by हिन्दू जागरण मंचराजेन्द्र चौहान on Wednesday, December 8, 2010 at 5:55pm
पश्चिम के शोधकर्ताओं को “सभ्यताओं” सम्बन्धी खोज करते समय अंटार्कटिका क्षेत्र के नक्शे भी प्राप्त हुए हैं, जो कि बेहद कुशलता से तैयार किये गये थे, इसी प्रकार कई बेहद प्राचीन नक्शों में कहीं-कहीं चीन को “वृहत्तर भारत” का हिस्सा भी चित्रित किया गया है। अब इस सम्बन्ध में पश्चिमी लेखकों और शोधकर्ताओं में आम सहमति बनती जा रही है कि पृथ्वी पर मानव का अस्तित्व 12,000 वर्ष से भी पुराना है, और उस समय की कई सभ्यताएं पूर्ण विकसित थीं।
“काबा एक शिव मन्दिर है”
हालांकि “काबा एक शिव मन्दिर है”, इस लेखमाला का ऊपर उल्लेखित तथ्यों से कोई सम्बन्ध नहीं है, विश्व का इतिहास जो हमें पढ़ाया जाता है या बताया जाता है अथवा दर्शाया जाता है, वह असल में ईसा पूर्व 4000 वर्ष का ही कालखण्ड है और Pre-Christianity काल को ही विश्व का इतिहास मानता है। लेकिन जब आर्कियोलॉजिस्ट और प्रागैतिहासिक काल के शोधकर्ता इस 4000 वर्ष से और पीछे जाकर खोजबीन करते हैं तब उन्हें कई आश्चर्यजनक बातें पता चलती हैं।
यह प्रश्न कई बार और कई जगहों पर पूछा गया है कि क्या मुस्लिमों का तीर्थ स्थल “काबा” एक हिन्दू मन्दिर है या था? इस बारे में काफ़ी लोगों को शक है कि आखिर काबा के बाहर चांदी की गोलाईदार फ़्रेम में जड़ा हुआ काला पत्थर क्या है? काबा में काले परदे से ढँकी हुई उस विशाल संरचना के भीतर क्या है? क्यों काबा के कुछ इलाके गैर-मुस्लिमों के लिये प्रतिबन्धित हैं? आखिर मुस्लिम काबा में परिक्रमा क्यों करते हैं? इन सवालों के जवाब में सबसे प्रामाणिक और ऐतिहासिक तथ्यों और सबूतों के साथ भारतीय इतिहासकार पीएन ओक तथा हिन्दू धर्म के प्रखर विद्वान अमेरिकी इतिहासकार स्टीफ़न नैप की साईटों पर कुछ सामग्री मिलती है। इतिहासकारों में पीएन ओक के निष्कर्षों को लेकर गहरे मतभेद हैं, लेकिन जैसे-जैसे नये-नये तथ्य, नक्शे और प्राचीन ग्रन्थों के सन्दर्भ सामने आते जा रहे हैं, हिन्दू वैदिक संस्कृति का प्रभाव समूचे पश्चिम एशिया और अरब देशों में था यह सिद्ध होता जायेगा। कम्बोडिया और इंडोनेशिया में पहले से मौजूद मंदिर तथा बामियान में ध्वस्त की गई बुद्ध की मूर्ति इस बात की ओर स्पष्ट संकेत तो करती ही है। हिन्दू संस्कृति के धुर-विरोधी इतिहासकार भी इस बात को तो मानते ही हैं कि इस्लाम के प्रादुर्भाव के पश्चात कई-कई मंदिरों और मूर्तियों को तोड़ा गया, लेकिन फ़िर भी संस्कृति की एक अन्तर्धारा सतत मौजूद रही जो कि विभिन्न परम्पराओं में दिखाई भी देती है।
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