भारत पूरे हर्ष एवं उल्लास से आज मकर संक्राति मना रहा है। ::तमिलनाडु का 'पोंगल', पंजाब की 'लोहड़ी' गुजरात का 'उत्तरायण'
पर्वों का देश भारत पूरे हर्ष एवं उल्लास से आज मकर संक्राति मना रहा है।विभिन्न स्थानों पर इसके मनाये जाने की रीति तथा कारण भिन्न हैं परन्तु उमंग एक ...
जहाँ एक ओर हमारे पंजाब एवं हिमांचल इसे लोहरी नाम देते हैं वहीँ दूसरी ओर यह पर्व तमिलनाडु में पोंगल,गुजरात एवं राजस्थान में उत्तरायण तथा उत्तर प्रदेश ,मध्य प्रदेश एवं अन्य शेष प्रदेश इसे मकर संक्रांति या खिचड़ी कहते हैं ।
पर्वों का देश भारत पूरे हर्ष एवं उल्लास से आज मकर संक्राति मना रहा है।विभिन्न स्थानों पर इसके मनाये जाने की रीति तथा कारण भिन्न हैं परन्तु उमंग एक ...
जहाँ एक ओर हमारे पंजाब एवं हिमांचल इसे लोहरी नाम देते हैं वहीँ दूसरी ओर यह पर्व तमिलनाडु में पोंगल,गुजरात एवं राजस्थान में उत्तरायण तथा उत्तर प्रदेश ,मध्य प्रदेश एवं अन्य शेष प्रदेश इसे मकर संक्रांति या खिचड़ी कहते हैं ।
आज के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है ,ऐसा मना जाता है कि तेज के स्रोत देव सूर्य आज अपने पुत्रों से मिलने कि लिए जाते हैं अतैव यह पर्व पिता -पुत्र के स्नेह का पर्व भी है।
आज ही के दिन असुर मर्दक भगवान श्री हरि विष्णु ने असुरों का वध कर ,उनके सिरों को मंद्र पर्वत के नीचे दबा दिया था।अतः यह पर्व सत्य एवं शांति के विजय का पर्व भी है । इतना ही नहीं महाराजा भगीरथ कि तपस्या से मुदित हो गंगा जी के धरा पर आने के उपरांत आज ही के दिन उनके पुत्रों का उद्धार हुआ था और गंगा जी गंगासागर (बंगाल की खाड़ी )में मिल गयीं ,इस महान दिवस को याद कर आज भी गंगासागर तट पर आज के दिन भव्य मेला लगता है ।
बात चाहे महाभारत कल की हो या वर्तमान युग की इस पर्व के मनाये जाने के कारण अनेक हैं जो हमें केवल समरसता की प्रेरणा देते हैं ।
आज ही के दिन असुर मर्दक भगवान श्री हरि विष्णु ने असुरों का वध कर ,उनके सिरों को मंद्र पर्वत के नीचे दबा दिया था।अतः यह पर्व सत्य एवं शांति के विजय का पर्व भी है । इतना ही नहीं महाराजा भगीरथ कि तपस्या से मुदित हो गंगा जी के धरा पर आने के उपरांत आज ही के दिन उनके पुत्रों का उद्धार हुआ था और गंगा जी गंगासागर (बंगाल की खाड़ी )में मिल गयीं ,इस महान दिवस को याद कर आज भी गंगासागर तट पर आज के दिन भव्य मेला लगता है ।
बात चाहे महाभारत कल की हो या वर्तमान युग की इस पर्व के मनाये जाने के कारण अनेक हैं जो हमें केवल समरसता की प्रेरणा देते हैं ।
वैज्ञानिक दृष्टिकोणों एवं आंकड़ों की ओर देखें तो एक रोचक तथ्य यह भी है कि सूर्य के उत्तरायण में जाने का समय ,समय के साथ परिवर्तित भी हुआ है ......
"१००० वर्ष पूर्व मकर संक्रांति ३१ दिसम्बर को मनाई गयी थी ,अब हम इसे १४ जनवरी को मनाते हैं ,५००० वर्षों बाद यह संक्रांति फरवरी-मार्च माह में तथा ९००० वर्षों के उपरांत यह जून माह में मनाई जाएगी ।"
आइये प्राण लें कि हम इस पर्व को पूरे हर्षोल्लास से मनाते हुए ;दिन प्रतिदिन क्षीण होती हुई समरसता एवं मानवता को पुनः बलवती करेंगे ।
आप सभी को इस महापर्व कि हार्दिक शुभकामनायें.........
"१००० वर्ष पूर्व मकर संक्रांति ३१ दिसम्बर को मनाई गयी थी ,अब हम इसे १४ जनवरी को मनाते हैं ,५००० वर्षों बाद यह संक्रांति फरवरी-मार्च माह में तथा ९००० वर्षों के उपरांत यह जून माह में मनाई जाएगी ।"
आइये प्राण लें कि हम इस पर्व को पूरे हर्षोल्लास से मनाते हुए ;दिन प्रतिदिन क्षीण होती हुई समरसता एवं मानवता को पुनः बलवती करेंगे ।
आप सभी को इस महापर्व कि हार्दिक शुभकामनायें.........
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