Sunday 31 July 2011

आज महान शहीदे आजम सरदार उधम सिंहजी की पुण्य तिथि है ---श्रद्धांजलि


आज महान शहीदे आजम सरदार उधम सिंहजी की पुण्य तिथि है | आज ही के दिन उन्हें इंग्लेंड मैं फंसी दी गई थी | (पेश हैं उनका जीवन-परिचय ) ==============================​============================ इनके जीवन की महत्वपूर्ण विशेषता थी :- सही अवसर के इंतज़ार में तैयारी करते हुए प्रतीक्षा करते रहना | अन्य क्रांतिकारी व्यक्तियों और संगठनों में पाई जाने वाली अधीरता का नामो निशान जल्दी नहीं मिलता है | वे इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि उन्हें अपने परिवेश में देशभक्ति से भरे अच्छे नेता या 'रोल माडल' उपलब्ध नहीं थे | जहां तक परिवार की बात है :-वह तो था ही नहीं |उधम सिंह का जन्म पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गाँव में सरदार टहल सिंह के घर हुआ था | टहल सिंह का शुरूआती नाम 'चुहाड़ सिंह' था | उसके के बाद उनका नाम टहल सिंह रखा गया | परिवार की छोटी सी खेती बाड़ी थी | टहल सिंह के लिए खेती बाड़ी काफी नहीं थी | परिवार को आगे भी बढ़ाना था | रोजगार के लिए पूँजी उपलब्ध नहीं थी | इस हालत में टहल सिंह ने रेलवे की नौकरी कर ली | कोई बड़ा पद नहीं था | बड़ी जिम्मेदारी भी नहीं थी | सुनाम के पड़ोसी गाँव उपाल के रेलवे क्रासिंग पर चौकीदारी करनी थी | चौकीदार इसलिए रखे जाते थे ताकि गाड़ियों के आने जाने के समय सड़क मार्ग से आने वाले लोगों को टकराने से बचाया जा सके और रेल संपत्तियों की रक्षा भी की जा सके | इस वर्णन से सरदार टहल सिंह उर्फ़ चुहाड़ सिंह की बौद्धिक- आर्थिक हैसियत का अंदाजा लगाया जा सकना मुश्किल नहीं है |   उधम सिंह के बड़े भाई का नाम मुक्ता सिंह था | बाद में उनका नाम साधू सिंह रखा गया | उधम सिंह के बचपन का नाम शेर सिंह था | दोनों भाइयों को अनाथ करते हुए माता संसार से कूच कर गयीं | माता जी के पीछे पीछे सरदार टहल सिंह भी गुजर गए | जो छोटा सा आशियाँ था वो भी उजड़ गया | भरी दुनिया खाली हो गयी | कोई चारा नहीं था | इस हालत में भाई किशन सिंह रागी ने दोनों भाइयों को अमृतसर के खालसा अनाथालय में भर्ती करा दिया | इसी अमृतसर को पृष्ठभूमि में रखते हुए चंद्रधर शर्मा "गुलेरी" ने उसने कहा था जैसे प्रख्यात रोमांटिक कहानी की रचना की थी | यह कहानी इतनी हिट हुई की बाद के दिनों में बिमल राय ने सुनील दत्त और नंदा को कास्ट करते हुए 1960 में फिल्म का निर्माण किया था | बहरहाल इन दोनों भाइयों की जिन्दगी में रोमांस और एडवंचर का नामों निशान तक नहीं था | दोनों भाइयों को जीवन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए तरह तरह की शिक्षा दी जाने लगी | साधू सिंह तो आत्मनिर्भर क्या होता, दुनिया छोड़ चला | 1917 में साधू का भी स्वर्गवास हो गया | सरदार उधम सिंह पूरी तरह से अकेले हो गए | पर इसने हिम्मत नहीं हारी | पढाई जारी रखी और 1918 में मैट्रिक (अभी का दसवी)पास कर लिया |   1919 के साल ने उधम सिंह के जीवन में बड़े बदलाव लाया | जलियाँ वाला बाग़ में 13 अप्रैल के दिन सैकड़ों मासूमों को निर्मम जनरल डायर ने गोलियों से भून दिया था | उधम सिंह और अनाथाश्रम के साथी सभा में पानी बाँट रहे थे | संयोगवश गोली चलने के कुछ देर पहले ही वो वापस हो चुके थे | इस निर्मम हत्याकांड ने सारे देश को उद्वेलित कर दिया | जिनके अपने इस जघन्य घटना में मरे वे तो गुस्से में थे ही,राष्ट्रवाद से प्रेरित युवा भी पीछे नहीं थे | उधम का अपना कोई बचा ही नहीं था जो इस हादसे का शिकार होता | तब भी इस घटना ने उसके मन में साम्राज्यवाद के विरुद्ध नफरत को स्थापित कर दिया | उधम ने अनाथाश्रम छोड़ दिया | अधिकाँश लोगों के जीवन की समस्या यह होती है कि उनके पास कोई लक्ष्य नहीं होता | भटकाव और बोरियत से जीवन बोझिल हो जाता है या कई तरह के प्रयोग शुरू हो जाते हैं | पर उधम सिंह के साथ ऐसा नहीं था | उन्हें अपने जीवन का लक्ष्य मिल चुका था,साम्राज्यवादी शासन और माइकल डायर से प्रतिशोध | यह मनःस्थिति उधम सिंह को क्रांतिकारी राष्ट्रवादी मार्ग पर ले गयी | वे भूमिगत आन्दोलन में सक्रिय हो गए |   इस समय भारत के अंदर और बाहर क्रांतिकारी आन्दोलन का जोर बढ़ा हुआ था | उधम सिंह का लक्ष्य डायर को मारना था | इसके लिए उन्हें देश छोड़ना ही था | 1920 में वे अफ्रीका पहुंचे और 1921 में नैरोबी के रास्ते संयुक्त राज्य अमेरिका जाने का प्रयास किया | वीसा नहीं मिला तो वापस भारत लौट आये | 1924 में उधम सिंह अमरीका पहुचने में सफल हो गए | भारत में ग़दर आन्दोलन की असफलता के बाद भी अमरीका में उन दिनों शेष बची ग़दर पार्टी सक्रिय थी | उधम सिंह उसमें शामिल हो गए | राष्ट्रवादी और क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रियता ने उनके संपर्कों में वृद्धि की,1927 में तमंचों,गोली-बारूद और 25 साथियों के साथ उधम HSRA का साथ देने भारत वापस आये | HSRA भगत सिंह वाला संगठन था जो तब तक अपनी सक्रियता के चरम पर पहुँच चुका था | भारत लौटने के तीन महीने के भीतर ही उधम सिंह को अवैध हथियारों और ग़दर पार्टी के प्रतिबंधित साहित्य के साथ गिरफ्तार कर लिया गया | उन्हें पांच साल की कैद हुई | अमृतसर जेल के भीतर से ही उधम भगत सिंह के कार्यों,मुक़दमे और फांसी के बारे में सुनते रहे | भगत सिंह की फंसी वाले साल ही वे अक्तूबर में जेल से रिहा हुए | आन्दोलन का कठोर दमन हो चुका था | उधम अपने गाँव वापस चले गए किन्तु वहां रहना अब आसन नहीं रह गया था | जेल की सजा काट चुके उधम पर पुलिस कड़ीनज़र रख रही थी | थाने में रोज़ हाजिरी के नाम पर प्रताड़ना झेलनी पडती थी | तब उधम ने अमृतसर जाने का फैसला किया | अमृतसर में उधम ने अपना नाम मोहम्मद सिंह आज़ाद रख लिया और साईन बोर्ड पेंट करने की दुकान खोल ली | इन सब कार्यों व घटनाओं के बीच उधम अपने लक्ष्य को कभी भूले नहीं | अपने लक्ष्य को पाने के तैयारी में उन्होंने अपने जीवन का लम्बा अरसा बिता दिया | 1933 में उधम सिंह ने ब्रिटिश भारत की पुलिस को चकमा दे दिया और कश्मीर चले गए | वहां से वे जर्मनी पहुचे | फिर इटली में कुछ महीने बिताने के बाद फ़्रांस, स्वित्ज़रलैंड और आस्ट्रिया होते हुए 1934 में इंग्लैंड पहुंचे | वहां पहुँच कर उन्होंने पूर्वी लन्दन की एडलर स्ट्रीट में एक घर किराये पर लिया और एक कार खरीदी | उधम किसी तरह की जल्दबाजी में नहीं थे | माइकल डायर को मारने के लिए वेअच्छे मौके की तलाश में थे | वे अधिकतम नुकसान करना चाहते थे | इसके लिए उन्होंने लम्बा इंतज़ार किया था | अब वे हड़बड़ी में मौका गवांना नहीं चाहते थे | आखिरकार उन्हें मनपसंद मौका अप्रैल 1940 में मिल ही गया | 13 मार्च 1940 को कैक्सटन हाल में इस्ट इंडिया असोसिएशन और रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी का संयुक्त अधिवेशन था | माइकल डायर को इसमें वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया था | उधम सिंह ने इस सभा में प्रवेश की व्यस्था कर ली | पिस्तौल को किताब में छुपाकर सभा में ले गए | डायर मंच पर भारत मंत्री लार्ड जेटलैंड से बात करने के लिए बढ़ा | उधम सिंह ने पिस्तौल निकाल ली और दो गोलियां डायर पर दाग दीं | डायर वहीँ ढेर हो गया और उसके प्राण-पखेरू उड़ गए | उधम सिंह ने अब जेटलैंड पर भी दो गोलियां दाग दीं | जेटलैंड घायल हुए. एक-एक गोलियां सर लूइस और लार्ड लेमिंगटन को भी मारीं | ये दोनों भी घायल हो गए, गोलियां ख़त्म हो गयीं | उधम सिंह भागे नहीं | कोशिश भी नहीं की,नारा भी नहीं लगाया, इतना भर पूछा कि कौन- कौन मरे ?उन्हें मौका-ए-वारदात से गिरफ्तार कर लिया गया | ------------------------------​------------------------------​------------------------------​ --------------------------   ## 1 अप्रैल 1940 को उधम सिंह पर औपचारिक रूप से हत्या का अभियोग लगाया गया | इसी बीच जेल में उधम सिंह ने भूख हड़ताल कर दी | बयालीस दिन तक उन्होंने खाना नहीं खाया | जेल अधिकारियों ने बलपूर्वक उन्हें तरल आहार दिया | त्वरित सुनवाई के बाद इस मुक़दमे में उधम सिंह को मौत की सजा दी गयी | 31 जुलाई 1940 को उधम सिंह को फांसी दे दी गयी | उन्हें उसी दोपहर जेल के अहाते में ही दफना दिया गया |   ## सत्तर के दशक में उधम सिंह के अवशेषों को भारत वापस लाने की मुहिम शुरू हुई | सुल्तानपुर लोधी (पंजाब) के विधायक सरदार साधू सिंह थिंड ने इसका नेतृत्व किया था | उन्होंने प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी को राज़ी कर लिया की भारत सरकार की तरफ से ब्रिटिश सरकार को औपचारिक अनुरोध किया जाये | भारत सरकार के विशेष दूत के रूप में साधू सिंह थिंड को लन्दन भेजा गया | जुलाई 1974 को उधम सिंह के अवशेष वापस भारत लाये गए | हवाई अड्डे पर शहीद उधम सिंह की अस्थियों को रिसीव करने वालों में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष शंकर दयाल शर्मा और पंजाब के मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह शामिल थे | प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की ओर से भी पुष्प चक्र समर्पित किया गया | उनका दाह संस्कार उनके पैत्रिक गाँव में किया गया और राख को सतलज में बहा दिया गया | :) अमर शहीद सरदार उधम सिंह जी  _/

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