रुपया रसातल को जा रहा है; कोलगेट के दस्तावेज गायब किये जा रहे हैं; इधर चीनी घुसपैठ बढ़ रहा है, तो उधर पाकी हमले; पब्लिक ट्रेन से कटकर मर रही है; ललनायें दुष्कर्म का शिकार हो रही हैं; नौनिहाल स्कूली भोजन खाकर काल के गाल में समा रहे हैं... और मैं कभी बारिश के पानी में कागज की कश्ती चला रहा हूँ, ... क्या हो गया है मुझे? क्या मैं निस्पृह हो गया हूँ- देश-दुनिया-समाज से?
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