राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
संघ का इतिहासराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना कलकत्ता से डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी कर क्रांतिकारियों के प्रभाव व राष्ट्रभक्ति से भरपूर तात्कालीन परिदृश्य को बदलने की इच्छा के चलते डॉ. केशव बलीराम हेडगेवार ने नागपुर में 27 सितंबर 1925 को की थी। इसकी स्थापना हेडगेवार ने पांच लोगों के साथ मिलकर विजयदशमी के दिन की थी। वर्तमान में संघ दुनिया का सबसे बड़ा समाज सेवी संगठन है, जो पूरी दुनिया में सक्रिय है। म्यांमार में यह सनातन धर्म स्वयं सेवक संघ के नाम से जाना जाता है तो मॉरीशस में यह मॉरीशस स्वयंसेवक संघ के नाम से काम करता है।
मोहन भागवत दूसरे सबसे युवा संघचालक
59 साल की आयु में संघ चालक बनने वाले मोहन भागवत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दूसरे सबसे युवा संघ चालक हैं। इनसे पहले डॉ. माधव सदाशिव गुरुजी गोलवलकर ऐसे संघ चालक थे जो सबसे युवा थे। मोहन भागवत का जन्म 1950 में महाराष्ट्र के चंद्रपुर में हुआ था। वे बचपन में ही संघ से जुड़ गए थे। जिसके बाद किशोरावस्था में अकोला के जिला प्रचारक बने। यहां से नागपुर फिर बिहार तक का सफर किया। सुदर्शन जब संघ प्रमुख बने तो भागवत दूसरे प्रमुख पद सर कार्यवाहक पर बैठाए गए। जिसके बाद ही यह तय हो गया था कि सुदर्शन के बाद भागवत ही संघ की कमान संभालेंगे।
हर जगह पैठ है संघ की
संघ की ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि संघ की पहुंच समाज के हर तबके में है। चाहे स्कूल कॉलेज हो, आदिवासी इलाके हो या फिर दिल्ली का राजनैतिक गलियारा। भारतीय जनता पार्टी, विश्व हिंदू परिषद, अभा विद्यार्थी परिषद, भारतीय मजदूर संघ, विद्या भारती, भारतीय किसान संघ आदि। कुछ संबंधित संगठन भी हैं, जैसे - दीनदयाल शोध संस्थान, प्रज्ञा भारती, संस्कार भारती, वनवासी कल्याण परिषद, अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत एवं सेवा भारती वगैरह।
छात्र राजनीति में संघ अभा विद्यार्थी परिषद के रूप में काम करता है तो आदिवासी इलाको में वनवासी कल्याण परिषद का बैनर है। इसी तरह कर्मचारियों के बीच भारतीय मजदूर संघ के रूप में देखा जा सकता है। स्कूलों में विद्या भारती तो समाज में विश्व हिंदू परिषद के रूप में यह कार्यरत है। संघ कभी भी अपने आपको एक राजनैतिक संस्था नहीं मानता है लेकिन भाजपा को पूरी तरह समर्थन देता है। या यूं कहें कि संघ का राजनीतिक चेहरा भारतीय जनता पार्टी है। संघ समय समय पर अपने वरिष्ठ कार्यकत्ताओं को भाजपा में भेजता है ताकि संघ और पार्टी में समन्वय बना रहा।
भारतीय जनता पार्टी : भारतीय जनता पार्टी की स्थापना छह अप्रैल 1980 को हुई थी। भाजपा संघ से निकली एक शाखा है। भाजपा भारतीय जनसंघ का नया रूप है। 1951 में गुरुजी के आर्शीवाद से डॉ.श्यामाप्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में भारतीय जनसंघ की स्थापनी की गई थी। जनसंघ ने आपातकाल के दौरान जय प्रकाश नारायण के साथ जुड़ कर इंदिरा गांधी का जोरदार ढंग से विरोध किया था। 1980 में भाजपा के जन्म के साथ ही देश में एक नई राजनीति का जन्म हुआ। भाजपा के कई वरिष्ठ नेता संघ के कार्यकर्ता के रूप में काम करते रहे। जिसके लिए काफी विवाद भी हुआ। लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेताओं ने साफ तौर पर कहा कि हम अपनी मातृ संस्था को नहीं छोड़ सकते। 1951-1977 तक भारतीय जन संघ फिर जनता पार्टी और फिर 1980 में भारतीय जनता पार्टी के नाम से यह काम कर रही है।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद : अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद दुनिया का सबसे बड़ा छात्र संगठन है। इसका मूल मंत्र ज्ञान, शील और एकता है। इसकी स्थापना नौ जुलाई 1959 को मुंबई में हुई थी। इसकी स्थापना का श्रेय प्रोफेसर ओमप्रकाश बहल को दिया जाता है। इस संगठन का मूल उद्देश्य राष्ट्रीय पुननिर्माण है। इसकी चार स्तरीय इकाईयां होती है। पहली कॉलेज इकाई, दूसरी नगर इकाई, तीसरी प्रांत इकाई और चौथी राष्ट्रीय इकाई। इसे संघ की छात्र शाखा कहा जा सकता है क्योंकि जब इसकी स्थापना हुई थी तो भाजपा कहीं भी अस्तिव में नहीं थी।
बजरंग दल : बजरंग दल, संघ परिवार और विश्व हिंदू परिषद की कड़ी का युवा चेहरा है। इसकी स्थापना एक अक्टूबर 1984 को उत्तर प्रदेश में की गई थी, जिसके बाद इसका विस्तार पूरे भारत में होता गया। बजरंग दल के दावे पर विश्वास करें तो देश भर में इसके 1.30 करोड़ सदस्य और 85 लाख कार्यकर्ता हैं। संघ की शाखा की तरह बजरंग दल अखाड़ा चलाती है। जिनकी संख्या ढाई हजार के आसपास है। बजरंग दल का सूत्रवाक्य सेवा, सुरक्षा और संस्कृति है।
क्या है शाखा
संघ की सबसे बड़ी शक्ति उसकी शाखा है जो पूरे देश में लगती है। यह शाखा किसी सार्वजनिक स्थान पर 1-2 घंटे के लिए लगती है। जिसमें बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक शामिल होते हैं। आज संघ की देशभर में लगभग 45-50 हजार शाखाएं हैं और 45 लाख स्वयंसेवक हैं। इन शाखाओं में व्यायाम, योग के साथ सभ्य समाज में कैसे योगदान दिया जाए, सिखाया जाता है। इसी के साथ भारतीय संस्कृति की रक्षा के साथ आपत्ति के समय कैसे लोगों की मदद की जाए, यह भी शाखा में सिखाया जाता है।
संघ की आलोचनाएं
देश के राष्ट्रपति महात्मा गांधी की हत्या करने वाला नाथूराम गोडसे संघ का ही कार्यकर्ता था। महात्मा गांधी की कथित मुस्लिम तुष्टीकरण नीति से गुस्सा होकर 1948 में नाथूराम गोडसे ने गांधी की हत्या कर दी थी। जिसके बाद संघ पर प्रतिबंध लगाया दिया गया था। लेकिन जांच के बाद संघ को इस आरोप से बरी कर प्रतिबंध समाप्त कर दिया गया। संघ के आलोचकों द्वारा संघ को एक अतिवादी दक्षिणपंथी संगठन बताया जाता है। इसके साथ हिंदूवादी और फासीवादी संगठन के तौर पर भी संघ को प्रचारित किया जाता है। लेकिन संघ इन आरोपों से इंकार करते हुए कहता है कि हम हिंदू हित की बात करते हैं जो कि जायज है।
कितनी बार पाबंदी?
26-02-1948 गांधी हत्या के ठीक बाद (12-07-1949 को बिना शर्त हटी)
04-07-1975 आपातकाल के समय (23-03-1977 को सरकार बदलने से हटी)
10-12-1992 विवादित ढांचा ढहने के बाद (न्यायालय ने 04-06-1993 को हटाई)
कौन-कौन कर्णधार?
डॉ. केशव बलीराम हेडगेवार (1925-1940)
डॉ. माधव सदाशिव गुरुजी गोलवलकर (1940-1973)
बालासाहब देवरस (1973-1993-94)
प्रो. राजेंद्र सिंह (रज्जू भैय्या) (1994-2000)
के. सी. सुदर्शन (2000-2009)
मोहन भागवत (मार्च 2009 से)
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