Thursday 4 December 2014

एकमेव मार्ग

एकमेव मार्ग श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन

जून 1992, दिसम्बर 1992 और फरवरी 1993 में जमीन सेप्राप्त पुरावशेष सरकार के कब्जे में हैं। छह दिसम्बर 1992 कोप्राप्त शिलालेख सरकार के नियंत्रण में हैं। उसका छाप अदालत मेंसुरक्षित है। शिलालेख का पाठ विशेषज्ञों से पढ़वाया जा चुका है।राडार तरंगों से किए गए सर्वेक्षण रिपोर्ट की पुष्टि पुरातात्विउत्खनन से हो चुकी है। भारत सरकार इस विवाद को हमेशा खत्‍मकरने के लिए कानून बनाकर और यह स्थान हिन्दू समाज को सौंपकर सांस्कृतिक स्वातंत्र्य का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।  


वार्तालाप के दौर अनेक बार हो चुके। चन्द्रशेखर के प्रधानमंत्रित्वकाल में मुस्लिम  यूरोपीय इतिहासकारों के प्रमाणराजस्वसम्बन्धी प्रमाण एवं हिन्दू समाज की परम्पराओं से सम्बंधित प्रमाणसरकार को सौंपे जा चुके हैं। जून 1992, दिसम्बर 1992 औरफरवरी 1993 में जमीन से प्राप्त पुरावशेष सरकार के कब्जे में हैं।छह दिसम्बर 1992 को प्राप्त शिलालेख सरकार के नियंत्रण में हैं।उसका छाप अदालत में सुरक्षित है। शिलालेख का पाठ विशेषज्ञों सेपढ़वाया जा चुका है। राडार तरंगों से किए गए सर्वेक्षण रिपोर्ट कीपुष्टि पुरातात्वि उत्खनन से हो चुकी है। भारत सरकार इसविवाद को हमेशा खत्‍म करने के लिए कानून बनाकर और यहस्थान हिन्दू समाज को सौंप कर सांस्कृतिक स्वातंत्र्य का मार्गप्रशस्त कर सकती है।  

परिसर का अधिग्रहण

परिसर का अधिग्रहण
परिसर का अधिग्रहण श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन
राष्ट्रपति ने संविधान की धारा 143 ए के अंतर्गत अपने अधिकार का उपयोग करते हुये सर्वोच्च न्यायालय से अपने एक प्रश्न कि क्या विवादित स्थल पर 1528 ईस्‍वी के पूर्व कोई हिन्दू मंदिर या भवन मौजूद था ?' का उत्तर मांगा।

ढांचा ग ि र जाने के पश्चात जनवरी 1993 को भारत सरकार नेअध्यादेश जारी करके श्रीराम जन्मभूमि का विवादित परिसर और उसके चारों ओर का 67 एकड़ भूखण्ड अधिग्रहीत कर लिया। केन्द्रीय सुरक्षा बल को इस सम्पूर्ण परिसर की सुरक्षा का दायित्व सौंप दिया गया। अनेक लोगों ने अधिग्रहण को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी। राष्ट्रपति ने संविधान की धारा 143 ए के अंतर्गत अपने अधिकार का उपयोग करते हुये सर्वोच्च न्यायालय से अपने एक प्रश्न कि क्या विवादित स्थल पर 1528 ईस्‍वी के पूर्व कोई हिन्दू मंदिर या भवन मौजूद था ?' का उत्तर मांगा। अधिग्रहण क े विरूद्ध दायर की गई याचिकाओं और राष्ट्रपति के प्रश्न पर एक साथ सुनवाई हुई। लगभग20 माह तक सर्वोच्च न्यायालय की सदस्यीय संविधान पीठ ने सभी पक्षों के विचार सुने और बहुमत के आधार पर 24 अक्टूबर1994 को अपना निर्णय दिया कि -
1. 
महामहिम राष्ट्रपति महोदय का प्रश्न हम सम्मानपूर्वक अनुत्तरित वापस कर रहे हैं। 
2. 
भारत सरकार द्वारा किया गया अधिग्रहण विधि अनुकूल है। 
3. 
श्रीराम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवादित ढांचे वाले स्थान से सम्बन्धित सभी मुकदमों का निपटारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ करेगी। 
सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय के पश्चात् सभी वाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ के समक्ष अन्तिम निपटारे हेतु आ गये। आज कुल चार वाद प्रथम तृतीय चतुर्थ और पंचम ही उच्च न्यायालय के समक्ष विचाराधीन हैं क्योंकि वर्ष 1990 में परमहंस रामचन्द्र दास महाराज ने अपना मुकदमा वापस ले लिया था। जून1996 में उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ में वादी सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से गवाहों के मौखिक बयान प्रारम्भ हुए। मई 2002 तक लगभग वर्ष में कुल 28 गवाहों के बयान रिकार्ड कराकर वादी पक्षने अपनी गवाही को समाप्त घोषित कर दिया। तत्पश्चात् वाद क्रमांकरामलला विराजमान के गवाहों के बयान लिखना प्रारम्भ हुआ। जुलाई 2003 तक वादी पक्ष ने अपने 16 गवाहों के बयान रिकार्ड कराकर गवाही को समाप्त घोषित कर दिया। गोपाल सिंह विशारद केवाद क्रमांक में भी तीन गवाहों के बयान लिखे गये। अगस्त 2003में निर्मोही अखाड़ा वाद क्रमांक की गवाही प्रारम्भ हुई वह भी समाप्त हो चुकी है। इस प्रकार गवाहों के मौखिक बयान रिकार्ड किए जाने का कार्य समाप्त हो चुका है।