सरकार देश को बतलाये कि देशद्रोही की परिभाषा क्या है ?
भारत सरकार के गृहमंत्री चिदम्बरम के हालिया बयान के अनुसार उन्होंने कश्मीरी जनता को विशवास दिलाया कि केन्द्र सरकार आजाद कश्मीर की मांग करने वालों व पकिस्तान समर्थक अलगाववादियों (जेहादियों से ) बात करने को तैयार है,और इन सभी बातों को मीडिया से दूर रखा जाएगा।
चिदंबरम ने कश्मीर समस्या को राजनीतिक समस्या बताकर भारत की अस्मिता से छेड़-छाड़ करने वाले ,भारत के राष्ट्रिय ध्वज का अपमान करने वाले,भारतीय संविधान को नकारने वाले और लाखों की संख्या में हिन्दुओं का घर-बार उजड़ने वालों को राजनेता के रूप में स्वीकार कर लिया है।केन्द्र सरकार की इसी नीतियों के कारन आज समस्त विश्व के इस्लामिक देश भारत को कश्मीर मुद्दे पर घेरने की तैयारी कर चुके है। भारत के दुश्मन नंबर २ चीन ने तो कश्मीर को अपने नक्शे में एक अलग देश दिखाना शुरू कर दिया है।
३० सितम्बर को दिल्ली में एक प्रेस वार्ता में चिदम्बरम ने कहा कि जेहादियों से लगातार वार्ता चल रही है। कोई भी प्रबुद्ध व्यक्ति इस बात को बता सकता है कि जेहादियों की केन्द्र सरकार से क्या मांगे हो सकती हैं? क्यों कि इससे पहले भी कश्मीर के जेहादियों से ४ बार वार्ता हो चुकी है। दो बार अटल बिहारी की सरकार में तथा दो बार मनमोहन की प्रथम पारी में, लेकिन कोई नतीजा नही निकला। क्यों कि जेहादियों की मांगे थी कि,कश्मीर को आजाद किया जाय, जेलों से सभी आतंकवादी छोडे जाय,भारतीय सेना को कश्मीर से तुंरत हटाया जाय,सुरक्षा-बालों के विशेष अधिकार समाप्त किए जाँय,और एक दो संगठनो ने तो सारी हद पार करते हुए मांग की कि पाकिस्तानी मुद्रा को चलाया जाय।
इतना सब कुछ होने के बाद भी भारत सरकार इन जेहादियों के साथ अपने दामाद की तरह व्यवहार करती है। सरकार इनके शाही ढंग से आने -जाने की व्यवस्था करती है। इनको ५ सितारा होटलों में ठहराती है। इनके खाने -पीने का इंतजाम करती है,और कुछ को तो सुरक्षा भी देती है।
जेहादियों ने दिल्ली में होने वाली वार्ता का जो एजेंडा तैयार किया है उसमे कश्मीर की आजादी से कम कुछ भी नही है। राजनीतिक क्षेत्र में चर्चा का बाजार गर्म है और माना जा रहा है कि कश्मीर की आजादी को छोड़कर सरकार जेहादियों की सभी मांगो के लिए तथास्तु कहने वाली है। यानि कि कश्मीर से सेना का हटना,सुरक्षा बालों के विशेष अधिकारों को समाप्त होना, आतंकवादियों का बिना शर्त रिहा होना,जेहादियों को सरकारी नोकरी मिलना,तथा उनको आर्थिक सहायता मिलना सभी कुछ निश्चित सा है। मनमोहन सिंह तो पहले ही ७०००० आतंकियों के परिवारों को पेंशन देने कि बात कर चुके हैं।
इन सभी बातों के बाद भारतीय जनता स्वम विचारे कि, अगर कुछ लोग मिलकर भारत के किसी भी हिस्से को भारत से काटने की बातें करे उस हिस्से कि आजादी कि मांग करे तो क्या वे देशद्रोही नही ठहराए जाएंगे? निसंदेह वे लोग देशद्रोही ही हैं.,तथा उन पर देशद्रोह का ही मुकदमा चलेगा। तो फ़िर कश्मीर की आजादी की मांग करने वाले,उसको पाकिस्तान का हिस्सा मानने वाले, तिरंगे को जलाने वाले,पाकिस्तानी झंडा फहराने वाले और भारतीय संविधान को न मानने वाले देशद्रोही क्यों नही हैं ?
सरकार देश को बताये कि संविधान के अनुसार देशद्रोही की क्या परिभाषा है? तथा देशद्रोही क़ानून किसके लिए आरक्षित है?
चिदंबरम ने कश्मीर समस्या को राजनीतिक समस्या बताकर भारत की अस्मिता से छेड़-छाड़ करने वाले ,भारत के राष्ट्रिय ध्वज का अपमान करने वाले,भारतीय संविधान को नकारने वाले और लाखों की संख्या में हिन्दुओं का घर-बार उजड़ने वालों को राजनेता के रूप में स्वीकार कर लिया है।केन्द्र सरकार की इसी नीतियों के कारन आज समस्त विश्व के इस्लामिक देश भारत को कश्मीर मुद्दे पर घेरने की तैयारी कर चुके है। भारत के दुश्मन नंबर २ चीन ने तो कश्मीर को अपने नक्शे में एक अलग देश दिखाना शुरू कर दिया है।
३० सितम्बर को दिल्ली में एक प्रेस वार्ता में चिदम्बरम ने कहा कि जेहादियों से लगातार वार्ता चल रही है। कोई भी प्रबुद्ध व्यक्ति इस बात को बता सकता है कि जेहादियों की केन्द्र सरकार से क्या मांगे हो सकती हैं? क्यों कि इससे पहले भी कश्मीर के जेहादियों से ४ बार वार्ता हो चुकी है। दो बार अटल बिहारी की सरकार में तथा दो बार मनमोहन की प्रथम पारी में, लेकिन कोई नतीजा नही निकला। क्यों कि जेहादियों की मांगे थी कि,कश्मीर को आजाद किया जाय, जेलों से सभी आतंकवादी छोडे जाय,भारतीय सेना को कश्मीर से तुंरत हटाया जाय,सुरक्षा-बालों के विशेष अधिकार समाप्त किए जाँय,और एक दो संगठनो ने तो सारी हद पार करते हुए मांग की कि पाकिस्तानी मुद्रा को चलाया जाय।
इतना सब कुछ होने के बाद भी भारत सरकार इन जेहादियों के साथ अपने दामाद की तरह व्यवहार करती है। सरकार इनके शाही ढंग से आने -जाने की व्यवस्था करती है। इनको ५ सितारा होटलों में ठहराती है। इनके खाने -पीने का इंतजाम करती है,और कुछ को तो सुरक्षा भी देती है।
जेहादियों ने दिल्ली में होने वाली वार्ता का जो एजेंडा तैयार किया है उसमे कश्मीर की आजादी से कम कुछ भी नही है। राजनीतिक क्षेत्र में चर्चा का बाजार गर्म है और माना जा रहा है कि कश्मीर की आजादी को छोड़कर सरकार जेहादियों की सभी मांगो के लिए तथास्तु कहने वाली है। यानि कि कश्मीर से सेना का हटना,सुरक्षा बालों के विशेष अधिकारों को समाप्त होना, आतंकवादियों का बिना शर्त रिहा होना,जेहादियों को सरकारी नोकरी मिलना,तथा उनको आर्थिक सहायता मिलना सभी कुछ निश्चित सा है। मनमोहन सिंह तो पहले ही ७०००० आतंकियों के परिवारों को पेंशन देने कि बात कर चुके हैं।
इन सभी बातों के बाद भारतीय जनता स्वम विचारे कि, अगर कुछ लोग मिलकर भारत के किसी भी हिस्से को भारत से काटने की बातें करे उस हिस्से कि आजादी कि मांग करे तो क्या वे देशद्रोही नही ठहराए जाएंगे? निसंदेह वे लोग देशद्रोही ही हैं.,तथा उन पर देशद्रोह का ही मुकदमा चलेगा। तो फ़िर कश्मीर की आजादी की मांग करने वाले,उसको पाकिस्तान का हिस्सा मानने वाले, तिरंगे को जलाने वाले,पाकिस्तानी झंडा फहराने वाले और भारतीय संविधान को न मानने वाले देशद्रोही क्यों नही हैं ?
सरकार देश को बताये कि संविधान के अनुसार देशद्रोही की क्या परिभाषा है? तथा देशद्रोही क़ानून किसके लिए आरक्षित है?
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