि इससे स्थान और संस्थान बदनाम होता है। इसके साथ ही उनका तर्क था कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। लेकिन यही सिद्धांत तब गायब हो गया जब मालेग़ाँव में हिन्दू आरोपी बनाये गये। ये सज्जन पूरे मामले में व्यक्तिगत रूचि लेकर न्यूज फ्लैश चलाने से लेकर स्क्रिप्ट बनाने तक का पूरा विषय स्वयं देखते हैं और पूरे चैनल को इनका निर्देश है कि मालेगाँव मामले को विशेष कवरेज दिया जाये। इन सज्जन की व्यक्तिगत रूचि थी कि साध्वी की दीक्षा को इन्होंने आतंकवाद से जोड्ने का प्रयास किया। साध्वी प्रज्ञा के गुरु को ललकारा और कहा कि वे भाग खडे हुए हैं। जबकि बाद में इन्हीं संत ने अपनी प्रेस कांफ्रेस में बताया कि वे कथाओं में व्यस्त थे और उनकी कथाओं का सीधा प्रसारण कुछ टीवी चैनल पर भी हो रहा था। इसी प्रकार इन सज्जन ने श्री श्री रविशंकर को भी इस पूरे मामले में घसीटने का प्रयास किया।
आज यदि स्टार न्यूज को ध्यान से देखा जाये तो यह बात साफ तौर पर दिखाई देती है कि इस चैनल की मालेग़ाव विस्फोट की जाँच में विशेष रूचि है। यह मामला अत्यंत संवेदनशील है कि यदि किसी चैनल के शीर्ष पद पर बैठा कोई व्यक्ति पत्रकारिता के सिद्धांतों के अतिरिक्त किसी अन्य भाव से प्रेरित है तो यह बात निश्चय ही चौंकाने वाली है।
स्टार न्यूज ने मकोका अदालत में मालेगाँव विस्फोट के 7 आरोपियों की पेशी पर जिस प्रकार स्वयं अदालत से पहले निर्णय सुना दिया और संवाददाता शीला रावल ने मकोका अदालत में साध्वी के आरोपों पर सुनवाई से पूर्व ही अपना निर्णय सुना दिया और कह दिया कि ये आरोप निराधार हैं और इन्हें सिद्ध करना साध्वी और अन्य आरोपियों के लिये आसान नहीं होगा। यह जल्दबाजी क्यों जबकि मकोका अदालत इन आरोपों पर सुनवाई मंगलवार को करेगी। सारे चैनल जब साध्वी के आरोपों पर एटीएस को घेर रहे थे उस समय स्टार न्यूज का एटीएस की पैरवी करना कुछ सन्देह पैदा करता है। आखिर स्टार न्यूज ने यही पुलिस प्रेम जामिया नगर एनकाउंटर में क्यों नहीं दिखाया था? यही नहीं यदि मीडिया का कार्य सूचनाओं को सामने लाना ही है तो एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे के बारे में कुछ समाचार माध्यमों में सनसनीखेज तथ्य आने पर इस बारे में कोई खोज क्यों नहीं हुई कि जब वे रोजा इफ्तार में कांग्रेस की पार्टी में शामिल हुए। अपने पुत्र के सऊदी अरब के व्यवसाय में वे कांग्रेसी नेताओं के सम्पर्क का लाभ उठाते हैं और इससे भी बडी बात कि वे पहले रा ( रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) में थे और कन्धार विमान अपहरण में अपनी लापरवाही के चलते वहाँ से हटा दिये गये थे। बाद में काफी लाबिंग के बाद वे महाराष्ट्र एटीएस के प्रमुख बने। अब सारे न्यूज चैनल जो हिन्दू आतंकवाद से सम्बन्धित सारी खोजी पत्रकारिता कर रहे हैं इस मामले में कोई खोज क्यों नहीं करते जबकि यह अत्यंत गम्भीर तथ्य हैं।
मालेगाँव विस्फोट की पूरी जाँच ने भारत में एक नये युग का पदार्पण किया है और इससे देश में राजनीतिक, बौद्धिक और मानवाधिकार के स्तर पर एक स्पष्ट ध्रवीकरण देखने को मिल रहा है। आज देश में सेक्युलरिज्म के नाम पर राजनीति कर रहे दल, कुछ मीडिया संस्थान, मानवाधिकार संगठन और बुद्धिजीवी लोग पूरी तरह मुस्लिम परस्त और एकांगी हो गये हैं। इस जाँच ने एक बडा जटिल सवाल खडा किया है कि हिन्दू जिसका इस विश्व में केवल एक देश है और बहुसंख्यक होकर भी अपने देश में बेबस है तो वह क्या करे? आखिर बिडम्बना देखिये कि देश में जेहाद के नाम पर इस्लाम और अल्लाह के नाम पर इस्लामी आतंकवादी मन्दिरों, संसद और बाजारों में आक्रमण करते हैं और निर्दोष हिन्दुओं का खून बहाते हैं और फिर सरकार इस्लामी आतंकवाद से लड्ने के स्थान पर हिन्दुओं को अपमानित, लाँक्षित और प्रताडित करती है। इस विषम स्थिति का क्या करें कि दोनों ओर से हिन्दुओं को ही मरना है आतंकवादी आक्रमण मुसलमान करें, जेहाद वे करें, चिल्ला चिल्ला कर कहें कि हम इस्लाम और अल्लाह के नाम पर हिन्दुओं को मार रहे हैं तो मुस्लिम समाज को खुश करने के लिये और इस्लाम की छवि सुधारने के लिये हिन्दुओं को प्रताडित किया जाये। ऐसा न्याय और आतंकवाद के विरुद्ध ऐसी लडाई विश्व के किसी कोने में न तो लडी गयी और न भविष्य में लडी जायेगी। अमेरिका और यूरोप ने अपने देशों पर हुए आक्रमणों के बाद इस्लामी आतंकवाद का उत्तर ईसाई आतंकवाद की अवधारणा सृजित कर नहीं दिया और न ही इजरायल ने इस्लामी आतंकवाद के समानान्तर यहूदी आतंकवाद को सृजित किया फिर भारत में ऐसा आत्मघाती कदम क्यों?
आज इस विषय पर बहस होनी चाहिये कि सेक्युलर दल और मीडिया ऐसा केवल वोट बैंक की राजनीति के चलते कर रहे हैं या फिर इसके पीछे कोई अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र है। अभी एक दिन पूर्व कुछ समाचार पत्रों ने समाचार प्रकाशित किया कि खुफिया एजेंसियाँ उन संतों और संगठनों पर नजर रखे हुए हैं जिनमे इजरायल के साथ अच्छे सम्बन्ध हैं क्योंकि उन्हें शक है कि कहीं एक लोग इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद से तो नहीं जुडे हैं। अर्थात भारत को एक सक्षम, सशक्त और सम्पन्न बनाने के गैर सरकारी प्रयासों के लिये समाज में शंका का भाव उत्पन्न किया जा रहा है।
जिस देश में सेक्युलरिज्म के नाम पर कोयम्बटूर बम धमाकों के आरोपी को सरकार के आदेश पर जेल में पंच सितारा सुविधायें दी जाती हैं। जिस देश में फिलीस्तीनी नेता और सैकडों यहूदियों को इंतिफादा में मरवाने वाले यासिर अराफात के नाम पर केरल के विधानसभा चुनावों में वोट माँगे जाते हैं उसी देश में खुफिया एजेंसियों को आदेश दिया जाता है कि इजरायल के साथ सम्बन्ध रखने वालों पर नजर रखी जाये।
मालेगाँव विस्फोट की जाँच को इसके व्यापक दायरे में समझने की आवश्यकता है यह विषय वोट बैंक की राजनीति से भी बडा है और ऐसा प्रतीत होता है कि शरियत के आधार पर विश्व पर शासन करने की आकाँक्षा से प्रेरित इस्लामवादी आन्दोलन ने भारत की व्यवस्था में अपनी जडें जमा ली हैं और व्यवस्था उनका सहयोग कर रही है और देश में हर उस प्रयास और संस्था को कमजोर करने का प्रयास हो रहा है जो इस्लामवादी और जेहादी आन्दोलन को चुनौती दे सकता है।
हिन्दू होना अपराध हो गया?
आज जब मैं यह लेख लिखने बैठा तो मुझे पहली बार आभास हुआ कि 1975 में आपातकाल के समय देश में क्या वातावरण रहा होगा? देश की स्वतंत्रता के श्रेय का पेटेंट कराने वाला देश का सबसे पुराना राजनीतिक दल जब देश की अखण्डता और एकता की बात करता है तो यह सबसे बडा मजाक लगता है और ऐसा लगता है कि ये शब्द या तो इनके लिये मायने खो चुके हैं या फिर इनके लिये देश की अखण्डता और एकता का अर्थ हिन्दुओं का अपमान और तिरस्कार है। 29 सितम्बर को मालेगाँव धमाके की जाँच को लेकर जो रवैया केन्द्र सरकार उसके सहयोगियों और मीडिया ने अपना रखा है उससे तो लगता है कि हिन्दू हित की बात करने से किसी को भी भी आतंकवादी सिद्ध किया जा सकता है। उसके लिये केवल किसी हिन्दू संगठन से जुडा होना, देश की स्वतंत्रता का मूल्याँकन करते हुए काँग्रेस की भूमिका की समीक्षा करते दिखना चाहिये और हिन्दू स्वाभिमान की बात करते हुए दिखाई देना चाहिये। मालेगाँव धमाके की जाँच के बाद से देश में अघोषित आपातकाल का वातावरण बना दिया गया है और एटीएस मीडिया के साथ मिलकर न्यायालय से पहले ही किसी को भी अभियुक्त सिद्ध कर दे रहा है, किसी भी संत, राजनेता का नाम सन्देह के दायरे में लाकर खडा कर दे रहा है। परंतु उसके बाद सूचना असत्य होने पर किसी भी प्रकार का खेद प्रकाश नहीं किया जा रहा है। इस पूरे प्रकरण में जिस प्रकार मीडिया का उपयोग एटीएस ने किया है वह और भी चिंताजनक है। भारत में मीडिया और राजनीतिक दल जिस प्रकार राजनीतिक रूप से सही होने के सिद्धांत का पालन केवल मुस्लिम समाज की भावनाओं के लिये करते हैं वह और भी चिंताजनक है। देश में पिछले वर्षों में अनेक आतंकवादी आक्रमण हुए और सभी आक्रमणों में इस्लामी संगठन लिप्त पाये गये फिर भी जाँच एजेंसियों ने कभी भी मीडिया को ऐसे उपयोग नहीं किया और न हि मीडिया संगठनों ने इस प्रकार साहस पूर्वक खडे होकर मस्जिदों में इमामों या मुस्लिम धर्मगुरुओं के ऊपर कोई कहानी बनाई। आखिर ऐसा क्यों? अभी कुछ दिन पहले पहले आजमग़ढ में एक मुस्लिम सम्मेलन में भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार बल्लभभाई पटेल को नाथूराम गोड्से के बाद दूसरा आतंकवादी घोषित किया गया परंतु किसी टीवी चैनल ने इस सम्मेलन का लाइव नहीं किया क्यों? इसी प्रकार जब भी आतंकवादी आक्रमणों की जाँच के सिलसिले में किसी मस्जिद के इमाम या मौलवी से पूछताछ होने को हुई तो मुस्लिम समाज सड्कों पर उतरा लेकिन जनता को सच्चाई बताने का दावा करने वाले मीडिया संगठनों ने ऐसे स्थलों पर अपने संवाददाताओं को भेजना भी उचित नहीं समझा क्यों? इसका सीधा उत्तर है कि मीडिया भी जानता है कि कौन हिंसक प्रतिरोध कर सकता है और कौन सिर नीचे करके अपने धर्म का अपमान सहन कर सकता है।
जब से मालेगाँव विस्फोट की जाँच आरम्भ हुई है एक प्रकार का प्रचार युद्ध चलाया जा रहा है और इसमें मीडिया जाने अनजाने उपयोग हो रहा है। जिस दिन विस्फोट के सम्बन्ध में साध्वी प्रज्ञा को गिरफ्तार किया गया उसी दिन कांग्रेस के नेता राजीव शुक्ला के टीवी चैनल न्यूज 24 पर एक विशेष कार्यक्रम प्रसारित हुआ और साध्वी को हिन्दू आतंकवादी घोषित कर दिया गया। यह वही चैनल है जो मालेग़ाँव विस्फोट से पूर्व किसी भी आतंकवादी आक्रमण के बाद यही कहता था कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। इसके बाद इंडिया टीवी ने प्रज्ञा साध्वी के गुरु द्वारा दिये गये दीक्षा मंत्र को आतंक का मंत्र घोषित करना आरम्भ कर दिया। इसी बीच साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित के नार्को टेस्ट और ब्रेन मैपिंग के बाद आज तक ने दहाड दहाड कर आवाज लगाई कि हरियाणा का आनन्द मन्दिर ही वह स्थान है जहाँ आतंकी हमले की साजिश रची गयी। संवाददाता एक ओर मन्दिर के अहाते में खडा होकर कह रहा था कि यही वह जगह है जहाँ मालेगाँव विस्फोट की साजिश रची गयी तो वहीं कुछ सेकण्ड बाद हरियाणा पुलिस का बयान आ रहा था कि इस प्रदेश में अनेक आनन्द मन्दिर हैं और यह पता नहीं कि एटीएस किस आनन्द मन्दिर की बात कर रही है। अब प्रश्न यह है कि ऐसे गैर जिम्मेदार समाचारों को क्या नाम दिया जाये।
मीडिया के गैरजिम्मेदारान रवैये का सबसे बडा उदाहरण तो यह है कि उत्तर प्रदेश में एटीएस के आते ही जिस प्रकार धर्मगुरु शब्द का प्रयोग कर सभी धर्मगुरुओं का मीडिया ट्रायल किया गया और यह क्रम दो दिनों तक चलता रहा और कभी किसी स्वामी का नाम तो कभी किसी स्वामी का नाम चटखारे ले लेकर लिया जाता रहा वह आखिर किस मानसिकता का परिचायक है। यह पहला अवसर नहीं है जब मीडिया ने किसी व्यक्ति या संस्था की अवमानना की हो और बेशर्मी से कभी यह भी न कहा हो कि उससे भूल हुई या उसे खेद है। मैं इस सम्बन्ध में क्रिकेट का एक उदाहरण देना चाहता हूं कि किस प्रकार 2000-1 में भारत को एकमात्र विश्व कप दिलाने वाले कप्तान कपिल देव के ऊपर क्रिकेट खिलाडी मनोज प्रभाकर द्वारा लगाये गये मैच फिक्सिंग के आरोप को लेकर मीडिया ने उनका मीडिया ट्रायल किया था और बाद में उनके आरोपमुक्त होने पर कभी यह भी नहीं सोचा कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। आज वही कपिल देव और 1983 विश्व कप मीडिया का सबसे बडा बिकाऊ माल है।
इसी प्रकार एक उदाहरण प्रसिद्ध समाचार चैनल स्टार न्यूज चैनल से सम्बन्धित है जब काँची के शंकराचार्य की गिरफ्तारी के बाद इस चैनल की संवाददाता शीला रावल ने काँची मठ से रिपोर्ट दी कि शंकराचार्य ने जाँच एजेंसियों से समक्ष रोते हुए अपनी भूल मानकर हत्या में संलिप्त्ता मान ली है यदि यह समाचार उस समय सही था तो शंकराचार्य को न्यायालय से सजा क्यों नहीं दी? लेकिन इस चैनल ने शंकराचार्य के रिहा होने पर यह याद भी नहीं किया होगा कि उसकी ओर से ऐसा कोई समाचार प्रसारित हुआ था। इसी प्रकार कितने ही उदाहरण हैं जब हिन्दू धर्मगुरुओं का उपहास किया गया, उनके ऊपर आरोप लगाये गये, उन्हें असम्मानित ढंग से सम्बोधित किया गया पर ऐसा साहस न तो कभी इस्लाम के सम्बन्ध में किया गया और न ही ईसाई धर्म के सम्बन्ध में। आखिर यह कैसा सेक्युलरिज्म है जो कहता है कि हिन्दू को बिना आरोप दोषी सिद्द कर दो और मुसलमानों के सम्बन्ध में कहो कि किसी समुदाय विशेष ने ऐसा किया वैसा किया।
आज देश में यदि मीडिया या राजनेता एकाँगी सेक्युलरिज्म का पालन कर रहे हैं तो उसके पीछे केवल यही कारण है कि हिन्दू की स्थिति एक गाय की तरह है जो मक्खी हटाने के लिये केवल पूँछ का प्रयोग करती है और सींग का उपयोग करना तो उसे आता ही नहीं।
मालेगाँव विस्फोट की जाँच भारतीय समाज और राजनीति के लिये एक टर्निंग प्वाइंट है। इस जाँच के दौरान मुझे व्यक्तिगत रूप से अनेक प्रदेशों का दौरा करने का अवसर मिला और इसमें से कुछ वे प्रदेश भी हैं जहाँ विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। इन प्रदेशों में सामान्य लोगों से बातचीत में जो बात उभर कर आयी वह दीर्घगामी स्तर पर उन नेताओं के लिये शुभ नहीं है जो मुस्लिम वोट के लिये हिन्दुओं को अपमानित करने के बाद भी हिन्दुओं के वोट की आस लगाये हैं। मध्य प्रदेश में मैं कुछ क्षणों के लिये एक नाई की दूकान पर ठहरा और प्रज्ञा मामले में पूछने लगा तो उसकी सहज सामान्य बात सुनकर सोचने को विवश हुआ कि यदि हमारी राजनीति देश में ऐसा विभाजन कर रही है तो इसका परिणाम क्या होगा? उस नाई ने सहज रूप में कहा कि देखिये देश तो पूरी तरह विभाजित हो चुका है और कांग्रेस मुसलमानों की पार्टी है और भाजपा हिन्दुओं की। मैने पूछा कि ऐसा उसे क्यों लगता है तो उसका उत्तर किसी बडे विशेषज्ञ या मँजे हुए की भाँति था कि देश में पिछले अनेक वर्षों में कितने ही आतंकवादी विस्फोट हुए हैं पर किसी भी मामले में आरोपी पकडे नहीं गये और यदि पकडे भी गये तो उन्हें जेल में बैठा कर रखा गया और अब चुनाव को देखकर कांग्रेस साध्वी प्रज्ञा को मोहरा बना रही है। यही भाव मुझे सर्वत्र दिखाई दिया। और तो और अनेक सम्पन्न और सम्भ्रांत लोग तो साध्वी प्रज्ञा को साहस का प्रतीक मानकर उसका अभिनन्दन करते हैं और इसे हिन्दू शौर्य का प्रकटीकरण मानने से संकोच नहीं करते।
अनेक प्रदेशों में ग्रामीण क्षेत्रों में भी दौरा करते हुए मैने यही पाया कि पिछले चार वर्षों में जिस प्रकार केन्द्र सरकार ने आतंकवाद के प्रति नरमी दिखाई उसे वोटबैंक से जोडकर देखा जा रहा है और अब अचानक सरकार जिस प्रकार हिन्दू आतंकवाद की अवधारणा का सृजन कर इस्लामी आतंकवाद को संतुलित करने का प्रयास कर रही है उससे देश में साम्प्रदायिक विभाजन और ध्रुवीकरण अधिक तीव्र हो गया है। आज आतंकवाद पर चर्चा केवल शहरों या महानगरों तक सीमित नहीं है। हर दो तीन गाँवों के आसपास छोटा बडा बाजार है और इन बाजारों में युवा उसी प्रकार एकत्र होता है जैसे नगरों में और उन्हीं विषयों पर चर्चा करता है जैसा नगर के युवक करते हैं। उसकी चर्चा क्रिकेट, फिल्म, देश की आंतरिक और विदेश नीति, अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव से लेकर ओसामा बिन लादेन, तालिबान और देश में पनप रहे आतंकवाद तक होती है। देश में आ रहे इस परिवर्तन को हमारे राजनेता समझने में असफल हैं और देश को नगर और गाँव के रूप में विभाजित कर इस बात की खुशफहमी पाले बैठे हैं कि गाँव की भोली जनता अब भी उनके तर्कों से भी प्रभावित होती है और उसका अपना कोई वैचारिक आधार नहीं है। यही परिवर्तन पिछले कुछ वर्षों में कांग्रेस की लगातार हो रही पराजय का कारण है और अब जिस प्रकार कांग्रेस ने मुस्लिम वोट प्राप्त करने के लिये न्यूनतम राजनीतिक हथखण्डे अपनाये हैं उससे उसकी छवि में काफी गिरावट आयी है।
पिछ्ले कुछ वर्षों में देश में हिन्दुओं की धर्म और संस्कृति के प्रति बढ रही आकाँक्षा को नजरअन्दाज किया गया है। 1990 के दशक से हुए आर्थिक उदारीकरण और वैश्वीकरण के बाद जिस प्रकार सूचना की अबाध प्राप्ति होने लगी और विदेशों में बसे हिन्दुओं को अपनी जडों और अपनी नयी पीढी को संस्कारित करने की प्रवृत्ति बढी तो अनिवासी हिन्दुओं में भारत की हिन्दू पहचान को लेकर जो उत्सुकता बढी उससे भारत में बसे हिन्दुओं में पिछली पीढी की अपेक्षा हीन भावना कम हो गयी और यही कारण है कि भारत की नयी पीढी का रूझान एक ऐसे राष्ट्रवाद के प्रति है जो कांग्रेसी राष्ट्रवाद नहीं वरन हिन्दुत्व आधारित राष्ट्रवाद है।
मीडिया और अधिकाँश राजनीतिक दल यदि इस बदलाव को अनुभव कर पाते तो शायद वे देश के साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण को कुछ हद तक रोक पाते लेकिन कांग्रेस सहित तमाम सेक्युलर दल यह भूल 1991 के बाद से लगातार करते आ रहे हैं। पहले राम मन्दिर आन्दोलन को समझने की भूल, फिर गोधरा काँड के बाद हुए दंगों को समझने की भूल और अब आतंकवाद के इस्लामी स्वरूप को समझकर उसका समाधान न कर पाने की भूल दीर्घगामी स्तर पर अत्यंत खतरनाक सिद्ध होने वाली है।
आज देश में मीडिया, सेक्युलर दलों को इस बात पर शोध करना चाहिये कि इनके सेक्युलरिज्म के प्रचार के बाद भी हिन्दुत्ववादी संगठनों का समाज पर क्यों बढ्ता जा रहा है। इस पर गम्भीर शोध की आवश्यकता है न कि खीझ में आकर उन्हें गाली देकर बदनाम करने की। आज यदि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विहिप या भाजपा का विस्तार हो रहा है और उन्हें साम्प्रदायिक और देश की एकता के लिये खतरनाक बताने के बाद भी जनता का विश्वास उनके साथ है तो निश्चित ही इसके पीछे कोई ठोस कारण होगा। आज यदि मीडिया और सेक्युलर दल इस कारण के मूल में जाने का प्रयास करते तो उन्हें सार्थक उत्तर मिलते कि किस प्रकार देश में बहुसंख्यक अपने ही देश में डरा और सहमा है। उसकी अतीन्द्रिय मानसिकता में मुस्लिम शासन की 600 वर्ष की पराधीनता और अफगानिस्तान में तालिबान शासन की भयावह तस्वीर गहरी जड जमा चुकी है। विश्व पर शासन की आकाँक्षा लिये कट्टरपंथी इस्लाम का आन्दोलन उसके लिये दुस्वप्न सा लगता है और अपने ही देश में धिम्मी होने का भय किसी भी प्रकार नहीं जाता और ऐसे में सेक्युलरिज्म के नाम पर जब हिन्दू लाँछित और अपमानित होता है तो उसका भय और भी बढ्ता है।
जिस देश में प्रधानमंत्री को मुस्लिम के आरोपी बनाये जाने पर या सन्देह के आरोप में आस्ट्रेलिया में हिरासत में लेने पर रात भर नींद नहीं आती उसी प्रधानमंत्री की ओर से कोई बयान तब नहीं आता जब उडीसा में 40 वर्षों से आदिवासियों की सेवा कर रहे हिन्दू संत की 84 वर्ष की अवस्था में हत्या कर दी जाती है। क्या भारत के कांग्रेसी प्रधानमंत्री की संवेदना भी सेक्युलर है जो तभी विचलित होती है जब मुसलमान या ईसाई को दर्द होता है। जिस देश में करोडों रूपये हज सब्सिडी पर दिये जाते हैं उसी देश में हिन्दुओं को जम्मू में अपनी तीर्थयात्रा के लिये भूमि के लिये संघर्ष करना पड्ता है। जिस देश में संसद पर आक्रमण के लिये मृत्युदण्ड प्राप्त आतंकवादी को फाँसी नहीं होती और उसका खुलेमाम बचाव किया जाता है वहीं मालेग़ाँव विस्फोट के लिये आरोपी बनायी गयी साध्वी को मीडिया द्वारा दोषी सिद्ध होने से पहले ही आतंकवादी ठहरा दिया जाता है। केन्द्र सरकार के घटक दल खुलेआम इस्लामी आतंकवादी संगठन सिमी के पक्ष में बोलते हैं और बांग्लादेशी घुसपैठियों को देश की नागरिकता देने की वकालत करते हैं और विद्या भारती द्वारा संचालित विद्यालयों के पाठ्यक्रम को प्रतिबन्धित करने की बात करते हैं क्योंकि वे शिवाजी, राणाप्रताप को आदर्श पुरुष बताते हैं। रामविलास पासवान का तर्क है कि विद्याभारती के विद्यालय गान्धी के स्वाधीनता आन्दोलन में भूमिका पर प्रश्न खडे करते हैं इसलिये इस पर प्रतिबन्ध लगना चाहिये। अर्थात देश में विचारों की स्वतंत्रता पर आघात होगा।
इतना तो स्पष्ट है कि हिन्दू धर्म और संस्कृति एक बार फिर अत्यंत कठिन दौर से गुजर रहा है जब सेक्युलरिज्म के नाम पर हिन्दू होना अपराध ठहराने का प्रयास किया जा रहा है।
इतना तो स्पष्ट है कि हिन्दू धर्म और संस्कृति एक बार फिर अत्यंत कठिन दौर से गुजर रहा है जब सेक्युलरिज्म के नाम पर हिन्दू होना अपराध ठहराने का प्रयास किया जा रहा है।
HINDU JAGRAN MANCH (हिन्दू जागरण मंच): आज देश की राजनीति में सबसे पहली प्राथमिकता है , कौ...
HINDU JAGRAN MANCH (हिन्दू जागरण मंच): आज देश की राजनीति में सबसे पहली प्राथमिकता है , कौ...: आज जहां एक ओर देश की अस्सी प्रतिशत से अधिक आवादी महगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से त्रस्त है, वहीं दूसरी ओर सत्ता का मजा लूट रहे लोग, सार्...
आज देश की राजनीति में सबसे पहली प्राथमिकता है , कौंग्रेस का कोई मजबूत विकल्प ढूंढना ।
आज जहां एक ओर देश की अस्सी प्रतिशत से अधिक आवादी महगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से त्रस्त है, वहीं दूसरी ओर सत्ता का मजा लूट रहे लोग, सार्वजनिक धन को दोनो हाथों से समेट लेने पर आम्दा है। विकास के नाम पर जहां एक ओर सार्वजनिक धन, जो कि जनता से ही भिन्न-भिन्न टै़क्स के रूप मे वसूला जाता है, को कुछ लोगो के फ़ायदे के लिये दोनो हाथो से लुटाया जा रहा है। पहले जानबूझकर धन और संसाधनो की कमी का रोना रोकर या फिर किसी और बहाने से, किसी भी परियोजना को अधर मे लटका दिया जाता है, और फिर भ्रष्ठ तरीके अपनाने के लिये समय सीमा बांध दी जाती है। जबाबदेही नाम की तो कोई चीज देश मे रह ही नही गई है। सरकार, लोगो को लूटने के नित नये तरीके इजाद करती रहती है । यहाँ टैक्स, वहाँ टैक्स। महंगाई की इस मार में अगर कोई व्यक्ति परिवार के साथ यात्रा कर रहा है तो उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में सड़क छाप ढाबे भी १३.५ % वेट वसूल रहे है ! यानी परिवार संग ४०० रूपये का खाना ( जिसमे कि कुछ भी नहीं मिलता ) आपने इन ढाबो में खाया तो करीब ५५ रूपये सरकार के खाते में टैक्स भी भरो । जहां एक तरफ २००५ पांच में पिछले वित् मंत्री द्वारा वेतन भोगी कर्मचारियों के जिन भत्तो को कर्मचारी की आय से अलग कर दिया गया था, उन्हें फिर से नए वितमंत्री ने पुन: पुरानी बोतल में नई शराब की माफिक परोस दिया, वह भी अप्रैल २००९ से । और तो और जो कर्मचारी टैक्स के दायरे में नहीं आते, उन्हें ई एस आई नामक झुनझुने के तहत १५०००/- रूपये मासिक वेतन तक प्राप्त करने वाले कर्मचारी को इस दायरे में लाकर कायदे से ७५०/- ( पांच प्रतिशत, और सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं ) रूपये प्रतिमाह का उस पर भी एक टैक्स के समान बोझ डाल दिया है। दूसरी तरफ जो मुख्य मुद्दे है जैसे रेल घोटाला, खाद्यान घोटाला इत्यादि उन पर कोई न तो चर्चा को ही तैयार दीखता है और न कोई जबाबदेह । कितनी हास्यास्पद बात है कि एक ही प्रधान मंत्री के दो कार्यकालों में उनके मंत्रीमंडल के दो रेल मंत्रियों में से कोई एक देश को ५० हजार करोड से अधिक के आंकड़ो के हेरफेर से गुमराह कर रहा है, और हमारे प्रधान मंत्री जी अपनी बेदाग़ सवच्छ छवि बनाए बैठे है, मानो उनकी इसमें अपनी कोई जबाबदेही ही नहीं ।
उपरोक्त बातो पर गौर करते हुए मेरा यह मानना है कि कौंग्रेस और अन्य तथाकथित सेकुलर और साम्प्रदायिक राजनैतिक दल हमेशा इसी तथ्य को आधार मानकर राजनीति करते है कि वोटर को कभी भी भरपेट मत खाने दो, और रोटी कपड़ा और मकान में ही उलझाये रखो । ताकि वह इनके कामकाज पर उंगली उठाने की फुरसत भी न प्राप्त कर सके । दूसरी तरफ जिस राजनैतिक दल को ऐसे वक्त पर एक जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभानी चाहिये थी, वह अपनी गैर -जिम्मेदाराना हरकतों से खुद ही एक हास्य का पात्र बने बैठे है। समाज के पढ़े लिखे एक विशिष्ठ वर्ग की बीजेपी से उम्मीदे थी कि ये अपनी अलग छवि बनाए रखते हुए, इस देश को सही प्रतिनिधित्व प्रदान करेंगे, मगर वक्त आने पर इन्होने भी लोगो को निराश करने और अपने मानसिक दिवालियेपन का नमूना पेश करने में कोई कसार बाकी नहीं छोडी ! अभी ताजा उदाहरण झारखंड है, जहां इन्होने सत्ता की भूख में खुद ही अपनी पोल खोल दी।
हमारे देश की राजनीति आज जिस अभद्र मोड़ पर पहुँच चुकी है, जरुरत है उसमे मूलभूत राजनैतिक सुधारो की, अन्यथा आने वाले वक्त में देश को इसकी भारी कीमत भी चुकानी पड़ सकती है। आज देश की राजनीति में सबसे पहली प्राथमिकता है , कौंग्रेस का कोई मजबूत विकल्प ढूंढना । और यह विकल्प वर्तमान में मौजूद राजनेतावो और राजनैतिक दलों में से नहीं ढूंडा जा सकता, क्योंकि एक अगर सांपनाथ है तो दूसरा नागनाथ । जो लोग आज वास्तव में देश की मौजूदा राजनैतिक स्थिति से चिंतित है और इनमे मूल भूत सुधार लाने के लिए अच्छे लोगो को राजनीति में प्रतिनिधित्व दिला पाने में सक्षम है, उन्हें गंभीरता से इस बारे में सोचना होगा और एक नया राजनैतिक दल कौंग्रेस के विकल्प के रूप में खडा करना होगा । और यह तभी संभव है जब हम मिलजुलकर यह सोचना बंद करे कि बीजेपी, कौंग्रेस का एक मजबूत विकल्प हो सकती है। क्योंकि बीजेपी अभी तक कहीं भी इस मुद्दे पर खरी नहीं उतरी है। और जब तक यह बीजेपी वाला मोह शिक्षित समाज में रहेगा, हम कौंग्रेस का कोई मजबूत विकल्प नहीं ढूंढ सकते ।
उपरोक्त बातो पर गौर करते हुए मेरा यह मानना है कि कौंग्रेस और अन्य तथाकथित सेकुलर और साम्प्रदायिक राजनैतिक दल हमेशा इसी तथ्य को आधार मानकर राजनीति करते है कि वोटर को कभी भी भरपेट मत खाने दो, और रोटी कपड़ा और मकान में ही उलझाये रखो । ताकि वह इनके कामकाज पर उंगली उठाने की फुरसत भी न प्राप्त कर सके । दूसरी तरफ जिस राजनैतिक दल को ऐसे वक्त पर एक जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभानी चाहिये थी, वह अपनी गैर -जिम्मेदाराना हरकतों से खुद ही एक हास्य का पात्र बने बैठे है। समाज के पढ़े लिखे एक विशिष्ठ वर्ग की बीजेपी से उम्मीदे थी कि ये अपनी अलग छवि बनाए रखते हुए, इस देश को सही प्रतिनिधित्व प्रदान करेंगे, मगर वक्त आने पर इन्होने भी लोगो को निराश करने और अपने मानसिक दिवालियेपन का नमूना पेश करने में कोई कसार बाकी नहीं छोडी ! अभी ताजा उदाहरण झारखंड है, जहां इन्होने सत्ता की भूख में खुद ही अपनी पोल खोल दी।
हमारे देश की राजनीति आज जिस अभद्र मोड़ पर पहुँच चुकी है, जरुरत है उसमे मूलभूत राजनैतिक सुधारो की, अन्यथा आने वाले वक्त में देश को इसकी भारी कीमत भी चुकानी पड़ सकती है। आज देश की राजनीति में सबसे पहली प्राथमिकता है , कौंग्रेस का कोई मजबूत विकल्प ढूंढना । और यह विकल्प वर्तमान में मौजूद राजनेतावो और राजनैतिक दलों में से नहीं ढूंडा जा सकता, क्योंकि एक अगर सांपनाथ है तो दूसरा नागनाथ । जो लोग आज वास्तव में देश की मौजूदा राजनैतिक स्थिति से चिंतित है और इनमे मूल भूत सुधार लाने के लिए अच्छे लोगो को राजनीति में प्रतिनिधित्व दिला पाने में सक्षम है, उन्हें गंभीरता से इस बारे में सोचना होगा और एक नया राजनैतिक दल कौंग्रेस के विकल्प के रूप में खडा करना होगा । और यह तभी संभव है जब हम मिलजुलकर यह सोचना बंद करे कि बीजेपी, कौंग्रेस का एक मजबूत विकल्प हो सकती है। क्योंकि बीजेपी अभी तक कहीं भी इस मुद्दे पर खरी नहीं उतरी है। और जब तक यह बीजेपी वाला मोह शिक्षित समाज में रहेगा, हम कौंग्रेस का कोई मजबूत विकल्प नहीं ढूंढ सकते ।
गिद्ध बैठे होंगे, प्रजातंत्र की डाल पर !
शहीदों ने कभी सोचा न होगा शायद इस सवाल पर,
इक रोज उनका मादरे वतन होगा अपने ही हाल पर।
आम-जन ढोता फिरेगा, अपने ही शव को काँधे लिए,
और पंख फैलाए गिद्ध बैठे होंगे,प्रजातंत्र की डाल पर॥
ख़त्म हो जायेगी कर्तव्यनिष्ठा,भ्रष्टाचार भरी सृष्ठि होगी,
कबूतरों का भेष धरके, देश पर बाजो की कुदृष्ठि होगी।
जहां 'शेर-ए-जंगल' लिखा होगा,हर गदहे की खाल पर,
और पंख फैलाये गिद्ध बैठे होंगे, प्रजातंत्र की डाल पर॥
बेरोजगारी व महंगाई से,गरीब का निकलता तेल होगा,
प्रतिष्ठा के नाम पर राष्ट्र के धन की,लूट का खेल होगा।
घर भरेगा कल का माड़ी आबरू वतन की उछाल कर,
और पंख फैलाये गिद्ध बैठे होंगे, प्रजातंत्र की डाल पर॥
क्या सोचकर इस जश्न मे शरीक होवे?
जहां तक इन्सानों का सवाल है, मै समझता हू कि इस दुनिया मे भिन्न-भिन्न विचारधाराओं मे चार प्रकार का दृष्टिकोण रख्नने वाले लोग पाये जाते है, पहला आशावादी और दूसरा निराशावादी ( ये दोनो ही मिश्रित दृष्टिकोण वाले भी कहे जा सकते है ) तीसरा होता है घोर आशावादी और चौथा घोर निराशावादी। घोर आशावादी और घोर निराशावादी इन्सान आप शेयर मार्केट के उन तेजडियों और मंदडियों को कह सकते है, जो बाजार मे विपरीत परिस्थितियां होने के बावजूद भी शेयरों से इसी उम्मीद पर खेलते है कि आज मार्केट चढेगा अथवा उतरेगा। यह कतई मत सोचिये कि मै आप लोगो को लेक्चर दे रहा हू, बस यूं समझिये कि भूमिका बंधा रहा हू। मालूम नही लोग इस लेख को पढ्कर मुझे उपरोक्त मे से किस श्रेणी मे रखते है लेकिन इतना जरूर कहुंगा कि वर्तमान परिस्थितियों मे मुझे तो दूर-दूर तक अपने इस दृष्टिकोण मे बद्लाव के लिये आशा की कोई किरण नजर नही आ रही।
जैसा कि आप सभी जानते है कि देश आज प्रत्यक्ष तौर पर अंग्रेजी दास्ता से मुक्ति की चौसठ्वी वर्षगाठ मना रहा है, यानि कहने को स्वराज मिले हुए त्रेसठ साल पूरे हो गये। लेकिन यहां के आम जन से मै कहुंगा कि अपने दिल पर हाथ रखकर पूछे कि क्या हम सचमुच मे आजाद है? क्या इसी रामराज के लिये अनेक स्वतन्त्रता संग्राम सैनानियो ने अपने तन, मन, धन की आहुति दी थी? क्या वर्तमान हालातों को देखकर आपको नही लगता कि आजादी सिर्फ़ उन कुछ चाटुकारों को मिली जिनके पुरखों ने पहले मंगोलो और मुगल आक्रमणकारी लुटेरों के तलवे चाटे, फिर अंग्रेजो की सेवा भक्ति मे अपना जीवन धन्य बनाया और आज कुर्सी के लिये किसी भी हद तक गिरकर सत्ता हथिया ली है?क्या आजादी सिर उनको नही मिली जो पहले काले कपडे पहनकर रात को लोगो के घरों मे सेंध लगा कर माल लूटते थे, अत्याचार करते थे और आज वे सफ़ेद पोशाकों मे खुले-आम लोकतंत्र की दुहाई देकर रौब से कर रहे है? क्या सही मायने मे आजादी उन मुसलमानों को नही मिली जो इस देश का एक बडा भू-भाग भी ले गये और आज तक हमारी छातियों मे मूंग दल रहे है? क्या आजादी उन मलाई खाने वाले आरक्षियों को नही मिली जो हमारा और हमारे बच्चो का इस बिनाह पर हक मार रहे है कि उनके पूर्वजों का हमारे पूर्वजों ने शोषण किया था, इसलिये वो आजादी का नाजायज फायदा ऊठाकर हमसे न सिर्फ़ बद्ला ले रहे है, बल्कि अकुशल और अक्षम होने के बावजूद भी उच्च पदों पर बैठकर न सिर्फ़ भ्रष्टाचार पैला रहे है अपितु अकुशलता की वजह से इस देश की परियोजनाओं की ऐसी-तैसी कर देश के आधारभूत ढांचे के लिये भविष्य के लिये खतरे के बीज बो रहे है?
देश प्रत्यक्षतौर पर आजाद हुआ, मगर हमे इससे क्या मिला? उल्टे हमारे समान रूप से जीने के अधिकारों को छीना जा रहा है। सत्ता पर काविज चोर-उच्चके दोनो हाथो से हमारी मेहनत की कमाई के टैक्स की रकम को लूटकर विदेशो मे उन्ही अंग्रेजो के बैंको मे उनके ऐशो आराम के लिये पहुंचा रहे है, जिनसे मिली आजादी का जश्न हम मना रहे है। इतनी आजादी तो हमारे पास अग्रेंजो के दौर मे भी थी, बल्कि यो कहे कि उन्होने सिर्फ़ वहा लोगो का दमन किया, जहां लोगो से उन्हे उनके एकछत्र राज को चुनौती मिली, अन्यथा तो मै समझता हू कि उन्होने किसी की व्यक्तिगत आजादी मे कोई हस्त:क्षेप नही किया। कानून व्यवस्था भी एकदम दुरस्थ रखी। जो लोग ये तर्क देते है कि उन्होने हमारे बीच फूट डालो और राज करो की नीति अपनाई, उनसे पूछ्ना चाहुंगा कि इस आजाद देश मे आज और भला क्या हो रहा है? हो सकता है कि बहुत से लोग मेरी उपरोक्त कही हुई बातों से इत्तेफाक न रखे मगर सच्चाई दुर्भाग्यबश यही है। और यह भी नही है कि इस आजदी से देश के किसी भी गरीब तबके को लाभ मिल रहा हो, बस फायदा वही उठा रहे है जो येन-केन प्रकारेण इस तथाकथित आजादी का फायदा उठाने के लिये किसी भी हद तक चले जाते है। मैने ऊपर प्रत्यक्ष आजादी शब्द का इस्तेमाल इसलिये किया क्योंकि कटुसत्य यह है कि अप्रत्यक्ष तौर पर हम आज भी ऐलिजाबेथ के ही गुलाम है। वो जो कुछ लोग तर्क देते है कि भले लोगो को आगे आकर इस देश की बागडोर सम्भालनी चाहिये, उनसे यही कहुंगा कि भले लोगो को इस देश के वोटर क्या सचमुच प्राथमिकता देते है? और दूसरा यह कि इन हालात मे सता तक पहुंचने के लिये कोइ भी ईमान्दार इन्सान उस हद तक नही गिर सकता, जिस हद तक ये आज के ज्यादातर पोलीटीशियन गिरते है।
और हमारे युवा वर्ग को समझना होगा कि दुर्भाग्य बश हमारे देश का यह लम्बा इतिहास रहा है कि इसे बार-बार गुलामियों का दर्द झेलना पडा, और आज जो हालात बनते जा रहे है वो हमे एक और प्रत्यक्ष गुलामी की ओर धकेल सकते है। आज के युवा-वर्ग को समझना होगा कि भ्रष्ठाचार और दगाबाजी हम हिन्दुस्तानियों के खून मे है, जिसे प्युरिफ़ाई करने की सख्त जरुरत है। जब हम लोग देश मे कुछ गलत होता देखते, सुनते है तो तुरन्त यह कहते है कि अशिक्षा की वजह से ऐसा हो रहा है। लेकिन नही यह तर्क भी सरासर गलत है। आपने देखा होगा कि हाल ही मे हमारे उच्च शिक्षित लोगो जैसे थरूर, कौमन वेल्थ के दरवारी इत्यादी ( लम्बी लिस्ट है) ने भी हमे निराश ही किया है। आप देखिये कि आज जब हम किसी विमान मे यात्रा कर रहे होते है तो यह मान कर चलिये कि उसमे से १००% लोग उच्च शिक्षित होते है, कितने लोग विमान परिचालकों के निर्देश का ईमान्दारी से पालन करते है ? आये दिन सड्को पर शराब पीकर रस ड्राईविग और उसके बाद के ड्रामे के हमारे युवा वर्ग के किस्से आम नजर आते है। खैर,बहुत देर होने से पहले आशा और उम्मीद की कुछ किरणें अभी भी बाकी है, उम्मीद यही रखता हूं कि शायद नई भोर आ जाये ! तब तक आप सभी को भी इस आजादी की वर्षगांठ की हार्दिक शुभ-कामनाये!
जैसा कि आप सभी जानते है कि देश आज प्रत्यक्ष तौर पर अंग्रेजी दास्ता से मुक्ति की चौसठ्वी वर्षगाठ मना रहा है, यानि कहने को स्वराज मिले हुए त्रेसठ साल पूरे हो गये। लेकिन यहां के आम जन से मै कहुंगा कि अपने दिल पर हाथ रखकर पूछे कि क्या हम सचमुच मे आजाद है? क्या इसी रामराज के लिये अनेक स्वतन्त्रता संग्राम सैनानियो ने अपने तन, मन, धन की आहुति दी थी? क्या वर्तमान हालातों को देखकर आपको नही लगता कि आजादी सिर्फ़ उन कुछ चाटुकारों को मिली जिनके पुरखों ने पहले मंगोलो और मुगल आक्रमणकारी लुटेरों के तलवे चाटे, फिर अंग्रेजो की सेवा भक्ति मे अपना जीवन धन्य बनाया और आज कुर्सी के लिये किसी भी हद तक गिरकर सत्ता हथिया ली है?क्या आजादी सिर उनको नही मिली जो पहले काले कपडे पहनकर रात को लोगो के घरों मे सेंध लगा कर माल लूटते थे, अत्याचार करते थे और आज वे सफ़ेद पोशाकों मे खुले-आम लोकतंत्र की दुहाई देकर रौब से कर रहे है? क्या सही मायने मे आजादी उन मुसलमानों को नही मिली जो इस देश का एक बडा भू-भाग भी ले गये और आज तक हमारी छातियों मे मूंग दल रहे है? क्या आजादी उन मलाई खाने वाले आरक्षियों को नही मिली जो हमारा और हमारे बच्चो का इस बिनाह पर हक मार रहे है कि उनके पूर्वजों का हमारे पूर्वजों ने शोषण किया था, इसलिये वो आजादी का नाजायज फायदा ऊठाकर हमसे न सिर्फ़ बद्ला ले रहे है, बल्कि अकुशल और अक्षम होने के बावजूद भी उच्च पदों पर बैठकर न सिर्फ़ भ्रष्टाचार पैला रहे है अपितु अकुशलता की वजह से इस देश की परियोजनाओं की ऐसी-तैसी कर देश के आधारभूत ढांचे के लिये भविष्य के लिये खतरे के बीज बो रहे है?
देश प्रत्यक्षतौर पर आजाद हुआ, मगर हमे इससे क्या मिला? उल्टे हमारे समान रूप से जीने के अधिकारों को छीना जा रहा है। सत्ता पर काविज चोर-उच्चके दोनो हाथो से हमारी मेहनत की कमाई के टैक्स की रकम को लूटकर विदेशो मे उन्ही अंग्रेजो के बैंको मे उनके ऐशो आराम के लिये पहुंचा रहे है, जिनसे मिली आजादी का जश्न हम मना रहे है। इतनी आजादी तो हमारे पास अग्रेंजो के दौर मे भी थी, बल्कि यो कहे कि उन्होने सिर्फ़ वहा लोगो का दमन किया, जहां लोगो से उन्हे उनके एकछत्र राज को चुनौती मिली, अन्यथा तो मै समझता हू कि उन्होने किसी की व्यक्तिगत आजादी मे कोई हस्त:क्षेप नही किया। कानून व्यवस्था भी एकदम दुरस्थ रखी। जो लोग ये तर्क देते है कि उन्होने हमारे बीच फूट डालो और राज करो की नीति अपनाई, उनसे पूछ्ना चाहुंगा कि इस आजाद देश मे आज और भला क्या हो रहा है? हो सकता है कि बहुत से लोग मेरी उपरोक्त कही हुई बातों से इत्तेफाक न रखे मगर सच्चाई दुर्भाग्यबश यही है। और यह भी नही है कि इस आजदी से देश के किसी भी गरीब तबके को लाभ मिल रहा हो, बस फायदा वही उठा रहे है जो येन-केन प्रकारेण इस तथाकथित आजादी का फायदा उठाने के लिये किसी भी हद तक चले जाते है। मैने ऊपर प्रत्यक्ष आजादी शब्द का इस्तेमाल इसलिये किया क्योंकि कटुसत्य यह है कि अप्रत्यक्ष तौर पर हम आज भी ऐलिजाबेथ के ही गुलाम है। वो जो कुछ लोग तर्क देते है कि भले लोगो को आगे आकर इस देश की बागडोर सम्भालनी चाहिये, उनसे यही कहुंगा कि भले लोगो को इस देश के वोटर क्या सचमुच प्राथमिकता देते है? और दूसरा यह कि इन हालात मे सता तक पहुंचने के लिये कोइ भी ईमान्दार इन्सान उस हद तक नही गिर सकता, जिस हद तक ये आज के ज्यादातर पोलीटीशियन गिरते है।
और हमारे युवा वर्ग को समझना होगा कि दुर्भाग्य बश हमारे देश का यह लम्बा इतिहास रहा है कि इसे बार-बार गुलामियों का दर्द झेलना पडा, और आज जो हालात बनते जा रहे है वो हमे एक और प्रत्यक्ष गुलामी की ओर धकेल सकते है। आज के युवा-वर्ग को समझना होगा कि भ्रष्ठाचार और दगाबाजी हम हिन्दुस्तानियों के खून मे है, जिसे प्युरिफ़ाई करने की सख्त जरुरत है। जब हम लोग देश मे कुछ गलत होता देखते, सुनते है तो तुरन्त यह कहते है कि अशिक्षा की वजह से ऐसा हो रहा है। लेकिन नही यह तर्क भी सरासर गलत है। आपने देखा होगा कि हाल ही मे हमारे उच्च शिक्षित लोगो जैसे थरूर, कौमन वेल्थ के दरवारी इत्यादी ( लम्बी लिस्ट है) ने भी हमे निराश ही किया है। आप देखिये कि आज जब हम किसी विमान मे यात्रा कर रहे होते है तो यह मान कर चलिये कि उसमे से १००% लोग उच्च शिक्षित होते है, कितने लोग विमान परिचालकों के निर्देश का ईमान्दारी से पालन करते है ? आये दिन सड्को पर शराब पीकर रस ड्राईविग और उसके बाद के ड्रामे के हमारे युवा वर्ग के किस्से आम नजर आते है। खैर,बहुत देर होने से पहले आशा और उम्मीद की कुछ किरणें अभी भी बाकी है, उम्मीद यही रखता हूं कि शायद नई भोर आ जाये ! तब तक आप सभी को भी इस आजादी की वर्षगांठ की हार्दिक शुभ-कामनाये!
मेरे वतन के लोगो !
चोर, लुच्चे-लफंगों के तुम और न कृतार्थी बनो,
जागो देशवासियों, स्वदेश में ही न शरणार्थी बनो !
भूल गए,शायद आजादी की उस कठिन जंग को ,
खुद दासता न्योताकर, अब और न परमार्थी बनो !
पाप व भ्रष्टाचार, लोकतंत्र के मूल-मन्त्र बन गए,
आदर्श बिगाड़, भावी पीढी के न क्षमा-प्रार्थी बनो !
ये विदूषक, ये अपनी तो ठीक से हांक नहीं पाते,
इन्हें समझाओ कि गैर के रथ के न सारथी बनो!
गैस पीड़ितों के भी इन्होने कफ़न बेच खा लिए,
त्याग करना भी सीखो, हरदम न लाभार्थी बनो !
वरना तो, पछताने के सिवा और कुछ न बचेगा ,
वक्त है अभी सुधर जाओ,अब और न स्वार्थी बनो!जय हिंद !
चोर, लुच्चे-लफंगों के तुम और न कृतार्थी बनो,
जागो देशवासियों, स्वदेश में ही न शरणार्थी बनो !
भूल गए,शायद आजादी की उस कठिन जंग को ,
खुद दासता न्योताकर, अब और न परमार्थी बनो !
पाप व भ्रष्टाचार, लोकतंत्र के मूल-मन्त्र बन गए,
आदर्श बिगाड़, भावी पीढी के न क्षमा-प्रार्थी बनो !
ये विदूषक, ये अपनी तो ठीक से हांक नहीं पाते,
इन्हें समझाओ कि गैर के रथ के न सारथी बनो!
गैस पीड़ितों के भी इन्होने कफ़न बेच खा लिए,
त्याग करना भी सीखो, हरदम न लाभार्थी बनो !
वरना तो, पछताने के सिवा और कुछ न बचेगा ,
वक्त है अभी सुधर जाओ,अब और न स्वार्थी बनो!जय हिंद !
अब अपना मुह बंद रखे इस वृहत लोकतंत्र के तंग दिल सनम !
भ्रष्ठाचार और मक्कारी तो मानो हमारी रग-रग में रची बसी है ! सार्वजनिक धन की चोरी को हम अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते है, और ऊपर से सीना जोरी भी ! शरमो-हया और दुनिया की लोक-लाज तो जयचंद के कुटुंबी वंशजों ने तभी बेच खाई थी, जब मंगोलों, मुगलों और फिरंगियों ने इन जयचंद की औलादों की मदद से बारी-बारी से हमारी इस पावन भूमि को अपवित्र किया था! कुछ ही पृथ्वीराज थे, जो जी-जान और मेहनत से तीन-तीन गुलामियों की मार झेलते हुए भी थोड़ा बहुत अपनी और अपने देश की पारंपरिक संस्कृति, लोक-लाज और सत्यनिष्ठा को बचाए रखने में कामयाब रहे थे ! मगर उन्हें क्या मालूम था कि कालान्तर में युगों से भेड़ की खालों में छुपे बैठे कुछ जयचंद के घरेलू भेड़िये, एक दिन आजादी मिलने पर अचानक लोकतंत्र की आढ़ में शराफत, इमानदारी, समानता, कौशल और नेतृत्व का नकली लवादा ओढ़कर देश में बची-खुची शर्मो-हया का भी गला घोंट देंगे !
मजेदार बात यह नहीं है कि देश में फैले भ्रष्ठाचार और अराजकता से पर्दा उठ रहा है, अपितु मजेदार बात यह है कि कुछ शकुनियों के फेंके फांसे उन पर ही उलटे पड़ने लगे है! जैसा कि मैं पहले भी अपनी पोस्टों में लिख चुका हूँ कि आयोजन की तैयारियों में देरी जानबूझकर दो कारणों से की गई थी; एक तो यह कि आयोजन स्थल के कर्ता-धर्ताओं को २००८-०९ में दोबारा गद्दी पाने की उम्मीद कम ही थी, इसलिए वे आने वाले अज्ञात कर्ता-धर्ता के लिए मुसीबतों का पहाड़ छोड़ना चाहते थे! ताकि आगे चलकर वे खुद इसका राजनैतिक फायदा उठा सकें ! लेकिन उनका दुर्भाग्य ही कह लीजिये कि वे फिर से गद्दी पा गए ! इसे वोटरों की महानता कह लीजिये या फिर उस पालनहार की सटीक लाठी, जो इनकी चाल इन पर ही उल्टी पड़ गई ! दूसरा यह कि इसतरह की अवधारणा इस निर्माण कार्य से जुड़े ज्यादातर भ्रष्ट लोग लेकर चल रहे थे कि घटिया स्तर के निर्माण कार्य को अंतिम क्षणों तक खींचा जाए ताकि आख़िरी में समय की कमी की वजह से किसी को यह देखने का अवसर ही न मिले कि घटिया निर्माण हुआ है, लेकिन यह लीपापोती भी उल्टी पड़ गई ! अनमने मन से ही सही किन्तु इंद्रदेवता को भी इसके लिए धन्यवाद दिया जा सकता है !
ऐसा भी नहीं है कि इस सारे चक्रव्यूह के लिए सिर्फ आयोजन कर्ताओं को ही जिम्मेदार ठहराया जाए ! इसके लिए जर्जर हो चुका पूरा सिस्टम भी काफी हद तक जिम्मेदार है, वह सिस्टम, जिसे सदियों पहले अंग्रेजों ने यह मानकर हिन्दुस्तानियों के लिए बनाया था कि ८० प्रतिशत भारतीय चोर है ! और फिर वे अंग्रेज अपने पीछे इस देश में उनके बनाए उस सिस्टम की देखभाल के लिए एक ऐसी पार्टी छोड़ गए जो बड़ी परायणता और कर्तव्यनिष्ठा से आज भी उसे बनाए रखे है ! हमारे मीडिया वालों को चठ्कारे लेकर सनसनी फैलाने की तो बड़ी महारत हासिल है, मगर तब ये कहाँ सो रहे थे जब आज खुद को भला इंसान दिखने वाला सालों फाइल के ऊपर बैठा रहा ? ये तब कहाँ थे जब मंत्रालय अपने लल्लू -पंचूओ को इस पूरे निर्माणकार्य की रूपरेखा तैयार करने के लिए मनोनीत कर रहे थे! ये तब कहाँ थे जब समय की नजाकत को न समझते हुए हमारे देश के न्यायालयों में कुछ संस्थाओं द्वारा निर्माणकार्य की राह में खड़े किये गए विवादों को सुलझाने में देरी हो रही थी ? तब कहाँ थे, जब निर्माणकार्य के लिए घटिया सामग्री आ रही थी? तब कहाँ थे जब पारिवारिक खान से खरीदकर सड़क किनारों पर लाल टाइले लगाईं जा रही थी? अब जब स्टेडियम के लिए ऐप्रूभ्ड ड्राइंग ही साल-छह महीने पहले निर्माण कार्य में लगी एजेंसियों को दोगे तो वे अलादीन का चिराग घिसकर जिन्न को बुला रातों-रात तो निर्माण कार्य पूरा नहीं कर लेंगे न ?
हाँ, मैं सिस्टम की बात कर रहा था, कल से खबरिया चैनलों और पत्र-पत्रिकाओं में बड़े मजे लेकर जोरशोर से इस बात को उठाया जा रहा है कि कीमत से कई अधिक मूल्य पर आयोजन सामग्री किराए पर ली जा रही है, तो जनाव, एक तरफ अगर समय पर कार्य पूरा करने का दबाव हो और दूसरी तरफ वह जर-जर सिस्टम जिसमे एक क्लास वन आफिसर भी स्वयं निर्णय लेकर एक कुर्सी तक नहीं खरीद सकता, उसके लिए टेंडर भरो, फाइल को मंत्रालय तक पहुँचाओ और इस माध्यम के बीच कई हस्तियों की आवभगत करो, तो उसके लिए इन्तजार का वक्त किसके पास था? क्या कभी किसी ने उस और ध्यान देकर वह बात उजागर की ? हमारे लिए शर्म की इससे बढ़कर और क्या बात हो सकती है कि दूसरे देश की एजेंसिया हमें सतर्क कर रही है कि जाग जाओ कहीं कुछ बड़ी गड़बड़ चल रही है ! इस देश के एक आम आदमी के खून पसीने की कमाई से एकत्रित टैक्स का इस तरह का दुरुपयोग देख विदेशी भी चुप नहीं रह पाए !
कुल मिलाकर निष्कर्ष यह निकलता है कि अपने युवराज के ऑस्टेरिटी (त्याग / मितव्यता) आव्हान की हवा ये कमवक्त भ्रष्ट लोग इस तरह नेहरु स्टेडियम में जाकर निकालेंगे, शायद सम्राज्ञी ने भी सपने में नहीं सोचा होगा! ४००० करोड़ रूपये खर्च का प्रारम्भिक आंकलन अगर सत्रह गुना बढ़ जाए तो भृकुटियाँ तनना भी स्वाभाविक है! यही अगर इनके ऑस्टेरिटी की मिसाल है तो भगवान् बचाए इनकी गिद्ध नजरों से इस देश को ! इस मुद्दे पर अब जाकर चिल-पौं मचाने वालों से भी यही कहूंगा कि आप यह बात भली प्रकार से जानते है कि आज से पहले इस देश में हुए बड़े-बड़े घोटालों का हश्र क्या हुआ ? और अंत में मेरी भी इस दुनिया के पालनहार से हाथ जोड़कर यह प्रार्थना है कि हे भगवन, ये आयोजन जैसे भी हो ठीक ठीक ही निपट जाए और देश की इज्ज़त पर कोई आंच न आने पाए !
मजेदार बात यह नहीं है कि देश में फैले भ्रष्ठाचार और अराजकता से पर्दा उठ रहा है, अपितु मजेदार बात यह है कि कुछ शकुनियों के फेंके फांसे उन पर ही उलटे पड़ने लगे है! जैसा कि मैं पहले भी अपनी पोस्टों में लिख चुका हूँ कि आयोजन की तैयारियों में देरी जानबूझकर दो कारणों से की गई थी; एक तो यह कि आयोजन स्थल के कर्ता-धर्ताओं को २००८-०९ में दोबारा गद्दी पाने की उम्मीद कम ही थी, इसलिए वे आने वाले अज्ञात कर्ता-धर्ता के लिए मुसीबतों का पहाड़ छोड़ना चाहते थे! ताकि आगे चलकर वे खुद इसका राजनैतिक फायदा उठा सकें ! लेकिन उनका दुर्भाग्य ही कह लीजिये कि वे फिर से गद्दी पा गए ! इसे वोटरों की महानता कह लीजिये या फिर उस पालनहार की सटीक लाठी, जो इनकी चाल इन पर ही उल्टी पड़ गई ! दूसरा यह कि इसतरह की अवधारणा इस निर्माण कार्य से जुड़े ज्यादातर भ्रष्ट लोग लेकर चल रहे थे कि घटिया स्तर के निर्माण कार्य को अंतिम क्षणों तक खींचा जाए ताकि आख़िरी में समय की कमी की वजह से किसी को यह देखने का अवसर ही न मिले कि घटिया निर्माण हुआ है, लेकिन यह लीपापोती भी उल्टी पड़ गई ! अनमने मन से ही सही किन्तु इंद्रदेवता को भी इसके लिए धन्यवाद दिया जा सकता है !
ऐसा भी नहीं है कि इस सारे चक्रव्यूह के लिए सिर्फ आयोजन कर्ताओं को ही जिम्मेदार ठहराया जाए ! इसके लिए जर्जर हो चुका पूरा सिस्टम भी काफी हद तक जिम्मेदार है, वह सिस्टम, जिसे सदियों पहले अंग्रेजों ने यह मानकर हिन्दुस्तानियों के लिए बनाया था कि ८० प्रतिशत भारतीय चोर है ! और फिर वे अंग्रेज अपने पीछे इस देश में उनके बनाए उस सिस्टम की देखभाल के लिए एक ऐसी पार्टी छोड़ गए जो बड़ी परायणता और कर्तव्यनिष्ठा से आज भी उसे बनाए रखे है ! हमारे मीडिया वालों को चठ्कारे लेकर सनसनी फैलाने की तो बड़ी महारत हासिल है, मगर तब ये कहाँ सो रहे थे जब आज खुद को भला इंसान दिखने वाला सालों फाइल के ऊपर बैठा रहा ? ये तब कहाँ थे जब मंत्रालय अपने लल्लू -पंचूओ को इस पूरे निर्माणकार्य की रूपरेखा तैयार करने के लिए मनोनीत कर रहे थे! ये तब कहाँ थे जब समय की नजाकत को न समझते हुए हमारे देश के न्यायालयों में कुछ संस्थाओं द्वारा निर्माणकार्य की राह में खड़े किये गए विवादों को सुलझाने में देरी हो रही थी ? तब कहाँ थे, जब निर्माणकार्य के लिए घटिया सामग्री आ रही थी? तब कहाँ थे जब पारिवारिक खान से खरीदकर सड़क किनारों पर लाल टाइले लगाईं जा रही थी? अब जब स्टेडियम के लिए ऐप्रूभ्ड ड्राइंग ही साल-छह महीने पहले निर्माण कार्य में लगी एजेंसियों को दोगे तो वे अलादीन का चिराग घिसकर जिन्न को बुला रातों-रात तो निर्माण कार्य पूरा नहीं कर लेंगे न ?
हाँ, मैं सिस्टम की बात कर रहा था, कल से खबरिया चैनलों और पत्र-पत्रिकाओं में बड़े मजे लेकर जोरशोर से इस बात को उठाया जा रहा है कि कीमत से कई अधिक मूल्य पर आयोजन सामग्री किराए पर ली जा रही है, तो जनाव, एक तरफ अगर समय पर कार्य पूरा करने का दबाव हो और दूसरी तरफ वह जर-जर सिस्टम जिसमे एक क्लास वन आफिसर भी स्वयं निर्णय लेकर एक कुर्सी तक नहीं खरीद सकता, उसके लिए टेंडर भरो, फाइल को मंत्रालय तक पहुँचाओ और इस माध्यम के बीच कई हस्तियों की आवभगत करो, तो उसके लिए इन्तजार का वक्त किसके पास था? क्या कभी किसी ने उस और ध्यान देकर वह बात उजागर की ? हमारे लिए शर्म की इससे बढ़कर और क्या बात हो सकती है कि दूसरे देश की एजेंसिया हमें सतर्क कर रही है कि जाग जाओ कहीं कुछ बड़ी गड़बड़ चल रही है ! इस देश के एक आम आदमी के खून पसीने की कमाई से एकत्रित टैक्स का इस तरह का दुरुपयोग देख विदेशी भी चुप नहीं रह पाए !
कुल मिलाकर निष्कर्ष यह निकलता है कि अपने युवराज के ऑस्टेरिटी (त्याग / मितव्यता) आव्हान की हवा ये कमवक्त भ्रष्ट लोग इस तरह नेहरु स्टेडियम में जाकर निकालेंगे, शायद सम्राज्ञी ने भी सपने में नहीं सोचा होगा! ४००० करोड़ रूपये खर्च का प्रारम्भिक आंकलन अगर सत्रह गुना बढ़ जाए तो भृकुटियाँ तनना भी स्वाभाविक है! यही अगर इनके ऑस्टेरिटी की मिसाल है तो भगवान् बचाए इनकी गिद्ध नजरों से इस देश को ! इस मुद्दे पर अब जाकर चिल-पौं मचाने वालों से भी यही कहूंगा कि आप यह बात भली प्रकार से जानते है कि आज से पहले इस देश में हुए बड़े-बड़े घोटालों का हश्र क्या हुआ ? और अंत में मेरी भी इस दुनिया के पालनहार से हाथ जोड़कर यह प्रार्थना है कि हे भगवन, ये आयोजन जैसे भी हो ठीक ठीक ही निपट जाए और देश की इज्ज़त पर कोई आंच न आने पाए !
जैचंद की तो फितरत है पीठ पे छुरा घोंपना, इस वोट-बैंक का कोई तो विकल्प ढूंढो यारों !!
हाथ जोड़कर पहले कहे देता हूँ, ज्यादा नहीं लिखूंगा, क्योंकि इन जड़-बुद्धि स्वदेशियों की समझ में ख़ास कुछ नहीं घुसने वाला ! मगर क्या करू कहना, लिखना, उपदेश देना अपना पैदाइसी डिस-ऑर्डर है, इसलिए खाली-पीली ही सही , मगर थोड़ा-बहुत शकुन पाने के वास्ते कुछ जरूर लिखूंगा ;
भाइयों, ये कदापि मत सोचियेगा, कि मैं किसी वर्ग विशेष के खिलाफ लिख रहा हूँ, या फिर भावनाए भड़का रहा हूँ ! कहने को तो मैं भी मौके के हिसाब से एक क्षुद्र आस्तिक बनाम नास्तिक (ज्यादातर अपने सेक्युलरों की तरह ) हूँ, मगर क्या करू, सच उगलना भी अपनी मजबूरी है !
- कभी सोचा आपने कि आज जो कुछ देश में हो रहा है, घपले , भ्रष्टाचार और लूटमार और ऊपर से किसी की कोई जबाबदेही नहीं, वह क्यों हो रहा है? क्योंकि हर कोई जानता है कि इस देश के लोग कायर है , अपनी निजी जरूरतों से बाहर नहीं झाँकने वाले, जब तक कोई सिकंदर, बाबर और फिरंगी आकर इनकी ................................................ !
-कि जब कोई विजय का बिगुल इनके सिर के ऊपर बजा देता है तभी ये जागते है, वरना तो दिल्ली की गद्दी पर कौन राज कर रहा है इन्हें कोई परवाह ही नहीं .......!
अब असल बात पे आता हूँ; इस कौंग्रेस के पिछले ६-७ साल के ( उससे पिछ्ला तो भूल जाइए क्योंकि यही हमारी आदत है ) शासन काल में जिस तरह खुलकर देश की दुर्गति की गई, वह किस सोच के आधार पर हुई ?
वह इस सोच के आधार पर हुई कि हम जो भी कर लें , २० से २५ % वोट मुस्लिमों के , करीब ८ % नव् ईसाईयों के, १० % फिक्स दलितों के उनके पक्ष में से कहीं नहीं गए, चाहे कितना भी बड़ा देश-द्रोही काम कर लो ! इस आत्म विश्वास ने हर चोर-उचक्के के हौंसले इतने बढ़ा दिए कि वह सोचता है कि मैं अगर दो चार का खून भी कर लूं तो कुछ नहीं होने वाला !
भाइयों करवद्ध होकर यही प्राथना करूंगा कि इस बारे में सोचियेगा जरूर !
वक्त हो तो इस पर भी गौर करिए ;
NEW DELHI: A new outfit is under scanner in Kerala for its alleged anti-India ideology. The Popular Front of India (PFI) calls India its enemy and asks for 'total Muslim empowerment'. Times Now has access to documents seized from activists of the controversial outfit, which prove its anti-national ideology. The documents portray the nation as its enemy and calls to work towards 'total Muslim empowerment’. Read more: New Kerala outfit on terror radar - India - The Times of India http://timesofindia.indiatimes.com/india/New-Kerala-outfit-on-terror-radar/articleshow/6260122.cms#ixzz0vjwgTj1m
While a section of the secular pack in the media and establishment is busy creating the myth of ‘Hindu terror’, the real terrorists have made deep inroads into the ‘secular’ bastion of Kerala, a state which has never elected a BJP nominee to the State Assembly since Independence। The recent hacking of the hand of a Christian college teacher T J Joseph in Muvattupuzha in Kerala allegedly by jihadi extremists has been closely followed by an attempted derailing of an entire passenger train in Nilambur in Kerala.
2 kids buried under sacks in FCI godown
UDAIPUR: Two children, aged 12 and 13 years, were found dead in the FCI godown in Chittorgarh town on Tuesday। It is suspected that they had gone there to steal wheat grains when sacks skidded over them. Their fathers are in jail and a life in penury might have forced them to steal foodgrains, said sources. What can we do if our orders not obeyed: SC New Delhi: Hearing a plea seeking arrest of a politician's musclemen, the Supreme Court Tuesday said policing is not a part of its mandate and it could not help if its orders were not being executed by the law enforcing agencies. "If our orders are not being obeyed, then what can we do? We are not police," said an apex court bench of Justice Markandey Katju and Justice T.S. Thakur.
What can we do if our orders not obeyed: SC New Delhi: Hearing a plea seeking arrest of a politician's musclemen, the Supreme Court Tuesday said policing is not a part of its mandate and it could not help if its orders were not being executed by the law enforcing agencies। "If our orders are not being obeyed, then what can we do? We are not police," said an apex court bench of Justice Markandey Katju and Justice T।S. Thakur.
ये सब इसलिए यहाँ लगा रहा हूँ कि आप सोच सकें कि यह सब क्यों हो रहा है ? क्यों पनपा इस देश में ? सोचो-सोचो अभी भी वक्त हाथ से नहीं फिसला , वरना सन १५२६ की स्थित फिर से आ सकती है , जिसकी वजह से बाबरी को आज तक भुगत रहे है, और आगे भी भुगतना होगा !
धन्यवाद !
भाइयों, ये कदापि मत सोचियेगा, कि मैं किसी वर्ग विशेष के खिलाफ लिख रहा हूँ, या फिर भावनाए भड़का रहा हूँ ! कहने को तो मैं भी मौके के हिसाब से एक क्षुद्र आस्तिक बनाम नास्तिक (ज्यादातर अपने सेक्युलरों की तरह ) हूँ, मगर क्या करू, सच उगलना भी अपनी मजबूरी है !
- कभी सोचा आपने कि आज जो कुछ देश में हो रहा है, घपले , भ्रष्टाचार और लूटमार और ऊपर से किसी की कोई जबाबदेही नहीं, वह क्यों हो रहा है? क्योंकि हर कोई जानता है कि इस देश के लोग कायर है , अपनी निजी जरूरतों से बाहर नहीं झाँकने वाले, जब तक कोई सिकंदर, बाबर और फिरंगी आकर इनकी ................................................ !
-कि जब कोई विजय का बिगुल इनके सिर के ऊपर बजा देता है तभी ये जागते है, वरना तो दिल्ली की गद्दी पर कौन राज कर रहा है इन्हें कोई परवाह ही नहीं .......!
अब असल बात पे आता हूँ; इस कौंग्रेस के पिछले ६-७ साल के ( उससे पिछ्ला तो भूल जाइए क्योंकि यही हमारी आदत है ) शासन काल में जिस तरह खुलकर देश की दुर्गति की गई, वह किस सोच के आधार पर हुई ?
वह इस सोच के आधार पर हुई कि हम जो भी कर लें , २० से २५ % वोट मुस्लिमों के , करीब ८ % नव् ईसाईयों के, १० % फिक्स दलितों के उनके पक्ष में से कहीं नहीं गए, चाहे कितना भी बड़ा देश-द्रोही काम कर लो ! इस आत्म विश्वास ने हर चोर-उचक्के के हौंसले इतने बढ़ा दिए कि वह सोचता है कि मैं अगर दो चार का खून भी कर लूं तो कुछ नहीं होने वाला !
भाइयों करवद्ध होकर यही प्राथना करूंगा कि इस बारे में सोचियेगा जरूर !
वक्त हो तो इस पर भी गौर करिए ;
NEW DELHI: A new outfit is under scanner in Kerala for its alleged anti-India ideology. The Popular Front of India (PFI) calls India its enemy and asks for 'total Muslim empowerment'. Times Now has access to documents seized from activists of the controversial outfit, which prove its anti-national ideology. The documents portray the nation as its enemy and calls to work towards 'total Muslim empowerment’. Read more: New Kerala outfit on terror radar - India - The Times of India http://timesofindia.indiatimes.com/india/New-Kerala-outfit-on-terror-radar/articleshow/6260122.cms#ixzz0vjwgTj1m
While a section of the secular pack in the media and establishment is busy creating the myth of ‘Hindu terror’, the real terrorists have made deep inroads into the ‘secular’ bastion of Kerala, a state which has never elected a BJP nominee to the State Assembly since Independence। The recent hacking of the hand of a Christian college teacher T J Joseph in Muvattupuzha in Kerala allegedly by jihadi extremists has been closely followed by an attempted derailing of an entire passenger train in Nilambur in Kerala.
2 kids buried under sacks in FCI godown
UDAIPUR: Two children, aged 12 and 13 years, were found dead in the FCI godown in Chittorgarh town on Tuesday। It is suspected that they had gone there to steal wheat grains when sacks skidded over them. Their fathers are in jail and a life in penury might have forced them to steal foodgrains, said sources. What can we do if our orders not obeyed: SC New Delhi: Hearing a plea seeking arrest of a politician's musclemen, the Supreme Court Tuesday said policing is not a part of its mandate and it could not help if its orders were not being executed by the law enforcing agencies. "If our orders are not being obeyed, then what can we do? We are not police," said an apex court bench of Justice Markandey Katju and Justice T.S. Thakur.
What can we do if our orders not obeyed: SC New Delhi: Hearing a plea seeking arrest of a politician's musclemen, the Supreme Court Tuesday said policing is not a part of its mandate and it could not help if its orders were not being executed by the law enforcing agencies। "If our orders are not being obeyed, then what can we do? We are not police," said an apex court bench of Justice Markandey Katju and Justice T।S. Thakur.
ये सब इसलिए यहाँ लगा रहा हूँ कि आप सोच सकें कि यह सब क्यों हो रहा है ? क्यों पनपा इस देश में ? सोचो-सोचो अभी भी वक्त हाथ से नहीं फिसला , वरना सन १५२६ की स्थित फिर से आ सकती है , जिसकी वजह से बाबरी को आज तक भुगत रहे है, और आगे भी भुगतना होगा !
धन्यवाद !
ये ईशू के भक्त, अल्लाह के वन्दों से कुछ कम अमानवीय नहीं !
आज बात मैं यहाँ गोरी चमड़ी के ईशू भक्तों की मानवता के प्रति भेद-भावपूर्ण और संवेदनहीन अमानवीय कृत्यों की करने जा रहा था, मगर चूँकि जब शीर्षक ही मैंने ऐंसा दे मारा तो मुझे यह भी बताना पड़ेगा कि जिन भक्तों से मैं इनकी तुलना कर रहा हूँ, उन अल्लाह के वन्दों का मानवता के प्रति हालिया अपराध क्या था? तो लीजिये एक नजर अफगानिस्तान की इस लडकी जिसका नाम बीबी अइशा है, के चित्र पर दौड़ाइए, जिसके अल्लाह भक्त तालीबानी पति ने १७ साल की इस लडकी के नाक-कान काट डाले और वह भी तब,जब वह उसके बच्चे की माँ बनने वाली थी ! इसलिए उम्मीद करता हूँ कि मेरे इस लेख का शीर्षक कुछ लोगो को चुभेगा नहीं !
आइये अब बात करते है इन गोरी चमड़ी के ईशू भक्तों की ! इनकी कारगुजारियों से तो इतिहास पटा पड़ा है ! मसलन कैसे इन्होने अमेरिका पहुँचने पर वहाँ के रेड इंडियंस का समूल नाश किया, कैसे इन्होने अपने अधीन गुलाम देशों में लोगो का उत्पीडन किया! और हालिया विक्किलीक्स का वीडियो तो आप सभी ने देखा होगा कि ईराक में कैसे सड़क किनारे खड़े लोगो को इन्होने हैलीकॉप्टर से निशाना बनाकर मौत की नींद सुलाया ! मगर इनका पिछली सदी का जो सबसे बड़ा घृणित कृत्य था, वह था हिरोशिमा और नागासाक़ी ! जिसमे एक पल में इन्होने लाखों को मौत की आगोश में बेरहमी से धकेल दिया !
६ अगस्त १९४५, अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमन के निर्देश पर हिरोशिमा में स्थानीय समय के अनुसार सुबह ८ बजकर १५ मिनट पर हिरोशिमा के ऊपर शहर से १९०० फिट की ऊँचाई पर यह "लिटिल बॉय " फूट गया ! मगर जो उसका वास्तविक निशाना था, ऐओइ ब्रिज उसे वह करीब ८०० फिट के अंतर से चूक गया ! स्टाफ सार्जेट जोर्ज कैरोंन ने आँखों देखी इस तरह बयान की थी; " मसरूम की तरह बादल अपने आप में एक शानदार नजारा था, जलते हुए लाल गोले के साथ बैंगनी भूरा उबलता हुआ धुँआ स्पष्ट देखा जा सकता था...."
लगभग ७० हजार लोग तुरंत मारे गए और करीब इतने ही लोग अगले कुछ सालों में रेडियेशन की वजह से मरे, जो बचे भी तो उनका बचना भी अपने आप में एक पीडादायक जीवन बनकर रह गया !
जीवित बचे एक प्रत्यक्ष दर्शी के शब्दों में "The appearance of people was... well, they all had skin blackened by burns... They had no hair because their hair was burned, and at a glance you couldn't tell whether you were looking at them from in front or in back... They held their arms bent [forward] like this... and their skin - not only on their hands, but on their faces and bodies too - hung down... If there had been only one or two such people... perhaps I would not have had such a strong impression. But wherever I walked I met these people... Many of them died along the road - I can still picture them in my mind -- like walking ghosts..."
मैनहाटन में उस ज़माने में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रूमन और उनके उत्तराधिकारी रूजवेल्ट ने २ मिलियन डालर का परमाणु बम बनाने का महत्वाकांक्षी अभियान चलाया था, और सरकार कौंग्रेस की तरफ से यह दबाब झेल रही थी कि इतने खर्चीले प्रोजक्ट की उपयोगिता क्या थी ? अत ट्रूमन के सेकेट्री जेम्स ब्येर्नेस ने उसे यह आइडिया दिया कि जितनी जल्दी बम बने उसे परिक्षण के लिए गिराया जाए ! और इन फिरंगियों का भेदभाव देखिये कि आजमाने के लिए यूरोप में जर्मनी सबसे माकूल जगह थी मगर वो तो अपने भाईबंद थे अत जापानियों को चुना गया ! हिटलर को तो ये मुलजिम कहते है मगर अपने गुनाह सिर्फ जल्दी द्वितीय विश्व युद्ध ख़त्म करने की तार्किकता के अन्दर छुपा जाते है !
आज ६५वी वर्षगांठ पर हिरोशिमा के पीस पार्क में उन बेगुनाहों को श्रधान्जली दी गई ;
आइये अब बात करते है इन गोरी चमड़ी के ईशू भक्तों की ! इनकी कारगुजारियों से तो इतिहास पटा पड़ा है ! मसलन कैसे इन्होने अमेरिका पहुँचने पर वहाँ के रेड इंडियंस का समूल नाश किया, कैसे इन्होने अपने अधीन गुलाम देशों में लोगो का उत्पीडन किया! और हालिया विक्किलीक्स का वीडियो तो आप सभी ने देखा होगा कि ईराक में कैसे सड़क किनारे खड़े लोगो को इन्होने हैलीकॉप्टर से निशाना बनाकर मौत की नींद सुलाया ! मगर इनका पिछली सदी का जो सबसे बड़ा घृणित कृत्य था, वह था हिरोशिमा और नागासाक़ी ! जिसमे एक पल में इन्होने लाखों को मौत की आगोश में बेरहमी से धकेल दिया !
६ अगस्त १९४५, अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमन के निर्देश पर हिरोशिमा में स्थानीय समय के अनुसार सुबह ८ बजकर १५ मिनट पर हिरोशिमा के ऊपर शहर से १९०० फिट की ऊँचाई पर यह "लिटिल बॉय " फूट गया ! मगर जो उसका वास्तविक निशाना था, ऐओइ ब्रिज उसे वह करीब ८०० फिट के अंतर से चूक गया ! स्टाफ सार्जेट जोर्ज कैरोंन ने आँखों देखी इस तरह बयान की थी; " मसरूम की तरह बादल अपने आप में एक शानदार नजारा था, जलते हुए लाल गोले के साथ बैंगनी भूरा उबलता हुआ धुँआ स्पष्ट देखा जा सकता था...."
लगभग ७० हजार लोग तुरंत मारे गए और करीब इतने ही लोग अगले कुछ सालों में रेडियेशन की वजह से मरे, जो बचे भी तो उनका बचना भी अपने आप में एक पीडादायक जीवन बनकर रह गया !
जीवित बचे एक प्रत्यक्ष दर्शी के शब्दों में "The appearance of people was... well, they all had skin blackened by burns... They had no hair because their hair was burned, and at a glance you couldn't tell whether you were looking at them from in front or in back... They held their arms bent [forward] like this... and their skin - not only on their hands, but on their faces and bodies too - hung down... If there had been only one or two such people... perhaps I would not have had such a strong impression. But wherever I walked I met these people... Many of them died along the road - I can still picture them in my mind -- like walking ghosts..."
मैनहाटन में उस ज़माने में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रूमन और उनके उत्तराधिकारी रूजवेल्ट ने २ मिलियन डालर का परमाणु बम बनाने का महत्वाकांक्षी अभियान चलाया था, और सरकार कौंग्रेस की तरफ से यह दबाब झेल रही थी कि इतने खर्चीले प्रोजक्ट की उपयोगिता क्या थी ? अत ट्रूमन के सेकेट्री जेम्स ब्येर्नेस ने उसे यह आइडिया दिया कि जितनी जल्दी बम बने उसे परिक्षण के लिए गिराया जाए ! और इन फिरंगियों का भेदभाव देखिये कि आजमाने के लिए यूरोप में जर्मनी सबसे माकूल जगह थी मगर वो तो अपने भाईबंद थे अत जापानियों को चुना गया ! हिटलर को तो ये मुलजिम कहते है मगर अपने गुनाह सिर्फ जल्दी द्वितीय विश्व युद्ध ख़त्म करने की तार्किकता के अन्दर छुपा जाते है !
आज ६५वी वर्षगांठ पर हिरोशिमा के पीस पार्क में उन बेगुनाहों को श्रधान्जली दी गई ;
ये अहसान फरामोश भिखमंगे !
मेरा मानना है कि विपदा में फंसा हर प्राणी सबसे असहाय होता है, और हमने जहां तक इस भारत भूमि का इतिहास है, अपने पूर्वजों के मुख से, अपने पौराणिक गर्न्थों में, अपने संस्कारों में यही पाया है, यही पढ़ा है कि इंसान तो छोडिये, विपदा में फंसे प्राणी की पशु-पक्षी भी मदद करते है! किस्से-कहानियों में अक्सर जाल में फंसे शेर और चूहे की कहानी, डूबती चींटी और चिड़िया जैसी अनेकों कहानिया तो आपने भी पढी होंगी ! मानवता के नाते एक विवेकशील इंसान का यही परमधर्म होता है कि अपनी काविलियत के हिसाब से, मुसीबत में फसे जरूरतमंद की यथोचित मदद करे! यही इंसानियत का सार है,और यह भी कह लीजिये कि एक सच्चा धर्म भी यही है! और मैं यह भी खूब समझता हूँ कि शायद उससे बढ़कर और कोई बेरहम इंसान इस दुनिया में नहीं सकता , जो दो शब्द सम्वेदना और सहानुभूति के न कहकर, पीड़ितों का उपहास उडाये !
अपना एक पड़ोसी मुल्क है पाकिस्तान ! घृणा से परिपूर्ण देश (फुल ऑफ़ हेट )! कुछ हमारे मित्र जो यह कहकर कि पाकिस्तानियों को छोडिये, उनसे हमें क्या लेना, उनसे पल्ला झाड़ने की बाह्यमन से कोशिश तो करते है, मगर साथ ही यह भी जानते है कि आज भी अधिकाँश पाकिस्तानियों के नाते-रिश्तेदार हमारे बीच है ! मैं उन्हें यह भी बता दूं कि ये पाकिस्तानी वाशिंदे कहीं किसी दूसरी दुनिया से टपककर नहीं आये, बल्कि हमारे ही भाईबंद है! वो भाईबंद जिनमे से अधिकाँश जैचंद के डीएनए से गर्सित, स्वार्थ और लालच के मारे और कुछ मजबूरी बस हमारी पीठ पर छुरा घोंपकर हमसे अलग हो गए ! घृणा की इनकी हद देखिये कि वे आज भी हमें अपना दुश्मन नंबर एक और अलकायदा, तालिबानियों को अपना दोस्त समझते है! लेकिन पिछले अनेक सालों से बहुत ही बुरे हालातों से गुजर रहे है! अभी तो ये हाल है कि लोग बाढ़ की वजह से कई दिनों से भूखे है, पशुओं की तरह कहीं इधर-उधर रात गुजारने को मजबूर है, बारिश में सर छुपाने को इनके लिए ख़ास कोई सार्वजनिक छत भी उपलब्ध नहीं है! हमने भी साल दो साल पहले कोसी की मार झेली थी ! इसलिए मैं यह नहीं कहूंगा कि हम लोग उनसे कोई बहुत बेहतर है किन्तु इतना जरूर कहूंगा कि हम उनसे बेहतर ढंग से अपने ही संसाधनो के जरिये इस राष्ट्रीय विपदा से निपटने में सक्षम रहे!
खैर, प्रकृति के आगे सब बेवश है, और मैं भगवान् से यही प्रार्थना करूंगा कि हे प्रभो ! पीड़ित लोगो को उनके दुखों को सहने की क्षमता प्रदान करे, उनतक जल्द-से जल्द मदद पहुचे, और वे अपने उजड़े घरों को फिर से बसा सकें ! लेकिन अब मैं इस विषय से हटकर इस लेख के शीर्षक पर संक्षेप में कुछ कहूंगा ! साथ ही यह बात मैं उन मित्रों को भी कहूंगा जो इस बात पर ऐतराज करते है कि उनके धर्म की तुलना अमरीकियों के धर्म से की जा रही है! कुछ विद्वान अपने धर्म के बारे में बड़ी- बड़ी हांकते है कि सबसे तेज धर्म है, सबसे ज्यादा धर्मावलम्बी उनके धर्म के है.... ब्लाह... ब्लाह ....! मेरा एक साधारण सा सवाल ; १४०० साल पुराना, सबसे तेज और सर्वाधिक धर्मावलम्बियों के बावजूद इनके आम इंसान की ये दुर्गति कि अलाह का पूरा आशीर्वाद होते हुए भी खुद की हिफाजत करने में अक्षम ? उसकी दी हुई भीख पर ही आखिरकार निर्भर ,जिसके समूल विनाश की दिन-रात अल्लाह से प्राथना करता है ? और उस काफिर की सद्भावना देखिये ( चाहे वह यह सब अपने फायदे की बात सोच कर ही क्यों न कर रहा हों, मगर खा तो उसी का रहे हो न ) अपनी क्या औकात है सिवाए मानव बम फोड़ने के ? Flood relief flights grounded in Pakistan
:U.S. begins flood relief missions in Pakistan . Pakistan floods affect 12 million people: Stormy weather grounded helicopters carrying emergency supplies to Pakistan's flood-ravaged northwest Friday as the worst monsoon rains in decades brought more destruction to a nation already reeling from Islamist violence.
U.S. military personnel waiting to fly Chinooks to the upper reaches of the hard-hit Swat Valley were frustrated by the storms, which dumped more rain on a region where many thousands are living in tents or crammed into public buildings.
इन अहसान फरामोशों की घृणा की हद देखिये ; यह अभागा पाकिस्तानी नागरिक , प्रेमचंद , जो उस प्लाईट संख्या २०२ में सवार था जिसके सभी १५२ यात्री इस्लामाबाद के करीब एक पहाडी पर हमेशा के लिए स्वाह हो गए ! जब इस अभागे प्रेमचंद की अर्थियां इसके परिवार को सौंपी गई तो उसके ताबूत पर लिखा था " काफिर " ! इन हरामखोरों को इतनी भी इंसानियत का ख्याल नहीं रहा, कि कम से कम एक मृतक के साथ तो अच्छा सुलूक करें, उसके ताबूत पर काफिर लिखने की बजाये उसका नाम लिख देते तो क्या इनका कुछ घिस जाता ? और उसके बाद इन कमीनो की सफाई देखिये " उसके ताबूत पर इसलिए काफिर लिखा गया ताकि कोई उसे मुस्लिम समझकर इस्लाम के हिसाब से उसका अंतिम संस्कार न करे !" उस फ्लाईट में एक और हिन्दू डाक्टर सुरेश भी सवार था, उसके कौफिन के साथ क्या सलूक हुआ, नहीं मालूम !
इस तस्वीर को देखिये , यह नहीं है कि इन्होने गलती से भारत के ध्वज को उलटा टांगा है, बल्कि सच्चाई यह है कि ये हरामखोर, अहसान फरामोश, भले इंसान भी बनना चाहते है, मगर हमारी कीमत पर ! ये भारत के ध्वज को उलटा टांग सकते है, क्योंकि हरा इस्लाम का द्योतक है, इसलिए उसे ऊपर रखना चाहते है ! ! ha-ha-ha ....!
हिन्दुस्तान में बैठे ये हमारे कुछ मुस्लिम भाईबंद हम तथाकथित उच्च जाति के हिन्दुओं को समय-समय पर यह अहसास दिलाते है कि हमारे पूर्वजों ने दलितों के साथ क्या किया ! इन्हें शायद यह अहसास कराने की जरुरत नहीं कि उस समय यह सब निर्धारण इंसान के कर्मो के हिसाब से किया जाता था ! उदाहरण के लिए, आज इनकी तार्किकता के आधार पर एक सजायाफ्ता मुजरिम, मान लीजिये कसाब ! और थोड़ी देर के लिए यह भी मान लीजिये कि कसाब की शादी हो रखी है और उसका एक बेटा भी है ! कल अगर कसाब का बेटा कहने लगे कि मेरे बाप को क्यों सजा दी गई इंसानियत के नाते, तो क्या उसके तर्क को सही मान लिया जाए ?( यह भी कहूंगा कि उसमे कुछ अपवाद भी अवश्य शामिल है ) अभी तो शिक्षित होते इंसान ने यह सब त्याग दिया है न , लेकिन क्या आपके धर्मावलम्बियों ने इसे त्यागा है ? इस अहमदिया सम्प्रदाय के इंसान की मजबूरी पर एक नजर डालिए, जिसके सगे सम्बन्धियों को अल्लाह के वन्दों ने मौत के घाट उतार दिया ;
शायद लंबा लेख हो गया, जो मैं हिन्दुस्तान के परिपेक्ष में कदापि नहीं पसंद करता ! इसलिए इसे ख़त्म करते हुए यही कहूंगा कि बजाये अपनी शक्ति को विनाश पर लगाने के इंसान के विकास पर लगाइए ! गुरूर भी उस इंसान का ही वर्दास्त किया जाता है, जो खुद में कुछ हो ! Beggars can't be a chooser !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
पाकिस्तान में अमेरिकी राहत सामग्री लेने के लिए कतार में खड़े बाढ़ पीड़ित !
नोट: इस लेख का उद्देश्य सिर्फ इतना है कि कुछ हिन्दुस्तानी सुधर जाएँ !!!!!
बाटी चोखा कैसे बनाये
बाटी चोखा कैसे बनाये
बाटी मे भरने के लिये सामग्री
१ कप सत्तु,
२ टेबल स्पून लाल मिर्चे के अचार वाला सरसों का तेल
२ चुटकी हींग
१ टी स्पून अज्वाइन
१ टी स्पून मंगरैल
१ बडा़ प्याज़ बारीक काटा हुआ
१० लहसुन के कोये
१ टी स्पून निम्बू का रस
नमक स्वाद अनुसार।
सारी सामग्री को अच्छी तरह मसल कर मिला लें और गूँदे हुए आँटे मे भर के गोलाकार लोईयाँ बना लें और इन्हे गर्मओवन में मद्धम आँच पर ५ मिनट तक और इसके बाद हल्का भूरा होने तक धीमी आँच मे पकायें।
चोखा के लिये सामग्री१ बडा़ बैगन
२ टमाटर २ प्याज़ बारीक कटा हुआ
२ बडे आलू
१० कोए लेह्सुन
४ हरी मिर्च बारीक कटा हुआ
१ टी स्पून निम्बू का रस
नमक और धनिया पत्ती अन्दाज़ से।
आलू,बैगन(इसमें लहसुन पिरा लें),टमाटर ओवन में पका लें. अब पके आलू और बैगन को छील के टमाटर के साथ और बाकी सामग्री के साथ अच्छी तरह मिला लें ,चोखा तैयार है।अब गर्म बाटी को मक्खन या देसी घी में डुबो कर चोखे के साथ परोसें ।
२ टमाटर २ प्याज़ बारीक कटा हुआ
२ बडे आलू
१० कोए लेह्सुन
४ हरी मिर्च बारीक कटा हुआ
१ टी स्पून निम्बू का रस
नमक और धनिया पत्ती अन्दाज़ से।
आलू,बैगन(इसमें लहसुन पिरा लें),टमाटर ओवन में पका लें. अब पके आलू और बैगन को छील के टमाटर के साथ और बाकी सामग्री के साथ अच्छी तरह मिला लें ,चोखा तैयार है।अब गर्म बाटी को मक्खन या देसी घी में डुबो कर चोखे के साथ परोसें ।
पंछी बोला चार पहर "रामकांत दीक्षित"
रामकांत दीक्षित जी की एक रोचक लघुकथा धुंधली यादों को समेट कर लिख रहा हूँ जो मैंने स्कूल के दिनों में पढी़ थी ।
पुराने समय की बात है। एक राजा था। वह बड़ा समझदार था और हर नई बात को जानने को इच्छुक रहता था। उसके महल के आंगनमें एक बकौली का पेड़ था। रात को रोज नियम से एक पक्षी उस पेड़ पर आकर बैठता और रात के चारों पहरों के लिए अलग-अलग चार तरह की बातें कहा करता। पहले पहर में कहता :
“किस मुख दूध पिलाऊं,
किस मुख दूध पिलाऊं”
दूसरा पहर लगते बोलता :
“ऐसा कहूं न दीख,
ऐसा कहूं न दीख !”
जब तीसरा पहर आता तो कहने लगता :
“अब हम करबू का,
अब हम करबू का ?”
जब चौथा पहर शुरू होता तो वह कहता :
“सब बम्मन मर जायें,
सब बम्मन मर जायें !”
राजा रोज रात को जागकर पक्षी के मुख से चारों पहरों की चार अलग-अलग बातें सुनता। सोचता, पक्षी क्या कहता ?पर उसकी समझ में कुछ न आता। राजा की चिन्ता बढ़ती गई। जब वह उसका अर्थ निकालने में असफल रहा तो हारकर उसने अपने पुरोहित को बुलाया। उसे सब हाल सुनाया और उससे पक्षी के प्रशनों का उत्तर पूछा। पुरोहित भी एक साथ उत्तर नहीं दे सका। उसने कुछ समय की मुलत मांगी और चिंतित होकर घर चला आया। उसके सिर में राजा की पूछी गई चारों बातें बराबर चक्कर काटती रहीं। वह बहुतेरा सोचता, पर उसे कोई जवाब न सूझता। अपने पति को हैरान देखकर ब्राह्रणी ने पूछा, “तुम इतने परेशान क्यों दीखते हो ? मुझे बताओ, बात क्या है ?”
ब्राह्राणी ने कहा, “क्या बताऊं ! एक बड़ी ही कठिन समस्या मेरे सामने आ खड़ी हुई है। राजा के महल का जो आंगन है, वहां रोज रात को एक पक्षी आता है और चारों पहरों मे नितय नियम से चार आलग-अलग बातें कहता है। राजा पक्षी की उन बातों का मतलब नहीं समझा तो उसने मुझसे उनका मतलब पूछा। पर पक्षी की पहेलियां मेरी समझ में भी नहीं आतीं। राजा को जाकर क्या जवाब दूं, बस इसी उधेड़-बुन में हूं।”
ब्राह्राणी बोली, “पक्षी कहता क्या है? जरा मुझे भी सुनाओ।”
ब्राह्राणी ने चारों पहरों की चारों बातें कह सुनायीं। सुनकर ब्राह्राणी बोली। “वाह, यह कौन कठिन बात है! इसका उत्तर तो मैं दे सकती हूं। चिंता मत करो। जाओ, राजा से जाकर कह दो कि पक्षी की बातों का मतलब मैं बताऊंगी।”
ब्राह्राण राजा के महल में गया और बोला, “महाराज, आप जो पक्षी के प्रश्नों के उत्तर जानना चाहते हैं, उनको मेरी स्त्री बता सकती है।”
पुरोहित की बात सुनकर राजा ने उसकी स्त्री को बुलाने के लिए पालकी भेजी। ब्राह्राणी आ गई। राजा-रानी ने उसे आदर से बिठाया। रात हुई तो पहले पहर पक्षी बोला:
“किस मुख दूध पिलाऊं,
किस मुख दूध पिलाऊं ?”
राजा ने कहा, “पंडितानी, सुन रही हो, पक्षी क्या बोलता है?”
वह बोली, “हां, महाराज ! सुन रहीं हूं। वह अधकट बात कहता है।”
राजा ने पूछा, “अधकट बात कैसी ?”
पंडितानी ने उत्तर दिया, “राजन्, सुनो, पूरी बात इस प्रकार है-
लंका में रावण भयो बीस भुजा दश शीश,
माता ओ की जा कहे, किस मुख दूध पिलाऊं।
किस मुख दूध पिलाऊं ?”
लंका में रावण ने जन्म लिया है, उसकी बीस भुजाएं हैं और दश शीश हैं। उसकी माता कहती है कि उसे उसके कौन-से मुख से दूध पिलाऊं?”
राज बोला, “बहुत ठीक ! बहुत ठीक ! तुमने सही अर्थ लगा लिया।”
दूसरा पहर हुआ तो पक्षी कहने लगा :
ऐसो कहूं न दीख,
ऐसो कहूं न दीख।
राजा बोला, ‘पंडितानी, इसका क्या अर्थ है ?”
पडितानी नेसमझाया, “महाराज ! सनो, पक्षी बोलता है :
“घर जम्ब नव दीप
बिना चिंता को आदमी,
ऐसो कहूं न दीख,
ऐसो कहूं न दीख !”
चारों दिशा, सारी पृथ्वी, नवखण्ड, सभी छान डालो, पर बिना चिंता का आदमी नहीं मिलेगा। मनुष्य को कोई-न-कोई चिंता हर समय लगी ही रहती है। कहिये, महाराज! सच है या नहीं ?”
राजा बोला, “तुम ठीक कहती हो।”
तीसरा पहर लगा तो पक्षी ने रोज की तरह अपी बात को दोहराया :
“अब हम करबू का,
अब हम करबू का ?”
ब्रह्राणी राजा से बोली, “महाराज, इसका मर्म भी मैं आपको बतला देती हूं। सुनिये:
पांच वर्ष की कन्या साठे दई ब्याह,
बैठी करम बिसूरती, अब हम करबू का,
अब हम करबू का।
पांच वर्ष की कन्या को साठ वर्ष के बूढ़े के गले बांध दो तो बेचारी अपना करम पीट कर यही कहेगी-‘अब हम करबू का, अब हम करबू का ?” सही है न, महाराज !”
राजा बोला, “पंडितानी, तुम्हारी यह बात भी सही लगी।”
चौथा पहर हुआ तो पक्षी ने चोंच खोली :
“सब बम्मन मर जायें,
सब बम्मन मर जायें !”
तभी राज ने ब्रह्राणी से कहा, “सुनो, पंडितानी, पक्षी जो कुछ कह रहा है, क्या वह उचित है ?”
ब्रहाणी मुस्कायी और कहने लगी, “महाराज ! मैंने पहले ही कहा है कि पक्षी अधकट बात कहता है। वह तो ऐसे सब ब्रह्राणों के मरने की बात कहता है :
विश्वा संगत जो करें सुरा मांस जो खायें,
बिना सपरे भोजन करें, वै सब बम्मन मर जायें
वै सब बम्मन मर जायें।
जो ब्राह्राण वेश्या की संगति करते हैं, सुरा ओर मांस का सेवन करते हैं और बिना स्नान किये भोजन करते हैं, ऐसे सब ब्रह्राणों का मर जाना ही उचित है। जब बोलिये, पक्षी का कहना ठीक है या नहीं ?”
राजा ने कहा, “तुम्हारी चारों बातें बावन तोला, पाव रत्ती ठीक लगीं। तुम्हारी बुद्वि धन्य है !”
राजा-रानी ने उसको बढ़िया कपड़े और गहने देकर मान-सम्मान से विदा किया। अब पुरोहित का आदर भी राजदरबार में पहले से अधिक बढ़ गया।
“किस मुख दूध पिलाऊं,
किस मुख दूध पिलाऊं”
दूसरा पहर लगते बोलता :
“ऐसा कहूं न दीख,
ऐसा कहूं न दीख !”
जब तीसरा पहर आता तो कहने लगता :
“अब हम करबू का,
अब हम करबू का ?”
जब चौथा पहर शुरू होता तो वह कहता :
“सब बम्मन मर जायें,
सब बम्मन मर जायें !”
राजा रोज रात को जागकर पक्षी के मुख से चारों पहरों की चार अलग-अलग बातें सुनता। सोचता, पक्षी क्या कहता ?पर उसकी समझ में कुछ न आता। राजा की चिन्ता बढ़ती गई। जब वह उसका अर्थ निकालने में असफल रहा तो हारकर उसने अपने पुरोहित को बुलाया। उसे सब हाल सुनाया और उससे पक्षी के प्रशनों का उत्तर पूछा। पुरोहित भी एक साथ उत्तर नहीं दे सका। उसने कुछ समय की मुलत मांगी और चिंतित होकर घर चला आया। उसके सिर में राजा की पूछी गई चारों बातें बराबर चक्कर काटती रहीं। वह बहुतेरा सोचता, पर उसे कोई जवाब न सूझता। अपने पति को हैरान देखकर ब्राह्रणी ने पूछा, “तुम इतने परेशान क्यों दीखते हो ? मुझे बताओ, बात क्या है ?”
ब्राह्राणी ने कहा, “क्या बताऊं ! एक बड़ी ही कठिन समस्या मेरे सामने आ खड़ी हुई है। राजा के महल का जो आंगन है, वहां रोज रात को एक पक्षी आता है और चारों पहरों मे नितय नियम से चार आलग-अलग बातें कहता है। राजा पक्षी की उन बातों का मतलब नहीं समझा तो उसने मुझसे उनका मतलब पूछा। पर पक्षी की पहेलियां मेरी समझ में भी नहीं आतीं। राजा को जाकर क्या जवाब दूं, बस इसी उधेड़-बुन में हूं।”
ब्राह्राणी बोली, “पक्षी कहता क्या है? जरा मुझे भी सुनाओ।”
ब्राह्राणी ने चारों पहरों की चारों बातें कह सुनायीं। सुनकर ब्राह्राणी बोली। “वाह, यह कौन कठिन बात है! इसका उत्तर तो मैं दे सकती हूं। चिंता मत करो। जाओ, राजा से जाकर कह दो कि पक्षी की बातों का मतलब मैं बताऊंगी।”
ब्राह्राण राजा के महल में गया और बोला, “महाराज, आप जो पक्षी के प्रश्नों के उत्तर जानना चाहते हैं, उनको मेरी स्त्री बता सकती है।”
पुरोहित की बात सुनकर राजा ने उसकी स्त्री को बुलाने के लिए पालकी भेजी। ब्राह्राणी आ गई। राजा-रानी ने उसे आदर से बिठाया। रात हुई तो पहले पहर पक्षी बोला:
“किस मुख दूध पिलाऊं,
किस मुख दूध पिलाऊं ?”
राजा ने कहा, “पंडितानी, सुन रही हो, पक्षी क्या बोलता है?”
वह बोली, “हां, महाराज ! सुन रहीं हूं। वह अधकट बात कहता है।”
राजा ने पूछा, “अधकट बात कैसी ?”
पंडितानी ने उत्तर दिया, “राजन्, सुनो, पूरी बात इस प्रकार है-
लंका में रावण भयो बीस भुजा दश शीश,
माता ओ की जा कहे, किस मुख दूध पिलाऊं।
किस मुख दूध पिलाऊं ?”
लंका में रावण ने जन्म लिया है, उसकी बीस भुजाएं हैं और दश शीश हैं। उसकी माता कहती है कि उसे उसके कौन-से मुख से दूध पिलाऊं?”
राज बोला, “बहुत ठीक ! बहुत ठीक ! तुमने सही अर्थ लगा लिया।”
दूसरा पहर हुआ तो पक्षी कहने लगा :
ऐसो कहूं न दीख,
ऐसो कहूं न दीख।
राजा बोला, ‘पंडितानी, इसका क्या अर्थ है ?”
पडितानी नेसमझाया, “महाराज ! सनो, पक्षी बोलता है :
“घर जम्ब नव दीप
बिना चिंता को आदमी,
ऐसो कहूं न दीख,
ऐसो कहूं न दीख !”
चारों दिशा, सारी पृथ्वी, नवखण्ड, सभी छान डालो, पर बिना चिंता का आदमी नहीं मिलेगा। मनुष्य को कोई-न-कोई चिंता हर समय लगी ही रहती है। कहिये, महाराज! सच है या नहीं ?”
राजा बोला, “तुम ठीक कहती हो।”
तीसरा पहर लगा तो पक्षी ने रोज की तरह अपी बात को दोहराया :
“अब हम करबू का,
अब हम करबू का ?”
ब्रह्राणी राजा से बोली, “महाराज, इसका मर्म भी मैं आपको बतला देती हूं। सुनिये:
पांच वर्ष की कन्या साठे दई ब्याह,
बैठी करम बिसूरती, अब हम करबू का,
अब हम करबू का।
पांच वर्ष की कन्या को साठ वर्ष के बूढ़े के गले बांध दो तो बेचारी अपना करम पीट कर यही कहेगी-‘अब हम करबू का, अब हम करबू का ?” सही है न, महाराज !”
राजा बोला, “पंडितानी, तुम्हारी यह बात भी सही लगी।”
चौथा पहर हुआ तो पक्षी ने चोंच खोली :
“सब बम्मन मर जायें,
सब बम्मन मर जायें !”
तभी राज ने ब्रह्राणी से कहा, “सुनो, पंडितानी, पक्षी जो कुछ कह रहा है, क्या वह उचित है ?”
ब्रहाणी मुस्कायी और कहने लगी, “महाराज ! मैंने पहले ही कहा है कि पक्षी अधकट बात कहता है। वह तो ऐसे सब ब्रह्राणों के मरने की बात कहता है :
विश्वा संगत जो करें सुरा मांस जो खायें,
बिना सपरे भोजन करें, वै सब बम्मन मर जायें
वै सब बम्मन मर जायें।
जो ब्राह्राण वेश्या की संगति करते हैं, सुरा ओर मांस का सेवन करते हैं और बिना स्नान किये भोजन करते हैं, ऐसे सब ब्रह्राणों का मर जाना ही उचित है। जब बोलिये, पक्षी का कहना ठीक है या नहीं ?”
राजा ने कहा, “तुम्हारी चारों बातें बावन तोला, पाव रत्ती ठीक लगीं। तुम्हारी बुद्वि धन्य है !”
राजा-रानी ने उसको बढ़िया कपड़े और गहने देकर मान-सम्मान से विदा किया। अब पुरोहित का आदर भी राजदरबार में पहले से अधिक बढ़ गया।
"भ्रष्ट" यानी भ्रष्ट नेता,भ्रष्ट सरकारी तन्त्र, भ्रष्ट पुलिस... तमाम भ्रष्ट! तो समस्या जन्म लेती है भ्रष्ट आचरण से यानी इन सभी के पीछे है भ्रष्टाचार! और भ्रष्टाचार क्यो है? नैतिक मूल्यों की कमी से !..... राष्ट्रवादी मूल्यों के अव्मूल्यन सें !.... देश में IAS, IPS, मंत्री, नेता,वैग्यानिक,सैनिक,डाँक्टर आदि आदि हज़ार नौकरीवर,पेशेवर,विशेषग्यवर हैं जिनकी इस देश में कोई कमी नही हैं,पर जो कमी है वो इन सब मे समाहित है "भ्रष्टाचार"
"भ्रष्ट" यानी भ्रष्ट नेता,भ्रष्ट सरकारी तन्त्र, भ्रष्ट पुलिस... तमाम भ्रष्ट! तो समस्या जन्म लेती है भ्रष्ट आचरण से यानी इन सभी के पीछे है भ्रष्टाचार! और भ्रष्टाचार क्यो है? नैतिक मूल्यों की कमी से !..... राष्ट्रवादी मूल्यों के अव्मूल्यन सें !....
आज देश में जो कुछ भी गलत हो रहा हैं उसका दोष लोग नेता,सरकारी तंत्र,पुलिस और भ्रष्ट प्रशासन को देते हैं! "भ्रष्ट" यानी भ्रष्ट नेता,भ्रष्ट सरकारी तन्त्र, भ्रष्ट पुलिस... तमाम भ्रष्ट! तो समस्या जन्म लेती है भ्रष्ट आचरण से यानी इन सभी के पीछे है भ्रष्टाचार! और भ्रष्टाचार क्यो है? नैतिक मूल्यों की कमी से !..... राष्ट्रवादी मूल्यों के अव्मूल्यन सें !.... देश में IAS, IPS, मंत्री, नेता,वैग्यानिक,सैनिक,डाँक्टर आदि आदि हज़ार नौकरीवर,पेशेवर,विशेषग्यवर हैं जिनकी इस देश में कोई कमी नही हैं,पर जो कमी है वो इन सब मे समाहित है "भ्रष्टाचार" ! अब डाँक्टर बनना है तो बायोलाजी पढो, वैग्यानिक बनना है तो फ़िज़िक्स केमेस्ट्री पढो,IAS IPS बनना है तो सामान्य ग्यान, और नेता बनने को तो अंगूठा छाप भी चलेगा,उसे तो प्रधानमंत्री या राष्ट्रपती बनने में भी कोई संवैधानिक बाधा नही है! तो भईया नैतिकता आये कहाँ से? Moralscience का विषय तो शिक्षा व्यवस्था मे आप की समझ की कली खिलने से पहले ही काफ़ूर हो चलता है(चौथी पाँचवी तक) उसके बाद पाईथागोरस प्रमेय, H2O यानी २ हाइड्रोजन १ आक्सीजन बनाता है पानी, प्लासी का युध्द और मेंढक चीरने के बाद ही बडे बडे सर्टिफ़िकेट मिलते है और उसके बाद ही IAS,IPS,वैग्यानिक,सैनिक,डाँक्टर बनने की प्रशस्ती प्राप्त होती है! डाँक्टर बनने में इस बात की कोई परीक्षा नही ली जाती की वो कितना नैतिक डाँक्टर बनेगा, इंजीनियर भी ब्रिज बनाने की काबिलियत तो समझा देता है पर कितने नैतिक रूप से? इसकी परीक्षा नही होती, इसी तरह IAS,IPS को भी ईमानदारी की कोई परीक्षा नही देनी पडती, रहा नेता ... तो वो पहले से ही हर शर्त से ऎग्ज़ेम्टेड है! एक तरफ़ से हमको तो लगता है कि "भ्रष्टाचार" से किसी को परेशानी नही है,क्योंकी जब जब देश दुनिया ने कोई परेशानी को पहचाना है उसका निदान भी ढूढा है... पोलियो के लिये ड्राप आयी,हेपेटाइटिस के लिये इंजेक्शन,और AIDS के लिये कन्डोम ! पर भ्रष्टाचार निरोध हेतु न ड्राप की खोज हो रही है ना इंजेक्शन की ना तो कोई कन्डोम ही इजाद किया जा रह है... और तो और बाबा रामदेव के पास भी कपाल्भाती जैसा कुछ कारगर इस विषय में नही है! तो "भ्रष्टाचार" मिटे तो मिटे कहाँ से? ऊपर से ग्लोब्लाइजेशन से आ रहा है और उपभोगतावाद इस समय देश की किसी को नही पडी , कुछ लोग ज़रूर इस पर काम कर रहे होंगे पर वे भी क्या करें राष्ट्रहित सोचने वालो की स्थिति तो है मानो "मूस मुटाये लोढा होए"
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