| हिन्दू संस्कृति के दृष्टिकोण से एक समय में अनेक अवतार होते हैं और उन सब की संघ शक्ति से भौतिक परिवर्तन होते हैं । निश्चय ही इस बात को महत्त्व नहीं देना चाहिए कि शरीर में ईश्वरीय अंश की विशिष्ठ कलाएँ स्वीकार की जायेंगी, क्योंकि यह स्वीकार करना जनता की इच्छा के ऊपर होता है । एक काल में एक उच्च उद्देश्य की पूर्ति के लिए कभी-कभी कई अवतार एक साथ प्रकट होते हैं । रामचन्द्रजी के युग में भी परशुराम अवतार मौजूद थे । भरत और लक्ष्मण की आत्माएँ भी वैसी ही उच्चकोटी की थीं । हनुमानजी में भी दैवी कलाएँ बढ़ी-चढ़ीं थी । श्रीकृष्ण के समय पाण्डव उच्च उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक प्रकार के अवतार ही थे । महात्मा गौतम बुद्ध और महावीर भी अपने-अपने युग के दिव्य अवतार ही तो थे । इन सब में पाप का विरोध और सत्य, न्याय की स्थापना के अंश थे । इन चमत्कारी महापुरुषों ने अपने आत्म-बल से दिव्य जीवन की स्थापना की थी । अवतार मल-मूत्र की गठरी में नहीं वरन एक उच्च नैतिक आध्यात्मिक भावन-विशेष में होता है । यहाँ भावना अचानक बड़ी तीव्र गति से बढ़ जाती है, तो उसके कर्त्ता को चमत्कारी महापुरुष समझा जाता है । वास्तव में ईश्वरीय इच्छा का उस समय के व्यक्ति अनुकरण मात्र करते हैं और महत्त्व प्राप्त करते हैं । इन एक कालिक अवतारों में जो सर्वश्रेष्ठ होता है, उसे प्रधानता मिलती है । वैसे वह सब कार्य उस अकेला का नहीं होता । अन्य आत्माओं की शक्ति भी उतनी ही और कई बार उससे भी अधिक लगती है, तब कहीं जाकर वह उद्देश्य पूर्ण होता है । राक्षसों का नाश करने में राम के अन्य साथियों की जो क्षमता थी, उसे भुलाया नहीं जा सकता । लंका का नाश करने में क्या वानर सेना तथा अन्य योद्धाओं ने कुछ नहीं किया था? क्या श्री लक्ष्मणजी की वीरता कुछ कम थी? अहिरावण के यहाँ कैद हुए राम-लक्ष्मण को छुड़ाने वाले महाबली हनुमान को क्या कुछ कम समझा जा सकता है? गोवर्द्धन उठाने में ग्वालों को सहयोग क्या उपेक्षणीय था? महाभारत के धर्म-युद्ध में क्या अकेले ही श्रीकृष्ण विजेता थे? वास्तविक यह है कि हिन्दू संस्कृति के दृष्टिकोण से एक समय में अनेक अवतार होते हैं और उन सब की संघ शक्ति से भौतिक परिवर्तन होते हैं । |
हिन्दू जागरण मंच :: नहीं चाहिए हिन्दुओं को ऐसी धर्मनिर्पेक्षता जो हिन्दुओं की आस्था से खिलवाड़ कर व हिन्दुओं का खून बहाकर फलती फूलती है । आज इसी वजह से जागरूक हिन्दू इस धर्मनिर्पेक्षता की आड़ में छुपे हिन्दूविरोधियों को पहचान कर अपनी मातृभूमि भारत से इनकी सोच का नामोनिशान मिटाकर इस देश को धर्मनिर्पेक्षता द्वारा दिए गये इन जख्मों से मुक्त करने की कसम उठाने पर मजबूर हैं।
Tuesday 28 December 2010
अवतार होगा? :: :: हिन्दू संस्कृति के दृष्टिकोण से एक समय में अनेक अवतार होते हैं और उन सब की संघ शक्ति से भौतिक परिवर्तन होते हैं ।
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