ज्ञात हो कि दिल्ली विश्वविद्यालय में स्नातक कला(बीए) इतिहास ऑनर्स(द्वितीय वर्ष) वर्ष के पाठयक्रम में शामिल 'एनशिएंट कल्चर इन इंडिया' पुस्तक में भगवान राम तथा रामायण से संबंधित तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है, इसके चलते करोड़ों हिंदुओं की भावनाएं आहत हुई हैं। इस आपत्तिजनक अंशों को हटाने की मांग को लेकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद छात्रों के बीच जागरण अभियान चला रही है। इसी क्रम में गत 25 फरवरी को विद्यार्थी परिषद के बैनर तले छात्र दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभागाध्यक्ष के समक्ष अपने विचार रखने पहुंचे तो उन्होंने छात्रों की बात सुनने से इंकार कर दिया। इससे उत्तेजित होकर छात्र विभागाध्यक्ष के खिलाफ नारे लगाने लगे। विश्वविद्यालय प्रशासन के इशारे पर पुलिस ने छात्रों के साथ बदसलूकी की और विद्यार्थी परिषद के तीन कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया।
दिल्ली विश्वविद्यालय में स्नातक कला(बीए) इतिहास ऑनर्स (द्वितीय वर्ष) के पाठयक्रम में शामिल 'एनशिएंट कल्चर इन इंडिया' पुस्तक में विद्यार्थियों को जो पढ़ाया जा रहा है, उससे किसी भी देशभक्त का खून खौल उठेगा-
-रावण और मंदोदरी की कोई संतान नहीं थी। दोनों ने शिवजी की पूजा की। शिवजी ने उन्हें पुत्र प्राप्ति के लिए आम खाने को दिया। गलती से सारा आम रावण ने खा लिया और उसे गर्भ ठहर गया। बड़ी स्वच्छंदता से रावण के नौ मास के गर्भधारण की व्यथा का वर्णन किया गया है।
-दु:ख से बेचैन रावण ने छींक मारी और सीता का जन्म हुआ। सीता रावण की पुत्री थी। उसने उसे जनकपुरी के खेत में त्याग दिया।
-हिन्दुओं की मति भ्रमित करने के लिए कहा गया कि हनुमान छुटभैया एक छोटा सा बंदर था। हनुमान की अवमानना करते हुए लिखा गया है कि वह एक कामुक व्यक्ति था वह लंका के शयनकक्षाओं में झांकता रहता था और वह स्त्रियों और पुरूषों को आमोद-प्रमोद करते बेशर्मी से देखता फिरता था।
-रावण का वध राम से नहीं लक्ष्मण से हुआ।
-रावण और लक्ष्मण ने सीता के साथ व्यभिचार किया।
और स्नातक कला(प्रथम वर्ष) में पढ़ाया जा रहा है-
-ऋग्वेद में कहा गया है कि स्त्रियों का स्थान शूद्रों तथा कुत्तों के समान है।
-स्त्रियों को वेद पढ़ने पढ़ाने का कोई भी अधिकार नहीं था और न ही वह धार्मिक क्रिया-कर्म कर सकती थी।
-अथर्ववेद में महिलाओं को केवल संतान उत्पन्न का साधन माना जाता था।
-लड़कियां उनके लिए अभिशाप थीं।
- स्त्रियां एक वस्तु समझी जाती थी उन्हें खरीदा तथा बेचा जा सकता था।
-वेदों के अर्थों का अनर्थ कर महिलाओं को घृणा की दृष्टि से दिखलाया गया है।
केंद्र सरकार के साढ़े तीन वर्ष के कार्यकाल के दौरान लिए गये निर्णयों पर नजर डालने यह स्पष्ट हो जाता है कि हिंदुओं को अपमानित करना ही इस सरकार का प्रमुख कार्य है। सरकार ने पहले रामसेतु के मुद्दे पर गलत हलफनामा पेश कर कहा था कि भगवान राम का अस्तित्व ही नहीं है। डेनमार्क में पैगम्बर मोहम्मद के कार्टून पर भारत सरकार ने अधिकृत रूप से चिंता और खेद जताया लेकिन जिस एम.एफ. हुसैन ने मां सीता और भारतमाता के अश्लील चित्र बनाए, उस पर कोई बयान तक नहीं दिया। राम के अस्तित्व पर सवाल खड़ा करने वाले रामद्रोही ही नहीं वरन राष्ट्रद्रोही है। दरअसल, यह मार्क्स-मैकाले के मानस मस्तिष्कों का कमाल है। जो राष्ट्रविरोधी कचड़ा उनके दिमाग में होता है वही विभिन्न माध्यमों से वे बाहर अभिव्यक्त करते रहते हैं। कभी पेंटिंग बनाकर, लेख लिखकर, पाठयक्रमों में गलत तथ्य समाहित कर। वे जानते है कि विदेशी विचारधारा भारत में तभी प्रबल हो सकता है जब नौजवानों में राष्ट्रनायकों के प्रति हीन भावना उत्पन्न हो जाए। किसी को भी किसी भी धर्म का अपमान करने का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिये। देश के छात्र-नौजवान किसी भी हालत में राष्ट्रनायकों का अपमान बर्दाश्त नहीं करेंगे।
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