Wednesday, 7 December 2011

श्री दुर्गा चालीसा

 

श्री दुर्गा चालीसा



नमो नमो दुर्गे सुख करनी । नमो नमो अम्बे दुःख हरनी ।।

निराकार है ज्योति तुम्हारी । तिहूं लोक फैली उजियारी ।।

शशि ललाट मुख महा विशाला । नेत्र लाल भृकुटी विकराला ।।

रुप मातु को अधिक सुहावे । दरश करत जन अति सुख पावे ।।

तुम संसार शक्ति लय कीना । पालन हेतु अन्न धन दीना ।।

अन्नपूर्णा हुई जग पाला । तुम ही आदि सुन्दरी बाला ।।

प्रलयकाल सब नाशन हारी । तुम गौरी शिव शंकर प्यारी ।।

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें । ब्रहृ विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ।।

रुप सरस्वती को तुम धारा । दे सुबुद्घि ऋषि मुनिन उबारा ।।

धरा रुप नरसिंह को अम्बा । प्रगट भई फाड़कर खम्बा ।।

रक्षा कर प्रहलाद बचायो । हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो ।।

लक्ष्मी रुप धरो जग माही । श्री नारायण अंग समाही ।।

क्षीरसिन्धु में करत विलासा । दयासिन्धु दीजै मन आसा ।।

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी । महिमा अमित न जात बखानी ।।

मातंगी धूमावति माता । भुवनेश्वरि बगला सुखदाता ।।

श्री भैरव तारा जग तारिणि । छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ।।

केहरि वाहन सोह भवानी । लांगुर वीर चलत अगवानी ।।

कर में खप्पर खड्ग विराजे । जाको देख काल डर भाजे ।।

सोहे अस्त्र और तिरशूला । जाते उठत शत्रु हिय शूला ।।

नगर कोटि में तुम्ही विराजत । तिहूं लोक में डंका बाजत ।।

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे । रक्तबीज शंखन संहारे ।।

महिषासुर नृप अति अभिमानी । जेहि अघ भार मही अकुलानी ।।

रुप कराल कालिका धारा । सेन सहित तुम तिहि संहारा ।।

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब । भई सहाय मातु तुम तब तब ।।

अमरपुरी अरु बासव लोका । तब महिमा सब रहें अशोका ।।

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी । तुम्हें सदा पूजें नर नारी ।।

प्रेम भक्ति से जो यश गावै । दुःख दारिद्र निकट नहिं आवे ।।

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई । जन्म-मरण ताको छुटि जाई ।।

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी । योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ।।

शंकर आचारज तप कीनो । काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ।।

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को । काहू काल नहिं सुमिरो तुमको ।।

शक्ति रुप को मरम न पायो । शक्ति गई तब मन पछतायो ।।

शरणागत हुई कीर्ति बखानी । जय जय जय जगदम्ब भवानी ।।

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा । दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ।।

मोको मातु कष्ट अति घेरो । तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ।।

आशा तृष्णा निपट सतवे । मोह मदादिक सब विनशावै ।।

शत्रु नाश कीजै महारानी । सुमिरों इकचित तुम्हें भवानी ।।

करौ कृपा हे मातु दयाला । ऋद्घि सिद्घि दे करहु निहाला ।।

जब लगि जियौं दया फल पाऊँ । तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ।।

दुर्गा चालीसा जो नित गावै । सब सुख भोग परम पद पावै ।।

देवीदास शरण निज जानी । करहु कृपा जगदम्ब भवानी ।।

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