केवल हिंदू राष्ट्र
किसी भी देश की उन्नति उस देश में रहने वाले उस समुदाय से होती है,जो कि उस देश की धरती को अपनी मात्र भूमि, पितृ भूमि व पुज्य्भूमि मानता है। जिसकी निष्ठां देश को समर्पित हो। भारत में रहने वाला ऐसा समाज केवल हिंदू है,और हिंदू की परिभाषा भी यही कहती है कि जो व्यक्ति भारत भूमि को अपनी मात्रभूमि, पितृ भूमि ,व पुण्यभूमि मानता है वह हिंदू है । ऐसे में कहा जा सकता है कि मुसलमान व इसाई को छोढ़कर भारत में प्रय्तेक पंथ को मानने वाला व्यक्ति, चाहे वह सनातनी हो,बोद्ध हो,जैन हो,सिक्ख हो , हिंदू है।
कुछ लोग इस बात को जरूर पूछना चाहेंगे की मुसलमान व इसाई हिंदू क्यो नही है? तो इसका कारण है उनकी पुन्य भूमि।एक मुसलमान मुसलमान पहले है भारतीय बाद में। क्यो कि भारत से ज्यादा उसका लगाव अरब से है ,मक्का से है। इसी प्रकार एक इसाई भारत से पहले जेरूसलम को पूजता है। उस पोप की आज्ञा उसकी उस राष्ट्रभक्ति पर भारी पड़ती है जो उसे वेटिकन सिटी से मिलती है।
भारत में जो भी हिस्सा हिंदू बहुल नही रहता वह हिस्सा या तो अलग हो जाता है या फ़िर अलग होने का प्रयास शुरू कर देता है। यूँ तो भारत में खालिस्तान की मांग भी उठी किंतु आम सिक्ख खालिस्तान का कभी समर्थक नही रहा। आज का जो पकिस्तान व बांग्लादेश है वह इस बात का सबसे बड़ा उदहारण है कि हिंदू कम होने पर वह हिस्सा भारत से कट गया। कश्मीर की समस्या पूरे विश्व के सामने है। इस समस्या का कारण सिर्फ़ वहाँ पर मुसलमानों की बहुलता होना है।आसाम की स्थिति भी मुस्लिमो की आबादी तेजी के साथ बढ़ने के कारण हाथ से निकलती जा रही है। वहां पर मुसलमानों ने चुनाव में अपने लिए अलग विधानसभा सीटों की मांग शुरू कर दी है।
नागालेंड,मिजोरम मेघालय की स्थिति इसलिए जटिल होती जा रही है क्यों कि ये राज्य इसाई बहुसंख्यक हो चुके है,और स्वतंत्र इसाई राष्ट्र की मांग कर रहे है। इनमे विदेशी पादरियों की भूमिका स्पष्ट दिखाई देती है।
स्वामी विवेकानंद के अनुसार "जब कोई हिंदू धर्म परिवर्तन करता है तब एक हिंदू ही कम नही होता ,बल्कि उसका एक शत्रु भी बढ़ जाता है। "
बाबा भीमराव आंबेडकर ने भी लिखा है कि "जब एक हिंदू का धर्मान्तरण होता है तो वह राष्ट्र वाद से बिल्कुल कट जाता है ।उसकी भक्ति मक्का व वेटिकन सिटी से जुड़ जाती है।
इन दो महापुरुषों ने भी यही बात अपने उपरोक्त शब्दों में स्पष्ट रूप से बता दी है कि भारत में राष्ट्र वाद केवल हिंदू में है। बाकि सब राष्ट्र विरोधी है।
भारत एक धर्मनिरपेक्स देश है। परन्तु देखिये की कश्मीर व नागालैंड में आप लोग जमीन नही खरीद सकते, केवल मात्र इसलिए की वो प्रदेश मुस्लिम बाहुल्य व इसाई बाहुल्य हैं।ये तो धर्म के नाम पर साफ बंटवारा है। अतःस्पष्ट है की भारत में राष्ट्रवाद व हिंदू समाज दोनों ही एक शब्द के पर्यायवाची है। भारत में राष्ट्र व राष्ट्रवाद वहीं है जहाँ हिंदू बाहुल्य में है,अन्यथा भारत के कई टुकड़े हो चुके है।
कुछ लोग इस बात को जरूर पूछना चाहेंगे की मुसलमान व इसाई हिंदू क्यो नही है? तो इसका कारण है उनकी पुन्य भूमि।एक मुसलमान मुसलमान पहले है भारतीय बाद में। क्यो कि भारत से ज्यादा उसका लगाव अरब से है ,मक्का से है। इसी प्रकार एक इसाई भारत से पहले जेरूसलम को पूजता है। उस पोप की आज्ञा उसकी उस राष्ट्रभक्ति पर भारी पड़ती है जो उसे वेटिकन सिटी से मिलती है।
भारत में जो भी हिस्सा हिंदू बहुल नही रहता वह हिस्सा या तो अलग हो जाता है या फ़िर अलग होने का प्रयास शुरू कर देता है। यूँ तो भारत में खालिस्तान की मांग भी उठी किंतु आम सिक्ख खालिस्तान का कभी समर्थक नही रहा। आज का जो पकिस्तान व बांग्लादेश है वह इस बात का सबसे बड़ा उदहारण है कि हिंदू कम होने पर वह हिस्सा भारत से कट गया। कश्मीर की समस्या पूरे विश्व के सामने है। इस समस्या का कारण सिर्फ़ वहाँ पर मुसलमानों की बहुलता होना है।आसाम की स्थिति भी मुस्लिमो की आबादी तेजी के साथ बढ़ने के कारण हाथ से निकलती जा रही है। वहां पर मुसलमानों ने चुनाव में अपने लिए अलग विधानसभा सीटों की मांग शुरू कर दी है।
नागालेंड,मिजोरम मेघालय की स्थिति इसलिए जटिल होती जा रही है क्यों कि ये राज्य इसाई बहुसंख्यक हो चुके है,और स्वतंत्र इसाई राष्ट्र की मांग कर रहे है। इनमे विदेशी पादरियों की भूमिका स्पष्ट दिखाई देती है।
स्वामी विवेकानंद के अनुसार "जब कोई हिंदू धर्म परिवर्तन करता है तब एक हिंदू ही कम नही होता ,बल्कि उसका एक शत्रु भी बढ़ जाता है। "
बाबा भीमराव आंबेडकर ने भी लिखा है कि "जब एक हिंदू का धर्मान्तरण होता है तो वह राष्ट्र वाद से बिल्कुल कट जाता है ।उसकी भक्ति मक्का व वेटिकन सिटी से जुड़ जाती है।
इन दो महापुरुषों ने भी यही बात अपने उपरोक्त शब्दों में स्पष्ट रूप से बता दी है कि भारत में राष्ट्र वाद केवल हिंदू में है। बाकि सब राष्ट्र विरोधी है।
भारत एक धर्मनिरपेक्स देश है। परन्तु देखिये की कश्मीर व नागालैंड में आप लोग जमीन नही खरीद सकते, केवल मात्र इसलिए की वो प्रदेश मुस्लिम बाहुल्य व इसाई बाहुल्य हैं।ये तो धर्म के नाम पर साफ बंटवारा है। अतःस्पष्ट है की भारत में राष्ट्रवाद व हिंदू समाज दोनों ही एक शब्द के पर्यायवाची है। भारत में राष्ट्र व राष्ट्रवाद वहीं है जहाँ हिंदू बाहुल्य में है,अन्यथा भारत के कई टुकड़े हो चुके है।
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