Wednesday, 7 December 2011

क्या सोचकर इस जश्न मे शरीक होवे?

जहां तक इन्सानों का सवाल है, मै समझता हू कि इस दुनिया मे भिन्न-भिन्न विचारधाराओं मे चार प्रकार का दृष्टिकोण रख्नने वाले लोग पाये जाते है, पहला आशावादी और दूसरा निराशावादी ( ये दोनो ही मिश्रित दृष्टिकोण वाले भी कहे जा सकते है ) तीसरा होता है घोर आशावादी और चौथा घोर निराशावादी। घोर आशावादी और घोर निराशावादी इन्सान आप शेयर मार्केट के उन तेजडियों और मंदडियों को कह सकते है, जो बाजार मे विपरीत परिस्थितियां होने के बावजूद भी शेयरों से इसी उम्मीद पर खेलते है कि आज मार्केट चढेगा अथवा उतरेगा। यह कतई मत सोचिये कि मै आप लोगो को लेक्चर दे रहा हू, बस यूं समझिये कि भूमिका बंधा रहा हू। मालूम नही लोग इस लेख को पढ्कर मुझे उपरोक्त मे से किस श्रेणी मे रखते है लेकिन इतना जरूर कहुंगा कि वर्तमान परिस्थितियों मे मुझे तो दूर-दूर तक अपने इस दृष्टिकोण मे बद्लाव के लिये आशा की कोई किरण नजर नही आ रही।

जैसा कि आप सभी जानते है कि देश आज प्रत्यक्ष तौर पर अंग्रेजी दास्ता से मुक्ति की चौसठ्वी वर्षगाठ मना रहा है, यानि कहने को स्वराज मिले हुए त्रेसठ साल पूरे हो गये। लेकिन यहां के आम जन से मै कहुंगा कि अपने दिल पर हाथ रखकर पूछे कि क्या हम सचमुच मे आजाद है? क्या इसी रामराज के लिये अनेक स्वतन्त्रता संग्राम सैनानियो ने अपने तन, मन, धन की आहुति दी थी? क्या वर्तमान हालातों को देखकर आपको नही लगता कि आजादी सिर्फ़ उन कुछ चाटुकारों को मिली जिनके पुरखों ने पहले मंगोलो और मुगल आक्रमणकारी लुटेरों के तलवे चाटे, फिर अंग्रेजो की सेवा भक्ति मे अपना जीवन धन्य बनाया और आज कुर्सी के लिये किसी भी हद तक गिरकर सत्ता हथिया ली है?क्या आजादी सिर उनको नही मिली जो पहले काले कपडे पहनकर रात को लोगो के घरों मे सेंध लगा कर माल लूटते थे, अत्याचार करते थे और आज वे सफ़ेद पोशाकों मे खुले-आम लोकतंत्र की दुहाई देकर रौब से कर रहे है? क्या सही मायने मे आजादी उन मुसलमानों को नही मिली जो इस देश का एक बडा भू-भाग भी ले गये और आज तक हमारी छातियों मे मूंग दल रहे है? क्या आजादी उन मलाई खाने वाले आरक्षियों को नही मिली जो हमारा और हमारे बच्चो का इस बिनाह पर हक मार रहे है कि उनके पूर्वजों का हमारे पूर्वजों ने शोषण किया था, इसलिये वो आजादी का नाजायज फायदा ऊठाकर हमसे न सिर्फ़ बद्ला ले रहे है, बल्कि अकुशल और अक्षम होने के बावजूद भी उच्च पदों पर बैठकर न सिर्फ़ भ्रष्टाचार पैला रहे है अपितु अकुशलता की वजह से इस देश की परियोजनाओं की ऐसी-तैसी कर देश के आधारभूत ढांचे के लिये भविष्य के लिये खतरे के बीज बो रहे है?

देश प्रत्यक्षतौर पर आजाद हुआ, मगर हमे इससे क्या मिला? उल्टे हमारे समान रूप से जीने के अधिकारों को छीना जा रहा है। सत्ता पर काविज चोर-उच्चके दोनो हाथो से हमारी मेहनत की कमाई के टैक्स की रकम को लूटकर विदेशो मे उन्ही अंग्रेजो के बैंको मे उनके ऐशो आराम के लिये पहुंचा रहे है, जिनसे मिली आजादी का जश्न हम मना रहे है। इतनी आजादी तो हमारे पास अग्रेंजो के दौर मे भी थी, बल्कि यो कहे कि उन्होने सिर्फ़ वहा लोगो का दमन किया, जहां लोगो से उन्हे उनके एकछत्र राज को चुनौती मिली, अन्यथा तो मै समझता हू कि उन्होने किसी की व्यक्तिगत आजादी मे कोई हस्त:क्षेप नही किया। कानून व्यवस्था भी एकदम दुरस्थ रखी। जो लोग ये तर्क देते है कि उन्होने हमारे बीच फूट डालो और राज करो की नीति अपनाई, उनसे पूछ्ना चाहुंगा कि इस आजाद देश मे आज और भला क्या हो रहा है? हो सकता है कि बहुत से लोग मेरी उपरोक्त कही हुई बातों से इत्तेफाक न रखे मगर सच्चाई दुर्भाग्यबश यही है। और यह भी नही है कि इस आजदी से देश के किसी भी गरीब तबके को लाभ मिल रहा हो, बस फायदा वही उठा रहे है जो येन-केन प्रकारेण इस तथाकथित आजादी का फायदा उठाने के लिये किसी भी हद तक चले जाते है। मैने ऊपर प्रत्यक्ष आजादी शब्द का इस्तेमाल इसलिये किया क्योंकि कटुसत्य यह है कि अप्रत्यक्ष तौर पर हम आज भी ऐलिजाबेथ के ही गुलाम है। वो जो कुछ लोग तर्क देते है कि भले लोगो को आगे आकर इस देश की बागडोर सम्भालनी चाहिये, उनसे यही कहुंगा कि भले लोगो को इस देश के वोटर क्या सचमुच प्राथमिकता देते है? और दूसरा यह कि इन हालात मे सता तक पहुंचने के लिये कोइ भी ईमान्दार इन्सान उस हद तक नही गिर सकता, जिस हद तक ये आज के ज्यादातर पोलीटीशियन गिरते है।

और हमारे युवा वर्ग को समझना होगा कि दुर्भाग्य बश हमारे देश का यह लम्बा इतिहास रहा है कि इसे बार-बार गुलामियों का दर्द झेलना पडा, और आज जो हालात बनते जा रहे है वो हमे एक और प्रत्यक्ष गुलामी की ओर धकेल सकते है। आज के युवा-वर्ग को समझना होगा कि भ्रष्ठाचार और दगाबाजी हम हिन्दुस्तानियों के खून मे है, जिसे प्युरिफ़ाई करने की सख्त जरुरत है। जब हम लोग देश मे कुछ गलत होता देखते, सुनते है तो तुरन्त यह कहते है कि अशिक्षा की वजह से ऐसा हो रहा है। लेकिन नही यह तर्क भी सरासर गलत है। आपने देखा होगा कि हाल ही मे हमारे उच्च शिक्षित लोगो जैसे थरूर, कौमन वेल्थ के दरवारी इत्यादी ( लम्बी लिस्ट है) ने भी हमे निराश ही किया है। आप देखिये कि आज जब हम किसी विमान मे यात्रा कर रहे होते है तो यह मान कर चलिये कि उसमे से १००% लोग उच्च शिक्षित होते है, कितने लोग विमान परिचालकों के निर्देश का ईमान्दारी से पालन करते है ? आये दिन सड्को पर शराब पीकर रस ड्राईविग और उसके बाद के ड्रामे के हमारे युवा वर्ग के किस्से आम नजर आते है। खैर,बहुत देर होने से पहले आशा और उम्मीद की कुछ किरणें अभी भी बाकी है, उम्मीद यही रखता हूं कि शायद नई भोर आ जाये ! तब तक
आप सभी को भी इस आजादी की वर्षगांठ की हार्दिक शुभ-कामनाये!
मेरे वतन के लोगो !

चोर, लुच्चे-लफंगों के तुम और न कृतार्थी बनो,
जागो देशवासियों, स्वदेश में ही न शरणार्थी बनो !

भूल गए,शायद आजादी की उस कठिन जंग को ,
खुद दासता न्योताकर, अब और न परमार्थी बनो !

पाप व भ्रष्टाचार, लोकतंत्र के मूल-मन्त्र बन गए,
आदर्श बिगाड़, भावी पीढी के न क्षमा-प्रार्थी बनो !

ये विदूषक, ये अपनी तो ठीक से हांक नहीं पाते,
इन्हें समझाओ कि गैर के रथ के न सारथी बनो!

गैस पीड़ितों के भी इन्होने कफ़न बेच खा लिए,
त्याग करना भी सीखो, हरदम न लाभार्थी बनो !

वरना तो, पछताने के सिवा और कुछ न बचेगा ,
वक्त है अभी सुधर जाओ,अब और न स्वार्थी बनो!
जय हिंद !

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