Saturday, 21 February 2015

संख्या 108 का महत्व

108 का रहस्य ! (The Mystery of 108) वेदान्त में एक
मात्रकविहीन सार्वभौमिक ध्रुवांक
108 का उल्लेख मिलता है जिसका हजारों
वर्षों पूर्व हमारे ऋषियों
(वैज्ञानिकों) ने अविष्कार किया था l
मेरी सुविधा के लिए मैं मान लेता
हूँ कि, 108 = ॐ (जो पूर्णता का द्योतक
है) प्रकृति में 108 की विविध
अभिव्यंजना : 1. सूर्य और पृथ्वी के
बीच की दूरी/सूर्य का व्यास = 108 = 1 ॐ
150,000,000 km/1,391,000 km = 108 (पृथ्वी और सूर्य के
बीच 108 सूर्य सजाये जा सकते हैं) 2.
सूर्य का व्यास/ पृथ्वी का व्यास = 108 =
1 ॐ 1,391,000 km/12,742 km = 108 = 1 ॐ सूर्य के व्यास पर
108 पृथ्वियां सजाई सा सकती हैं . 3.
पृथ्वी और चन्द्र के बीच की
दूरी/चन्द्र का व्यास = 108 = 1 ॐ 384403 km/3474.20 km
= 108 = 1 ॐ पृथ्वी और चन्द्र के बीच १०८
चन्द्रमा आ सकते हैं . 4. मनुष्य की
उम्र 108 वर्षों (1ॐ वर्ष) में पूर्णता
प्राप्त करती है . वैदिक ज्योतिष के
अनुसार मनुष्य को अपने जीवन काल में
विभिन्न ग्रहों की 108 वर्षों की
अष्टोत्तरी महादशा से गुजरना
पड़ता है . 5. एक शांत, स्वस्थ और
प्रसन्न वयस्क व्यक्ति 200 ॐ श्वास
लेकर एक दिन पूरा करता है . 1 मिनट में
15 श्वास >> 12 घंटों में 10800 श्वास >>
दिनभर में 100 ॐ श्वास, वैसे ही रातभर
में 100 ॐ श्वास 6. एक शांत, स्वस्थ और
प्रसन्न वयस्क व्यक्ति एक मुहुर्त
में 4 ॐ ह्रदय की धड़कन पूरी करता है .
1 मिनट में 72 धड़कन >> 6 मिनट में 432
धडकनें >> 1 मुहूर्त में 4 ॐ धडकनें ( 6
मिनट = 1 मुहूर्त) 7. सभी 9 ग्रह (वैदिक
ज्योतिष में परिभाषित) भचक्र एक
चक्र पूरा करते समय 12 राशियों से
होकर गुजरते हैं और 12 x 9 = 108 = 1 ॐ 8. सभी 9
ग्रह भचक्र का एक चक्कर पूरा करते
समय 27 नक्षत्रों को पार करते हैं और
प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते
हैं और 27 x 4 = 108 = 1 ॐ 9. एक सौर दिन 200 ॐ विपल
समय में पूरा होता है. (1 विपल = 2.5
सेकेण्ड) 1 सौर दिन (24 घंटे) = 1
अहोरात्र = 60 घटी = 3600 पल = 21600 विपल = 200 x 108 =
200 ॐ विपल *** 108 का आध्यात्मिक अर्थ *** 1
सूचित करता है ब्रह्म की
अद्वितीयता/एकत्व/पूर्णता को 0
सूचित करता है वह शून्य की अवस्था
को जो विश्व की अनुपस्थिति में
उत्पन्न हुई होती 8 सूचित करता है उस
विश्व की अनंतता को जिसका अविर्भाव
उस शून्य में ब्रह्म की अनंत
अभिव्यक्तियों से हुआ है . अतः
ब्रह्म, शून्यता और अनंत विश्व के
संयोग को ही 108 द्वारा सूचित किया
गया है . जिस प्रकार ब्रह्म की
शाब्दिक अभिव्यंजना प्रणव ( अ उ म् )
है और नादीय अभिव्यंजना ॐ की ध्वनि
है उसी प्रकार ब्रह्म की गाणितिक
अभिव्यंजना 108 है .!!

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