Thursday, 3 March 2011

काला-धन-काली कमाई और राजनीति

काला-धन-काली कमाई और राजनीति

देश की सुरक्षा से खिलवाड़ कर इस काली कमाई के  श्रोत में हथियारों का सौदा और मादक पदार्थों की तस्करी तक शामिल है ,इन सभी लोगों जिनमे ताक़तवर राजनैतिक लोग  ,भ्रष्ट आफिसर्स सहित पूंजीपति शामिल हैं  क्यों सरकार सिर्फ कर चोरी के पहलु तक ही सीमित है? क्यों  नहीं इन सभी पर देशद्रोह का मामला दर्ज कर ऐसी सज़ा दी जाए  की इस दुष्कृत्य पर हमेशा हमेशा के लिए रोक लग जाए

देश की खून पशीने की गाढी कमाई का बड़ा भाग लगभग ६७००० हज़ार अरब रूपये अवैध रूप से स्विस बैंक में ज़मा हैं ,इस रकम से देश की गरीबी,भुखमरी,शिक्षा,चिकित्सा जैसी अनेक ज्वलंत  समस्याएँ जो सुरसा राक्षशी  की तरह मुह बाए खड़ी हैं  का निदान आसानी से हो  सकता है ,इस देश पर राज अब कहने को प्रजा तंत्र के माध्यम से “जनता की-जनता के लिए और जनता के द्वारा” के सर्वोपरि सिधान्त को आधार मान कर हो रहा है किन्तु वास्तव में क्या ये सरकारें देश के लिए सोचती या कुछ करती हैं ?क्या इनमे इस दिशा में शशक्त कदम उठाने की प्रबल इच्छा शक्ति है ? नहीं बिल्कुल भी नहीं तभी तो सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया है की काले धन को जमा करने वालों का नाम स्विस बैंक से उजागर होने के बाद क्या कदम उठाया  गया?काला धन जमा करनेवाले लोगों और कंपनियों के खिलाफ क्या किया  गया ?यहाँ तक की कोर्ट ने शंका जताई है की देश की सुरक्षा से खिलवाड़ कर इस काली कमाई के  श्रोत में हथियारों का सौदा और मादक पदार्थों की तस्करी तक शामिल है ,इन सभी लोगों जिनमे ताक़तवर राजनैतिक लोग  ,भ्रष्ट आफिसर्स सहित पूंजीपति शामिल हैं  क्यों सरकार सिर्फ कर चोरी के पहलु तक ही सीमित है? क्यों  नहीं इन सभी पर देशद्रोह का मामला दर्ज कर ऐसी सज़ा दी जाए  की इस दुष्कृत्य पर हमेशा हमेशा के लिए रोक लग जाए ,बिना कड़ी कार्यवाही और प्रबल इच्छा शक्ति के केवल बातें ही बातें होंगी यथार्थ में कुछ भी नहीं ,स्विस बैंक एक ऐसा बैंक माध्यम है जिसमे अकाउंट खोलने वाले का नाम तक नहीं लिखा जाता केवल खाता नम्बर ही दिखाई देता है वास्तविक खातेदार का नाम केवल उच्च अधिकारीयों को ही पता होता है ये पूरी गोपनीयता का पालन करतें हैं , इसी लिए दुनिया भर के काली कमाई के लोगों का पसंदीदा स्थल स्विस बैंक ही होता है ,दुनिया के  कुछ देश ऐसे भी हैं , जिन्होनें अपनी प्रबल और ईमानदार कोशिशों से इस पर अंकुश लगाया भी है ,उन सभी से सबक लेकर हमारे देश में भी ठोस सार्थक पहल करनी होगी तभी कुछ हो सकेगा अन्यथा हम केवल लाप-विलाप -प्रलाप करते ही रह जायेंगे.उच्चत्तम न्यायलय कालेधन की वापसी को लेकर आस की किरण जगा रहा ,देश का आम नागरिक  चाहता है की किसी भी कीमत पर यह कालाधन देश में वापस ज़रूर आना चाहिए किंतुं सरकार “संधियों के मकड़जाल” की आड़ लेकर इससे बचने का पूरा पूरा प्रयास कर रही है ये भूल रहें हैं की इस देश में ४० करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे का जीवन जी रहें हैं जब की कुल ज़मा धन का मात्र  ३०% हिस्सा ही  करीब २० करोड़ नई नौकरियां पैदा कर स्वावलंबन की और लेजाकर बेरोज़गारी की समस्या को हल कर सकता है ,भारत प्रतिवर्ष प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में फिलहाल जितना खर्च करता है ,उसकी अगले १५० साल तक इस कालेधन से व्यवस्था हो सकती है,देशके अर्थशाष्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने वादा किया था की अपने कार्यकाल के सौ दिन के भीतर विदेशों में ज़मा धन वापस लाने की प्रक्रिया वे शुरू कर देंगें किन्तु वे भी अब अर्थशाष्त्री प्रधानमंत्री के बजाय कांग्रेसी प्रधानमन्त्री साबित हो रहें हैं .हाल ही में किये गए एक विश्वशनीय आकलन में स्पष्ट किया गया है की भारत में पिछले ६० वर्षों में भ्रष्ट लोगों ने करीब ६५० अरब डालर यानी ३४ लाख करोड़ रुपये का कालाधन बनाया है जो इस देश के सकल घरेलु उत्पाद का ५० प्रतिशत के बराबर है ,इस पर भी मज़े की बात ये है की लगभग ४७० अरब डालर यानी २५ लाख करोड़ रुपये विदेशों में ज़मा किये गएँ हैं ,इस वक्त मुझे परम आदरणीय अटल जी की ये पंक्तियाँ फिर याद आ .रही हैं की “ना दीन-ना ईमान-नेता बेईमान-फिर भी मेरा भारत महान”……अंत में कहने लिखने को बहुत कुछ है किन्तु इस प्रार्थना के साथ अपनी बात पूरी करूँगा की “ईश्वर अल्हा तेरो नाम -सबको सम्मति दे भगवान् ”

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