शिलान्यास और प्रथम कारसेवा की घोषणा श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन
कारसेवक भूखे, प्यासे, खेतों-झाड़ियों में 5-6 दिन तक छिपे रहे। अयोध्या में सैकड़ों मन्दिरों और परिवारों ने कारसेवकों को अपने घर में आश्रय दिया। वीतराग सन्त वामदेव महाराज व अन्य विहिप नेता अशोक सिंहल, श्रीश चन्द्र दीक्षित सारी बाधाओं के रहते हुए भी अयोध्या में प्रवेश पा गए
मन्दिर के प्रारूप एवं रामलला विराजमान के वर्तमान स्थल का तालमेल करते हुए भावी मन्दिर के सिंहद्वार के बाएं स्तम्भ का स्थान शिलान्यास के लिए चयनित हुआ। केन्द्र और उत्तर प्रदेश सरकार दोनों की सहमति से चयनित स्थल पर 10 नवम्बर 1989 को शिलान्यास का पूजन कार्यक्रम विश्व हिन्दू परिषद-बिहार के तत्कालीन प्रान्त संगठन मंत्री कामेश्वर चौपाल के हाथों सम्पन्न हुआ। तेईस, चौबीस जून 1990 को हरिद्वार में मार्गदर्शक मण्डल बैठक में 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या में मन्दिर निर्माण के लिए कारसेवा प्रारम्भ करने का निर्णय हुआ। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने चुनौती दे दी कि अयोध्या में 'परिन्दा भी पर नहीं मार सकेगा।' कारसेवकों के जत्थे देशभर से अयोध्या के लिए चल पड़े। उत्तर प्रदेश में प्रवेश करते ही उन्हें पकड़ा जाने लगा। हजारों की संख्या में कारसेवक पकड़े गए। अयोध्या आने के सभी रास्ते बन्द कर दिए गए, सरयू पुल पर कंटीले तार फैला दिए गए, सरयू नदी में नावें उलट दी गईं। अयोध्या की पुलिस व्यवस्था को देखकर पत्रकार भी बोलने लगे कि यदि 30 अक्टूबर को हैलीकाप्टर से भी कोई फावड़ा ढांचे पर गिरा तो हम उसे कारसेवा मान लेंगे। इतनी घेराबन्दी के बावजूद हजारों कारसेवक अयोध्या में प्रवेश कर गए।
कारसेवक भूखे, प्यासे, खेतों-झाड़ियों में 5-6 दिन तक छिपे रहे। अयोध्या में सैकड़ों मन्दिरों और परिवारों ने कारसेवकों को अपने घर में आश्रय दिया। वीतराग सन्त वामदेव महाराज व अन्य विहिप नेता अशोक सिंहल, श्रीश चन्द्र दीक्षित सारी बाधाओं के रहते हुए भी अयोध्या में प्रवेश पा गए। तीस अक्टूबर देवोत्थान एकादशी को निर्धारित समय पर कारसेवक जन्मभूमि की ओर चल पड़े। कहीं से कोई पुलिस के कब्जे से बस को लेकर सारे बैरियर तोड़ता हुआ जन्मभूमि तक पहुंच गया। कारसेवक ढांचे पर चढ़ गए, गुम्बदों पर झण्डा गाड़ दिया। एक नवम्बर 1990 को श्री मणिराम दास छावनी के चारधाम मन्दिर प्रांगण में आयोजित सभा में 2 नवम्बर को पुन: कारसेवा के लिए प्रस्थान करने की घोषणा हुई। तीस अक्टूबर की घटना से शासन अपमानित अनुभव कर रहा था। अपमान से पीड़ित शासन ने 2 नवम्बर 1990 को दिगम्बर अखाड़ा से हनुमानगढ़ी की ओर जाने वाली संकरी गली में कारसेवकों पर गोली चलाई। कई कार सेवक मारे गए। केन्द्र में विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार का पतन हो गया। कारसेवक राम जन्म भूमि के दर्शन करके अयोध्या से लौट गए। चालीस दिन तक अयोध्या में सत्याग्रह चला।
पुलिस की गोलियों से मरे कारसेवकों की अस्थियों के कलश सारे देश में घूमे। हिंदू समाज ने श्रद्धांजलि अर्पित की। जनवरी 1991 में प्रयाग में माघ मेला के अवसर पर हुतात्मा कारसेवकों की अस्थियों का विसर्जन संगम में सन्तों के हाथों हुआ। चार अप्रैल 1991 को दिल्ली के बोट क्लब पर रैली का आयोजन हुआ, करीब 25 लाख लोग भारत के कोने-कोने से दिल्ली पहुंचे। यह विशालतम और ऐतिहासिक रैली थी। इसके बाद तो बोट क्लब पर सभाओं के आयोजन पर ही प्रतिबन्ध लग गया। रैली में सन्तों के भाषणों के मध्य ही समाचार आया कि उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है। इस समाचार से समाज को स्वाभाविक प्रसन्नता हुई।
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