" काश्मीर को आज़ादी मिलनी चाहिए , भूखे-नंगे हिंदुस्तान से "।
एक साहित्यकार और सामजिक कार्यकर्ता के इस प्रकार के गैरजिम्मेदाराना वक्तव्य अति विचारणीय एवं चिंताजनक हैं। एक लेखिका को अपने शब्दों के प्रति बेहद जिम्मेदार होना चाहिए। क्या वजह है जिसके कारण उन्होंने ऐसा बयान दिया। क्या हुर्रियत नेता गिलानी की संगत का असर है उन पर ।
हिंदुस्तान को उन्होंने भूखा-नंगा कहा । हमें शर्म आ रही उनके हिन्दुस्तानी होने पर। उनके वक्तव्य के अनुसार काश्मीर को आज़ादी मिलनी चाहिए। लेकिन क्या अरुंधती को स्वयं पहले आज़ाद नहीं हो जाना चाहिए इस देश से ।
क्या वजह है की अरुंधती जैसी कार्यकर्ता ने ऐसे देशद्रोही वक्तव्य दिया । क्या उनकी मानसिक अस्वस्थता है इसका कारण या फिर वो वास्तव में शान्ति पसंद महिला हैं । क्या वो तंग आ चुकी हैं , काश्मीर मुद्दे से और भारत शान्ति बहाली का एक अनूठा तरीका अपनाना चाहती हैं ।
या फिर वो दानवीर कर्ण बनकर इसिहास के पन्नो पर स्वर्णाक्षरों में उल्लिखित होना चाहती हैं । क्या काश्मीर दान देने से शान्ति बहाली हो जायेगी । क्या चीन , जो अरुणांचल प्रदेश पर आँख जमाये हैं वो भी दान कर दें । क्या मुंबई राज ठाकरे को दे दें ? तो फिर हिंदुस्तान कहेंगे किसको । इसकी सीमा रेखा कहाँ तक है । हमारे देश का भूगोल भी बदलने की आवश्यकता है अब। कितने राज्य हमारे देश में हैं इसका पुनर्निर्धारण करने की जरूरत है ।
इससे भी बड़ी चिंता का विषय है की की असली हिन्दुस्तानी कौन से हैं । क्या अलगाववादी हुर्रियत नेता गिलानी जैसे लोग हिन्दुस्तानी हैं ? क्या अरुंधती रॉय जैसी लेखिका जो हिंदुस्तान को " भूखा-नंगा" कहती हैं वो हिन्दुस्तानी कहलाने की हक़दार हैं ।
क्या भूख -प्यास से तड़पकर , एक लेखिका ने ऐसा शर्मनाक वक्तव्य दिया है या फिर शान्ति बहाली ही अरुंधती का उद्देश्य है ?
क्या बुकर के बाद इनका नामांकन , शांति बहाली के सद्प्रयासों के लिए नोबेल प्राइज़ के लिए होना चाहिए ?
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